दिव्य प्रेम

सभी से प्रेम भाव में रत्ति भर भी कामुकता नहीं होनी चाहिए । प्रेम दिव्य है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

Sept 27, 2018

परम करुणामयी माँ , परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ गौतम चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित करते हैं।

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि प्रेम जब भी होगा वह दिव्य होगा। और दिव्य प्रेम एक देह से नहीं हुआ करता । वह सबसे एक सा हुआ करता है। परम पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि यदि प्रेम में कोई दूसरा है तो वह कामुकता है दिव्य प्रेम नहीं ! यह बहुत ही सुंदर हमारे लिए एक संकेत है कि हममें दिव्य प्रेम जागृत हुआ है कि नहीं ।

दिव्य प्रेम कोई मानस की स्थिति नहीं है । दिव्य प्रेम न ही ज़बरदस्ती से होता है। दिव्य प्रेम की अनुभूति संत के सानिध्य से होती है। संत अपनी ऊर्जा शक्ति में साधकों को जब रखते हैं, तब अकारण निस्वार्थ प्रेम की अनुभूति होती है। जो साधकगण संत के निकट रह उनके संसारी यात्रा के कार्यों में हाथ बँटाते हैं वे लगभग हर समय इसी ऊर्जा शक्ति से ओत प्रोत रहते हैं ।

पर यथार्थ में दिव्य प्रेम तो स्वयं के जागरण पर प्रस्फुटित होता है । वह स्थिति परमेश्वर के साक्षात्कार व आत्मा के सम्पूर्ण रूप से जागृत होने पर होती है। यहाँ मैं सम्पूर्ण रूप से परमेश्वर में विलीन हो गई होती है । और सबसे महत्वपूर्ण बात दिव्य प्रेम में कोई दूसरा नहीं होता !

सो यह जीवन ही दिव्य प्रेम की खोज या उसे पाने के लिए मिला है। नाम से प्रीति यह मार्ग स्वयं प्रशस्त करती है। नाम स्वयं अपने ही स्रोत तक ले जाने का बेड़ा उठाते हैं। केवल नाम से अथाह प्रीति ही दिव्य प्रेम की कुंजी है ।

परमेश्वर सब पर मंगल कृपा करें ।

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