Monthly Archives: June 2018

दिव्यता के खुल कर हर ओर से दर्शन

June 25, 2018

कैसे दिव्यता विचारों का साथ दे रही हैं ! आज शाम में जब सैर पर निकली अचानक झाडियों से हिरण ने बाहर झाँकी मारी ! मेरे चेहरे पर खुल कर मुस्कुराहट आ गई । भाग गया वह जंगल में झलक दे कर । आगे गई तो एक हिरण इत्मिनान से घास खा रहा था !

यहां कुत्ते व बिल्लियाँ पाल्तु होते हैं घरों के बाहर नहीं दिखते । पर जंगल होने के कारण हिरण होते हैं ।

सो आगे गई तो मानो किसी ने ज़बरदस्ती आसमान पर नजर डलवाई और आसमान का नज़ारा देख सांस ही थम गई । मैंने आकाश का तेजी से पीछा किया पर दिशा बदल जाने के कारण वह दृश्य न फिर दिखा । पर मैं चलती गई इस आशा में कि जरूर फिर से दर्शन होंगे !

तभी ठण्डी पवन ने स्पर्श किया और टिमटिमाते हुए जुगनु सामने दिखे ! हृदय की धडकन तेज़ हो चुकी थी कि दिव्यता एक में नहीं पर हर ओर से आज दर्शन देने के लिए उत्सुक है !

और मैं आगे पहुँची और आकाश की ओर देखा और बस ! क्या कहें ! ठण्डी पवन फिर चली । और अब यक़ीनन जान गई कि दिव्यता ने मेरे राम ने स्वीकारा कि एक में नहीं मैं हर ओर हूँ तेरे साथ ! वे जाननहार सब जानते हैं ! अपने ही सपनों में रहने वाली बुद्धु ! बाहर वे आ जाते हैं प्रकृति के रूप में साथ देने !

FAQ – प्रार्थना व प्रारब्ध

June 25, 2018

प्रश्न : यदि हमारे प्रारब्ध हमें पीड़ित कर रहे हैं तो फिर प्रार्थनाओं का क्या महत्व ? प्रार्थनाएँ भी तो सम्भव बनाती हैं सब ।

परम पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि जब विपदा आए, तो परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें बल दे कि हम यह सह सकें । पूज्य गुरूदेव यह नहीं कहते कि यह विपदा टल जाए या समाप्त हो जाए । न । वे यह कहते हैं कि प्रभु ! मेरे राम ! मुझे शक्ति दे ।

क्यों ? क्योंकि वे कर्म संस्कार मिटाना चाहते हैं । वह कर्म जला देना चाहते हैं और वह सह कर चुप रहकर स्वीकार करके सम्भव होता है ।

एक माता जी को पूज्यश्री ने स्वयं उनकी लडकी के लिए लड़का देखना के लिए आदेश दिया । दो वर्ष बीते । लड़के देखे । पूज्य गुरूदेव के पास लड़के का bio-data लेकर जाते , तो महाराजश्री हाथ मे वह मरोड़ देते । लगे रहे ! फिर कोई मिलता , फिर जाते, तो कहते – ऐसे ही थोडी कहीं भी कर दें । माता जी का धैर्य टूटता जा रहा था । पूज्य गुरुदेव कहते प्रार्थनाएँ जारी हैं ! सात वर्ष लग गए ! फिर जाकर विवाह हुआ , तब भी विवाह से उपरान्त हिचकी आई !

क्या तात्पर्य था इस लीला का ? बहुत कर्म कटवाना चाहते थे पूज्य गुरूदेव । कर्मों के ऋण चुकवाना चाहते थे । किसको कष्ट हो रहा था ? माँ को ? सो माँ से मेहनत करवाना चाहते थे । सिखाना चाहते थे व कर्म बंध काटना चाहते थे ।

सो जब प्रार्थनाएं एक दम स्वीकार नहीं हो रही , यदि हम ध्यान से देखें तो गुरूजन सिखाने लग जाते हैं । कहीं न कहीं से सीखने को मिलने लग जाता है, जाप पाठ बढ जाता है, विपदा के बहाने । यह निश्चित है ।

सो सदा अपने लिए विपदा के समय बल माँगें । यदि ठीक मांग सही समय पर करते हैं तो वह अवश्य मिलता है ।

चाहे कोई नहीं साथी , राम है । सूक्ष्म रूप में गुरूजन हैं ।

आप पीडा हरने वाले हैं करुणानिधि हैं ! पीडा नहीं देते ! वह तो हमारी विकृत बुद्धि कहती है । आप तो कृपा करते हैं कि हमारे कर्मों के ऋण समाप्त हों । सो इंतजार के लिए बल माँगना है, स्वीकृति भाव रखना है ।

प्रार्थनाएँ कभी व्यर्थ नहीं जातीं । पर सही प्रार्थना करनी है -बल व कृपा ही हम माँगे ।

दुख proof, शोक proof हो जाएं ?

June 24, 2018

आज परम पूज्यश्री महाराजश्री बोले – ” दुख proof, शोक proof, होना सम्भव है …राम नाम इसे सम्भव बना देता है … हम राम नाम जपते हैं पर फिर भी दुखी होते हैं । क्यों ? क्योकि राम नाम पर राम मंत्र पर राम ईष्ट पर विश्वास नहीं ! कि राम में इतनी शक्ति हे कि वे हमें दुख proof व शोक proof बना सकते हैं … ”

क्या हम यह सुंदर यात्रा लें ? दुख proof होने की ? मेरे राम को केवल प्यार करना आता है ! वे प्राण प्यारे प्रेम करते हैं ! ऐसा गुरूजन कहते हैं ।

दुख केवल मेरी अपनी कामना के कारण है आसक्तियों के कारण है व सोच के कारण है ! मेरे मन व बुद्धि की दुर्बलताओं के कारण है ! हम यह यदि मान लें !

राम के पास तो प्रेम की अथाह ऊर्जा है जो भाव व सोच परिवर्तन कर सकती है !

हम प्रभु से विनती करें कि भगवन ! अपनी अथाह प्रीति दे दीजिए कि केवल आप रह जाएं ! केवल आप !

माया, कृपा या प्रेम

June 28, 2018

अब बोलिए क्या कहें इसे ? माया या कृपा !!! या फिर केवल प्रेम !

यदि केवल इसी पर मन आकर्षित होकर केवल इसे ही अपना प्यारा मान ले या केवल इससे विशेष आकर्षण हो जाए या केवल इसी का विशेष इंतजार रहे तो माया !

किन्तु यदि सृष्टि के ज़र्रे ज़र्रे में वह प्राण प्यारा महसूस हो और इस हिरण पर भी दूसरों के भाँति एक सा आकर्षण तो कृपा !

परम प्यारा तो भीतर है ! हम भीतर उसे पहले महसूस करें , कि हमारे भीतर ही तो आप ! तो फिर बाहर हर मे , एक या दो में नहीं हर में !

हमें भीतर अपनी फुलवारी का निर्माण करना है जहां हर तरह का फूल समाया जा सके, हर तरह का जीव समाया जा सके या फिर केवल राम ! सत्य स्वरूप में, जो हर एक को बिन किसी भेद भाव के अपनाते हैं !

पर इन सब के पार यदि केवल प्रेम देखें … तो केवल प्रेम ही रह जाता है ! केवल प्रेम – न रूप न विभिन्नता बस प्रेम !

मेरे सर्वस्व ! मेरे प्राण प्यारे !

हर ज़र्रे ज़र्रे में

June 23, 2018

आज सुबह ही सैर पर ले गए । छुट्टी का दिन था, जरूरी नहीं सांय समय निकल पाती । मन में कोई आशा नहीं थी किसी भी चीज की , हिरण मन में भी न आया !

जबकि सैर जाने से काफ़ी देर पहले पहले किसी का मैसेज आया कि आज हिरण श्रीरामशरणम में श्रीभक्ति प्रकाश जी में आए …

फिर भी मन खाली गया ….

वापिस आ रही थी तो मन पर ध्यान गया कि आज तो न इच्छा जगी न कुछ , तो परम प्यारे मानो बोले के एक में क्यों ? मैं तो हर जगह से देखता हूँ ! हर चीज में से !

आकाश, वृक्ष, पौधे , घास … हर जगह से …

मानो अपनी बाँहें पसार कर अपने सर्वस्व को निराकार रूप में अंगीकार कर लो और पवन का स्पर्श ही उनका स्पर्श मानकर एक हो जाओ !

सच एक में ही क्यों हर जगह .. हर पल के साथी … मेरे परम प्यारे.. मेरे परम गुरू … मेरे सखा व सुहृद .. सर्वेसर्वा मेरे राम !

अद्भुत भेंट

June 22, 2018

कुछ तो अद्भुत है !!

आज काम पर देरी से जाना था, सुबह की ठण्डक, सैर पर निकल गई । मन ही मन देख रही थी अपने मन को कि क्या वह इच्छा या इंतजार तो नहीं कर रहा । मुझे प्रभु की मीठी लीलाएँ पसंद है न कि अपनी इच्छाएं थोपनी ! सो मन पर निगरानी थी ! खैर , कोई नहीं मिला ।

काम पर गई और जल्दी आज वापिस आ सकते थे । सो दोपहर से पहले ही आ गई । घर के लिए आखिरी मोड़ लेना था कि देखा कोई इंतजार कर रहा था !

मैंने गाडी रोकी और फ़ोटो ली ! उन्होंने देखा ! व फिर मस्ती से खाते रहे और फिर जंगल में चल दिए ।

शाम को परिवार के सदस्य से पता लगा कि पूरा परिवार है । बारासिंगा भी उन्हें दिखा व अन्य ४-५ हिरण !

मैं मंद मंद मुस्कुराई ! मेरे संग तो एक हैं जो लीला खेल रहे हैं ! स्वयं भी आनन्द ले रहे हैं, मुझे भी आनन्द दे रहे हैं और पाठकों को भी !

आप सभी को स्मरण होगा कि एक पोस्ट में वर्णन करवाया था कि जब पूज्यश्री महाराजश्री मेरिलैंड के श्रीरामशरणम् आए थे तो लग भग ४-५ हिरण उनके अतिश्य निकट आ गए थे और वे उनसे धीमी धीमी प्रेम भरी वार्तालाप कर रहे थे !

अद्भुत प्रेममयी लीला ! कैसे उन्हें पता था कि सांय समय आज सैर न जा पाएगी सो कैसे मिलने आ गए !

अद्भुत !

श्री श्री चरणों में

वे आते हैं मिलने

June 20, 2018

आज सैर के लिए निकली तो मन में कामना जगी कि क्या आज आएगे ? कल इंतजार किया , नजर भी थी पर न आए! बोले कछुआ नहीं मिला था क्या ?

मैं हंसी ! हाँ कछुआ बन तो स्पर्श भी किया, हाथों में भी लिया, प्यार भी किया !

सो निकल पडी आज । मन ही मन चलती जा रही थी ! कि अचानक मेरे आगे से कोई दौड़ा ! अकेले ही था । नहीं तो कभी तीन,पाँच के झुंड होते हैं ।

एकदम फोन निकाला ! और बड़े प्यार से विडियो लेने दी । हिरण बहुत सुंदर फ़ोटो shoot देते हैं ! आराम से खडे हो जाते हैं कि ले लो !

वापिस चली और मौसम ने रूख बदला ! अत्यन्त मीठी सी तेज़ हवा चली और बिज

बूंदा बूंदी होने तक …… घर पहुँच गई !

आशा है सबने उतना ही आनन्द लिया होगा जितना मुझे मिला !

आप सब क़ा दिन अतिश्य मंगलमय हो ! राम से ओतप्रोत ! राम के रस में भिगा हुआ हो !

हर सांस उनके लिए

June 20, 2018

मैं अपने कमरे में बैठे काम कर रही थी कि तालियों की उत्सव जैसी आवाज आ रही थी ।

मैं बाहर निकली और किसी से पूछा क्या हो रहा है, तो उन्हें भी पता नहीं था । मैं वापिस चले गई ।

कुछ पलों बाद फिर तालियों की आवाज हुई तो पता लगा कि मेरे निकट के कमरे के अध्यापक रिटायर हो रहे हैं और कुछ बच्चे व अध्यापक छोटा सा व्यक्तिगत कार्यक्रम उनके लिए कर रहे हैं।

वातावरण भारी था । वे बिमार थे और अब कुछ और करने की सोच रहे हैं। बच्चे अश्रुपूर्ण लेख पढ रहे थे । उनके सह कर्मचारी भी भावुक थे और वे स्वयं भी ।

वे सदा बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए पाए जाते और कहते ” हर रोज मेरा जन्म दिन है”

जिस दिन जाग जाओ मानो नया जीवन व नया जन्म ।

मैं मिली उनसे वे बोले – मैंने तो कुछ नहीं किया यह सब प्यार व सम्मान के लिए !

मुझसे कहा गया – जो आप देते हैं खासकर नेकी , वह बहुत गुना लौट कर आती है ! सो आ रही है !

यह सच है ! हम जहां हैं वहां चुप चाप अपने परमेश्वर से एक होकर उनके कार्य करते जाएं ! बस ! तब जीवन मे कभी भी आखिरी स्वास क्यों न हो हम प्यारे प्रभु से एक हुए उनको अपनी हर सांस देते हुए चाह वह आखिरी सांस ही क्यों न हो ! बात तो उनके लिए जीने में है !

उसका रहूं कृतज्ञ मैं ,मानूँ अति आभार ।

जिसने अति हित प्रेम से मुझ पर कर उपकार !

अद्भुत भेंट

June 19, 2018

आज देखिए कौन मिला !!

एक छोटा सा कछुआ !!

आज काम से निकली मेन रोड पर आई तो यह छोटे से जनाब सड़क के बीचों बीच ! बाप रे ! उस समय लाल बत्ती थी तो गाड़ियाँ नहीं आ रही थी ! गर्दन बाहर कर बड़ें आत्मविश्वास से साहब सड़क के बीच ! पर मेरा हृदय तो …. !!

मैंने जल्दी से गाडी पार्किंग पर लगाई और बाहर निकली कि देखूँ कि कुछ कर सकूं ! मैं निकली ही कि गाड़ियाँ तेज़ रफ़्तार से आनी शुरू हो गई ! ओह ! हृदय पर हाथ थामे रखा ! एक गाडी तेज़ी से निकली इसको पार करती ! कछुए ने अपनी गर्दन बिल्कुल अपने शरीर के अंदर कर ली थी तब तक। फिर एक और गाडी निकली ! तीसरी गाडी से इसे लगा और यह पलट गया उल्टा !

अब हरि बत्ती हो गई तो मैं भागी । मैंने कभी कछुए को छूआ नहीं था । पर उसे उठाया और फुटपाथ पर ले आई ! वह बिल्कुल न हिला । मेरे मन में आया कि इसे घर ले आऊं ! पर मेरे कार्य क्षेत्र के पीछे छोटी सी जंगल में से नदि बहती है । वहीं से यह बेचारा बाहर आ गया होगा !

मैं चल पडी । दरवाजा ठीक से न बंद होने पर फिर गाडी रोकी ! तो पीछे देखा तो कछुआ जा चुका था !

पर बहुत खुशी हुई ! सारे रास्ते ! कि आज प्रभु ने कैसा अद्भुत कार्य करवाया !

आज सुबह ही लिखवाया था कि भगवन इस देह मन व आत्मा से जो कार्य लेने हैं कृपया लीजिए ! करने वाले इच्छा डालने वाले वे स्वयं !

अद्भुत भेंट !

यूँही नहीं जीवन में कुछ होता

June 18, 2018

आज एक पोस्ट पढा कि – जीवन में यूँही कुछ नहीं होता । आज यह कैसे पुष्ट हुआ ….

मैं ज़बरदस्ती अपने पतिदेव को कहा चलिए सैर करके आते हैं। मौसम गरम था ( जो कि यहां होता नहीं ) पर हवा चल रही थी । फ़ोन घर पर छोड़ गई थी । अभी घर से निकले ही थे कि प्रकृति ने किसी को मिलने भेजा ! मेरे मनमोहक हिरण । एक ही था । मेरे पतिदेव ने फ़ोन दिया कि लो ! मैं हर जगह खडे होकर फ़ोटो लेने जो लक जाती हूँ !!!

देरी हुई और वह भाग गया ।मन ही मन आया कि कल भी एक और आज भी एक ! कौन हैं आप ! हृदय जानता था पर ! यह इसलिए मन मे आया क्योंकि मुझे अकसर हिरण ३, ५ की संख्या में दिखते !

सो आगे चलते गए हम । यही सोच रही थी कि वह हिरण यूँही नहीं दिखा कि मेरे पति रुक गए और फ़ोन तैयार करके हाथ में दिया ! अब दो थे ! एक दम विडियो लिया ।

मन ने फिर पूछा – अब कौन ? तो जब उत्तर हृदय ने दिया तो हाव भाव बदलने लगे !

एक चक्कर ले लिया था । मैंने अनुरोध किया कि चलिए एक और ! वे चले गए और मैं प्रकृति का आनन्द लेती चल पडी ! मेरे वृक्ष आकाश में चाँद और सांझ का मधुर समय ।

तभी हल्की सी आहट हुई और ऊपर देखा तो तीन हिरण ! भीतर किसी ने हाथ जोड़े । वे तीनों खड़े रहे देखते रहे मैं रुकी नहीं चलती गई और वे खेलते हुए चले गए !

सो सारी अद्भुत अनुभव पर चिन्तन किया तो यूहीं नहीं इस समय ज़बरदस्ती सैर पर लेकर आए थे ! यूहीं नहीं पतिदेव आए फ़ोन जो था उनके पास! और यूँही नहीं वे तीन केवल मुझे दर्श देने आए !