परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री के मुखारविंद से
रामायणी सत्संग पहली सभा (३)
एक विशेष प्रार्थना करता हूँ देवियों और सज्जनों । स्वामीजी महाराज ने 1:30 घण्टे का मौन रखा है। आप सब से निवेदन है, आप सबके श्रीचरणों में मस्तक रखके तोन्वेदन करता हूँ कुछ पा कर जाना चाहते हो तो मात्र 1:30 घण्टे का मौन नहीं बल्कि अभी से मौन धारण कर लीजिएगा सत्संग की समाप्ति तक मौन रहिएगा। जाप करिएगा । ऐसा नहीं कह रहा कि बिलेकुल नहीं बोलना पर अनावश्यक नहीं बोलना । राम से बढ़कर बोलना और क्या है , इससे बोलना बेहतर और क्या है? यह रहकर भी सुअवसर का लाभ नहीं लेता तो बदक़िस्मती ही कही जाएगी न।
अभी से साधना में हैं हम। हर नियम का पालन करना है जो स्वामीजी महाराज ने बनाया है। प्रेम पूर्वक रहिएगा। किसी को किसी चीज़ की आवश्यकता हो यहाँ के प्रबन्धकों से सम्पर्क कर सकते हैं। मज़े से बैठिएगा । जहाँ भी आपको बैठने के लिए जगह मिले, मज़े से रामायण जी का पाठ कीजिएगा।दिखावा न करिएगा । छोड़िएगा इस आदत को। परमात्मा को दिखा कर करिए।संसार को दिखा कर करेंगे तो वह दिखावा है। पर उसे दिखा कर करे गे तो – देख तेरे नाम का आराधन कर कहा हूँ । तू देख रहा है न कि नहीं देख रहा है? इंसान के पीछे घूमने से कुछ नहीं बनता। परमात्मा के पीछे घूमिएगा । देख तेरा नाम जप रहा हूँ, तेरा नाम मैं जप रही हूँ। तू देख रहा है कि नहीं। यह दिखावा नहीं माना जाता । यह तो भीतर की बात है। परमेश्वर को दिखा कर कहा जाता है तो उसे भक्ति कहा जाता है, इंसान को दिखा कर कहा जाता है तो उसे प्रदर्शन कहा जाता है।
गुरूजनों से आशीर्वाद लेते हैं, परमात्मा हर कार्य के शुभारम्भ में आपसे मंगल आशीष लेते हैं। हमने नाम भेजा था आपने स्वीकार कर लिया है। अब इस काम के लिए परमात्मा बुलाया है वह काम हमारे से करवा। हमारे वश की बात होती, आप तो भलि भाँति जानते हो हम घर बैठे भी सब कुछ कर सकते थे,स्पष्ट है आपके श्रीचरणों का आश्रय लिए बिना यह नहीं सम्भव हो सकता। इसीलिए तो श्रीचरणों में बुलाया है महाराजाधिराज वरना यह सब कुछ घर में भी हो सकता था । रामायण पढ़ रहे हैं लोग, पहले भी पढ़ रहे थे अब भी पढ़ रहे हैं फिर हमें क्यों बुलाया गया है महाराज , क्यों हमें दलिया खिलाया जाएगा, घर पर कुछ अच्छा खाने को मिल जाता, स्पष्ट है कुछ कारण तो अवश्य होगा । इसका लाभ लीजिएगा।
अपने लिए एक प्रार्थना करूं? आप सब मेरे से बात करना चाहते हैं। मैं स्वीकार करता हूँ यह आपका स्नेह है। आप अधिकार भी मानते हो। पर कभी ऐसा भी तो सोचना चाहिए कि ढाई पौने तीन सौ लोग हैं, पहले दिन सब बात करना चाहेंगे तो मेरी क्या दुर्गति होगी । ऐसा सोचने वाला साधक बहुत कम है। प्रार्थना है आप सब की सेवा में माताओं और सज्जनों यदि आपको स्वीकार हो। स्वीकार करना या न करना सब आपके अधीन है , जैसा आप चलोगे मैं वैसा ही चलूँगा। मुझे तो जैसा गुरूदेव चलाएँगे मुझे तो वैसा ही चलना है। पर आप सबसे दिल की बात करता हूँ, अपना हित सोचना चाहिए। मज़ा तो इसी में है कि व्यक्ति अपना हित सोचे । दूसरे का हित तो बाद में आता है पहले अपना हित तो सोचे। आपका हित साधक जनों इसी में है कि मुझे साधक जाप करने दें। मैं आपसे बहुत हित की बात कर रहा हूँ। आप स्वीकारें न स्वीकारें, ठुकराएँ पर आपका हित इसी में है कि मुझे जाप करने दें।
बहु बार प्रणाम अर्ज़ करता हूँ। लो मेरे गुरूजनों से आशीर्वाद, उनकी कृपा ही माँगो और डट जाओ । मेरे राम की कृपा मेरे गुरूजनों की कृपा आप सब पर बनी रहे। हम सब पर बनी रहे।मत देखो राम हम कितने अयोग्य हैं। आप अपना स्वभाव देखो। आप कृपा के अतिरिक्त और कुछ नहीं देना जानते। कृपा ही कृपा है आपके पास। परमेश्वर से बहुत आशीर्वाद लीजिएगा। मेरे राम बहुत थोड़ी रह गई है। पता नहीं कितनी रह गई है महाराज। इसे सम्भालो। यह आपकी सेवा में समर्पित है। यह आपकी ही है परमात्मा । उजड़ चुके है लिट चुके हैं कोई कमाई नहीं हमारी पल्ले है अब जो रह गई है बाकि उसे सम्भालो प्रभु वह आपके श्रीचरणों में समर्पित है।