माया, कृपा या प्रेम

June 28, 2018

अब बोलिए क्या कहें इसे ? माया या कृपा !!! या फिर केवल प्रेम !

यदि केवल इसी पर मन आकर्षित होकर केवल इसे ही अपना प्यारा मान ले या केवल इससे विशेष आकर्षण हो जाए या केवल इसी का विशेष इंतजार रहे तो माया !

किन्तु यदि सृष्टि के ज़र्रे ज़र्रे में वह प्राण प्यारा महसूस हो और इस हिरण पर भी दूसरों के भाँति एक सा आकर्षण तो कृपा !

परम प्यारा तो भीतर है ! हम भीतर उसे पहले महसूस करें , कि हमारे भीतर ही तो आप ! तो फिर बाहर हर मे , एक या दो में नहीं हर में !

हमें भीतर अपनी फुलवारी का निर्माण करना है जहां हर तरह का फूल समाया जा सके, हर तरह का जीव समाया जा सके या फिर केवल राम ! सत्य स्वरूप में, जो हर एक को बिन किसी भेद भाव के अपनाते हैं !

पर इन सब के पार यदि केवल प्रेम देखें … तो केवल प्रेम ही रह जाता है ! केवल प्रेम – न रूप न विभिन्नता बस प्रेम !

मेरे सर्वस्व ! मेरे प्राण प्यारे !

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