निस्वार्थ प्रेम

April 29, 2018

आज का चिन्तन

निस्वार्थ प्रेम

बिन कारण प्रेम उमड़ना खासकर दूसरों के लिए । मन तड़पना दूसरों की सहायता के लिए । कुछ और कर सकें दूसरों के लिए । दूसरों के दुख का समाधान हो इसकी प्रार्थना ! यह सब निस्वार्थ प्रेम के ही अंग है । बिना कारण बिना जाने दूसर मुस्कुरा सके ऐसी भावनाएं आना ! यह सब राम नाम सिमरन व गुरू कृपा का प्रसाद है । दैहिक, मानसिक व आत्मिक सुख दूसरे को प्रदान करने की चाह संतों की देन ही है !

यह चाह मन में नई नई योजनाएँ लेकर आती हैं कि कैसे दूसरा परमानन्द की ओर मुड़े ! कैसे दूसरा परम सुख की ओर चले । संसारिकता से जूझता हुआ, कैसे वहां निर्लेप बना रहे, यह भी निस्वार्थ प्रेम का ही अंग है ।

गुरूजनों की अथाह कृपा से हमें यह अमूल्य अद्वितीय सत्संग मिला कि इसका मूल्याँकन नहीं कर सकते । आज एक साधक जी ने कृपा कर बताया कि साधकों को इस प्रार्थना कोश से इतना मिला है यहां की तरंगें इतनी ज़बरदस्त हैं कि कह नहीं सकते ! इतना यहां निस्वार्थ व समर्पित भाव से साधक सेवा करते हैं व सत्संग करते हैं कि मैं सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हो रही थी । साधकों के हर प्रश्न का समाधान मिलना, गुरूजनों की विशेष देन है।

एक साधक के नाते हमें सदा सतर्क होना सिखाया है । गुरूमुखी रहना बताया है । यदि हम में स्वयं के प्रति लेश मात्र भी संशय आए, कर्ता कौन इसके प्रति हिले तो गुरूजन अनन्त कृपा कर संशय छेदन कर देते हैं । कल कितनों ने कहा कि मन इतना उदास था और आपको मेरे गुरू महाराज ने मेरे लिए भेजा ! इत्यादि इत्यादि ! अब इसमें बुद्धु अनुपमा क्या जाने ! गुरूजन क्या क्या लीला खेलते हैं उसे बिठा कर ! वह तो केवल हैरानी से केवल अपने प्यारे की लीला व महिमा देखती है और उनके हस्ताक्षर व स्पर्श का इंतजार करती है !

अद्भुत चित्रकार हैं वे ! अनुपम चित्रकारी करते हैं !

उनका निस्वार्थ प्रेम हर वेदना हर घृणा हर दुख हर नकारात्मकता पर विजय दिला सकता है । हम विनती करें कि हम में भी निस्वार्थ प्रेम ठाठें मारे और हम दूसरों को जैसे वे हैं वैसे निस्वार्थ प्रेम में अंगीकार कर सकें ।

निस्वार्थ प्रेम प्राण प्यारे राम की ही साक्षात्कार है ।

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