April 17, 2010(2)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराज़श्री के मुखारविंद से

April 17, 2010 (2)

कल साधक जनों आपजी से चर्चा की जा रही थी कि सुबह पाँच बजे मुझे नर्मदा नंदि के किनारे लेकर गए थे ।

धुआँधार घाट पर स्नान करने के बाद एक भाई साहब ने कहा – नर्मदा कुँवारी है । ब्रह्मचारिणी है, तपस्विनी है । इस नदि के लिए प्रसिद्ध है , और नदियों में स्नान करने से पाप धुलते हैं , इस नदि के दरश्न मात्र से पाप साफ़ होते हैं।

ब्रह्मचर्य का , तपस्या का प्रताप । कल आप जी से एक एस पी साहब की चर्चा की गई । कल ही उनका किसी के माध्यम से मैसेज आया है कि वे अभी तक भी रोए जा रहे हैं। उनका रोना बंद नहीं हो रहा । इतने प्रसन्न हैं वे। किसी ने कहा कि राम नाम ने एक शेर को, एस पी, मानो शेर को मेंमना बना दिया है ।अभी चौदह को तो दीक्षा ली है ।

एक डॉक्टर भी आए थे वहाँ । ई एन टी स्पैशेलिस्ट । पत्नी साथ थी । अपने आप को इनट्रोड्यूस करवाया । मैंने पूछा आप मैडिकल डॉक्टर हैं या पी एच डी ? कहा मैं ENT SPECIALIST हूँ । दो तीन साल से सेवानिवृत हुआ हूँ । रिटायर हो गया हूँ । मैंने पूछा कि अब क्या करते हैं। कहा ENT तो नहीं करता । कहा सात साल की पढ़ाई ने मुझे सैंतीस साल अपना पेट पालने , अपनों का पेट पालने की योग्यता दी। सात साल की पढ़ाई ने । मैं सोचता हूँ अब इससे और सेवा लेने की जरूरत नहीं । मैंने पीठ थपथपाई । अब मैं ENT नहीं करूँगा । अपने लिए करता रहा, अपने शरीर के लिए करता रहा, अब अपनी आत्मा के लिए करूँगा । मैंने फिर पीठ थपथपाई । मैंने पूछा दोपहर में सत्संग है, आओगे? बोले आऊँगा । दीक्षा में उन्हें नहीं देखा । सम्भवतया उन्हें दीक्षा का पता ही नहीं था । यहाँ दीक्षा भी होती है या होगी या पता भी होगा पर शायद समझ नहीं आई होगी । समझाने वाले सम्भवतया ठीक ढंग से समझा नहीं सके।

ग्वालियर के एक बढ़े renowned neurosurgeon retire हो गए । उसके बाद neurosurgery कभी नहीं करी । इतने popular, कि शंकर दयाल शर्मा, सम्भवतया उनके physician, neurology रहे होंगे । शंकर दयाल शर्मा एक दफ़ा ग्वालियर गए । राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा आए हुए थे ।तो आँखें खोज रही हैं उनको कहीं । इतने बड़े ग्वालियर के डॉक्टर। renowned डॉक्टर। यही सोचा होगा कि डॉक्टर साहब कहीं आगे बैठे होंगे । स्टेज पर शर्मा जी ने पूछा उनका नाम लेकर कि डॉक्टर साहब नहीं बुलवाए गए । कहां हैं वे । तो डॉक्टर साहब भीड़ में खड़े हुए और शर्मा जी बोले कि डॉक्टर साहब मुझे बाद में मिल लेना ।

अपने भाषण में कहा कि ग्वालियर दो व्यक्तियों के लिए प्रसिद्ध रहेगा । एक अचल बिहारी वाजपाई और एक । पुरानी बातें हैं। अभी अटल जी प्रधानमंत्री नहीं बने हुए थे । उनके व्यक्तित्व की चर्चा की जा रही थी । अटल बिहारी वाजपाई और दूसरे उन डॉक्टर साहब का नाम सदा याद रहेगा ।

परमेश्वर की ओर व्यक्ति मुड़ जाए । परमेश्वर की ओर उन्नमुख हो जाए । तो शेष चीज़ें ज़िन्दगी की बहुत insignificant लगने लग जाती हैं। बहुत तुच्छ लगने लग जाती हैं।

कल रात जो फ़ोन आया । लगभग 45 min तक , आज मिनाक्षी बता रही थी, शशी जो जज साहिबा हैं वहाँ, जिन्होंने सारा प्रबन्ध किया हुआ था, उन्हीं का फ़ोन था । कहा कि पहली रात जब मैं निकला तो थकी हुई थी, मुझे बिल्कुल होश नहीं थी । कल बात हुई । कल का दिन सारा दिन फ़ोन ही attend करती रही। कोर्ट में कोई केस सुनना या निर्णय लेना बहुत कठिन । बहुत फ़ोन आए लोगों के । आपके इस आध्यात्मिक सत्संग ने क्या कर दिया है हमें । जो सत्संग भवन , जहां हुआ , वहाँ के employees हैं उनका कहना , जो कैन्टीन है उनके कर्मचारियों के क्या comments हैं मैं बताता हूँ आपको । देवियों और सज्जनों जब गाडी में मुझे बैठना था, तो सामने एक संत महात्मा खड़े थे । कुछ दो चार लोग और भी हैं उनके साथ।मैंने देखा कि संत महात्मा हैं तो मैंने चरण स्पर्श किए । तो जज साहब जो खडे थे वे बोले कि अभी सत्संग हाल में इन्हीं के द्वारा की जाने वाली भागवत कथा शुरू की जाने वाली है। मुझे पता नहीं था । न जाने उस गोपाल भवन में आज तक कितने संत महात्मा कितने बड़े बड़े संत महात्मा वहाँ आ चुके हैं कितने आयोजन वहाँ हो चुके हैं, गिनती नहीं । very popular. Air conditioner. हर जगह ।

शशी क्या कहती है उन employees की बात। मेम साहब, मुद्दत हो गई है यहाँ काम करते । सतंसग ऐसा , पहली बार ऐसा आध्यात्मिक सत्संग देखा है। मेरे जाने से पहले ही सत्संग हॉल भरा हुआ था । मैं लगभग बीस मिनट पहले चला गया था। सोचके कि दो भजन होंगे । श्री अमृतवाणी जी का पाठ हो जाएगा । हमने ऐसा disciplined सत्संग ऐसी huge मात्रा में कभी नहीं देखा । बड़े बड़े संत महात्मा यहाँ पधारे हैं, शंकराचार्य भी यहाँ पधारे हैं। लेकिन ऐसा disciplined सत्संग यहाँ नहीं देखा । जिन्होंने कैन्टीन में भोजन किया वहाँ के लोग बोले कि हमने ऐसे साधक पहली बार देखे हैं कि जिनके आगे थाली रख दी गई है और जिन्होंने आगे से कुछ माँगा नहीं । जहां बैठे हैं, उस जगह को साफ़ करने की जरूरत नहीं पड़ी । यह सब चीज़ें सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है बहुत अच्छा लगता है। हमारे साधक जहां भी जाते वहाँ वहाँ अपनी धाक जमा कर आते हैं। वहाँ एक आदर्श स्थापित करके आते हैं।

बहुत सुंदर । जैसे जबलपुर के सत्संग को यहाँ याद किया जा रहा है वैसे जबलपुर निवासी वहाँ याद कर रहे हैं। ऐसा सुंदर व्यवस्था । सब जगह ही होती है लेकिन उनके लिए नई बात थी । सो सारा जबलपुर बहुत प्रसन्न है, उल्लसित है प्रफुल्लित है यह देखकर कि सहज मार्ग मिल गया । एक आसान सा मार्ग मिल गया उस परम लक्ष्य की प्राप्ति का। ऐसा उन लोगों ने कहलवा के भेजा है ।

धन्यवाद

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