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April 17, 2010(2)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराज़श्री के मुखारविंद से

April 17, 2010 (2)

कल साधक जनों आपजी से चर्चा की जा रही थी कि सुबह पाँच बजे मुझे नर्मदा नंदि के किनारे लेकर गए थे ।

धुआँधार घाट पर स्नान करने के बाद एक भाई साहब ने कहा – नर्मदा कुँवारी है । ब्रह्मचारिणी है, तपस्विनी है । इस नदि के लिए प्रसिद्ध है , और नदियों में स्नान करने से पाप धुलते हैं , इस नदि के दरश्न मात्र से पाप साफ़ होते हैं।

ब्रह्मचर्य का , तपस्या का प्रताप । कल आप जी से एक एस पी साहब की चर्चा की गई । कल ही उनका किसी के माध्यम से मैसेज आया है कि वे अभी तक भी रोए जा रहे हैं। उनका रोना बंद नहीं हो रहा । इतने प्रसन्न हैं वे। किसी ने कहा कि राम नाम ने एक शेर को, एस पी, मानो शेर को मेंमना बना दिया है ।अभी चौदह को तो दीक्षा ली है ।

एक डॉक्टर भी आए थे वहाँ । ई एन टी स्पैशेलिस्ट । पत्नी साथ थी । अपने आप को इनट्रोड्यूस करवाया । मैंने पूछा आप मैडिकल डॉक्टर हैं या पी एच डी ? कहा मैं ENT SPECIALIST हूँ । दो तीन साल से सेवानिवृत हुआ हूँ । रिटायर हो गया हूँ । मैंने पूछा कि अब क्या करते हैं। कहा ENT तो नहीं करता । कहा सात साल की पढ़ाई ने मुझे सैंतीस साल अपना पेट पालने , अपनों का पेट पालने की योग्यता दी। सात साल की पढ़ाई ने । मैं सोचता हूँ अब इससे और सेवा लेने की जरूरत नहीं । मैंने पीठ थपथपाई । अब मैं ENT नहीं करूँगा । अपने लिए करता रहा, अपने शरीर के लिए करता रहा, अब अपनी आत्मा के लिए करूँगा । मैंने फिर पीठ थपथपाई । मैंने पूछा दोपहर में सत्संग है, आओगे? बोले आऊँगा । दीक्षा में उन्हें नहीं देखा । सम्भवतया उन्हें दीक्षा का पता ही नहीं था । यहाँ दीक्षा भी होती है या होगी या पता भी होगा पर शायद समझ नहीं आई होगी । समझाने वाले सम्भवतया ठीक ढंग से समझा नहीं सके।

ग्वालियर के एक बढ़े renowned neurosurgeon retire हो गए । उसके बाद neurosurgery कभी नहीं करी । इतने popular, कि शंकर दयाल शर्मा, सम्भवतया उनके physician, neurology रहे होंगे । शंकर दयाल शर्मा एक दफ़ा ग्वालियर गए । राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा आए हुए थे ।तो आँखें खोज रही हैं उनको कहीं । इतने बड़े ग्वालियर के डॉक्टर। renowned डॉक्टर। यही सोचा होगा कि डॉक्टर साहब कहीं आगे बैठे होंगे । स्टेज पर शर्मा जी ने पूछा उनका नाम लेकर कि डॉक्टर साहब नहीं बुलवाए गए । कहां हैं वे । तो डॉक्टर साहब भीड़ में खड़े हुए और शर्मा जी बोले कि डॉक्टर साहब मुझे बाद में मिल लेना ।

अपने भाषण में कहा कि ग्वालियर दो व्यक्तियों के लिए प्रसिद्ध रहेगा । एक अचल बिहारी वाजपाई और एक । पुरानी बातें हैं। अभी अटल जी प्रधानमंत्री नहीं बने हुए थे । उनके व्यक्तित्व की चर्चा की जा रही थी । अटल बिहारी वाजपाई और दूसरे उन डॉक्टर साहब का नाम सदा याद रहेगा ।

परमेश्वर की ओर व्यक्ति मुड़ जाए । परमेश्वर की ओर उन्नमुख हो जाए । तो शेष चीज़ें ज़िन्दगी की बहुत insignificant लगने लग जाती हैं। बहुत तुच्छ लगने लग जाती हैं।

कल रात जो फ़ोन आया । लगभग 45 min तक , आज मिनाक्षी बता रही थी, शशी जो जज साहिबा हैं वहाँ, जिन्होंने सारा प्रबन्ध किया हुआ था, उन्हीं का फ़ोन था । कहा कि पहली रात जब मैं निकला तो थकी हुई थी, मुझे बिल्कुल होश नहीं थी । कल बात हुई । कल का दिन सारा दिन फ़ोन ही attend करती रही। कोर्ट में कोई केस सुनना या निर्णय लेना बहुत कठिन । बहुत फ़ोन आए लोगों के । आपके इस आध्यात्मिक सत्संग ने क्या कर दिया है हमें । जो सत्संग भवन , जहां हुआ , वहाँ के employees हैं उनका कहना , जो कैन्टीन है उनके कर्मचारियों के क्या comments हैं मैं बताता हूँ आपको । देवियों और सज्जनों जब गाडी में मुझे बैठना था, तो सामने एक संत महात्मा खड़े थे । कुछ दो चार लोग और भी हैं उनके साथ।मैंने देखा कि संत महात्मा हैं तो मैंने चरण स्पर्श किए । तो जज साहब जो खडे थे वे बोले कि अभी सत्संग हाल में इन्हीं के द्वारा की जाने वाली भागवत कथा शुरू की जाने वाली है। मुझे पता नहीं था । न जाने उस गोपाल भवन में आज तक कितने संत महात्मा कितने बड़े बड़े संत महात्मा वहाँ आ चुके हैं कितने आयोजन वहाँ हो चुके हैं, गिनती नहीं । very popular. Air conditioner. हर जगह ।

शशी क्या कहती है उन employees की बात। मेम साहब, मुद्दत हो गई है यहाँ काम करते । सतंसग ऐसा , पहली बार ऐसा आध्यात्मिक सत्संग देखा है। मेरे जाने से पहले ही सत्संग हॉल भरा हुआ था । मैं लगभग बीस मिनट पहले चला गया था। सोचके कि दो भजन होंगे । श्री अमृतवाणी जी का पाठ हो जाएगा । हमने ऐसा disciplined सत्संग ऐसी huge मात्रा में कभी नहीं देखा । बड़े बड़े संत महात्मा यहाँ पधारे हैं, शंकराचार्य भी यहाँ पधारे हैं। लेकिन ऐसा disciplined सत्संग यहाँ नहीं देखा । जिन्होंने कैन्टीन में भोजन किया वहाँ के लोग बोले कि हमने ऐसे साधक पहली बार देखे हैं कि जिनके आगे थाली रख दी गई है और जिन्होंने आगे से कुछ माँगा नहीं । जहां बैठे हैं, उस जगह को साफ़ करने की जरूरत नहीं पड़ी । यह सब चीज़ें सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है बहुत अच्छा लगता है। हमारे साधक जहां भी जाते वहाँ वहाँ अपनी धाक जमा कर आते हैं। वहाँ एक आदर्श स्थापित करके आते हैं।

बहुत सुंदर । जैसे जबलपुर के सत्संग को यहाँ याद किया जा रहा है वैसे जबलपुर निवासी वहाँ याद कर रहे हैं। ऐसा सुंदर व्यवस्था । सब जगह ही होती है लेकिन उनके लिए नई बात थी । सो सारा जबलपुर बहुत प्रसन्न है, उल्लसित है प्रफुल्लित है यह देखकर कि सहज मार्ग मिल गया । एक आसान सा मार्ग मिल गया उस परम लक्ष्य की प्राप्ति का। ऐसा उन लोगों ने कहलवा के भेजा है ।

धन्यवाद

गुरूजन द्वारा सफ़ाई

Sept 30, 2018

आज माँ को छुट्टी थी । पर घर के सब काम पर गए हुए थे । माँ ने सोचा सब गए हैं शान्ति से काम करती हूँ। माँ अपने बच्चे के कमरे में गई, जहाँ सदा बहार बाढ़ आई रहती है ।

सब जगह से कपड़े उठाए व समेटे। बिस्तर के अंदर से कितना कुछ मिला!! बिस्तर के नीचे कितना ख़ज़ाना मिला !

टेबल के ऊपर से टेबल के नीचे से। टेबल के पीछे से !!

दिवार के इस कोने से व उस कोने से। ऊपर से साफ़ सुथरा दिखने वाले कमरे की कितने ही कोनों व खानों से न जाने कितना कुछ मिला !!

अब कमरा देख कर माँ खुश !! पता है कि हर कोना साफ़ है- कुछ पलों के लिए ही सही !!!

बाहर निकलते निकलते पैर में कुछ चुभा !!! कुछ रह गया था नीचे !!!! वह भी साफ़ हो गया !!

साधक की आज की सीख 😇

बच्चे का कमरा गंदा था ! माँ ने उसे छोड नहीं दिया न ही अपने से अलग किया। सब सफाई स्वयं ही कर डाली !! इसी तरह हमारे माँ रूपी गुरूजन अनथक लगे रहते हैं , हमारे हर कोने से सफाई करने के लिए… अपने सत्कर्म न्योछावर करते रहते हैं कि हमारे काम बन सकें, हमारे जीवन की परेशानियाँ दूर हो सकें ताकि हम जान सकें कि असली काम हमारा राम नाम ही है । भक्ति ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है।

हमें तो अपने अंदर के दुर्गुण दिखते ही नहीं पर वे न जाने कहाँ कहाँ से सफाई करने में लगे रहते हैं। बार बार सफाई करते हैं, अनथक सफ़ाई करते जाते हैं । जब तक हम खाली न हो जाएँ । प्रभु के प्रकट होने के लायक न बन जाएँ ! अपने घर जाने के लिए सक्ष्म न हो जाएँ !!

श्री श्री चरणों में

दिव्यता की खोज

अपने अंतर्मन की खोज करनी चाहिए क्योंकि दिव्यता चित्त की गहराइयों में छिपी होती है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

Sept 29, 2018

परम करुणामयी माँ, परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित ।

यह जीवन उस प्यारे की खोज के लिए ही मिला है । जीवन की हर परिस्थिति केवल इसीलिए ही मानो रची गई कि उनसे मेल हो सके । संतगण केवल इसलिए मिले कि परम प्यारे से एक हो जाएं और अपना सर्वस्व उनका हो जाए ! न जाने कब से तरस रहे हैं। किन्तु कुकृत कर डाले और फिर न एक हो सके । पथ पतन न जाने कब से होता आ कहा है और भोग विलास का अंत नहीं ।

किन्तु अब की बार काश किसी की करुणामयी दृष्टि हम ग़रीबों पर पड़ जाए ! हम बेसहारों का और कौन सहारा ! यह जीवन परम प्यारे के बिना तो व्यर्थ । कहां कुछ भाता है उनके सिवाय ! किसी संत आत्मा की दृष्टि ही कृपा बरसा सकती है । इस जीवन को तो केवल परम प्यारे का ही इंतजार है ! वे देवाधिदेव कृपा करें । मेल सुयोग स्वयं बनाएँ । कहीं यह जीवन भी बाकि जन्मोँ की तरह व्यर्थ न चला जाए ! भोगों के पीछे भागते !

सो हाथ जोड़ सजल नयन से विनती करें कि भगवन इस बार अपने बारे में बताया है तो आगे भी अपने तक ले जाने की कृपा करें ! भोग लालसाओं से निस्तारा करें व अपने पथ पर स्वयं ही लेकर जाएं भगवन! एक भी भोग लालसा की बूँद तक न रहे प्रभु ! यह कृपा तो केवल आप कर सकते हैं ! यह अपने बस की बात नहीं ! कृपा करें प्रभु ! दया करें ।

चित्त में बसते हैं राम

हमारे मन के भीतर से भी भीतर चित्त है। परमेश्वर की पहचान वहाँ छिपि हुई है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

Sept 28, 2018

परम करुणामयी माँ, परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ गौतम चैटर्जी के चरणधुलि में सर्व समर्पित ।

चित्त शुद्धि , बार बार प्रार्थना करते हैं गुरूदेव । हे परमेश्वर ! हमारी चित्त शुद्धि कीजिए । आग्रह करते हैं गुरूदेव कि अपना चित्त शुद्ध कीजिए ।

उस शुद्धि के उपरान्त ही ज्ञात होता है कि हम तो हैं ही नहीं । वह परम प्यारा वह सर्वस्व ही सब हैं। सर्व करन करावनहार केवल वे ही हैं। न केवल करनकरावन हार बल्कि हर रूप रंग के पीछे केवल वे ही हैं ।

दे दो राम दे दो राम निर्मल बुद्धि दे दो राम ! ऐसी विनती करते हैं गुरूदेव ।

नाम से ही सब सम्भव है । केवल नाम से । संतगण कहते हैं अनन्त खरबों राम नाम से यह सम्भव है। वे प्यारे सब सम्भव स्वयं ही बना देते हैं। कोई बुरा भी करता है, बुरा निकलता ही नहीं दूसरों के लिए । स्वयं ही संसार व संसारिकता से दूर रखते हैं, तो संसार से संसार की तरह जूझना नहीं आता । अपने प्रेम में रखा तो नकारात्मक शक्तियों के लिए भी पीड़ा में प्रेम ही निकलता है, मंगल कामना ही निकलती है। ऐसा सा कुछ कर देते हैं।

चित्त शुद्धि से प्रेम ही प्रवाहित होता है। प्रेम में ही रहते हैं व बहते हैं…. और यही उन देवेधिदेव का स्पर्श होता है, उनका आलिंगन होता है उनका अपनाना होता है !

केवल वह ! केवल राम ।

नाम सबसे प्यारी चर्चा

Sept 28, 2018

किसी साधक जी का संदेश आया कि कोई प्यारी सी बात आज के लिए बताइए ….

सबसे प्यारी बात तो राम नाम है ! इनसे प्यार हो जाए तो सब फीका हो जाता है ! बहुत बहुत धन्यवाद जी उनकी चर्चा के लिए विनती के लिए ! अतिश्य धन्यवाद ।

देखिए संसार हमें सदा संसारी नज़र से देखेगा । वह सोचता है प्रभु के नाम के रसिकों को संसार का प्रेम चाहिए ! वह सोचता है कि नाम के प्रेम के रसिकों को संसार को अपनी ओर आकर्षित करना है ! वह अनेक दावँपेच करेगा कि हम भी संसारी व्यवहार करें ।

पर वे भूल जाते हैं ! कि सब की सोच उन जैसी नहीं होती ! जिनका हृदय नाम पर रहता है उन्हें केवल नाम से लेना देना होता है। ऐसों को सेवा की चिन्ता भी नहीं होती ! क्योंकि वे जानते हैं परमेश्वर करन करावन हार है ! जब उसने जो उसने उस द्वारा करना है वह करना है !

नाम के रसिकों को केवल अपने प्रभु के नाम से लेना देना होता है। उनके लिए संसार सत्संग है । सत्संग में बहुत बार एक ही भजन बहुत लोग गा लेते हैं ! नाम के रसिकों का सत्संग में अपना कुछ नहीं होता ! वे केवल अपने आराध्य देव के लिए आते हैं । उनके नाम का रस पान करने आते हैं । वह परमेश्वर की अतिश्य अनुकम्पा होती है कि अन्य भी वह रसपान करते है।

नाम से प्रीति ! सर्वोपरि ! प्रभु अपने नाम से हमें लपालप भरते रहें !

नाम की पौढी चढ के संतां ने वाज लगाई

नाम सिमरे भाई तू नाम सिमर ले भाई

सत्संग देने वाले पर विश्वास

Sept 28, 2018

आज किसी ने पूछा कि एक ७० वर्ष की साधिका जी हैं जो नित्य श्रीरामशरणम् जाती हैं। वहाँ जाप के दिन रहती भी हैं। अब उनके सिर में दर्द रहता है, वे गिर भी गई थी। घर वाले मानते नहीं हैं। किन्तु यदि घर में बताया तो डर है जाने न दें। पर तबीयत खराब रह रही है । क्या करें ।

जिनके लिए सत्संग जाते हैं उन प्यारों पर भरोसा करें। वे दीन दयाल ही तो सत्संग ले कर आते हैं। सो उन पर भरोसा रखें । जैसी वे विधि बनाएँगे वे हमारे हित में ही होगी यह परम विश्वास रखें ।

इलाज नहीं करवाएँगे तो साधना में कैसे मन लगेगा । हो सकता है एक ही गोली से सब ठीक हो जाए और हम न जाने कब से चिन्ता कर रहे होंगे कि यहाँ तक बात पहुँची !

हमें अपने कर्मों से भय लगता है कि कहीं कर्मगति के कारण मेरा सत्संग न बंद हो जाए । किन्तु हम भूल जाते हैं कि सत्संग देने वाला तो कोई बहुत ही प्यारा बैठा है ! वह सब हालात जानता है । वे सभी प्रबन्ध बनाए रखेगा ।

सो उन प्यारों के श्रीचरणों मे जाकर कृपया जरूर इलाज करवाएं और उन्हें देवाधिदेव के सहारे अपना सत्संग जारी रखें !

परमेश्वर सब बुज़ुर्गों पर कृपा करें जो शारीरिक कष्ट के कारण अपना प्राण प्यारा सत्संग नहीं जा पा रहे या भय करते हैं कि यदि न जा पाए और जाना चाहते हैं । प्रभु अपनी कृपा सब पर बरसाएँ ।

दिव्य प्रेम

सभी से प्रेम भाव में रत्ति भर भी कामुकता नहीं होनी चाहिए । प्रेम दिव्य है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

Sept 27, 2018

परम करुणामयी माँ , परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ गौतम चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित करते हैं।

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि प्रेम जब भी होगा वह दिव्य होगा। और दिव्य प्रेम एक देह से नहीं हुआ करता । वह सबसे एक सा हुआ करता है। परम पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि यदि प्रेम में कोई दूसरा है तो वह कामुकता है दिव्य प्रेम नहीं ! यह बहुत ही सुंदर हमारे लिए एक संकेत है कि हममें दिव्य प्रेम जागृत हुआ है कि नहीं ।

दिव्य प्रेम कोई मानस की स्थिति नहीं है । दिव्य प्रेम न ही ज़बरदस्ती से होता है। दिव्य प्रेम की अनुभूति संत के सानिध्य से होती है। संत अपनी ऊर्जा शक्ति में साधकों को जब रखते हैं, तब अकारण निस्वार्थ प्रेम की अनुभूति होती है। जो साधकगण संत के निकट रह उनके संसारी यात्रा के कार्यों में हाथ बँटाते हैं वे लगभग हर समय इसी ऊर्जा शक्ति से ओत प्रोत रहते हैं ।

पर यथार्थ में दिव्य प्रेम तो स्वयं के जागरण पर प्रस्फुटित होता है । वह स्थिति परमेश्वर के साक्षात्कार व आत्मा के सम्पूर्ण रूप से जागृत होने पर होती है। यहाँ मैं सम्पूर्ण रूप से परमेश्वर में विलीन हो गई होती है । और सबसे महत्वपूर्ण बात दिव्य प्रेम में कोई दूसरा नहीं होता !

सो यह जीवन ही दिव्य प्रेम की खोज या उसे पाने के लिए मिला है। नाम से प्रीति यह मार्ग स्वयं प्रशस्त करती है। नाम स्वयं अपने ही स्रोत तक ले जाने का बेड़ा उठाते हैं। केवल नाम से अथाह प्रीति ही दिव्य प्रेम की कुंजी है ।

परमेश्वर सब पर मंगल कृपा करें ।

संगति

Sept 26, 2018

मित्रगणों के उकसाने पर भी हमारी पापमय नियत को सहारा मिलता है । सावधान रहिए ~ डॉ गौतम चैटर्जी

संगति ! अतिश्य माएने रखती है । जिस तरह के विचार पड़ेंगे, जिस तरह के विचार सुनेंगे, जिस तरह के विचार दृष्टिगोचर करेंगे वैसे ही बनते जाएंगे ।

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि एक हाथ में कोयला लीजिए और दूसरे हाथ में चंदन । अब दोनों फेंक दीजिए । और हाथ पोंछ लीजिए। कितनी बार धोने पर भी कोयले का दाग नहीं जाता मानो कि बुरी संगति छोड़ने पर भी उस संगति के निशान पड़े रहते हैं और चंदन वाले हाथ से ख़ुशबु कितने दिन आती रहती है। मानो सत् संगति का असर अमिट होता है !

मित्रगणों के प्रभाव में आकर गलत कार्य भी कर डालते हैं। पापमय मार्ग पर भी अग्रसर हो जाने की सम्भावना बहुत होती है ।

किन्तु संत की संगति से बड़े बड़े डाकू, क़ैदी इत्यादि सुधर जाते हैं व उनका जीवन रूपान्तरित हो जाता है।

पूज्य गुरूदेव बच्चों को खासकर सावधान करते हैं ।

एक बार एक चित्रकार के मन में आया कि वह एक ऐसे क्रूर इंसान का चित्र बनाए जिसको देखते ही लोग डर जाएंगे । वह इसलिए यह करना चाहता था क्योंकि बहुत वर्ष पूर्व उसने एक बच्चे का चित्र बनाया जिससे संसार भर में उसकी ख्याति हो गई थी । सो ऐसे ख़ौफ़नाक चेहरे की तलाश मेँ वह जेल गया । जेल में क़ैदियों को देखते उसे एक ऐसा क़ैदी दिखा जिसकी उसको तैलाश थी । उसने क़ैदी को अपना परिचय दिया और अपने आने का उद्देश्य बताया । फिर उसने अपने पहले चित्र की लोकप्रियता के बारे में बताया और क़ैदी को उस बच्चे का चित्र दिखाया । चित्र देखते ही क़ैदी के आँखों से अश्रु बहने लगे । चित्रकार डर गया और क्षमा प्रार्थना की कि उसके कारण उसके प्रियजन की शायद याद आ गई । वह क़ैदी बोला नहीं ! यह चित्र मेरा ही है। चित्रकार हैरान हो गया और इस हालात का कारण पूछा। तो क़ैदी बोला – संगति । बुरी संगति के कारण मैं एक के बाद एक पापमय कर्म ही करता गया । रोक ही नहीं पाया ! और यह हालत हो गई !

हम साधक हैं ! साधक गणों में भी भिन्न तरह की प्रवृतियाँ होती हैं सो सावधान रह कर चयन करना बहुत आवश्यक है !

राम नाम की संगति सबसे सर्वोपरि !

जिसका राम प्यारे से संबंध है

उसके भीतर आनन्द ही आनन्द है

गुरू मंत्र व प्रभु का रूप

Sept 26, 2018

प्रश्न आया कि मुझे भगवान कृष्ण से रोम रोम से प्रेम है। दीक्षा परम पूज्य़श्री स्वामीजी महापाजश्री से ली है किन्तु मेरा मन गुरू मंत्र की बजाए कृष्ण नाम जपने को करता है ।

जब दीक्षा मिलती है तो उसे नव जन्म कहते हैं।

जब असली में जन्म होता है तो केवल देह नया होता है किन्तु संस्कार पुराने होते हैं।

इसी तरह जब गुरू अकारण कृपा कर जीवन में आते हैं और झोली में नाम दान देते हैं तो उसका मतलब कि वे पुराने संस्कारों को बदलने के लिए आ गए हैं। जहां पहले थे वहाँ से आगे बढ़ने का समय आ गया है।

मूर्ति पूजा यदि स्वाभाविक लगती थी तो मानो वह पुराने संस्कारों के कारण । उपवास रखने, व अन्य विधि करनी सब पुराने संस्कार । किन्तु गौण !

मूर्ति पूजा से जब हम मानसिक पूजा की ओर बढ़ते हैं तो वह भीतर की यात्रा का आग़ाज़ होता है। जो करना हमारे लिए स्वभाविक है किन्तु गौण और गुरू की शिक्षाएँ बहुत भिन्न हैं जैसे आत्मचिन्तन तो मानो गुरू बहुत ही उच्च उत्थान के लिए मिले हैं।

उत्थान किन्तु गुरू आज्ञा में सम्भव है । गुरू मंत्र से सम्भव है।

मन वहीं खींचता है जहां उसे आदत है। किन्तु उसका रुख़ गुरू आज्ञा के कारण बदलना बहुत बड़ा त्याग है ।

मंत्र राम लेना अनिवार्य है। किन्तु मन में रूप कोई भी ले सरते हैं व किसी भी रूप से प्रेम कर सकते हैं। जैसे भगवान कृष्ण, धनुषधारी प्रभु राम, भगवती मइय, गुरूजन , ज्योति , सूर्य , राम शब्द या शून्य। ऐसा पूज्य गुरूदेव कहते हैं।

नाम से प्रीति हो जाए ! ऐसी प्रार्थना करते रहनी है। नाम ही भीतर की गहराइओं में स्वयं लेकर जाएंगे।

परमेश्वर रूप व नाम से पार है ! वे अथाह मौन में पाए जाते हैं जहां सब रूप नाम विलीन हो जाते हैं।

कर्ता वह व करनाहार वह

Sept 25, 2018

परमेश्वर की अहेतुकी कृपा

आज एक चिड़िया संगत के लिए दाना चुग कर बैठी तो पड़ोसन आई और बोली इतने वर्षों जो दाना चुग रही हो वह तो सही नहीं है ! पूर्ण मिश्रित नहीं था !

वह चिड़िया चुप हो गई । मन ही मन आया कि सही नहीं हुआ !

तभी उसके प्यारे आए और बोले – बता क्या स्मरण है कि तूने क्या किया ? उसका गला भर आया और बोली कुछ नहीं । एक भी चीज स्मरण नहीं न ही कि कैसे किया व कब किया ! एक क्षण नहीं स्मरण !

तो उसके प्यारे मुस्कुराए ! और वह समझ गई कि जब एक भी क्षण दाने चुगने का स्मरण नहीं तो कर्ता ही नहीं ! सो न उसका श्रेय लिया न ही उसका फल !

ऐसी प्रभु कृपा करते हैं।

जब वे स्वयं कर्ता होते हैं तो कार्य करने वाले को न ही कार्य करने का आभास होता है, चाहे वह लिखित हो या वाचिक हो ! सब पानी के ऊपर लकीर जैसे लगाओ क्षण भर में समाप्त हो जाए वैसा हो जाता है !

सब केवल उनका ! व उन्हीं से ! परम प्यारे प्राण प्यारे !