Aug 31, 2018
आज का आत्मिक चिन्तन
आपकी आत्मा व मेरी आत्मा रोग रहित है
आत्मा पवित्र होती है। उसमें कोई दाग नहीं होता ! वह सदा परमानन्द में रहती है। ऐसा नहीं कि आज परमानन्द में है और कल नहीं ! नहीं !
अनुपमा कौन है ? कब नाम पड़ा अनुपमा । जब बच्ची का जन्म हुआ । या आजकल जब पता लग जाए कि पुत्र है या पुत्री तो तभी नाम दे देते हैं। सो किसको नाम दिया गया ? देह को नाम दिया गया ।
देह रोग ग्रस्त होता है मन रोग ग्रस्त होता है । संतगण कहते हैं कि मन से ही देह रोग ग्रस्त होता है । देह में ही जन्म व मरण है । किन्तु आत्मा में यह सब नहीं ! वह वैसे का वैसा प्रकाशमय ऊर्जामय रहता है !
मन में नकारात्मकताएं होती हैं । मन की नकारात्मकताएं देह में कर्म के रूप में निकलती हैं । मन में मलिनता होती है ! देह में व्यवहार रूप में निकलती है । पर आत्मा पाक् होती ही ! परमेश्वर का अंश !
पर इन मन के संस्कारों के आवरणों से ढक जाती है छिप जाती है ।
पवित्र होते हुए भी मलिन आवरणों में दब जाती है । और यही आवरण भिन्नता लेकर आता है !
इन आवरणों को गेरना केवल मानव जीवन में ही सम्भव है । इन आवरणनों के गेरने को ही आरोग्य होना कहते हैं । जितने आवरण गिरते जाते हैं उतना आत्मा उभर कर आने लगती है ।
इसी प्रयोजन के लिए मानव जीवन मिला है कि हर तरह का आवरण अपने असली स्वरूप से गेर सकें और मानव जीवन सफल बना सकें । सो रोग केवल मन व देह को होता है ।
अनन्त आत्मा चमकता , है तेरे सब ओर ।
मेरे आत्म- रूप हे, सर्व दिशा सब ठौर ।।