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विनय – April 7, 2010 ( 1)

April 7 , 2010 ( 1)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराज़श्री के मुखारविंद से

विनय

आज के प्रसंग मे पूज्यपाद स्वामीजी महाराज ने विनय के अंतर्गत कुछ प्रार्थनाएँ की है परमात्मा से और परमात्मा को माँ शब्द से सम्बोधित किया है। मातेश्वरी माँ माँ माँ कह कर सम्बोधित किया है।

बहुत वर्ष पहले की बात नहीं अरबिंद आश्रम में किसी ने पूछा कि माँ साधना का सरलतम सुगमतम साधन क्या है ? माँ ने मुस्कुराते हुए से उत्तर दिया कि सरल हृदय से शिशुवत उस परमेश्वर को पुकारना श्रेष्ठतम एवम् सरलतम साधन है साधना का । सरल हृदय से शिशुवत । छोटे बच्चे की तरह। सरल हृदय से परमात्मा को माँ माँ कह कर पुकारना साधना का सरलतम साधन है। आज स्वामीजी महाराज ने उसी साधन की महिमा गाई है।

मनुस्मृति में वर्णन आता है कि दस अध्यापकों से श्रेष्ठतर है एक आचार्य । सौ आचार्यों से श्रेष्ठतर है एक पिता । और पिता से श्रेष्ठतर है एक माँ । माँ की तुलना ऐसे ही नहीं परमात्मा से की जाती । धरती को माँ कहा जाता है। जिस किसी को भी माँ कहा जाता है उसकी उपमा नहीं दी जा सकती । उपमातीत शब्द है यह माँ ।

जिन बच्चों को माँ की गोद उपलब्ध हुई है , माँ की गोद का सहारा मिला है, वे मेरे साथ सेहमत होंगे, इससे अधिक विश्राम देने वाली कोई जगह नहीं । एक अद्भुत सी अनुभूति होती है माँ के सिर में गोद रखकर ।

स्वामीजी महाराज जी फर्माते हैं-

माता मुझे निहारिए मिष्ट प्रेम के संग

आशीष कर को फेरिए ले अपने उत्संग

आशीर्वादों से परिपूर्ण अपना हाथ मेरे सिर पर फेरिए , केवल सिर पर नहीं सारे शरीर पर अपने आशीर्वाद पूर्ण अपने हाथ को फेरिएगा । मुझे अपनी गोद में माँ लेके तो आशीर्वाद पूर्ण अपने हाथ को फेरिएगा।

स्वामीजी महाराज की जीवनी पढ़ी जाए तो हम जानते हैं कि उन्हें माँ बाप का प्यार नहीं मिला । बेचारे इस प्यार को तरसते ही रहे हैं, स्वामीजी महाराज। फिर परम पिता परमेश्वर ने, उस जगत्जननी ने अपना सारा प्यार उन पर उडेल दिया । यह अभाव ग्रस्त न रहे। ऐसी महिमा है साधक जनों माँ की । एक ऐसा संबंध , जहां कहा जाए मर्यादा का ध्यान रखे, लेकिन माँ नहीं रख सकती ।

कल्पना करो कि एक दस साल का बच्चा विकलांग है, आज बढ़ता बढ़ता २०-२१ साल का । भरपूर जवानी है उसपर। बाथरूम नहीं जा सकता । स्वयं नहा नहीं सकता । कपड़े नहीं बदल सकता । सह कौन करेगा ? बाप? बाप दफ़्तर चला जाता है। यह सब कुछ माँ को करना पड़ता है । बाप एक बार कर दे देगा बेशक । पर पीछे से सब माँ को ही करना पड़ता है। इसलिए मर्यादा का ध्यान नहीं रखती ।

सुंदर पवित्र संबंध माँ पुत्र का ।

स्वामी जी महाराज का जब साक्षात्कार हुआ है तो वे परमेश्वर को माँ माँ कह कर ही पुकार रहे हैं । माँ मेरा मार्ग दर्शन करो। दर्शन के लिए नहीं । मेरे पथ प्रदर्शन कर मेरी माँ । मैं इस समय एक बेसहारा बच्चा हूँ ।

पूज्यश्री प्रेम जी महाराज का भी संबंध परमात्मा के साथ माँ का था ।

सो यह हमारी परम्परा है ।

जैसे वे रखें

July 30, 2018

आज सुबह से कितने विचारों पर चिन्तन व चर्चा करवाई प्रभु ने ।

कुछ मिनट का विश्राम मिला मन तो यह दिखाया कि चाहे जीवन में जो कुछ भी हमारे साथ हुआ हो , जिसे हम संसार कहते हैं, पर वह सब हमारे प्रारब्ध होते हैं । और यदि वे अनुभूतियाँ पीड़ादायक रही भी होती हैं तो आत्मा का अवश्य उत्थान हुआ होता है ।

महाराज़श्री कहते हैं कि ऐसे अवसर पर जो दूसरों को ( संसार को ) दोष न देकर स्वयं के प्रारब्ध माने , यह लक्ष्ण प्रभु राम का !

और जो अपने ऊपर जो बीत रहा है वह सब देखकर मौन हो जाए कुछ न कहे , तो मानो वह साधकाई में पक्का हो गया !

हम सब संसार में रहकर भी मन में राम राज्य में रह सकते हैं ! हर पल राममय रह सकते हैं।

पर राममय भाव के द्वार खुलें उसके लिए नत्मस्तक हो कृतज्ञता के भाव में आना आवश्यक है। यदि हम एक भी चीज के लिए कृतज्ञ हो जाएं तो कितने द्वार हमारे खिल जाएं !

हम सब के पास वह एक चीज तो है ही कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु – हम सब को अकारण मिला हुआ नाम दान ! राम नाम !

सो भगवन ! जैसे भी हैं आपकी रजा में राज़ी हैं ! जैसे मर्ज़ी आप रखिए ! आपका नाम हमारे संग हैं ! अंदर भी और बाहर भी !

निस्वार्थ जाप निस्वार्थ पाठ सब कृतज्ञता के प्रतीक हैं !

सकारात्मक सोच व परम विश्वास

July 30, 2018

सकारात्मक सोच व परम विश्वास क्या एक हैं?

कुछ एक दिन पीछे किसी ने कहा, सकारात्मक सोच रखनी चाहिए कि सब ठीक होगा !

मैंने कहा – यह जीवन है ऐसा कैसे सम्भव है? जीवन मन की चाहत के अनुसार नहीं चलता !!!

एक परिवार कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा था । बच्चे ने माँ से कहा कि आपके पौधों का क्या होगा ? वे बोली- ओह! वे सब तो परमेश्वर के हैं। वे जानें ! उनके पास सब कुछ है देखभाल के लिए! तुम चिन्ता न करो !

इसी तरह किसी ने नई नौकरी पर जाना था । बोले । गुरूजन हैं, मुझे उन पर भरोसा है ,वे सब ठीक करेंगे !

कुछ मिलता जुलता व भिन्न लग रहा है ?

पहले व आखिरी दृष्टान्त एक जैसे हैं ! कि सब ठीक होगा !

पर दूसरा दृष्टान्त हल्के से भिन्न है । सब उसका है । वह जो निर्णय लेगा सर्वोच्य ही होगा ! चाहे सूखने का चाहे हरे भरे रखने का !

सकारात्मक सोच माने, कि जो भी होगा, उसमें से निकलने की क्षमता भीतर से संयुक्त होकर हम रखते हैं ! क्योंकि सकारात्मकता का स्रोत तो भीतर है !

सो हमने उस सकारात्मक स्रोत के प्रति शरणागति की और उस शरणागति में परम विश्वास निहित था ।

सो जब लोगों के प्रति अपेक्षा रखकर दुखी होते हैं, जब रोगों से हताश होते हैं, जब ग़रीबी चैन नहीं लेने देती तो भीतर उस स्रोत से जुड़कर सकारात्मक भाव प्राप्त कर न केवल अपने प्रार्ब्ध स्वीकार कर ते हैं बल्कि हल्के हो सकते हैं और मन को ठण्डक भी पहुँचा सकते हैं !

तेरे सारेयां दुखीं दारु

इको पुडी राम नाम दी !

राम नाम की मिश्री

July 30, 2018

उदास महसूस कर रहे है?

तो चल कर अपने आइने के पास जाइए । अपने को देखिए और मुस्कुराइए ।

कहिए – कितनी भाग्यशाली हूँ मैं कि चल कर यहाँ आ सकी/ सका कितनी भाग्यशाली हूँ कि अपने आप को देख पा रही हूँ !

और सबसे सुंदर बात रााााााओऽऽऽऽऽऽऽम कह सकती हूँ !

न केवल कह,अनन्त बार ले सकती हूँ ! न केवल अनन्त बार बल्कि इस नाम के प्रेम में डूब भी सकता हूँ !

वाह !

अब आइए में मुस्कुराइए ! और राम नाम की मिश्री मुख में डाल चूसिए !! हर पल हर घडी !

प्राकृतिक व मानवी बदलाव

July 30, 2018

बाहर आई, कुछ दिनों पश्चात अपनी फुलवारी देखने को मिली थी । तो नए मेहमान आए हुए थे ! और नई जगह पर ! खुम्ब !! 😀

उनको देखकर लगा कि कैसे हम प्रकृति के बदलाव सहर्ष स्वीकार करते हैं, आनन्द लेते हैं।

किन्तु लोगों के बदलाव नहीं !

उत्तर मिला कि लोगों के प्रति अपेक्षा कहीं न कहीं बैठी होती है! चाहे उन से दूर दूर तक संबंध भी न हो या फिर घनिष्ठ संबंध हो !

तभी महाराज़श्री ने एक साधक की यात्रा में सबसे पहले अपेक्षा से निवृत्ति रखा है। वह ताड़का वध सबसे पहले किया !

काश हम भी जैसे प्रकृति के बदलते हुए रंग कैसे बिन प्रश्न के स्वीकार करते हैं वैसे ही मानवी रंग भी स्वाकारें !

पर यह सम्भव है – केवल राम से संयुक्त होने से !

पर आज इन चार खुम्बों का आनन्द लीजिए !!! 😍

चौथा नीचे छिपा हुआ है! 😍

धरती माँ

28 July , 2018

चलते चलते आज ध्यान धरती माँ पर प्रभु ले गए । उनका ध्यान आते ही हृदय से न जाने कैसी टीस निकली कि अंदर से माँ निकल पड़ा । उनकी सहनशीलता के आगे तो बड़े बड़े अवश्य नत मस्तक होंगे ।

मैंने माँ को प्रणाम किया और गद् गद् होकर कहा – माँ !

माँ मुस्कुराई !

मैंने कहा माँ , कैसा हृदय है आपका!!! इतना विशाल !! समस्त संसार का पोषण करती हो आप । सदियों से जीवन मृत्यु का चक्र देखती हो आप । सृजन व क्षय का पावन क्षेत्र हो आप ! कितने ही युद्ध देखे हैं आपने ! मानव के कर्मों के भागीदार भी बनती हो जब बाढ़ भूकम्प आदि आते हैं। मानवी युद्ध भी सहन करती हो !! माँ कैसे सम्भव है इतनी सहनशक्ति ! हम तो कोई कुछ कह दे या न भी कहे, तो भी सहन नहीं करते पर आप कैसे कर लेती हैं सब !

माँ मुस्कुराईं । बोलीं – मैं उस सहनशीलता के स्रोत से जुड़ी जो हुई हूँ । इसलिए मैं है ही नहीं ! कुछ मेरा है ही नहीं इसलिए महसूस यदि होता भी है तो वे देवाधिदेव सोक लेते हैं ! उनकी लीला है न सारी सो लीला निहारती रहती हूँ ।

माँ हम तो आप पर चलते हैं, खेती इत्यादि करते हैं, और कभी कृतज्ञता भी नहीं व्यक्त की !! पर आप फिर भी कभी रुष्ट नहीं हुई पर देती ही देती गई, अपने प्रेम में लिप्त सभी को स्थान देती जाती हैं !

माँ बोली – यह तो मेरे स्वामी का गुण है ! उन्हें तो केवल देना आता है । प्रेम करना आता है। अपना प्रेम छिपाते हैं और हम जैसों से व्यक्त करवा देते हैं ! इसलिए कभी नज़र ही नहीं जाती, अपेक्षा ही नहीं होती कि कोई कुछ दे !

मेरे अश्रु टप टप बहते जा रहे थे । शाष्टांग प्रणाम किया । हृदय अद्भुत सा शान्त हुआ । बारम्बार प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम । मेरा मन किया मैं भी ऐसी बन जाऊँ ।

मेरी आज की सीख 😇

प्रभु से एक्य होने पर उसके गुण स्वयमेव आते जाते हैं, जैसा गुरूजनों ने सिखाया है। सहनशीलता, उसकी लीला को देखना व सराहना, केवल उससे पूर्ण रूप से जुड़े रहने पर ही सम्भव है।

श्री श्री चरणों में 🙏

सेवा केवल गुरू की दृष्टि के लिए

July 27, 2018

प्रश्न : आज मैंने कुछ पोस्ट किया है जी , अपने गुरूजनों के लिए, कृपया बताइए कि वह कुछ अधिक तो नहीं !!

Online सत्संग ! वैसा ही है जैसे गुरूजनों के आगे सत्संग । भेद केवल इतना है कि इसकी अवधि लम्बी होती है और हर कोई अपने अपने व्यक्तिगत समय पर सत्संग का रस पान करता है।

पूज्यश्री महाराजश्री बहुत स्पष्ट कहा है कि भजन गाने वालों को बहुत सावधान होने की आवश्यकता है क्योंकि वहाँ वाह ! वाह ! बहुत मिलती है ।

इसी तरह online सत्संग , चाहे FB हो या whatsapp, जो साधक पोस्ट लाते हैं वहाँ भी वाह वाह होती है , खासकर FB पर। like व कितनों ने comment दिए यह एक बहुत बड़ी माया है , online सत्संग की , उसी तरह जिस तरह भजन के गायकों की ।

सो एक online सत्संग का सेवादार अपने प्रभु व गुरूजनों के लिए हर कार्य करता है। हर भाव उनके लिए प्रकट करता है। जब पोस्ट अर्पण कर दिया अपने गुरू के श्री चरणों तो क्या देखना कि किसने किया और किसने नहीं किया !

यह एक बहुत बड़ी संसारी माया बन जाती है। बहुत ही सामाजिक गतिविधि बन जाती है। तूने किया मैंने नहीं किया । इत्यादि इत्यादि ! मन ही मन नाराज़गी व मिथ्या उधेड़बुन !

पर यह परीक्षा होती है यक़ीनन !

जब हमने हर कार्य गुरूदेव के अर्पित किया तो संसार से क्या सरोकार ! पर हम करते हैं , व मिथ्या उल्झे रहते हैं!

सो हमें अर्पण करना है और तत्काल भूल जाना है कि क्या फूल चढाए ! संसार तो यह सब ही देखेगा । पर हमने तो गुरूचरणी ही देखनी है !

सो हर पोस्ट केवल उनके लिए । केवल उनकी दृष्टि के लिए ! व उनके श्री चरणों में समर्पण के लिए !

बस !

तू ही मेरी ज़िन्दगी ! तू ही मेरी बंदगी !

दिव्य गुरूजन

July 27, 2018

आज के पावन दिवस पर हम सब को असंख्य बधाई ।

प्रभु की करुणा हम सब के प्रति जागी और वे अनन्त कृपालु गुरूजनों का रूप धर कर आए । कौन देखता हम जैसे निम्न कोटि के लोगों को । हम पर न केवल कृपा दृष्टि डाली बल्कि अपना नाम दिया व अथाह वात्सल्य उँडेला ।

आज के पावन व माँगलिक दिवस पर पूज्य गुरूदेव के कुछ संस्मरण एक साधक जी द्वारा ….

काफ़ी वर्ष पूर्व पंजाब के किसी शहर में सत्संग आयोजित हुआ था । श्रीरामशरणम् के निर्माण के पश्चात । द्वार बंद थे । साधकों की बहुत भारी मात्रा में संगत एकत्रित थी । जैसे ही द्वार खुले , सामान्य रूप से बिल्कुल विपरीत संगत अथाह बहाव के साथ अंदर भागी !! अथाह भगदड़ । साधक जी यह सब देख कर दंग रह गए । उन्हें ज्ञात था कि पूज्य महाराजश्री को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं । हृदय की धड़कन तेज़ हो गई और वे परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि कृपया पूज्य महाराज़श्री का यह सब देख कर कुछ गड़बड़ न हो ! सब बैठ गए । भीड़ इतनी थी कि साधक जी सिकुड़ कर बैठे । चौंकडी की भी जगह नहीं थी ।

पूज्य गुरूदेव श्री पधारे । पूज्य महाराजश्री ने प्रणाम किया पर वे विराजे नहीं । खडे रह कर धुन आरम्भ की और सब को बहुत ही शान्त भाव से अपने हाथों को फैला कर शान्त करना आरम्भ किया ! जगह पर फिर भी न थी । तभी पूज्य गुरूदेव मंच के उस ओर आए जिस ओर साधक जी बैठे थे । साधक जी अभी भी अपनी टांगों को मोड़ कर बाज़ुओं को टांगों से बाँध कर बैठे थे । और पूज्य गुरूदेव ने बहुत ही अनूठे रूप के दर्शन दिए ! उन्होंने सहत्महारबाहु मां का रूप धरा और उन सहस्त्र बाहु में साधक जी को ले लिया ! यह रूप व दिव्य दर्शन पा कर न साधक जी को पता चला क़ि वे सत्संग में कहां व कैसे बैठे हैं !

आज के पावन दिवस पूज्य गुरूदेव का इतना सुंदर प्रसाद !

नमो नम: गुरुदेव तुमको नमो नम:

चलते फिरते श्रीरामशरणम्

July 26, 2018

प्रश्न : कल हम श्रीरामशरणम नहीं जा पाएँगे । मन बहुत था । क्या करें?

श्रीरामशरणम् गुरूजन उस स्थान को कहते हैं जहां राम शब्द स्थापित हों , जहां गुरूतत्व का वास हो , जहां भक्ति माँ प्रवाहित होती है और जहा संसार भुलाया जाता है। फिर जहां राम नाम की धुन गूँजती है, जहां सत्संग का आलौकिक आनन्द मिलता है, जहां शुचिता रखने हेतु सेवा मिलती है वह श्रीरामशरणम है ।

यदि यह सब हम सब की देह में मन में हृदय में होता है तो जी हम चलते फिरते श्रीरामशरणम ही हैं !

अपने भीतर अपने परम गुरू राम अपने गुरूतत्व की जी भर कर आराधना प्रेम प्रवाह उपासना कीजिए तो हर रोज़ वह हर पल व्यास पूर्णिमा ही व्यास पूर्णिमा है !

हर पल व्यासपूर्णिमा रहे उसके लिए अतिश्य शुभ व मंगल कामनाएं

नमो नम: श्री राम तुमको नमो नम:

नमो नम: गुरूदेव तुमको नमो नम:

नमो नम: महाराज तुमको नमो नम:

He in ALL

July 26, 2016

After a long time I was visiting my dear friend, the tree.

Mere thinking about my friend always brings a smile within, which gets transmitted outside too! All worries whither away just by its thought!

I always look forward to our meetings… They are filled with complete Divinity, pure divine love !

I saw my friend and gave it a big hug! My friend lowered its lush green branches to reciprocate!

Birds were chirping , squirrels were playing, ants going up, doing their job, creepers were hanging ..

I said – They are all Yours? Ain’t they?

My friend replied – Yes!

You love and care for them equally , as a your own !

My friend smiled – Yes! I care for them equally ! I love One and only One!

My eyes sparkled !

My Master ! It’s Him I love ! But He blessed me with His vision, hence I see Him in all.. Hence love them all.. In that way! My eyes wished to see only my Master, feel only my Master! Hence He blessed me with His Grace! And I see Him.. No other form I see.. I see only my Love!

Tears rolled down as I heard my friend speak ! There was nothing more to say.. Just strange Oneness…

It was the Oneness that was caused by friend’s deep love for its Master… And I got enveloped in that ……