भावों की समझ

आज प्रभु उन सभी के लिए भाव लेकर आए जो गुरूजनों के देहिक सानिध्य में रहे हैं और उनका प्रेम व दुलार प्राप्त किया । पूज्य महाराजश्री ने कहा है कि गुरू का प्रेम सदा ही आत्मिक होता है किन्तु उनके देह में इतनी दिव्यता होती है कि हम सामान्य साधक उस देह से तदात्मन् कभी छोड़ नहीं पाते ।

इसी तरह वह साधक जिसने गुरू के अंग संग रह कर उनकी कृपा का प्रेम का दुलार का रसपान न किया हो उसके लिए कल्पना करना कठिन होता है ! पर चाह होती है !

किन्तु आज उन सब के भाव समझ आ रहे हैं ! कैसे वे तड़पते होंगे वह महसूस हो पा रहा है !

देह से भीतर की यात्रा .. यही वियोग व विछोह लेकर आता है । उनको पाने की चाह व तड़प ही यह यात्रा आरम्भ करवाती है ! विरह की अग्नि क्या होती है यह तभी समझ आता है। जिसको विछोह कभी हुआ ही न हो, कठिन है समझना !

हम दूसरों की पीडा तब अधिक समझ सकते हैं जब हम स्वयं को दूसरे की जगह रख कर देखें या स्वयं उस परिस्थिति से गुज़रें !

Online नहीं पता चलता किस पर क्या गुज़र रही है ! पर हर कोई जीवन से जूझ रहा होता है । पर संसार से अनभिज्ञ !!

आज अनन्त कृपा हुई कि साधकगण जिनको गुरूजनों का सामीप्य प्राप्त हुआ … वे कैसी पीडा से गुज़र कर भीतर गए होंगे ! कितने अश्रुओं की बाढ बही होगी और फिर भीतर यात्रा आरम्भ हुई होगी ! जिनके जीवन में केवल गुरूदेव ही एकमात्र सहारा रहे होगे , जिनके भोजन, सेहत, नौकरी, चाकरी, परिवार का कितना ध्यान रखते .. वे अब तत्व रूप में हर कार्य वैसे ही करते हैं !

यह कृपा है कि हम जीवन के विभिन्न भावों को जैसे वियोग, क्रोध, ग़रीबी, विछोह, काम, ईर्ष्या , बेरोज़गारी,लोभ, प्रेम को जब स्वयं अनुभव करते हैं तो जो उससे गुज़र रहा होता है उसकी पीडा समझ सकते हैं !

यह पीड़ाएँ सत्य होती हैं यहां भाषण काम नहीं करता ! किन्तु राम नाम काम करता है । राम नाम आरोग्यता प्रदान करता है ।

चिरऋणि !

कृतार्थ

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