विपदाओं में दूसरों के लिए प्रार्थना

Oct 14, 2018

आज एक प्रश्न आया कि जब जीवन में अथाह परेशानियाँ हों और तब नाम जाप या श्री अमृतवाणी जी का पाठ भीम हो तो उस स्थिति में हम क्या करें ?

जी सही है । मन इतना ज़ोर की आसक्त हो जाता है उस विचार से से कामना से कि वह काम करना बंद कर देता है । वह सही निर्णय नहीं लेता । वह सब भूल जाता है, उसे सही गलत की सूझ बूझ नहीं रहती । और किसी सत्कर्म करने में मन नहीं लगता क्योंकि वह कहता है कि यह सब कर तो रहा था कौन सी मुसीबत टल गई। अब मैं क्यों करूं ।

सो ऐसे में जब मन के अंदर विचार नामक ट्राफिक का जाम लग जाए तो किसी दूसरे के बारे में सोच लें ।

मानो किसी अज्ञात इंसान की जिसे हम जानते नहीं और उनके लिए प्रार्थना कर लें । किसी अनाथ बच्चे के लिए प्रार्थना कर लें। किसी शोषण की हुई महिला की पीड़ा निवारण के लिए प्रार्थना कर लें। किसी रोगी की जो न जाने कब से कोमा में है उसके लिए प्रार्थना कर लें। किसी ग़रीब बूढ़ी माँ के लिए कर लें जो बच्चों की यातनाओं से पीडित हो । किसी रोगी के लिए जो दूसरों पर आश्रित है और असाहनीय पीड़ा से ग्रस्त ।

सो ऐसा करने से मन का भारीपन हल्का हो जाता है और व्यक्ति अपनी परेशानी भूल कर स्वयं को व दूसरे को आरोग्यता पहुँचाता है ।

साथ ही वह करना चाहिए जो हमें भीतर से आनन्दित करे। या प्रफुल्लित करे । यदि गाना पसंद है तो गाएँ । यदि सैर करनी पसंद है तो सैर करें । यदि बाग़बानी पसंद है तो वह करें । यदि लिखना पसंद है तो लिखें इत्यादि ।

ऐसा करने से हम अपने मूल से जुड़ जाते हैं और वह हमें तत्काल शान्ति प्रदान करता है । ऐसा गुरूजन कहते हैं ।

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