FAQ – प्रार्थना व प्रारब्ध

June 25, 2018

प्रश्न : यदि हमारे प्रारब्ध हमें पीड़ित कर रहे हैं तो फिर प्रार्थनाओं का क्या महत्व ? प्रार्थनाएँ भी तो सम्भव बनाती हैं सब ।

परम पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि जब विपदा आए, तो परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें बल दे कि हम यह सह सकें । पूज्य गुरूदेव यह नहीं कहते कि यह विपदा टल जाए या समाप्त हो जाए । न । वे यह कहते हैं कि प्रभु ! मेरे राम ! मुझे शक्ति दे ।

क्यों ? क्योंकि वे कर्म संस्कार मिटाना चाहते हैं । वह कर्म जला देना चाहते हैं और वह सह कर चुप रहकर स्वीकार करके सम्भव होता है ।

एक माता जी को पूज्यश्री ने स्वयं उनकी लडकी के लिए लड़का देखना के लिए आदेश दिया । दो वर्ष बीते । लड़के देखे । पूज्य गुरूदेव के पास लड़के का bio-data लेकर जाते , तो महाराजश्री हाथ मे वह मरोड़ देते । लगे रहे ! फिर कोई मिलता , फिर जाते, तो कहते – ऐसे ही थोडी कहीं भी कर दें । माता जी का धैर्य टूटता जा रहा था । पूज्य गुरुदेव कहते प्रार्थनाएँ जारी हैं ! सात वर्ष लग गए ! फिर जाकर विवाह हुआ , तब भी विवाह से उपरान्त हिचकी आई !

क्या तात्पर्य था इस लीला का ? बहुत कर्म कटवाना चाहते थे पूज्य गुरूदेव । कर्मों के ऋण चुकवाना चाहते थे । किसको कष्ट हो रहा था ? माँ को ? सो माँ से मेहनत करवाना चाहते थे । सिखाना चाहते थे व कर्म बंध काटना चाहते थे ।

सो जब प्रार्थनाएं एक दम स्वीकार नहीं हो रही , यदि हम ध्यान से देखें तो गुरूजन सिखाने लग जाते हैं । कहीं न कहीं से सीखने को मिलने लग जाता है, जाप पाठ बढ जाता है, विपदा के बहाने । यह निश्चित है ।

सो सदा अपने लिए विपदा के समय बल माँगें । यदि ठीक मांग सही समय पर करते हैं तो वह अवश्य मिलता है ।

चाहे कोई नहीं साथी , राम है । सूक्ष्म रूप में गुरूजन हैं ।

आप पीडा हरने वाले हैं करुणानिधि हैं ! पीडा नहीं देते ! वह तो हमारी विकृत बुद्धि कहती है । आप तो कृपा करते हैं कि हमारे कर्मों के ऋण समाप्त हों । सो इंतजार के लिए बल माँगना है, स्वीकृति भाव रखना है ।

प्रार्थनाएँ कभी व्यर्थ नहीं जातीं । पर सही प्रार्थना करनी है -बल व कृपा ही हम माँगे ।

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