गुरू महिमा

June 1, 2018

June 1, 2018

नया महीना व उसका पहला दिन। बहुत बहुत शुभ व मंगल कामनाएं । हम सब राम नाम और गहरे होते जाएं यही मंगलमय कामना है। हमारी आसक्ति और घटती जाए सूक्ष्म ले सूक्ष्म ! केवल राम से विनम्र अनुराग हो जाए …

आज उठते ही परम पूज्य गुरूदेव की महिमा व अद्भुत लीला स्मरण हो आई ।

2002 रहा होगा । पूज्य महाराजश्री की कृपा स्वरूप हम नए वर्ष पर श्रीरामशरणम दिल्ली श्री रामायण जी के पाठ पर पहली बार हए । अथाह दिव्य आनन्द ! तो किसी ने कहा आप आए और चौकी पर बैठ श्री रामायणजी पढें ! मैंने घबरा कर कहा कि नहीं मैंने कभी नहीं पढी । बस वह न कहना था ।

अनुपमा वापिस आई और रामायण जी की धुनें कान में हृदय में बजती जा रही थी । मैं बाजे पर बैठी । मुझे सरगम के इलावा कुछ ज्ञान न था । उँगलियाँ रखीं ! और सारी श्री रामायणजी का पाठ आरम्भ हुआ व सम्पन्न हुआ। दिन भर शायद चलता !

जिसको सुरों का ज्ञान नहीं यह भी नहीं पता कौन सा सुर बज रहा है उसने श्री रामायण जी बजा डाली, श्री अमृतवाणी जी बज गई ।

कारण था । feb 28, 2002,श्रीरामशरणम् चण्डीगढ का उद्धाटन । उसके पश्चात रोज़ाना सत्संग चले तो तैयार पहले ही करके रख दिया !

यह थी गुरू कृपा व उनका अकारण उपहार !

पर ऐसे उपहार देने उन्होंने बंद न करे ।

अमेरिका पहुँची । सिलैक्श्न हुआ था । पढ़ाने के लिए । physics के लिए आयुक्त किया था । किन्तु जिस स्कूल में लगी वहां physics की पोस्ट न थी । microbiology, biotechnology, व biology पढ़ाना था । मेरे पैरों से ज़मीन खिसक गई ! यह सब तो कभी पढा ही नहीं था ! पूज्य गुरूदेव को पत्र लिखा । महाराजश्री ने subjects लाल स्याही में रेखांकित करके वापिस भेजा। मुझे पढ़ाने का material सहज से मिलता गया और कुछ भी न आते हुए पढ़ाती गई । चार वर्ष पढ़ाने के पश्चात विद्यार्थी बोले – आप जब बात करना आरम्भ करते हैं तो लगता है कि कोई डॉक्टर बोल रहा है !

यह मेरे गुरूदेव की अकारण कृपा । कुछ “क, ख, ग” न आते हुए इतना पसंद किया कि वे मुझे सभी विषय microbiology, इत्यादि देने के लिए तैयार हो गए !

यह उनकी दिव्यता का प्रताप ! आज भी मैं नए नए विषय पढ़ाने के लिए हाँ कर देती हूँ केवल गुरूदेव के कारण !

श्रीरामशरणम Maryland का उद्धाटन । ढोलक वाले बहुत कम या न बराबर । न ताल का पता न उँगलियों का ! बस जो बजा वे सब को भा गया !

हिन्दी का कुछ ज्ञान नहीं । convent स्कूल में पढी । बस ! और देखिए चार वर्ष से दिव्य शब्दों का अनुवाद !

आज तक कभी नही लिखा .. पर अपने कार्य हेतु लिखवाते हैं !

गुरूदेव के है यह गुण ! उन्होंने सब सीखा । पर हमे रस दे दिया !

आज भी ऐसी लीला करते हैं ! बिना पढे बिना किसी ज्ञान के लिखवाते हैं ! और संसार कहता है ज्ञानी ! पर भेद तो पूज्य गुरूदेव ही जानते हैं !

शिक्षक भी ऐसा बना दिया ! की यह उपहार आगे जे सकूं । और दिलवाया ! यही उनके हस्ताक्षर है।

उनके हस्ताक्षर को संसार जो भी समझे पर मुझे वे अपने कार्य करने की अभिव्यक्ति दे देते हैं।

हर एक चीज हर एक विचार उनसे रहा है ! उनके सिवाय किसी को जाना ही नहीं । न ग्रंथ न कुछ और ! वे मुझ जैसी बुद्धु पर अकारण कृपा करते गए व आज भी सब स्वयं ही कर रहे हैं ।

सदा साधारण रखा । न आध्यात्मिक कमाई न ऊँचाई ! बस केवल वे ! कैसा बना डाला ! सब उनकी कलाकृति है !

ऐसे हैं मेरे गुरूदेव

सबसे अनूठे

आज भोर के समय अपनी कृपाओं की झंडी लगाई !

गुरू महिमा गुरू महिमा अपार महिमा गुरू महिमा !

Leave a comment