Monthly Archives: July 2018

तूफ़ान में भी चयन उसका !

July 24, 2018

किसी ने प्रश्न किया कि तूफ़ान जब आता , कोई परिस्थिति ऐसी आती है कि अंदर इतना अधिक pressure बन जाता है । तो वह बाहर तो आना होता है ! बाहर नहीं तो भीतर तनाव देकर बीमारियाँ ले आता है।

इसके मूल पर जाते हैं । pressure क्यों बनता है ?

क्योंकि जैसा हम चाहते हैं वैसा बाहर नहीं हो रहा होता । यदि हम इस टकराव को ही न आने दें .. मानो परिस्थिति जैसी भी आए उसे तेरी इच्छा मान कर स्वीकार करें या फिर बिना अपना पन दिखाए अंदर हो जाएं तो परिस्थिति स्वयंमेव थम जाती है ।

क्यों? क्योंकि हमने उससे अपनापन नहीं रखा । या हमने कहा – तू जितना मुझसे प्रेम करता है उतना कोई नहीं ! इसमें भी तू तो मेरे संग ही है ! तो सब ठीक है मेरे प्राणों के स्वामी ! मेरे हृदय नाथ ! मेरे सर्वस्व मेरे राम … सब ठीक है !

इससे जो इच्छा सीधी खडी हुई है वह श्री चरणों में झुकेगी , हमारा मन झुकेगा और हम उसका परम प्यारे का चयन करेंगे !

तूफान में भी चयन प्यारे का करना है ! संसार का नहीं !

झुकने से तुफान का पता नहीं चलता

July 24, 2018

समुद्री तूफान की लहर जब उठती है तो बहुत तहस नहस कर देती है ।

एक बार किसी ने ताड़ के वृक्षों से पूछा कि इतने भयंकर तूफ़ान में आप क्यों नहीं उखड़ते । आप तूफ़ान के पश्चात वैसे खडे हो जाते हैं।

वृक्ष मुस्कुराया और बोला – जो लहर उठती है उसने बैठना होता है । सो जब वह उठती है तब मैं नतमस्तक हो जाता हूँ श्रीचरणों में । मुझे उस समय पूर्ण रूप से झुकना आता है । सो जब तूफ़ान थम जाता है तो मैं फिर से उठ जाता हूँ ।

इसी तरह हमारे जीवन में दिखने वाले तूफ़ानों ने भी थमना होता है। यदि हम राम नाम के प्रति दण्डवत् हो जाएं तो तूफ़ान व परिस्थितियाँ हमारा कुछ नहीं कर सकेंगी । वे कब चली भी जाएंगी पता भी नहीं चलेगा ।

राम नाम ही असली सहारा परम सहारा आजीवन व हर पल का सहारा

अपना लीजिए

July 22, 2018

मुझे पेड़ पौधों के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है। घर के बाहर छोटी सी फुलवारी है …

किसी ने पुदीने का पौधा भेंट किया । सोचा गमले में मुझसे चलते नहीं हैं, बाहर कहीं जगह बना देती हूँ। सो लगा दिया। अब पता बिल्कुल नहीं था कि चलेगा कि नहीं, पहली बार जो कर रही थी!

साथ ही दो ज़मीन पर चलने वाली बेल को एक जगह से निकाल कर दूसरी जगह लगा दिया ।

सब की सेवा सुश्रुषा आरम्भ करवा दी !

दो सप्ताह के पश्चात पुदीना चल पड़ा ! हरे भरे पत्ते और आ गए! बहुत खुशी हुई कि उसे मुझे अपना लिया 😀 और धन्यवाद दिया !!

पर जो बेल थी वे सूख सी रही थी ! मैं गई पास बात की – क्या हुआ ! तुम तो कितना अच्छा चल रही थी। अपना भी लिया था , अब यहाँ क्या हुआ ?

बेल – ग़ुस्से थी। नहीं जवाब दिया !

मैंने कहा- क्यों ग़ुस्से हो ? सब कुछ तो एक जैसा है ! धूप , पानी, खाद और मैं !! बस स्थान ही तो बदला है ! फिर नाराज़गी किस लिए ?

बेल बोली- हम वहाँ अच्छे से जम गई थी! हमारी जड़ों ने अपना लिया था ! हमारे मित्र बन गए थे ! और फिर एक दिन ऐसे ही बिन बताए उखाड़ दिया !

मैंने कहा- अरे ! गलती हो गई! पहले बताना चाहिए था ! पर मान जाओ न ! मुझे तुम बहुत प्रिय हो ! मैं तो हूँ न संग !

मुझे लगा कुछ शांत हुआ है !!

पर अभी निर्णय नहीं पता … कुछ दिनों पश्चात पता लगेगा !!!

मेरी आज की सीख 😇

जब भी हम किसी भी चीज, व्यक्ति, स्थान से आसक्त होंगे परेशान ही होंगे । यदि परिस्थिति को अपना लेंगे तो शान्त रहेंगे ।

वह परम प्यारा सदा साथ होगा चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, चाहे कुछ व कोई हो संग या न ! पर वह सदा प्यार भी करता रहेगा और संग भी होगा।

आसक्ति किसी भी भौतिक चीज से दुख ही लाती है क्योंकि वह अपनी नहीं होती ! जो अपना होता है, वह परम प्यारा .. वहाँ दुख नहीं होता, वहाँ सुरक्षा, प्रेम, वात्सल्य होता है!

सर्व श्री श्री चरणों में 🙏

राम से कैसे प्रीति करें

July 18, 2018

क्या ग़म राम को अपने अंग संग मानते हैं ?

आज करें हम चिन्तन कि हम अपने प्राण प्यारे को हर पल अपने अंग संग, अंदर बाहर मानते हैं ?

क्या हमारा मन हर पल अपने देवाधिदेव में रहता है या रहने के लिए लालायित होता है ?

क्या हम चाहते हैं कि हम हर पल राम नाम की धुनि में विचरें ?

तो हम क्या करें कि राम नाम से अथाह प्रीति हो जाए ?

क्यों नहीं है , यह हम सब जानते हैं । क्योंकि हमारी प्रार्थमिकताएं कुछ और हैं ।

पर फिर क्या करें कि राम नाम से अथाह प्रीति हो जाए ?

गुरूजन कहते हैं कि उसको प्रेम पूर्वक पुकारिए ।

आह ! मेरे राााााााााओऽऽऽऽऽऽऽऽऽम

प्यारे रााााााााओऽऽऽऽऽऽऽऽम

मेरे सर्वस्व मेरे रााााााााओऽऽऽऽऽऽम

छोटी सिमरनी पर ऐसे प्रेम से ओतप्रोत होकर पुकारिए ।

श्रीअमृतवाणी जी की व्याख्या लीजिए । पढिए एक दोहा और उस दोहे की व्याख्या और व्याख्या पर चिन्तन कीजिए ।

माला पर जब प्रेमपूर्वक पुकारें तो इस दोहे का चिन्तन कीजिए । गुणों के भण्डार मेरे रााााओऽऽऽम ।

राम नाम से प्रीति जीवन सफल कर देती है । नाम से प्रेम ! अथाह प्रेम सब रस फीके कर देता है ऐसा परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कृपा कर कहते हैं ।

करके देखें हम .. जो गुरूजन हमें सिखा रहे हैं ।

कैसे बदलाव की कल्पना …

July 17, 2018

बाहर से आदर मिले, बाहर से प्यार मिले अधिकतम जीवन इसी में निकल जाता है !

क्या करें ?

संसार की सोच हमें नहीं बदलनी ! किसी से शक्ति का युद्ध भी नहीं करना ! कि मेरी चले ! बदलना स्वयं को ही है !

किसी ने कहा कि हम बदल गए पर दुनिया तो वही रही ।

स्वयं को बदलने का क्या मतलब ?

एक महिला उसकी दो पुत्रियाँ । ससुराल वाले आदर नहीं देते क्योंकि पुत्री पैदा की ! चार भ्रूण हत्या । लड़कियाँ थी । अब की बार पीर फकीर माता की पूजा का इलाज किया पर फिर से पुत्री ! कहते हैं भगवान क्यों इतना कठोर । सारी दुनिया का पुत्र , केवल इनका ही नहीं । पुत्र केवल इसलिए ताकि परिवार में थोडी इज़्ज़त बन जाए ।

ऐसे कठिन प्रारब्ध बहुतों के होते हैं । यहां सोच बदलने की बात शायद नहीं की जा सकती क्योंकि उनका वातावरण इतना कसा हुआ होता है कि कुछ और सूझता ही नहीं ।

यहां राम नाम व गुरूजनों की चरण शरण ही सब काया पलट कर सकती है । राम नाम का पावन मंत्र ही त्रासित मन व देह को शान्ति पहुँचा सकता है । और नाम की ही शक्ति कुछ मन की बंद नाड़ियों को खोल सकती है, बूंद बूंद करके !

जीवन आसान नहीं है । यदि आसान बना तो केवल राम कृपा के कारण ! इच्छाओं , लालसाओं में ग्रस्त, दूसरों की नज़रों के लिए तरसना, दो मीठे प्यार के बोल के लिए तरसना, अपनी शक्ति है ही नहीं ऐसा मानना, पूर्ण रूप से दूसरे के अधीन होना, कसे हुए प्रारब्ध हैं ।

किन्तु इन परिस्थितियों में यदि यह सोच आ जाए कि मुझे बदलना है , तो वह भी अनन्त कृपा से कम नहीं ! असल में किसी भी परिस्थिति में यह सोच आनी कि मुझे बदलना है , यह अनन्त कृपा है !

ऐसी अनन्त महिलाओं के लिए प्रार्थना जो बदलना नहीं चाहती या सोच ही नहीं सकती कि बदला भी जा सकता है या फिर क्या बदलें ?

पल भर के लिए यदि सोचें कि यहां सोच बदल गई ..तो कैसा दृश्य देख सकते हैं हम ?

यही कि वह महिला राम आश्रित है । राम नाम के अनन्त नाम से अपने में खुश व संतुष्ट है । अपनी भीतर की ऊर्जा से अपनी बच्चियों का लालन पालन कर रही है और बाकि समय नाम साधना में अर्पण कर रही है । पति का अनादर सास ससुर का अनादर छूता ही नहीं । झुलसने की बजाए राम नाम से खिली रहती है ।

यह सम्भव है सोच बदलने से । राम नाम से संबंध स्थापित करने से । जो मिला है प्रारब्ध से उसे स्वीकार कर राम नाम की धुनि रमाने से । दूसरो से चाहत की बजाए अपने राम नाम से प्रेम करना ! इच्छाओं को अर्पण कर प्रार्थनाओं में लीन हो जाना। कितनी सुंदर कल्पना है ।

ऐसी कल्पना की प्रार्थना …… कि सब राममय हो जीवन व्यतीत करें ! या फिर प्यारे राम स्वयं ही वहां वहां कृपा बरसा दें जहां जहां वे चाहें …

कसे हुए प्रारब्धों को अनन्त राम नाम ढीला कर सकते है !

मंगलमय प्रार्थना

You and Only You

July 15, 2018

Like the deepest blue ocean

You appear O Mother

Cutting across all Differences and Biases

Showing it’s You and Only You

And just Nothing and Nobody else !

Holding me in Your womb

You operate !

Safe and secured, held tightly within You

In Your amniotic fluid of Love and Divinity I float

It’s You who feeds me

It’s You who nurtures me

It’s You and Only You

Inside Your womb I safely reside

Ignorant of what’s outside

I play and see inside me my beloved RAM

But .. there comes the illusion of bias

Of differentiation that tortures me

And makes me forget that I am in You …

But our umbilical cord is permanent

Never to be severed …

As that’s You in Gurutatwa form

Making the Divine connection ….

O Mother ! The One in whose womb I reside

Unveil ThySelf

O Maha Maya

Such that I permanently be there

Where I actually am …

O Maaa ! It’s You and Only You

राम नाम की महिमा

July 14, 2018

कुछ दिन पहले परम पूज्यश्री स्वामीजी महापाजश्री के शब्द पढे कि अपने ध्यान में अवलोकन कीजिए कि जिसने पाप कर्म किए हैं क्या आपने शुभ कर्म उस ओर भेजे ?

भारतीय हिन्दु नारी अद्वितीय है ।

एक साधिका जी जिनके पति ने न कुछ कमाया, न आदर सम्मान दिया, मार पीट , शोषण, इत्यादि, पर जब कर्मों ने पति पर प्रहार किया तो वे कूद पड़ीं अपने कर्म करने ।

रात के १२ बजे ऐम्बुलैंस अकेले बुलाई । एक हस्पताल से दूसरे हस्पताल रात के दो बजे अकेले बंदोबस्त किया । परिवार वाले रिश्तेदार वाले जो सदा राम नाम लेने पर इतना कोस्ते जब वे सुबह पहुँचे तो स्वयं ही बोल पड़े कि तेरे राम नाम ने आज बचा लिया इसे । वे पूछते कि कैसे अकेले सब किया ? तो वे बोली – अकेले कहां? राम हैं न साथ !

परमेश्वर से शक्ति माँगने के लिए बाहर नहीं जाना पडता बल्कि वे स्वयं ही सक्रिय हो जाते हैं। ऐसी अद्भुत है राम नाम की शक्ति । कि विपदा में वे स्वयं ही संचालक बन जाते हैं। जानते हैं मेरी बच्ची अकेली निर्विध्न कार्य सम्पन्न होते हैं !

दूसरे के दुर्व्यवहार को रत्ति भर ध्यान न देकर बस जीवन बचाने में अद्भुत नारि लग जाती है । यह राम नाम का प्रताप है व उनकी महिमा ही है कि बिना राग द्वेष के साधक सेवा में कूद जाता है !

परमेश्वर इनके पति पर कृपा करें ताकि वे भी राम नाम की महिमा न केवल देख सकें बल्कि अपना नकारात्मक जीवन बदल सकें ।

राम नाम की महिमा अपरम्पार !

किसी से राग नहीं किसी से द्वेष नहीं

आत्मा निर्लेप इसे कोई भी क्लेष नहीं

साथ ही कभी नहीं भूलना कि

जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चित कल

राम नाम के पौधे व कटाई

July 12, 2018

जिस तरह पौधे जब बहुत फैल जाते हैं तो उनकी कटाई आवश्यक होती है ताकि वह झाड़ का रूप न ले ले या व्यर्थ फैलाव न करता रहे ।

इसी तरह मन के विचारों कि भी कटाई आवश्यक है । जो बीत गया, यदि कुछ सीखने लायक था, तो कृतज्ञता का भाव रखकर, धन्यवाद के बीज बो सकते हैं। यदि नहीं, तो उन विचारों को बाहर कर देना आवश्यक है। कटाई बहुत आवश्यक है । घर पर पौधा, हल्का फुल्का साफ़ सुथरा बहुत अच्छा लगता है । यदि झाड़ रहे तो अलग से भाव आते हैं !! मानो जैसे कोई रह ही नहीं रहा उस घर में ।

हमारे भीतर हमारे परम प्यारे राम विराजते हैं। यदि देह व मन उनके निवास स्थान के अंग हैं । यह साफ़ सुथरे । कम से कम शोर वाले होने चाहिए । और इन में मंदिर री भाँति प्रभु सुमिरन की गूंज गूँजे तो कितना आनन्द होगा !

किन्तु हमारे मंदिर में तो संसार की चर्चाएँ , व्यर्थ योजनाएँ चलती हैं ! पुराने बदबूदार विचार व भविष्य के लिए विचारों की भीड़ ।

आइए हम भी आज कटाई करें। जो अनावश्यक विचार हैं उनकी कटाई कर डालें । राम नाम के पौधे लगाएँ । ताकि राम नाम लेने वाले ही तितली रूपी अन्य विचार आएं !

परमेश्वर हम सब को राम नाम की फुलवारी खिला देने की , राम नाम रूपी पौधों के बीज डालने की सुमति प्रदान करें ! कृपा बक्शें !

पल्ले बन ले मना पूँजी राम नाम दी

पूँजी राम नाम दी पूँजी राम नाम दी

अकेले होने से घबराना नहीं

July 12, 2018

आज बाहर बैठी तो बहुत ही बुलंद आवाज में एक पक्षी बोल कहा था । पता नहीं बेचारा क्या बातें कर रहा था मेरे साथ ! मैं ढूँढूँ उसे कि कैसा पक्ष है इतनी जोर दार आवाज के साथ ! तो देखा मेरे हाथ से भी छोटे माप का पक्षी !! इतना छोटा पर कितनी आवाज इतनी बुल्लंद !

सोच ही छोटी होती है हमारी ! नहीं तो क़ुदरत ने कोई कमि नहीं छोड़ी कृपा करने की ।

आज एक साधिका जी से बात हुई । माता पिता बहन सब कोई नहीं । भाई अतिश्य स्वार्थी । पति को केवल पत्नी पर निगरानी व उसकी तनखाह का पता है । सास ससुर , तनखाह , व घर के काम।

यह सब देख कर साफ़ लगा कि वे प्रभु की कितनी प्यारी होगी कि कोई बंधन नहीं दिया आसक्ति के लिए । पति को नहीं होता कि इनका कोई नहीं तो गुरू के दरबार ले जाऊं । पर हम व्यर्थ अपेक्षा क्यों करें ??

यह कुछ करना चाहती है ! अपना ! इनकी आवाज में भी एक अलग सी प्रतिभा थी ! बिल्कुल इस पक्षी जैसे ! पर स्वयं को पिंजरे में महसूस कर रही थी !

बात तो सोच की है ! जीवन में यदि कुछ करना चाहते हैं और मन तैयार है तो बाकि ऊर्जा को अब बचाना है । प्रतिक्रिया , जवाब दारी, रोना , परमेश्वर से नाराज़गी , यह सब जाना होगा !

परमेश्वर तो अँगांगी है ! प्यारों से अतिश्य प्यारे ! कभी न रंग बदलने वाले ! सदा संग रहने वाले ! अब इनको संग रखना है। इनसे परामर्श लेना है ! इनको अपनी योजनाओं का साथी बनाना है ताकि मन में जो कुछ सफल होने की कुछ करने की तमन्ना है तो यह देवाधिदेव साथ देंगे ।

पर प्यारी सी मधुर सी चुप्पी रखनी संसार के कोलाहल को बंद करके परम प्यारे की आवाज को सुनवा सकती है !

कीजिए अपने सपने साकार, बुलंदी से , इस छोटे से पक्षी से कुछ सीखें और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ राम को संग लिए चल दें अपनी मंजिल की ओर !

शुभ व मंगल कामनाएं

प्रकृति का धन्यवाद

July 9, 2018

आज एक बच्चा पौधों को पानी दे रहा था । उसके पिताजी बैठकर देखकर रहे थे । बच्चा, क्योंकि कहा है करने को सो कर रहा था … तो इसपर पिताजी बोले – कि पानी ऐसे दो जैसे कि किसी को पानी पिला रहे हो !!

सब में वह परम प्यारे का वास है … जो पौधा आपके घर जीवित रह जाए व खिल जाए व उन पौधों पर जो अन्य जीव जन्तु आएं तो हृदय से धन्यवाद कीजिए कि आप हमारे संग रहे व रह रहे हैं।

जिन पौधों की अवधि अब पूर्ण हो रही हो तो उनका भी धन्यवाद कि वे इतने काल तक हमारे संग रहे व अपनी उपस्थिति से इतना आनन्द विभोर किया !

प्रकृति में बैठे कितने जीव हमारा संग कर रहे होते हैं, कोई पक्षी न जाने क्या अपनी बातें सुना रहा होता है , वृक्ष न जाने कैसे अपना प्रेम लुटा रहे होते हैं और न जाने हम उस अद्भुत मौन में कहां खो जाते हैं…

इन सब के स्पर्श का अतिश्य धन्यवाद