अंमनर्ण को व्यवहार में लाना

Oct 16, 2018

एक अच्छी सी बात ~ रोज़ मर्रा के जीवन में अंतर्मन को कार्य करना चाहिए – डॉ गौतम चैटर्जी

परम प्रिय दिव्यता , परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ चैटर्जी की चरणरज में सर्वसमर्पित किए हम आगे बढ़ते हैं ।

जब हम अपने सत्य स्वरूप को जानने लगते हैं, उस पर सजग होने लगते हैं तो अन्य विचार अपने नहीं लगते ।

बुद्धुराम परमेश्वर में विचरता । परमेश्वर के संग विचरता। प्रकृति से उसका अपनापन हो गया था । सो यदि कभी मन में बिन वजह उथल पुथल होती तो वह कहता कि यह उथल पुथल मैं नहीं हूँ ! मेरे अंदर यह सब नहीं होता ! यह ज़रूर कहीं और से आ रहा है !

पूज्य श्री महाराजश्री ने कहा कि महर्षि रमण इतने अपनी देह से विलग रहते कि एक बार कुछ चोर उनके आश्रम में घुस आए । और मह्रिष रमण को देख उन्हें खूब पीटा । तो जब सुबह उनके साधकों ने उन्हें पाया और देखा कि उनकी देह पर इतनी खरोंचें हैं वे पीड़ित होकर बोले कि आवाज क्यों नहीं दी । महर्षि रमण कहते कि महसूस ही नहीं होती यह देह, क्या करूं ! इतना उनका तदात्मन अपनी देह से टूट चुका था ।

इसी तरह पूज्य महाराजश्री जब मनाली में साधनारत थे तो समर्पण दिन साधना में निकलते । जब समाधि से बाहर आते तो देखते कि बिच्छु के डंक उनकी बाज़ुओं पर होते । किन्तु पूज्य महाराजश्री को उसका एहसास तक न होता !

सो साधना का तात्पर्य है कि हम अपने सत्य स्वरूप को जानें व उसी स्वरूप में रह कर व्यवहार करें । समता, सत्यता, करुणा, निस्वार्थ प्रेम , सकारात्मकता, स्वशक्तिकरण जैसे गुणों में विचारना व व्यवहार में आना ही असली साधना है !

राम नाम सब सम्भव बनाती है ! दिव्यता का हर गुण भीतर समाते जाना राम नाम से सम्भव है ।

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