March 22, 2018
आज का प्रेम
एक गुरू ही साधक में प्रेम जागृत कर सकते हैं । परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते कि कुछ नहीं कर सकते, प्रेम तो कर सकते हैं न , प्रेम करना तो सबको आता है न ! एक साधक हर बार सिर नीचे करके बोलते नहीं ! आपको आता है प्रेम करना, मुझे नहीं !
पूज्यमहाराजश्री कहते हैं कि गुरू को अपना अथाह प्रेम उँडेलना पडता है तब जाकर कहीं साधक गुरू से प्रेम करता है । कई साधक तो देवी देवताओं को भी कभी पूजा नहीं होता । उनके लिए गुरू ही हर देव व हर संबंध रहे होते हैं ! उनके सिवाय न कुछ सूझता है न समझ आता है!
गुरू भी बहुत अनोखे ढंगों से प्रेम करते हैं । पहले स्वयं से फिर समस्त सृष्टि प्रेममयी कर देते हैं ! वैकुण्ठ वे इसी धरती पर ही ले आते हैं साधकों के लिए !
साधक का प्रेम तो अधिकतम समय मानवी ही रहता है किन्तु गुरू तो आत्मिक व दिव्य प्रेम उडेलते हैं ! गुरू ही साधक की सब सुध बुध ले लेते हैं ! अपने प्रेम में बांवला बना देते हैं ! गुरू ही साधक को दिखाते हैं कि तेरे अंदर जो प्रेम ठाठों मारता है वह तेरे भीतर है ! और उस प्रेम में हम एक होते हैं ! न तेरा प्रेम न मेरा प्रेम केवल प्रेम रहता है ! कोई अन्य विचार नहीं सहन होता साधक से ! केवल अपने प्यारे की धुन ! पर गुरू ने तो उसे भीतर लेकर जाना होता है ! अपने प्रेम के द्वारा ही वे भीतर लेकर जाते हैं ! हर कार्य में उनका प्रेम ही निहित होता है ! केवल प्रेम !
गुरूजनो के अकारण प्रेम के लिए चिरऋणी चिरऋणी !