Monthly Archives: April 2018

निस्वार्थ प्रेम व ज्ञान

April 30, 2018

आज का चिन्तन

ज्ञान व प्रेम

प्रेम जब उमड़े बिन कारण , जब ठाठें मारे बिन कारण तो राम ही लीला कर रहे होते हैं भीतर ! राम के प्रेम के लिए जो सर्वस्व त्याग दे, राम के प्रेम के लिए जिसे सुध ही रहे, राम के प्रेम में बस केवल विलीन होना ही जब जीवन रह जाए तो राम ही कुछ अद्भुत रच रहे होते हैं भीतर !

निस्वार्थ प्रेम अकेला नहीं आता । उसका साथी ज्ञान भी होता है साथ । परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि अज्ञानता ही पाप का मूल है ! और पाप होते ही निच्छल प्रेम के अभाव में हैं। जो बिन वजह प्रेम करता होगा वह पाप क्यों करेंगा ?

मुझे किसी ने कहा कि अपने विडियो भेजिए न जिसमें कुछ सिखाया हो ! मैं बोली मेरे पास तो एक ही है कहने के लिए कि ” राम से प्रेम ” कीजिए ! परम पूज्यनीय गुरूजनो को सुनिए, परम आदरणीय जॉ चैटर्जी के लाईव सुनिए, आदरणीय अनीता जी को सुनिए ! मुझसे प्रेम लीजिए ! गुरूजनों का प्रेम !

प्रेम व ज्ञान पेट की भूख तो नहीं मिटाता पर उस देवाधिदेव का ध्यान आकर्षित कर साधन बना देता है पेट भरने के । पूज्य स्वामीजी महाराजश्री के बच्चे भूखे नहीं जाते ।

प्रेम व ज्ञान पीड़ाओं पर बाल्म लगा सकता हैं, दुखियों के आंसु हर कर मुस्कुराहट दे सकता है, अनजानों को अपना बना है , विषादग्रस्त को नई आशा दे सकता है ।

सो चलें निस्वार्थ प्रेम की डगर, जहां चाल भी अलग, सोच भी अलग, अंदाज भी अलग और अपना जहां कुछ न रहा – केवल राम ही राम !

राााााााओऽऽऽऽऽऽम

चयन

April 29, 2018

चयन

आज कृपामय दिन था और अनेक गहन सरल सीधे राम नाम के रसिक साधकों से मिलाकर गुरूजनों ने कृपा बरसाई ।

परम पूज्यश्री महाराजश्री सबको साथ लेकर चलने वाले संत महर्षि व गुरूदेव रहे हैं । मैं मेरे को सदा त्याग कर तू तेरा को लेकर चलने वाले ।

जहां मैं और मेरा हावि हो जाता है चाहे मेरा सत्संग, मेरा श्रीरामशरणम् , मेरी जाति, मेरे गुरू के लोग, मेरी सोच, मेरा यश, मेरा संकीर्तन, मेरे पोस्ट, मेरे विडियो, मेरी बातचीत, मेरे जान पहचान के साधक, मेरे भजन व अन्य भेद भाव, इत्यादि इत्यादि , वहां सूखा यश तो मिल जाता है किन्तु गुरूजन नहीं मिलते । यह यक़ीनन है ।

गुरूजन व उनका दिव्य प्रेम वहीं मिलता है जहां साधक के मन मे सबको साथ लेकर चलने की नियत हो। अपना पीछे रखकर दूसरों को आगे बढने व आगे निकलने का मौक़ा दे। दूसरों के राह साफ कर , दूसरों का मार्ग आसान बनाएँ । यहां मिलते हैं गुरूजन, यहां रहते है गुरूजन यहां अथाह प्रेम लुटाते हैं गुरूजन। और यहां बसता है निस्वार्थ प्रेम ।

जहां मन में दरार लाई जाए, जहां हृदयों में तोड़ फोड़ की जाए , जहां गलत बातें फैलाई जाएं वहां बेशक राम नाम की ओढ़नी हो किन्तु दिव्यता प्रदान करने वाले स्वामी वे देवाधिदेव नहीं मिलते । वहां भ्रम व माया दृष्टि व सोच धुंधली कर देती हैं।

सो जहां मिल कर चलने की बात हो वह ही सही सत्संग । वहां हैसकारात्मकता । वहां हैं गुरूजन । गुरूजन वसुदैव कुटुम्कम में विश्वास करते हैं। विश्व का हर बच्चा उनका साधक है ।

चयन हमारे हाथ में है कि हमने वहां जाना है जहां मिलकर चलने को कहा जाता है सा जहां हृदयों में तोड फोड़ का बीज डाला जाता है । चयन हमने करना है कि हमने गुरूजन का हर कार्य है मेरा नहीं उसका नहीं इसका नहीं करके चलना है !

गुरूजन के चिरऋणी में कि वे ऐसे पुण्य आत्माओ के श्री चरणों में लेकर गए जहां मेरे जैसे नलायक पर भी कृपा बरसी ।

निस्वार्थ प्रेम

April 29, 2018

आज का चिन्तन

निस्वार्थ प्रेम

बिन कारण प्रेम उमड़ना खासकर दूसरों के लिए । मन तड़पना दूसरों की सहायता के लिए । कुछ और कर सकें दूसरों के लिए । दूसरों के दुख का समाधान हो इसकी प्रार्थना ! यह सब निस्वार्थ प्रेम के ही अंग है । बिना कारण बिना जाने दूसर मुस्कुरा सके ऐसी भावनाएं आना ! यह सब राम नाम सिमरन व गुरू कृपा का प्रसाद है । दैहिक, मानसिक व आत्मिक सुख दूसरे को प्रदान करने की चाह संतों की देन ही है !

यह चाह मन में नई नई योजनाएँ लेकर आती हैं कि कैसे दूसरा परमानन्द की ओर मुड़े ! कैसे दूसरा परम सुख की ओर चले । संसारिकता से जूझता हुआ, कैसे वहां निर्लेप बना रहे, यह भी निस्वार्थ प्रेम का ही अंग है ।

गुरूजनों की अथाह कृपा से हमें यह अमूल्य अद्वितीय सत्संग मिला कि इसका मूल्याँकन नहीं कर सकते । आज एक साधक जी ने कृपा कर बताया कि साधकों को इस प्रार्थना कोश से इतना मिला है यहां की तरंगें इतनी ज़बरदस्त हैं कि कह नहीं सकते ! इतना यहां निस्वार्थ व समर्पित भाव से साधक सेवा करते हैं व सत्संग करते हैं कि मैं सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हो रही थी । साधकों के हर प्रश्न का समाधान मिलना, गुरूजनों की विशेष देन है।

एक साधक के नाते हमें सदा सतर्क होना सिखाया है । गुरूमुखी रहना बताया है । यदि हम में स्वयं के प्रति लेश मात्र भी संशय आए, कर्ता कौन इसके प्रति हिले तो गुरूजन अनन्त कृपा कर संशय छेदन कर देते हैं । कल कितनों ने कहा कि मन इतना उदास था और आपको मेरे गुरू महाराज ने मेरे लिए भेजा ! इत्यादि इत्यादि ! अब इसमें बुद्धु अनुपमा क्या जाने ! गुरूजन क्या क्या लीला खेलते हैं उसे बिठा कर ! वह तो केवल हैरानी से केवल अपने प्यारे की लीला व महिमा देखती है और उनके हस्ताक्षर व स्पर्श का इंतजार करती है !

अद्भुत चित्रकार हैं वे ! अनुपम चित्रकारी करते हैं !

उनका निस्वार्थ प्रेम हर वेदना हर घृणा हर दुख हर नकारात्मकता पर विजय दिला सकता है । हम विनती करें कि हम में भी निस्वार्थ प्रेम ठाठें मारे और हम दूसरों को जैसे वे हैं वैसे निस्वार्थ प्रेम में अंगीकार कर सकें ।

निस्वार्थ प्रेम प्राण प्यारे राम की ही साक्षात्कार है ।

दूसरों के लिए संकल्प

April 30, 2018

संकल्प कैसे लें , क्या बोलें, कितना करें … इसे कैसे किया जाता है ?

बहुत से या कुछ साधकों ने मन बनाया होगा संकल्प लेने के लिए । कल सुझाव गुरूजनों की कृपा से अर्पित किया था कि जिन किसी साधक ने जीवन में किसी अन्य के कारण अनन्त पीडा पाई है या फिर घर मे दूसरे को शुभता प्रदान करने हेतु संकल्प लेना चाहते हैं उनको अतिश्य शुभ व मंगल कामनाएं ।

कोई भी नकारात्मक इस कारण व्यवहार करता है क्योंकि उसके प्रारब्ध बहुत कसे हुए होते हैं। उस आत्मा को शुभता की अत्यन्त आवश्यकता होती है। यदि हम क्रोध, मार पीट, कहना न मानना के प्रति चिन्ता, दुख व पीड़ित होंगे तो क्या देंगे हम उन्हे नकारात्मक भाव ही दे रहे होते हैं । ऐसी आत्माओं को शुभता की आवश्यकता होती है। शुभ कर्मों की । और शुभ कर्मों का सर्वोच्य साधन है राम नाम । नकारात्मकताएं मानसिकताओं में होती है सोच में होती है और सोच बदली जा सकती है ।

क्योंकि अज्ञानता के कारण दूसरा किसी को त्रास देता है, सो हम पूज्यपाद श्री श्री स्वामी जी महाराजश्री द्वारा दिया गया पावन दोहा सम्पुट के रूप में कर ले सकते हैं । सम्पुट मतलब- किसी भी जाप को आरम्भ करने से पहले –

जगे चेतना विमलतम हो सत्य सुप्रकाश ।

शान्ति सर्व आनन्द हो पाप ताप का नाश ।।

इसे सात बार बोल कर व्यक्ति का नाम लेकर अपना संकल्प अर्पित व आरम्भ कीजिएगा ।

सवा करोड नाम जाप के लिए हर रोज 35,000 का जाप अर्पित कीजिएगा । हर माला केपश्चात गुरूजनों का धन्यवाद कीजिए कि नाम उन्होंने जपवाया । साथ ही अपने प्राण प्यारे राम से कहिएगा – मैं तेरी तू मेरा राम ( 7 बार)

जाप कैसे भी कर सकते हैं । सैर पर, कुर्सी पर, यात्रा में, महिलाओं के मासिक दिनों में, घर में मृत्यु आन पड़े तब भी । कोई दिन खाली नहीं जाना व टी वी देखते समय जाप नहीं करना ।

कोई अन्य प्रश्न हो तो कृपया पूछ सकते हैं ।

संकल्प के दिनों में कम से कम प्रतिक्रिया करने की कोशिश कीजिएगा।

अतिश्य शुभ व मंगल कामनाएं

ब्रह्म ज्ञान ( ३-४)

April 29, 2018

सकल जगत् में उसकी जोती, चमके सुजीवन सत्ता होती ।

अमूल मूल ही सर्वधारा, सब में रमा सभी से न्यारा ।।३।।

सब के पास दूर हरि जाना, भीतर बाहर एक समाना ।

कारण आदि जन्म जग का ही, है होगा पहले हरि था ही ।।४।।

परम पूज्य़श्री श्री स्वामीजी महाराजश्री

सर्व आपसे प्रभु हे सद्गुरू महाराजश्री

सकल ब्रह्माण्ड मे परम पावन परमेश्वर की है ज्योति जगमगा रही है । मानवों मे , वनस्पतियों में, पशु पक्षियों में , फूल पत्तियों में, हर एक चीज में केवल वे ही हैं । उन्हीं की उपस्थिति से ही जीवन में शुभ प्राणों का संचार है। जो जड़ है जैसे वृक्ष आदि उनके भी जो निराधार हैं उनका भी अस्तित्व उन प्राण प्यारे परमेश्वर से ही है।

वे सबके पास हैं, अति अति पास, स्वास से भी पास, पर सब श्री हरि को दूर समझते हैं ।वे जैसे भीतर विराजित हैं उसी तरह बाहर भी विराजित हैं । कोई भेद नहीं ! वे जग में हर के जन्म का कारण हैं । वे जिसमें विराजते हैं, उसी का जन्म होना माना जाता है । पर हरि का तो जन्म नहीं ! वे तो पहले भी थे, अब भी हैं और सदा सदा रहेंगे !

राम ही केवलम्

राम ही केवलम्

सब आपही से व आपही के श्री श्री चरणों में

कैसे चयन करे ?

April 29, 2018

आज की चिन्तन

दोराहा – कैसे चयन करें ?

आज कुछ पलों के लिए live आई । आने से पहले यह कितनी बार सोचा कि ” मन के खेल हैं ” तुम्हें पसंद है तभी तुम जा रही हो । बीते कल पर गई । कोई कह कर रहा था आप आइए न , तो कहा था कि नहीं मुझे अनुमति नहीं है आने की । फिर एक साधक जी भी बोले कि हम मन की अधिक करते हैं। इन सब बातों को भीतर सुना और और पीछे गई कि हिन्दी के लिए तो ऐसे ही एकाएक सदा लेकर आए हैं । और वह पंक्ति भी कि ” जिस काम से दूसरे का भला हो वह कर दो ” । सो दूसरे का चयन किया ।

कैसे पता चले कि मन की थी या गुरूजनों की अनुमति ?

यक़ीनन मन का खेल हो सकता है इसमें दो राहें नहीं ।

पर अपने लिए कुछ नहीं ।

तो जब भी दोराहे पर हों और यह देखना पड़े कि यह मार्ग लूँ या दूसरा … तो जिसमें स्वार्थ न हो जिसमें अपना निजी लोभ लालच न हो, किसी का नुक़सान न हो इत्यादि , वह कर देना चाहिए । क्योंकि आपमें भी तो दिव्यता बहती है ! न जाने उन पाँच या दस लोग जो आए और जिन्होंने सुना, उनके लिए हो ! कि मुझे अच्छा काम करते जाना है । चाहे मैं अकेला हूँ पर जहां हूँ अच्छे काम करते जाना है , सकारात्मकता फैलाते जाना है।

और यदि फिर भी लगे कि कहीं अपने मन की तो न थी , तो अपने सद्गुरू महाराज से कह दीजिए , मुझे पता नहीं यह मेरी इच्छा है या आपकी, पर क्योंकि मैं आपकी गोद में हूँ सो हर इच्छा के मालिक आप !

सर्व श्री श्री चरणों में

शरणागत जन जानकर मंगल करिए दान

नमो नम: जय राम हो मंगल दया निधान

आसक्ति का नशा

April 29, 2018

कितनी प्रार्थनाएँ आती कि घर पर पति या बच्चे आदर नहीं करते या बुरा व्यवहार करते हैं पर महिलाएँ चाह कर भी अलग नहीं हो सकती । प्रारब्ध ही इसका उत्तर मिला और कहीं न कहीं पीडा सहते रहने पर आसक्ति ।

जीवन में केवल उन लोगों से अथाह आसक्ति हुई जो परमेश्वर से रंगे हुए थे ! नशे की तरह थी ऐसी आसक्ति ! प्रभु सदा सदा सहायक रहे। परम पूज्यश्री महाराजश्री ने इस वेग को बहुत कस के रखा ! और अथाह कृपा बरसाई कि वे मुझे भीतर मिलने आरम्भ हुए । सो उनके परिनिर्वाण के पश्चात वे कहीं गए ही नहीं थे ।

पर वह बीज सूख कर भुना न था ।

आज यह पूर्ण रूप से महसूस कर सकती हूँ कि कैसे महिलाएँ इतना अपमान तिरस्कार इत्यादि इत्यादि सहती है, पर फिर भी वापिस आसक्ति के कारण अपना स्पेन देती रहती हैं और बीमार हो जाती हैं! आसक्ति का नशा, यह आज परम आदरणीय डॉ चैटर्जी ने अनावरण किया। ! ” नहीं ” कहा नहीं जाता ! आत्मसम्मान रखा नहीं जाता !

यह केवल हाल महिलाओं का नहीं बुज़ुर्गों का भी है। बच्चों से अथाह मोह सैकड़ों बार अपमानित करवाता है पर फिर भी बार बार जाते हैं उसी द्वारा ।

गुरू भी अपनी देह से आसक्ति छूटे तो कई बार अपमान, तिरस्कार का उपयोग करते हैं। पर वहाँ साधक टूटता नहीं है उनके कृपा रूपी प्रहार से बल्कि नशा टूटता है ! जब नशा टूटता है तो उसके साथ जो अन्य मल एकत्रित हो गया होता है वह भी निकल जाता है !

परमेश्वर कृपा करें कि आसक्ति का बीज भुन जाए और कभी किसी जन्म में किसी देह से आसक्ति न होवे !

आसक्ति है वह भी गुरू से , यह केवल गुरू ही दिखा सकते हैं ! तत्व रूप से , राम से अनुराग अनिवार्य है! वही भीतर की यात्रा सफल बनाता है।

हर शब्द आपसे ही है व आपही के श्री चरणों में

ब्रह्मज्ञान

April 27, 2018

सत्य ही ज्ञान अनन्त स्वामी, सच्चिदानंद हि अन्तर्यामी ।

त्रिगुणातीत अचल अपारा, उस का ही है विश्व पसारा ।।१।।

शुद्ध विमल हरि है अविनाशी, पूर्ण पुरूष प्रभु प्रकाशी ।

अखण्ड अतुल अगोचर सोई, सत्ता परम सदृश नहीं कोई ।।२।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री , श्री भक्ति प्रकाशी जी

हे सद्गुरू महाराज सर्व आप व आपसे ।

वह परम पुरुष सच्चिदानन्द परमात्मा सत्य व ज्ञान के भण्डार हैं , पर अंतर्यामी है, माएने अंत: करण में विराजित हैं, हृदय की हर बात जानने वाले हैं । तीनों गुणों के पार , सत्वगुण, रजोगुण व तमोगुण से पार। यह गुण इन्हें लेश मात्र भी छूते नहीं ! ऐसे परमेश्वर का यह समस्त संसार है सम्पूर्ण विश्व है !

हरि सदा सदा अनादि काल से हैं। इनका जन्म नहीं होता । ये पूर्ण पवित्र व पावन हैं । इन्हीं पूर्ण पुरुष द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड में प्रकाश है।ये ही केवल पुरुष हैं ! हम देह रूपी पुरुष स्त्री के वे ही केवल सम्पूर्ण पुरुष परमेश्वर हैं । वे अखण्ड हैं, टुकड़ों में नहीं हैं , कहीं हैं कहीं नहीं, ऐसे नहीं ! उन जैसा कोई नहीं ! अद्वितीय हैं और हर जगह विराजमान हैं। आकाश पाताल अन्य लोक, सृष्टि के कण कण में , ज़र्रे ज़र्रे में।ऐसी सत्ता के मालिक कोई नजर नहीं आता ! उनके समान कोई नहीं ! उनके जैसा कोई है ही नहीं !

ऐसे परमेश्वर ऐसे पूर्ण पुरुष के श्री श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम

मिटा दीजिए

April 27, 2018

आज का समर्पण

गुरू जैसे रखें , वैसे ही हम रहें । गुरू दिन को रात यदि कहें, तो हम प्रमाण न लेकर आएं कि देखिए आपने तो यह कहा था । या देखिए बाहर तो दिन है।

नहीं कभी नहीं ।

यदि गुरू कुछ भी कहें , हाथ जोड़कर स्वीकृति ही सही रहती है। बहस, झगड़ा , ग़ुस्सा यह सब बहुत गड़बड़ कर देते हैं ।

गुरू अपने ही रूप में बहुत रूप धरते हैं भीतर का मल साफ करने के लिए। गुरू से कुछ नहीं छिपा होता । वासनाएँ, काम, नकारात्मक भावनाएं , लालच, लोभ, कुछ नहीं।

हम तो अपने के देख नहीं सकते। हमारी न बुद्धि साफ है न मन न हृदय। सो चुपकरके, जो गुरू कहें स्वीकार कर लेना चाहिए।

कईयों के लिए अपने प्रारब्धों के अनुसार साफ होना कठिन नहीं पर मेरे जैसे कइयों के लिए बहुत कठिन है। वह केवल गुरूकृपा से ही सम्भव हो सकता है। किन्तु मेरे जैसों का अहम् गुरू के आगे भी फुँकारें मारता है , निर्लज्ज के भाँति । ऐसा बिल्कुल सही नहीं है।

सो नत्मस्तक होना है। जहां रखा है जैसे रखा है एक नौकर से भी नीचे होकर रहना है। गुरू के लाड में बहकना नहीं ! न ही दुलार में। चरणों के नीचे ऐसी धूल जोबार बार उन्हीं से रौंधी जाए , ऐसी धूल बनना है ! जिनको अहम् की बीमारी होती है वहाँ आसान नहीं ! किन्तु जो केवल तू पर आ सके वही सही है ।

जैसे रखें जहां रखें जो दें जो न दें .. इससे हमें कोई सरोकार नहीं। अपना नाम दिया – जीवन में सब कुछ दिया ।

मिटादें वे स्वयं ही । अपने आप से तो केवल बिगड़ना आता है! दया करें हे दीनानाथ ! क्षमा करें ।

भावों की समझ

आज प्रभु उन सभी के लिए भाव लेकर आए जो गुरूजनों के देहिक सानिध्य में रहे हैं और उनका प्रेम व दुलार प्राप्त किया । पूज्य महाराजश्री ने कहा है कि गुरू का प्रेम सदा ही आत्मिक होता है किन्तु उनके देह में इतनी दिव्यता होती है कि हम सामान्य साधक उस देह से तदात्मन् कभी छोड़ नहीं पाते ।

इसी तरह वह साधक जिसने गुरू के अंग संग रह कर उनकी कृपा का प्रेम का दुलार का रसपान न किया हो उसके लिए कल्पना करना कठिन होता है ! पर चाह होती है !

किन्तु आज उन सब के भाव समझ आ रहे हैं ! कैसे वे तड़पते होंगे वह महसूस हो पा रहा है !

देह से भीतर की यात्रा .. यही वियोग व विछोह लेकर आता है । उनको पाने की चाह व तड़प ही यह यात्रा आरम्भ करवाती है ! विरह की अग्नि क्या होती है यह तभी समझ आता है। जिसको विछोह कभी हुआ ही न हो, कठिन है समझना !

हम दूसरों की पीडा तब अधिक समझ सकते हैं जब हम स्वयं को दूसरे की जगह रख कर देखें या स्वयं उस परिस्थिति से गुज़रें !

Online नहीं पता चलता किस पर क्या गुज़र रही है ! पर हर कोई जीवन से जूझ रहा होता है । पर संसार से अनभिज्ञ !!

आज अनन्त कृपा हुई कि साधकगण जिनको गुरूजनों का सामीप्य प्राप्त हुआ … वे कैसी पीडा से गुज़र कर भीतर गए होंगे ! कितने अश्रुओं की बाढ बही होगी और फिर भीतर यात्रा आरम्भ हुई होगी ! जिनके जीवन में केवल गुरूदेव ही एकमात्र सहारा रहे होगे , जिनके भोजन, सेहत, नौकरी, चाकरी, परिवार का कितना ध्यान रखते .. वे अब तत्व रूप में हर कार्य वैसे ही करते हैं !

यह कृपा है कि हम जीवन के विभिन्न भावों को जैसे वियोग, क्रोध, ग़रीबी, विछोह, काम, ईर्ष्या , बेरोज़गारी,लोभ, प्रेम को जब स्वयं अनुभव करते हैं तो जो उससे गुज़र रहा होता है उसकी पीडा समझ सकते हैं !

यह पीड़ाएँ सत्य होती हैं यहां भाषण काम नहीं करता ! किन्तु राम नाम काम करता है । राम नाम आरोग्यता प्रदान करता है ।

चिरऋणि !

कृतार्थ