ब्रह्मज्ञान

April 27, 2018

सत्य ही ज्ञान अनन्त स्वामी, सच्चिदानंद हि अन्तर्यामी ।

त्रिगुणातीत अचल अपारा, उस का ही है विश्व पसारा ।।१।।

शुद्ध विमल हरि है अविनाशी, पूर्ण पुरूष प्रभु प्रकाशी ।

अखण्ड अतुल अगोचर सोई, सत्ता परम सदृश नहीं कोई ।।२।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री , श्री भक्ति प्रकाशी जी

हे सद्गुरू महाराज सर्व आप व आपसे ।

वह परम पुरुष सच्चिदानन्द परमात्मा सत्य व ज्ञान के भण्डार हैं , पर अंतर्यामी है, माएने अंत: करण में विराजित हैं, हृदय की हर बात जानने वाले हैं । तीनों गुणों के पार , सत्वगुण, रजोगुण व तमोगुण से पार। यह गुण इन्हें लेश मात्र भी छूते नहीं ! ऐसे परमेश्वर का यह समस्त संसार है सम्पूर्ण विश्व है !

हरि सदा सदा अनादि काल से हैं। इनका जन्म नहीं होता । ये पूर्ण पवित्र व पावन हैं । इन्हीं पूर्ण पुरुष द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड में प्रकाश है।ये ही केवल पुरुष हैं ! हम देह रूपी पुरुष स्त्री के वे ही केवल सम्पूर्ण पुरुष परमेश्वर हैं । वे अखण्ड हैं, टुकड़ों में नहीं हैं , कहीं हैं कहीं नहीं, ऐसे नहीं ! उन जैसा कोई नहीं ! अद्वितीय हैं और हर जगह विराजमान हैं। आकाश पाताल अन्य लोक, सृष्टि के कण कण में , ज़र्रे ज़र्रे में।ऐसी सत्ता के मालिक कोई नजर नहीं आता ! उनके समान कोई नहीं ! उनके जैसा कोई है ही नहीं !

ऐसे परमेश्वर ऐसे पूर्ण पुरुष के श्री श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम

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