Monthly Archives: September 2018

मन की खोटी चालें

Sept 25, 2018

मन की बहुत गुप्त सूक्षमताएं होती हैं जो हमारे कर्म को दूषित करने का प्रयास करती है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

परम प्रिय माँ, परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि मन की खोटी चालों से बचिए । मन बहुत बहुत बहरूपिया है । बहुत रूप धर कर छलता है जिसके कारण हमारे कर्म निकृष्ट हो जाते हैं ।

पूज्य गुरूदेव बहुत सुंदर उदाहरण देते हैं कि हम कहते हैं कि आज प्रभु को गुलाब जामुन का भोग लगाने का मन कर रहा है वह भोग लगाएँगे । किन्तु असल में हमारा ही गुलाब जामुन खाने का मन कर रहा होता है ।

सो मन की बहुत सी तहें होती हैं जो हम भी नहीं भाँप सकते । किन्तु यदि हमारा स्वभाव है मन के भीतर उठ रहे विचारों को देखना तो हम इसके आगे बढ कर चिन्तन कर सकते हैं कि हम ऐसे विचार क्यों ले रहे हैं। क्या कारण है कि भीतर ऐसे विचार आ रहे हैं!

राम नाम एक ऐसी सर्वोच्य औषधि है जो मन के गुप्त से गुप्त विचारों का जाप, ध्यान व चिन्तन द्वारा अनेकों आवरणों को गेर सकता है और पूर्ण पवित्रता ला सकता है । मैं कौन हूँ ? इसका चिन्तन गहन रूप से यदि मौन भाव में किया जाए वह भी मन की अनन्त पर्तों से पार करने में सक्ष्म हो सकता है । पूज्य गुरूदेव ने यह विधि ध्यानमें बताई है ।

आज बहुत सुंदर पढ़ने को मिला कि कर्म सत्य हैं किन्तु कर्तापन नहीं ! यह मन की खोटी चालें ही निकृष्ट कर्म करवा देती हैं, केवल मन के भ्रम में ! हमें नाम के प्रति शरणागत होकर सदा सजग ही रहना है ! नाम भगवन स्वयं ही सजगता प्रदान करते हैं नहीं तो मोह , कामनाएं व अहम् विवेक को दूषित कर देता है और हम भ्रमित हो जाते हैं।

प्रभु का प्रेम

Sept 24, 2018

प्रभु का प्रेम

बुद्धुराम अपनी फुलवारी की ओर देख देख कर मंद ही मंद बहुत आनन्दित हो रहा था । इतने गेंदे के फूल अपने आप उग आए हुए थे ! चहूं ओर ! तभी बुद्धुराम के शरीर में सिहरन सी हुई और उसे कुछ स्मरण हो आया ।

बुद्धुराम मन ही मन अपने परमेश्वर की आराधना करता था । अपने भगवान को गंदें के फूलों की माला मन ही मन बना करके पहनाता ! एक दिन प्रभु अचानक बोले – बुद्धुराम ! आज मोतिए का हार पहना ! बुद्धुराम सकपका गया ! कि अरे ! प्रभु बोले !

बुद्धुराम को विवाह से भय लगता था ! वह रोया कि भगवन ! यदि आप संग रहेंगे तो ही करूँगा ! आप विग्रह रूप में मेरे पास आइए ! तो कहीं भी विवाह कर लूँगा ।

उसी वर्ष नव वर्ष पर बुद्धराम के घर भगवान श्रीजगन्नाथ जी का चित्र आया ! बुद्घुराम के हृदय की धड़कन तेज़ थी ! उसने हृदय से लगाया वह चित्र और बोला यह विग्रह नहीं है ! कुछ महीने पश्चात बुद्धुराम का मित्र वृन्दावन से उसके लिए एक प्रभु की फ़ोटो फ़्रेम लाया ! बुद्धुराम जोर की हँसा ! बोला भगवन यह विग्रह नहीं है । पर वह झूम रहा था ! प्रभु के इस खेल के देख कर !

फिर एक दिन उसका एक मित्र आया बोला – तेरे लिए कुछ लाया हूँ ! न जाने क्यों आज हृदय जोर की धड़क रहा था ! काम्पते हाथों से उसने वह उपहार खोला और प्रभु विग्रह रूप में पधारे !

आज गेंदे के फूलों को देख कर लगा प्रभु उस रूप में स्वयं ही आ गए उसके संग रहने ! बाहर भी व भीतर भी !

कैसे धन्यवाद करता वह अपने प्रभु के प्रेम का ! कैसे ! बहुत प्रेम किया प्रभु ने !

पाप व नकारात्मकता को नाम से रोकना

Sept 24, 2018

पाप को रोकिए और नकारात्मकता के विचारों को उसके नाम से बदल दीजिए । वे बाकि सब सम्भाल लेंगे ~ डॉ गौतम चैटर्जी

परम करुणामयी माँ, परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित कर हम यहाँ सीखने आए हैं।

पाप को साधारण रोक सकते हैं ? यदि रोक सकते या आभास भी होता कि पाप , पाप है तो यह संसार में दुख ही नहीं होता ! परम पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि पाप व कुकर्मों का पता तो केवल परमेश्वर कृपा से पता चलता है ! अन्यथा नहीं ! परमेश्वर की अकारण कृपा से पता चलता है व उन्ही के नाम से उसे स्वीकारने की शक्ति मिलती है और फिर वे करुणासिंधु स्वयं पाप मिटा देते हैं !

किन्तु राम नाम से व संतों की संगति से हम अपने विचारों के प्रति सजग होना आरम्भ कर देते हैं ! क्या मन में घटित हो रहा है कैसे विचारों में मन आनन्द ले रहा है यह दिखना नाम की महिमा होती है ।

उन नकारात्मक विचारों को पनपने नहीं देना वह नाम की शक्ति व संत की ऊर्जा से सम्भव है ।

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि संत कुछ समय तक तो ऐसे विचार रोक सकता है किन्तु बाकि तो आपने ही चलना है ।

उदाहरण लेते हैं – कि हम किसी घोष्टी में बैठे हैं और किसी के पीठ पीछे निंदा आरम्भ हो गई । अब हमें पता है कि निंदा चुग़ली पाप है व साधक के लिए निषेध है । यदि हम कामना के वशिभूत हैं तो हम उस कार्य को करेंगे भी और आनन्द भी लेंगे ! किन्तु यदि सजग हैं तो माथा ठनकेगा ! या तो हम कुछ बहाना बनाकर चले आएँगे या मना करेंगे कि ऐसी चर्चा मत कीजिए ! यह करने की शक्ति नाम ने दी । या मित्रों के संग नहीं तो अकेले में ऐसे विचार आ गए तो नाम भगवान व उनकी ऊर्जा से हम स्वयं को परमेश्वर के स्वरूप पर केंद्रित कर पाने में सक्ष्म हो सकते हैं ! देवाधिदेव इन प्रयासों को देखते हैं और सहायक बनते हैं !

नाम सर्वोपरि औषधि है ! इनके चिन्तन से ऊपर कुछ भी नहीं !

शत् शत् नमन ! बारम्बार नमन !

परमेश्वर की शरणी से पाप का निस्तार

Sept 23, 2018

यदि अनैतिक विचार हमें भयभीत करते हैं तो हमें शान्ति के लिए परमेश्वर पर और अधिक ध्यान केंद्रित करना है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

परम करुणामयी माँ , परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित ।

हमारी भीतर का सुप्त कामनाएं जब जागृत होती हैं तो वे केवल हमें ही पता चलती हैं । किसी को भनक भी नहीं पड़ती । किन्तु भीतर कोई होता है जो सब देख रहा होता है ! अंतर्मन की आँखें व साक्षी सब जानता है कि कब क्या देख कर क्या जागृत हुआ ! ऐसे में सर्व स्वीकार कर संत शरणी जाना सबसे सुगम साधन है । वे ही ऐसे वेगों को अपनी दिव्य ऊर्जा से जला भून सकते हैं ।

पूज्य श्री महाराजश्री ने एक बार एक कथा सुनाई कि एक ब्राह्मण युवक वैश्य के नशे में पड गया। ब्राह्मण होते हुए भी कोई संस्कार ऐसे न थे । पिता की मृत्यु हुई तब भी वह वैश्या के पास पहुँचा । वैश्या ने धिक्कारा और निकाल दिया । दैवी संयोग । संत मिले । संत की चरणी लग सब पश्चयाताप किया । प्रभु प्रेम चढ़ने लगा । इतना चढा कि प्रभु ने दर्शन दिए । बोला मैं अधम ! पर फिर भी आपने करुणा की ! प्रभु ने गले लगा लिया । वह फूट फूट कर प्रभु चरणी लग गया । प्रभु बोले मेरे नाम से तेरे सब पाप धुल गए ! अब तू मेरा मित्र है ! ठाठ से रह!

सो हर तरह का पाप कर्म व विचार उन देवाधिदेव के नाम से धुल जाता है । ऐसी करुणा है उनमें ऐसी दया करते हैं वे ! कई पापों का तो हमें पता ही नहीं चलता किन्तु वह भी वे करुणासिंधु अपने नाम की प्रीति से मिटा डालते ।

Hidden Dynamics

Sept 22, 2018

किसी साधक जी ने विनती की कि कृपया Hidden Dynamics के Quotes, उदाहरण देकर समझाइएगा ।

सो परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी के मंगल आशीष लिए व सर्व उन्हीं के चरण धूलि में अर्पित कर यह प्रयास आरम्भ करते हैं।

पाप करने की इच्छा जब प्रबलतर हो जाए तब हमारी नैतिकता को अत्यधिक हानि होती है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

यदि हम सजग हैं तो परमेश्वर पाप की ओर सावधान कर देते हैं। एक साधक जी आए और बोले कि मैं चरित्रहीन व्यक्ति नहीं हूँ । विवाहित हूँ और बच्चा भी है । किन्तु मैं अपने कार्यक्षेत्र में किसी महिला के प्रति बहुत आकर्षित हो गया हूँ और वे भी ।

जिनसे वे बात कर रहे थे वे जानते थे कि उनकी पत्नि के साथ उनके विचार नहीं मिलते थे । किन्तु यह परिस्थिति उनके स्वयं के मानसिक पतन की ओर उन्हें अग्रसर कर देती । ऐसे कर्म करके हम ग्लानि से भर जाते हैं और उस ग्लानि को पीछे करने के लिए शराब या नशीले पदार्थों का सहारा लेते हैं।

सो यह अनन्त कृपा ही है कि हम सजग हुए और यह भी अनन्त कृपा है कि हमने किसी से बात की । समाधान यक़ीनन जाप बढ़ाने के लिए ही मिला होगा । प्रार्थनाएँ अर्पित की गई होगी ।

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि जीवन के किसी भी पड़ाव पर कोई भी इंद्रिय सक्रिय हो सकती है । राम नाम सर्वोच्य औषधि है इससे पार जाने हेतु । गहन रूप से सतत राम नाम गुरूजनों ने परामर्श दिया है ।

गुरूजनों ने यह भी कहा है कि दिन प्रतिदिन अपनी उपासना बढ़ाते जाना है और अतिश्य विनय भाव आता रहे इसकी याचना हृदय की गहराइयों से करते जाना चाहिए ।

नाम जाप रंग लाएगा

Sept 22, 2018

बहुत बार , गुरूजनों की श्री वाणी सुनकर व पढ़कर अत्यधिक मन करता है कि काश हम भी ऐसे हो जाएं । और यह इच्छा जागृत होनी उन्हीं की ही कृपा है ।

किन्तु वर्षों पश्चात भी हम वैसे नहीं बन पाते । ऐसा लगता है ।

इसमें बहुत से कारण होते हैं । हमारा प्रभु को समय न दे पाना, संसार को प्रार्थमिकता देना, अपने अहम् व अभिमान को छोड़ न पाना , खास कारण ही रहता है या फिर मोह को ।

किन्तु जब भी हमारी इच्छा जागृत हो, परमेश्वर जैसे गुण लाने की , या संतों जैसे गुणों के भीतर आ जाने की जैसे निस्वार्थ प्रेम, निस्वार्थ सेवा, अजपा जाप, सपने में राम नाम, राम दर्शन इत्यादि ।

चिन्ता नहीं करनी ।

केवल प्यार से नाम का सिमरन करते जाना है । उनको पुकारते जाना है। प्रार्थना करते जाना है। निराश बिल्कुल नहीं होना , पूज्य गुरूदेव कहते हैं। बस लगे रहना है। आज एक हो पाई है, कल दो कर दीजिए माला, परसों तीन ।

गुरूजनों की ऊँचाइयाँ बहुत जन्मोँ की कमाई है । और यदि उन्होंने कहा है कि सम्भव है तो सम्भव है ।

सो हमें लगे रहना है । दत्तचित्त होकर । उनका होकर । एक दिन उनकी नज़र पड़ेगी । हमारी स्थिति पर करुणा उमड़ेगी । हमारे हर साँस में हो रहे कुकृत्यों पर नज़र न जाकर किसी के आशीष की वजह से ही देवाधिदेव कृपा करेंगे ! वैसी कृपा जिसका जन्मोँ से इंतजार रहा है ।

सो बड़ी बड़ी बातें सुनकर परेशान नहीं होना । केवल लगे रहना है ।

कृपा बरसेगी ! इतना दिया है ! नाम धन भी नवाजेंगे ! इतना ख़्याल रखा है, जीवन मृत्यु का भी ख़्याल रखें गे ।

स्वयं को शक्ति से भरें

Sept 21, 2018

आज एक प्रश्न आया कि मेरे प्यार करने के बावजूद पति बिल्कुल क़दर नहीं करता, न कमाई में सहयोग देता है, न बात चीत करता है,

पूछने पर भी कुछ नहीं कहता, पीता रहता है, और घर से गायब रहता है। सास ससुर भी सहयोग नहीं देते।यहाँ तक घर पर काम वाली भी रखने नहीं देते । मैं क्या करूं कि मुझे शान्ति मिले !

ऐसे बहुत सारे आजकल प्रसंग सुनने को मिलते हैं। शायद बाहर आ रहे हैं। हमारी हिन्दु संस्कृति ही हमें तब भी बाँधे रखती है। साथी जैसा भी हो हम फिर भी प्यार करते हैं और आस लगाते हैं कि सब ठीक हो जाएगा । या फिर हमें अकेले जीवन व्यतीत करने में भय

लगता है क्योंकि समाज अकेली महिला को छोड़ता नहीं !

तो ऐसी चीज़ें हमें अत्यन्त दुखी करती हैं। कारण ? हमारी खुशी का केंद्र कोई और है ! वह हमसे प्यार नहीं कर रहा तो हम बहुत दुखी हो जाते हैं। हम भक्ति की ओर जाना हैं पर जा नहीं पाते । हमें रात को नींद नहीं आती ।

क्या करें ?

सबसे पहले यह निश्चय कर लें कि जो हमारी हालत हो रही है उसको ठीक करना है ।

कैसे करें ?

सोच बदल कर ।

सबसे पहले अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिन लोगों से जो बिन कारण पीड़ा देते हैंवहां दूरी यदि बना सकें बना लें। यदि नहीं तो प्रतिक्रिया बंद कर दें । उदाहरण – पति तो रहता नहीं घर । सासससुर बेवजह अपमान करें या काम काज की अपेक्षा करें तो मौन हो जाएं ।

पति जब भी घर में आए तो कर्तव्य निभाएँ और मुस्कुरा कर कह दें – good to see you after a long time ! Hope u are well! इतने दिनों बाद देखकर बहुत अच्छा लगा ! आशा हैं सब ठीक है। कुछ चाहिए हो तो जरूर कहिएगा !

रोना नहीं ! कि कहां थे !कुछ नहीं करते ! मैं चिन्ता कर रही थी ! इत्यादि ! बहुत रो लिए !

ऐसा सब करने की शक्ति कहां से आएगी ? परमेश्वर की उपासना से।

श्रीअमृतवाणी जी का पाठ कीजिए ५-७ बार । इसमें से एक अमृतवाणी पति के नाम की । कि जो पीड़ा इनके व्यवहार से हो रही है उसके लिए उन्हें क्षमा ! उनपर कृपा बरसे ! इससे हम स्वयं भी आरोग्य होंगे ।

अब यही पति जो कुछ योगदान नहीं देता वह पाठ ,नाम दीक्षा के लिए मना करे तो सोचिए कि जीवन साथी तो बन नहीं पा रहा अच्छे काम में भी रोकता है। तो पूछने की व बताने की आवश्यकता नहीं । खूब पूजा पाठ कीजिए । प्रभु आपको मौक़े दे रहे हैं । वे घर नहीं आते आप के पास समय है नाम आराधन का !

स्वयं की सुंदरता जो दूसरे को दिख नहीं रही वह हम अपने से भी लुप्त कर देते हैं । उसे ज़िंदा रखना है ! वह तभी होगा जब हम अपनी नज़र अपने पर करेंगे ! अपना ध्यान रखेंगे ! अपने को प्यार देंगे ! और खुश होइए कि जितनी पूजा वे इस अवस्था में करवाएँगे उतनी हमने आज तक जीवन में नहीं की होगी ! यह परिस्थिति हमें उस परम प्यारे का नाम लेने का सुअवसर प्रदान कर रही है !

धन्य मानिए ! अति अति धन्य मानिए !

जब विवाह के संयोग न बनें

Sept 21, 2018

कुछ दिन पहले प्रार्थना आई कि संबंधी की बिटिया ३३ वर्ष की हो गई है किन्तु विवाह नहीं हो रहा, बहुत तनाव है।

ऐसे बहुत से बच्चे हैं जिनका विवाह समय रहते ( सामाजिक व जैविक समयानुसार) नहीं हो रहा होता ।

यदि साधक हैं तो यक़ीन मानिए इसमें भलाई ही है । प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि वह कर्तव्य है किन्तु बिना तनाव के। एक साधक यह मानता है कि जो हो रहा होता है उसमें मेरी भलाई है। किन्तु तनाव में हमें समझ नहीं आता । और हम और नकारात्मक हो जाते हैं।

इसमें एक और पहलु भी है । बच्चों से पूछ लेना चाहिए कि कोई उन्हें पसंद है क्या ? कई बार बच्चे कि अपनी इच्छा इतनी प्रबल होती है कि वह माता पिता के ढूँढे रिश्ते पर नहीं जाना चाहता और भीतर से चाहता रहता है कि भगवन! कोई रिश्ता न आए !

आज के समय में अलगाव का होना , मन का न मिलना, व एक दूसरे को जैसे हैं वैसा न अपना पाना बहुत सहज हो गया है । इस कारण यदि बच्चे अपनी पसंद के लड़के या लड़की से विवाह करना चाहते हैं तो करने देना चाहिए यदि बच्चा जीवन साथी का पोषण करने लायक है तो । दोनों बच्चे एक दूसरे का पोषण कर सकें ऐसा देखना आवश्यक है।

कई बच्चे ऐसे होते हैं कि उनकी कोई पसंद नहीं होती । वे माता पिता पर ही निर्भर होते हैं । वहाँ माता पिता जरूर ध्यान दें कि बच्चा अपने पैरों पर खडा है । उसे खूब व्यस्त रखें । काम काज में सेवा में इत्यादि । यदि कमा नहीं रही या रहा कृपया ऐसे प्रबंध जरूर करें कि या तो वे आगे पढ सके या कमाएँ ।

परमेश्वर के आगे ज़बरदस्ती कृपया न करें कि वे इच्छा पूर्ण कर दें । वे किसी कारण ही विलम्ब कर रहे होते हैं । हमें ऐसी परिस्थितियों से रास्ता निकालना आना चाहिए , व परमेश्वर इच्छा मे सहर्ष रहना चाहिए । जाप पाठ बिना फल की इच्छा के बढ़ा देना अवश्य चाहिए ।

एक परिवार में एक साधिका के लिए पूज्य महाराजश्री ने स्वयं ही कहा कि लड़का देखना आरम्भ कर दो । माता जी लग गए । वर्ष बीतते गएकुछ नहीं हुआ । माता जी गए । कि आपने तो कहा था बस थोड़ा समय और पर कितने वर्ष बीत गए । पूज्य गुरूदेव बोले कि ऐसे ही थोड़ी न बच्ची को गाय की तरह कहीं भी बाँध देना है !

सो कृपया चिन्ता न करें । धैर्य व विश्वास रखें कि मंगल ही हो रहा है ।

सबका मंगल हो ।

सूर्य देव व सत्य स्वरूप

Sept 18, 2016

आज सूर्य देव से पूछा – आप तो अनथक अपने तेजस्वी रूप में रहते हैं । पर कई बार जब काले घने बादल आकर आपके प्रकाश को ढक देते हैं तो आपको कैसा लगता है? और कई बार कितने दिन वे जाने का नाम ही नहीं लेते तो आपको कैसा लगता है?

सूर्य देव मुस्कुराए व बोले – जब मेरा कुछ हो तो मुझे लगे !

प्रकाश मेरे पर तेज देने वाला परमात्मा ! सो यदि अनथक प्रकाश दिया जा रहा है वह केवल उस सर्वशक्तिमान की शक्ति से !

अब रही बादलों की बात ! बादल आना तो उसकी लीला है। पर मैं बादलों को अपना नहीं मानता। यह मेरा प्रकाश जरूर मंद कर देते हैं पर यह मेरे नहीं। मैं जानता हूँ कि मेरा स्वरूप तो प्रकाशमय है, सो इसलिए प्रतीक्षा करता हूँ इनके निकल जाने के लिए !

मैंने चरणवंदना की और धन्यवाद किया 🙏

मेरी आज की सीख 😇

चाहे कितने दुर्गुण दोष दिख रहे हों, यह परमेश्वर की अहेतुकी कृपा है! पर हम अपने सत्य स्वरूप में वे दुर्गुण व विकार नहीं ! हम तो निर्लेप, आनन्दमय, करुणामय, देना जिसका स्वभाव हो, सत्य , पवित्र हैं । उस देवाधिदेव के अंशी।

राम नाम का सम्पूर्ण रंग एक दिन अवश्य चढ़ेगा। राम नाम की मेहक एक दिन सभी बादलों से उभर कर आएगी । राम के श्री चरणों में विलीन हो पाएँगे !!

कई तर गए कइयां ने तर जाना

जिनाने तेरा नाम जपेया 🙏🙏

बच्चों को करके दिखाए कर्तव्य निभाना

Sept 18, 2018

प्रश्न आया कि बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता

जिस तरह जाप में मन नहीं लगता या ध्यान में मन नहीं लगता पर करना होता है ..

इसी तरह बच्चों का जब पढ़ाई में मन नहीं लगता तो पढ़ाना होता है।

जिस तरह जाप में मन न लगने के कारण हमारी अपनी वृत्तियाँ होती हैं, उसी तरह बच्चों का पढ़ाई में मन न लगने का कारण उनकी अपनी वृत्तियाँ होती हैं।

हम ही बच्चों को खुली छूट टी वी व फ़ोन इत्यादि की दे देते हैं, जिस कारण उनका अपने कर्तव्यों के प्रति रुझान हट जाता है।

यह बताना होता है कि पहले कर्तव्य बाद में स्व entertainment. यह training देनी होती है। स्वयं नहीं आती ।

जब हम भोजन बनाते हैं तो कहिए कि देखो मैं अपने कर्तव्य कर रही हूँ आप अपना कर्त्वय कीजिए । आज भोजन न बनाऊँ तो गड़बड़ हो जाएगी ।टी वी पर ही बैठूँ गड़बड़ हो जाएगी । सो आपको भी ऐसा नहीं करना । चाहे पसंद है या नहीं कर्तव्य तो निभाने हैं।

गुरूजन कहते हैं कि यह हमें ही करके समझाना पड़ेगा । दिखाना पड़ेगा कि कैसे कर्तव्य निभाए जाते हैं। फिर उन्हें साथ लेकर करवाना पड़ेगा ।

सर्व श्री श्री चरणों में