Monthly Archives: October 2018

स्व सुधार करे न कि निंदा

Oct 20, 2018

आज एक साधक जी पोस्ट लेकर आए जहाँ अन्य साधकों का भरपूर अपमान किया हुआ था । पर गुरूजनों ने मुझे पढ़वाया कि देख । वे पीड़ित थे ।

हम साधक हैं । साधक मतलब गुरू आज्ञा में रहना । गुरू आज्ञा क्या ? राम नाम लेना , स्व सुधार करना , सब से प्रीति करनी , सब को क्षमा करना ।

एक साधक के लिए दूसरे की निंदा करनी वर्जित है । not allowed . हम श्री भक्ति प्रकाश जी में यह पढ़ सकते हैं । पर हम न केवल करते हैं बल्कि उस में आनन्द भी मनाते हैं । हम दूसरे के भाव नहीं जान सकते । हम दूसरे की स्थिति तक नहीं जान सकते ! हम स्वयं को नहीं जाने हैं तो दूसरे को कैसे जान सकते हैं ।

कृपया हाथ जोड़ कर विनती है कि यदि हमने स्वयं को नहीं जाना यदि हम स्वयं जीवनमुक्त नहीं हुए हैं तो कृपया दूसरे पर दोषारोपण न करें । दूसरे को अपशब्द न कहें ।

यदि पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री जैसे बन गए हैं तो करें । यदि नहीं तो कृपया अनन्त पाप के भागी न बनें ।

जो कोई करता है करने दें । यदि दृष्टि हमारी दोष निकालती है बिन कारण तो मौन भाव में प्रार्थनाएँ करें । यदि लगता है समाज को साधको से बच कर रहना है तो गुप्त प्रार्थनाएँ करें किन्तु समाज में कीचड़ न उछाले ।

यदि तीनों गुरूजन जैसे पाक् हम बन गए हैं तो ही समाज में बात करें ।

एक साधारण साधक के लिए पूज्य श्री स्वामीजी ने कहा है कि यदि किसी को सुधारना है तो उसे अलग ले जाकर धीमे से उसके कान में बोलें ।

सो कृपया विनती है कि बिन वजह बिन कारण किसी का अपमान न करें । अपमान में कृपया समर्थन भी न दें । सब का फल बहुत पीड़ादायक होता है ।

प्रेम बाँटे । शान्ति बाँटे । राम नाम का विस्तार करें । निंदा कटु शब्द न बाँटे । बहुत पीड़ा है इनके फल में । हम स्व सुधार करें ।

चयन हमारे हाथ में है । जैसा चयन वैसा जीवन ।

मंगल होवे

शुभता बसे

प्रेम का अपने भीतर विस्तार हो व बाहर विस्तार हो

सर्व श्री श्री चरणों में

जो है देते जाओ

Oct 18, 2018

प्रश्न आया कि मैं तो सदा दूसरों को प्यार देती आई हूँ । किन्तु दूसरे मेरे साथ ऐसा नहीं करते । यहाँ तक कि साधक भी नहीं। मेरे साथ ऐसा क्यों होता है कि प्यार देने पर प्यार नहीं मिलता ।

प्यार, प्यार के लिए किया जाता है । प्यार वह नहीं कि बदले में क्या मिल रहा है !

यह अनन्त कृपा है कि हम दूसरों को प्यार दे सकते हैं। किन्तु दूसरों से वापिस कुछ न चाहना दिव्यता है ।

राम नाम साधना हमें शक्ति देती है कि हम में परमेश्वर जो अपने गुण हैं वे बाँट सकें । किन्तु क्योंकि राम कभी अपेक्षा नहीं करते कि मुझसे वापिस कोई प्यार करे सो हमने भी नहीं करनी ।

जो जैसा करता है वह उसका क्षेत्र है। किन्तु जो हम करते हैं वह हमारा । और यदि हम प्रेम बाँटते हैं तो हमें प्रेम बाँटते जाना है । दूसरों के प्रतिक्रिया से स्वयं को बाँधना नहीं !

इत्र ( perfume) जब फैलती है तो स्वयं को भी पता नहीं लगने देती कि उसने सुगंध फैलाई ! विलीन हो जाती है अपनी खुश्बु फैला कर ! एक दम ! किन्तु उसकी खुश्बु फैली रहती है।

राम नाम जपते जाओ

अपना काम करते जाओ

प्रभु से प्रेम

Oct 17, 2016

आज एक आम के फल से लदा हुआ पेड़ प्रभु के द्वार पर गया।

वहाँ प्रभु द्वारपालों के रूप में आ गए और कहा , कहो भाई ! यहाँ कैसे ?

वृद्ध हो?

हाथ जोड़ वह बोला – जी नहीं !

सैनिक हो ?

वह बोला – जी नहीं !

परिवार से पीड़ित हो ?

वह बोला – जी नहीं !

ग़रीब हो?

वह बोला – जी नहीं !

रोगी हो?

वह बोला – जी नहीं !

दिव्यांग हो ?

वह बोला – जी नहीं !

काम नहीं चल रहा ठीक ?

वह बोला – जी नहीं , सब ठीक है ?

प्रभु बोले – क्यों आए हो यहाँ ?

आम के पेड़ की आँखों से झड़ी बहने लग गई ! कहा , मैं तो केवल प्रभु के लिए यहाँ आया हूँ जी ! मुझमें संसारी कोई अभाव नहीं ! सब है ! पर मैं जी केवल अपने प्यारे के लिए आया हूँ ! मेरे सब हैं ! माँ बाबा, भाई बहन, पत्नि, बच्चे, घर – बार ! सब कुछ है जी !

प्रभु बोले – फिर कैसे आना हुआ ?

आम का पेड़ बोला – क्या करूँ जी ! प्रेम हो गया है प्रभु से ! रहा नहीं जाता उसके बिन ! सब होते हुए भी मन नहीं लगता ! उसका प्यार ले आया यहाँ !! सोचा कि प्रभु के ही आम हैं सो यही चढा दूँगा ! मेरा अपना तो कुछ नहीं ! कि कुछ चढा सकूँ । उसी का ही लेकर, देखिए , उसी को चढा दूँगा !! सोचा उन्हीं की ही चीज है तो ले ही लेंगे !! मेरी होती तो कुछ विचार होता कि पता नहीं अच्छी है कि नहीं ! पर यह तो उन्हीं का है ! ले लेंगे न ?

पता नहीं फिर क्या हुआ होगा….कैसे प्रभु ने प्यार किया होगा! कैसे दुलार किया होगा ? कैसे खुद भी खाया होगा और उसे भी खिलाया होगा …. पता नहीं कैसे आम के पेड के नैना छलक रहे होंगे और साथ ही प्रभु के भी ! पता नहीं कैसे प्रभु ने उसकी आँखें पोंछी होंगी ? पता नहीं ! पता नहीं भोग से पहले गले लगाया होगा या बाद में …. पता नहीं …

आज की सीख 🙏

बिन कारण भी हो जाता है प्यार ! प्यार केवल प्यार के लिए भी हो जाता है ! अभाव बहुत बार ज़रिया बनते हैं विश्वास के ! पर बिन कारण भी हो जाता है प्यार !!

श्री श्री चरणों में 🙏

बुद्धुराम को प्रभु ने स्वीकारा

Oct 17, 2018

आज बुद्धुराम के चेहरे पर मुस्कान है ! भीतर से परमेश्वर की करनी पर खिलखिला कर हंस रहा है !

बुदुधुराम का तो कुछ था नहीं कभी । सब उसके प्यारे का था । बुद्धुराम अपने ही ढंग का था । विचित्र ! सो परमेश्वर को भी उसके साथ विचित्र लीलाएँ करने का आनन्द मिलता ।

कुछ समय पूर्व बुद्धुराम को भोजन बनाने का कार्य मिला । और जन भी बनाते थे । बुद्धुराम क्योंकि बुज़ुर्ग था तो कुछ कुछ उसने सब को सिखाया। एक दिन प्रभु आए और बोले – क्या बुद्धुराम ! क्या बनाते हो ! समझते हो इतना बना लिया तो यह हो गए वह हो गए ! सब रसोइयों के सामने ऐसा सब बोल कर प्रभु ने भोजन अस्वीकार कर दिया । पर बुद्धुराम बोला – भगवन ! मुझ नालायक को कहा से आ सकता है कुछ ! सब आप ही तो करते हैं !

प्रभु न माने ! और पीठ कर ली !

बुद्धुराम का अपना कभी कुछ न था ! उसने भोजन पर कार्य जारी रखा । उसने चयन कर रखा था । वह सब देखता जाता और अपना कार्य करता जाता । संसार था न ! पर प्रभु न बोले कि मैं ही सब करता हूँ !

एक दिन बुद्धुराम को कहीं जाना पड़ गया । तो जब वापिस आया तो देखा कि प्रभु स्वयं उसकी भोजन की थाली मंदिर में लेकर गए बाकि रसोइयो के संग ।

बुद्धुराम ने अपने प्यारे को देखा ! देह भिन्न थी उनकी ! पर वे कब के एक हो चुके थे ! आज प्रभु ने स्वीकारा कि सब वे ही थे और बुद्धिमान कुछ नहीं !

दुर्गाष्टमी की असंख्य बधाई

अंमनर्ण को व्यवहार में लाना

Oct 16, 2018

एक अच्छी सी बात ~ रोज़ मर्रा के जीवन में अंतर्मन को कार्य करना चाहिए – डॉ गौतम चैटर्जी

परम प्रिय दिव्यता , परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणरज में सर्वसमर्पित किए हम आगे बढ़ते हैं ।

जब हम अपने सत्य स्वरूप को जानने लगते हैं, उस पर सजग होने लगते हैं तो अन्य विचार अपने नहीं लगते ।

बुद्धुराम परमेश्वर में विचरता । परमेश्वर के संग विचरता। प्रकृति से उसका अपनापन हो गया था । सो यदि कभी मन में बिन वजह उथल पुथल होती तो वह कहता कि यह उथल पुथल मैं नहीं हूँ ! मेरे अंदर यह सब नहीं होता ! यह ज़रूर कहीं और से आ रहा है !

पूज्य श्री महाराजश्री ने कहा कि महर्षि रमण इतने अपनी देह से विलग रहते कि एक बार कुछ चोर उनके आश्रम में घुस आए । और मह्रिष रमण को देख उन्हें खूब पीटा । तो जब सुबह उनके साधकों ने उन्हें पाया और देखा कि उनकी देह पर इतनी खरोंचें हैं वे पीड़ित होकर बोले कि आवाज क्यों नहीं दी । महर्षि रमण कहते कि महसूस ही नहीं होती यह देह, क्या करूं ! इतना उनका तदात्मन अपनी देह से टूट चुका था ।

इसी तरह पूज्य महाराजश्री जब मनाली में साधनारत थे तो समर्पण दिन साधना में निकलते । जब समाधि से बाहर आते तो देखते कि बिच्छु के डंक उनकी बाज़ुओं पर होते । किन्तु पूज्य महाराजश्री को उसका एहसास तक न होता !

सो साधना का तात्पर्य है कि हम अपने सत्य स्वरूप को जानें व उसी स्वरूप में रह कर व्यवहार करें । समता, सत्यता, करुणा, निस्वार्थ प्रेम , सकारात्मकता, स्वशक्तिकरण जैसे गुणों में विचारना व व्यवहार में आना ही असली साधना है !

राम नाम सब सम्भव बनाती है ! दिव्यता का हर गुण भीतर समाते जाना राम नाम से सम्भव है ।

साधना कैसे करें व उसमें मन कैसे लगे

Oct 15, 2018

आज के प्रश्न

१) मन बहुत इधर उधर घूमता है या परमेश्वर से प्रीति कैसे स्थापित करें

परमेश्वर से संबंध बनाना और उस संबंध को जब हम निभाते हैं तो मन इधर उधर नहीं जाता । परमेश्वर का पावन नाम लेना । बहुत सहायक होता है। माला करना और हर माला के पश्चात धन्यवाद करना कि भगवन माला जपवाई । फिर प्रार्थना करना कि भगवन और जपवा दीजिए। ऐसी युक्तियाँ पूज्य गुरूदेव ने बताई हैं। यदि कोई रिश्ता बना लें उनसे तो दिन भर काम काज करते हुए वह निभाएँ । जैसे भोजन बनाएँ तो ऐसे बनाएँ कि प्रभु के लिए बना रहे हैं। यदि घर की सफ़ाई करें तो मानो प्रभु के लिए कर रहे हैं। सो अपनी दिन भर की हर गति विधि को परमेश्वर के संग जोड़ कर यदि हम करते हैं तो न केवल मन उनमें लगता है बल्कि उनसे प्रीति भी जुड़ती है।

मन कहां जाता है बार बार हम देखें। क्या चाहिए वहाँ से यह देखें। यदि वह इच्छा पूर्ण नहीं हो रही तो प्रभु की इच्छा उसे समझ कर व उनसे प्रार्थना करके कि भगवन शक्ति दीजिए कि यह इच्छा गेर सकें, तो उन्हीं के नाम की स्वयं झड़ी लगा दें। करते जाएँ । हार न माने । लगे रहें ! बूँद बूँद करके जब राम नाम भरना आरम्भ होता है तो मन को उन में रस आने लग जाता है !

२) साधना का समय कैसे नियमित करें ?

सबसे पहले सुबह आँख खुलते हैं प्रभु का धन्यवाद कीजिए कि एक और दिन दिखाया नाम जपने के लिए । जब सब सो रहे हैं तो श्री अमृतवाणी जी का पाठ कर लीजिए या गीता जी का कोई एक दोहा । और फिर जाप । एक माला या दो माला , बड़े प्यार से कीजिए । साथ ही १० मिनट ध्यान कर लें ! प्यारे राम ! प्रेममय राम ! मेरे राम ! कृपामय राम ! ऐसे बुलाइए ! ऐसा गुरूजन कहते हैं । फिर दिन के कार्य करते हुए बार बार उन्हें स्मरण कीजिए । मेरे राम ! प्यारे राम ।

दोपहर में जब विश्राम करें तो फिर एक माला कर लीजिए ! और कर सकें और कर लीजिए ।

साँय समय घर कार्य में व्यस्त होने से पहले फिर जाप कर सकते हैं और साथ ही १० मिनट अपने प्यारे से ध्यानस्थ बातचीत व दूसरों के लिए प्रार्थना ।

सोते समय धन्यवाद कीजिएगा कि भगवन कितनी कृपा बरसाई ।

विपदाओं में दूसरों के लिए प्रार्थना

Oct 14, 2018

आज एक प्रश्न आया कि जब जीवन में अथाह परेशानियाँ हों और तब नाम जाप या श्री अमृतवाणी जी का पाठ भीम हो तो उस स्थिति में हम क्या करें ?

जी सही है । मन इतना ज़ोर की आसक्त हो जाता है उस विचार से से कामना से कि वह काम करना बंद कर देता है । वह सही निर्णय नहीं लेता । वह सब भूल जाता है, उसे सही गलत की सूझ बूझ नहीं रहती । और किसी सत्कर्म करने में मन नहीं लगता क्योंकि वह कहता है कि यह सब कर तो रहा था कौन सी मुसीबत टल गई। अब मैं क्यों करूं ।

सो ऐसे में जब मन के अंदर विचार नामक ट्राफिक का जाम लग जाए तो किसी दूसरे के बारे में सोच लें ।

मानो किसी अज्ञात इंसान की जिसे हम जानते नहीं और उनके लिए प्रार्थना कर लें । किसी अनाथ बच्चे के लिए प्रार्थना कर लें। किसी शोषण की हुई महिला की पीड़ा निवारण के लिए प्रार्थना कर लें। किसी रोगी की जो न जाने कब से कोमा में है उसके लिए प्रार्थना कर लें। किसी ग़रीब बूढ़ी माँ के लिए कर लें जो बच्चों की यातनाओं से पीडित हो । किसी रोगी के लिए जो दूसरों पर आश्रित है और असाहनीय पीड़ा से ग्रस्त ।

सो ऐसा करने से मन का भारीपन हल्का हो जाता है और व्यक्ति अपनी परेशानी भूल कर स्वयं को व दूसरे को आरोग्यता पहुँचाता है ।

साथ ही वह करना चाहिए जो हमें भीतर से आनन्दित करे। या प्रफुल्लित करे । यदि गाना पसंद है तो गाएँ । यदि सैर करनी पसंद है तो सैर करें । यदि बाग़बानी पसंद है तो वह करें । यदि लिखना पसंद है तो लिखें इत्यादि ।

ऐसा करने से हम अपने मूल से जुड़ जाते हैं और वह हमें तत्काल शान्ति प्रदान करता है । ऐसा गुरूजन कहते हैं ।

परमेश्वर के लिए तड़प , संसार से निस्तार

Oct 14, 2018

आज की अच्छी बात ~ परमेश्वर के लिए तड़प , मानो अपने भौतिक रूप से स्वयं का अस्तित्व कम होना ।

परम प्रिय दिव्यता , परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणधुलि में सर्वसमर्पित ।

परमेश्वर की चाहत हर दूसरा रंग फीका कर देती है । केवल उनकी तड़प हर भौतिक प्रलोभन भी रसहीन कर देती है । कामनाएं , लालसाएँ, सब गिर जाते हैं। यहाँ तक कि उसे पाने की चाहत में इंसान हर तरह से स्वयं तो तोड़ने के लिए भी तैयार हो जाता है। कि किस तरह वह धुल जाए और अपने प्यारे से एक हो जाए ।

ऐसे लोगों का संसार में कोई नहीं होता ! न स्वयं संसार न कोई संसार का ! किन्तु वे देवाधिदेव भीतर यू हीं सोए नहीं होते । पूर्ण रूप से अपने लिए मतवाले लोगों के लिए जागृत होते हैं। संसार चाहे ऐसे लोगों को कुछ न समझे पर क्योंकि ऐसे जन अपने प्यारे पर आश्रित होते हैं तो वे करुणासिंधु हर तरह से सहारा देते हैं । न केवल मार्ग प्रशस्त करते हैं बल्कि भीतर से शक्ति भी प्रदान करते हैं कि जागो और फिर निर्णय लो ! क्योंकि ऐसे भांवरे अकेले होते हैं और अपने प्यारे के लिए सब कुछ मान सम्मान त्यागने के लिए भी तैयार होते हैं, परमेश्वर इनको अपने हृदय से लगा कर रखते हैं। इन को समाज की सुध नहीं होती , न ही इतनी समझ क्योंकि उसके लिए बांवरे जो हो गए होते हैं सो वे देवाधिदेव माँ रूप धर कर सब लालन पोषण करते हैं।

सो लीजिए उन प्राणों से प्यारे की शरण और बना लें उन्हें अपना ..

केवल राम का संग सम्भव है नाम जाप से

Oct 13, 2018

परम प्रिय दिव्यता, परम प्यारे गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणधुलि में सर्व समर्पित ।

आज की अच्छी सी बात ~ परमेश्वर के साथ आनन्द लेना नाम जाप से सम्भव बनता है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

केवल राम । जब केवल राम नाम के साथ संबंध रखना है, जब केवल उन सर्वस्व के साथ हर पल रहने का संबंध जोड़ना है, जब केवल और केवल वे हों , उन्हीं का साथ, उन्हीं का सहारा, उन्हीं स वार्तालाप, उन्हीं के साथ उठना बैठना, केवल नाम के अस्तित्व के संग हमारी रूह रहे , तो यह सम्भव है नाम जाप से, ऐसा संतहण कहते हैं।

संत गण कहते हैं कि नाम जाप ऐसा संग प्रदान करते हैं कि यहाँ स्तरों का भेद नहीं होता।न ऊँचाई न नीचा, केवल संग ! न देहिक संग न भौतिक , ऐसा संग जो मन को लिप्त कर बहा कर लेता जाए ।

बाहर सब चलता जाए । बाहर कुछ भी न रुके । किन्तु मन नाम की खुमारी में बहता जाए ! वह अलग सी मुस्कान, नैनों में अलग सी मस्ती और पूर्ण अस्तित्व केवल नाम में गुम ! चाल भी अलग व डाल भी अलग ! संसार से न जाने कोसों दूर ! ऐसी खुमारी जो कभी न उतरे। न शब्दों का जंजाल, न विचारों का कोलाहल ! बस नाम की मेहक की खुमारी ! ऐसा कहते हैं संतगण हो नाम से एक्य ! और यह सम्भव है नाम जाप से। अथाह भावपूर्ण सिमोन से !

नाम खुमारी मानता चढी रहे दिन रात

रामायणी सत्संग पहली सभा (३)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री के मुखारविंद से

रामायणी सत्संग पहली सभा (३)

एक विशेष प्रार्थना करता हूँ देवियों और सज्जनों । स्वामीजी महाराज ने 1:30 घण्टे का मौन रखा है। आप सब से निवेदन है, आप सबके श्रीचरणों में मस्तक रखके तोन्वेदन करता हूँ कुछ पा कर जाना चाहते हो तो मात्र 1:30 घण्टे का मौन नहीं बल्कि अभी से मौन धारण कर लीजिएगा सत्संग की समाप्ति तक मौन रहिएगा। जाप करिएगा । ऐसा नहीं कह रहा कि बिलेकुल नहीं बोलना पर अनावश्यक नहीं बोलना । राम से बढ़कर बोलना और क्या है , इससे बोलना बेहतर और क्या है? यह रहकर भी सुअवसर का लाभ नहीं लेता तो बदक़िस्मती ही कही जाएगी न।

अभी से साधना में हैं हम। हर नियम का पालन करना है जो स्वामीजी महाराज ने बनाया है। प्रेम पूर्वक रहिएगा। किसी को किसी चीज़ की आवश्यकता हो यहाँ के प्रबन्धकों से सम्पर्क कर सकते हैं। मज़े से बैठिएगा । जहाँ भी आपको बैठने के लिए जगह मिले, मज़े से रामायण जी का पाठ कीजिएगा।दिखावा न करिएगा । छोड़िएगा इस आदत को। परमात्मा को दिखा कर करिए।संसार को दिखा कर करेंगे तो वह दिखावा है। पर उसे दिखा कर करे गे तो – देख तेरे नाम का आराधन कर कहा हूँ । तू देख रहा है न कि नहीं देख रहा है? इंसान के पीछे घूमने से कुछ नहीं बनता। परमात्मा के पीछे घूमिएगा । देख तेरा नाम जप रहा हूँ, तेरा नाम मैं जप रही हूँ। तू देख रहा है कि नहीं। यह दिखावा नहीं माना जाता । यह तो भीतर की बात है। परमेश्वर को दिखा कर कहा जाता है तो उसे भक्ति कहा जाता है, इंसान को दिखा कर कहा जाता है तो उसे प्रदर्शन कहा जाता है।

गुरूजनों से आशीर्वाद लेते हैं, परमात्मा हर कार्य के शुभारम्भ में आपसे मंगल आशीष लेते हैं। हमने नाम भेजा था आपने स्वीकार कर लिया है। अब इस काम के लिए परमात्मा बुलाया है वह काम हमारे से करवा। हमारे वश की बात होती, आप तो भलि भाँति जानते हो हम घर बैठे भी सब कुछ कर सकते थे,स्पष्ट है आपके श्रीचरणों का आश्रय लिए बिना यह नहीं सम्भव हो सकता। इसीलिए तो श्रीचरणों में बुलाया है महाराजाधिराज वरना यह सब कुछ घर में भी हो सकता था । रामायण पढ़ रहे हैं लोग, पहले भी पढ़ रहे थे अब भी पढ़ रहे हैं फिर हमें क्यों बुलाया गया है महाराज , क्यों हमें दलिया खिलाया जाएगा, घर पर कुछ अच्छा खाने को मिल जाता, स्पष्ट है कुछ कारण तो अवश्य होगा । इसका लाभ लीजिएगा।

अपने लिए एक प्रार्थना करूं? आप सब मेरे से बात करना चाहते हैं। मैं स्वीकार करता हूँ यह आपका स्नेह है। आप अधिकार भी मानते हो। पर कभी ऐसा भी तो सोचना चाहिए कि ढाई पौने तीन सौ लोग हैं, पहले दिन सब बात करना चाहेंगे तो मेरी क्या दुर्गति होगी । ऐसा सोचने वाला साधक बहुत कम है। प्रार्थना है आप सब की सेवा में माताओं और सज्जनों यदि आपको स्वीकार हो। स्वीकार करना या न करना सब आपके अधीन है , जैसा आप चलोगे मैं वैसा ही चलूँगा। मुझे तो जैसा गुरूदेव चलाएँगे मुझे तो वैसा ही चलना है। पर आप सबसे दिल की बात करता हूँ, अपना हित सोचना चाहिए। मज़ा तो इसी में है कि व्यक्ति अपना हित सोचे । दूसरे का हित तो बाद में आता है पहले अपना हित तो सोचे। आपका हित साधक जनों इसी में है कि मुझे साधक जाप करने दें। मैं आपसे बहुत हित की बात कर रहा हूँ। आप स्वीकारें न स्वीकारें, ठुकराएँ पर आपका हित इसी में है कि मुझे जाप करने दें।

बहु बार प्रणाम अर्ज़ करता हूँ। लो मेरे गुरूजनों से आशीर्वाद, उनकी कृपा ही माँगो और डट जाओ । मेरे राम की कृपा मेरे गुरूजनों की कृपा आप सब पर बनी रहे। हम सब पर बनी रहे।मत देखो राम हम कितने अयोग्य हैं। आप अपना स्वभाव देखो। आप कृपा के अतिरिक्त और कुछ नहीं देना जानते। कृपा ही कृपा है आपके पास। परमेश्वर से बहुत आशीर्वाद लीजिएगा। मेरे राम बहुत थोड़ी रह गई है। पता नहीं कितनी रह गई है महाराज। इसे सम्भालो। यह आपकी सेवा में समर्पित है। यह आपकी ही है परमात्मा । उजड़ चुके है लिट चुके हैं कोई कमाई नहीं हमारी पल्ले है अब जो रह गई है बाकि उसे सम्भालो प्रभु वह आपके श्रीचरणों में समर्पित है।