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रामायणी सत्संग पहली सभा (२)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से

रामायणी सत्संग पहली सभा (२)

आखिर रावण के पास सब कुछ था । क्यों वह इतना असंतुष्ट था । क्यों उसके अंदर इतनी तृष्णा थी । क्या हमारी हालत भी ऐसी ही है। सब कुछ होते हुए भी, शान्ति को सीता माता को साथ ले गया है लंका में विराजमान हैं लेकिन इसके बाद भी इतना अशान्त है, क्यों? क्या हमारा भी व्यक्तित्व इससे मिलता जुलता नहीं है ? इन बातों पर चिन्तन मनन कीजिएगा । आचरण कैसा होना चाहिए इसे अपने जीवन में उतारिएगा।

भले ही अखण्ड जाप नहीं है लेकिन अखण्ड जाप का कमरा तो खुला है। अभी थोड़ी देर में जाकर अधिष्ठान जी की light जला दूँगा । जलती रहेगी । जब तक साधना सत्संग की समाप्ति नहीं होती आपको वह light कभी बुझानी नहीं अधिष्ठान का परदा गिराना नहीं । वैसे रहने दीजिएगा। हाँ पंखा light दूसरी जलती है off कर दीजिएगा बाहर निकलने से पहले। सुबह 6 बजे से साँय 6 बजे तक महिलाएँ वहाँ जाएँ बाहर बैठे अंदर बैठें ध्यान लगाना चाहें, चिन्तन मनन करना चाहें, जो मर्ज़ी करें। साँय ६ बजे से सुबह ६ बजे तक पुरुष जाएँ , भीतर जाएँ , जाप करें, ध्यान करें। ध्यान की बैठक तो नहीं हैं पर आप वहाँ जा कर ध्यान लगाएँ जाप करें।

कम से कम पंद्र मिनट पहले नीचे आ जाइएगा। किसी को कहना न पड़े । पंद्रह मिनट पहले पधार जाइएगा । बाहर बैठें अंदर बैठें प्रेम पूर्वक श्री रामायणी का पाठ कीजिएगा, जाप कीजिएगा।

जाप साधक जनों स्वामीजी महाराज ने चक्कर लगाने वाला नहीं रखा। हम तो used to हैं साधक जनों कि बातें भी करते जाते हैं और जाप भी करते रहते हैं। इधर उधर देखते भी रहते हैं और जाप भी करते हैं। कैसा जाप है यह? छूट तो दी हुई है गुरूजनों ने पर जो लाभ मिलना चाहिए वह लाभ नहीं कर पाते। इस साधना सत्संग में जाप बैठ कर उन्होंने करने को कहा है। मानो आँख बंद करके जाप कीजिएगा और कान बंद करके भी जाप कीजिएगा । करके देखना भक्त जनों। न आँख खुले न कान खुले। ऐसी स्थिति में जाप करके तो देखिएगा कि कैसा लगता है। यदि अभी तक नहीं किया तो इस बार करके देखना। कान तो बंद होते नहीं न, इन कानों को भी बंद करना है अभ्यास कीजिएगा। कुछ भी सुनाई नहीं देता । मन जाप में होगा तो कान कुछ नहीं सुन सकेंगे । मन जिस इंद्रिय के साथ होती है वही इंद्रिय सक्रिय होती है। आप मन जाप पर लगा कर रखेंगे तो जो कुछ भी हो रहा है वह सुनाई नहीं देगा। इस बारी आँख बंद करके व कान बंद करके जाप कीजिएगा ।

भोजन संबंधित भी कुछ बातें हैं। जैसे पिछले सत्संगों में महिलाओं को सब्ज़ी काटनी पड़ती थी चपाती बनानी पड़ती थी । न सब्ज़ी काटने की आवश्यकता है, न रोटी बनाने की आवश्यकता है, न आटा गूँधने की आवश्यकता है, न सलाद काटने की आवश्यकता है। एक की आवश्यकता है , वह है जाप करना । सब कुछ आपको किया कराया मिलेगा। परोसने के लिए भी वैसे नहीं बैठेंगे। जैसे चाय लेते थे, दलिया लेते थे वैसे नहीं बैठेंगे । पहली मंज़िल की महिलाएँ उनको सब कुछ चाय से लेकर भोजन तक वहीं मिलेगा। और उनको महिलाएँ ही बाँटेगी । चाय ले, भोजन लें, नाश्ता लें, अपनी थाली ले कर बिस्तर पर बैठ जाएँ । श्री रामशरण की किसी जगह पर नहीं बैठना। परमात्मा की किसी भी चीज़ खराब करने का हमें हक़ नहीं है। थाली अपने आगे रखी है अनन्पते कीजिए और किसी के इंतजार करने कि आवश्यकता नहीं है। कि कमरे के और लोग आए हैं कि नहीं । परमेश्वर का धन्यवाद कीजिएगा और उठ जाइएगा । उठ कर अपने बर्तन इत्यादि साफ़ कीजिएगा और कुल्ला इत्यादि कीजिएगा। यह सब करके जाप आरम्भ कर दीजिएगा। नीचे पुरुषों को और जो महिलाएँ नीचे ही होंगी उनको भोजन परोसना नीचे ही होगा और पुरुष ही वहाँ परोसेंगे । जो गंगा निवास में ठहरे हुए है वे इधर ही पुरुषों के तीन कमरे हैं वहाँ भोजन इत्यादि कर लें। दरी भी बिछाई जा सकती है। किन्तु अपना नैपकिन या तौलिया लाना पड़ेगा। श्रीरामशरणम् की दरियों पर नहीं। सीखने वाली बातें हैं । यह न सोचिएगा कि इससे क्या होता है, पाँव भी तो हम रखते हैं, ठीक बात है, मैं मानता हूँ, मैं तो कहता हूं कि परमात्मा के घर में तो पाँव भी फूँक फूँक के रखने चाहिए। हमें अधिकार ही नहीं है परमात्मा की चीज़ें बरबाद करने का। परमात्मा का घर है, आप अपना नैपकिन लेकर आइएगा, तो बरामदे में आपके लिए दरी बिछा दी जाएगी तो वहीं आप बैठिएगा ।

सब साधक बहुत अनुशासन में रहेंगे । आपके कमरों में सत्संग के नियम लिख के लगा दिए गए हैं । हर कक्ष में बहुत नए साधक भी हैं तो किसी कि ड्यूटी लगा दी सकती है कि कोई पढ़ कर सुना दे ताकि कोई यह न कहे कि हमें पता ही नहीं था ।पढ़ कर उल्लंघन नहीं करना।

रामायणी सत्संग पहली सभा (१)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री के मुखारविंद से

रामायणी सत्संग के शुभारम्भ पर

सच्चिदान्द परमात्मा पूज्य बाबा पूज्य गुरूदेव हम सब आपके अबोध बालक आपके निमंत्रण पर , आपने हमारे नाम स्वीकार किए हैं हम यहाँ आपके दरबार में एकत्रित हुए हैं, हमारा साष्टांग दण्डवत प्रणाम स्वीकार कीजिएगा प्रभु। कोटिश्य प्रणाम अर्ज़ करते हैं प्रभु , हमारा बारम्बार प्रणाम स्वीकार करें।

रामायणी सत्संग के लिए आप सब का हार्दिक स्वागत है। गुरूजनों का यह नौकर आपके श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम अर्ज़ करता है। मेरी नत्शिर वंदना स्वीकार कीजिएगा । हार्दिक अभिनंदन है आप सबका यहाँ । पधारने पर । परम सौभाग्य की बात है कि ऐसा सुअवसर गुरूजनों की कृपा से सबको मिलता है। यही समय है इस वक़्त संसार का विस्मरण करके तो परमात्मा का स्मरण अधिक से अधिक कर सकते हैं। संसार में रहते हैं तो संसार का स्मरण ही होता है परमेश्वर का स्मरण तो लेश मात्र ही होता है। मानो गुरूजनों ने ऐसा सुअवसर प्रदान किया है जब आप अधिक से अधिक समय परमेश्वर के स्मरण में लगा सकते हैं। और संसार का विस्मरण कर सकते हैं। जितने भी दिन हैं, लम्बा साधना सत्संग है , तीन रात्रि का नहीं पाँच रात्रि की नहीं नवरात्री सत्संग है बहुत समय है । मैं आपसे हाथ जोड़ कर यही प्रार्थना करूँगा कि इतना अनमोल समय इतना दुर्लभ सुअवसर मिला है इसे गँवाइएगा नहीं । इसका सद्उपयोग कीजिएगा , जितना अधिक से अधिक आप कर सकते हैं। और काम ही क्या है यहाँ पर, और कुछ नहीं। इसलिए जिस काम के लिए मेरे गुरूजनों ने आपको यहाँ बुलाया है वह काम कीजिएगा । कोई व्यापार की चर्चा, कोई समाचार पत्र इत्यादि की चर्चा मानो संसार की कोई चर्चा वहीं करनी । परस्पर परिचय इत्यादि क्या करना है जानकर। आप साधक हैं मैं भी एक साधक हूँ बस इतना ही पर्याप्त है। यही परिचय याद नहीं रहता । विभिन्न personalities यहाँ आए हुए , कोई अमीर है ग़रीब है, कोई छोटा है कोंई बड़ा कर्मचारी है कोई व्यापारी है कोंई retire हो गया है, कोई कैसा है कोई कैसे है, विभिन्न व्यक्तित्व यहाँ पधारे हुए हैं पर एक व्यक्तित्व जिसे कभी न भुलाना वह है कि हम साधक हैं। यहाँ आके यह बड़प्पन नहीं मरा तो वह कभी नहीं मरेगा । फिर इसे कोई नहीं मार सकेगा । यही कभी नहीं होएगा । इस लिए बेहतर यही है कि अपने आपको इनके श्री चरणों में समर्पित करके तो साधना कीजिएगा ।

लीजिए महाराज सब कुछ आपके श्रीचरणों में समर्पित है। हमारा अहंकार , अहम् भी आपके श्रीचरणों में समर्पित है महाराज। कुचल दीजिएगा इसे । लौटने पर हम इसे साथ नहीं लेकर जाना चाहते । तो ही मानो कोई उपलब्धी साथ लेकर जा रहे हैं। यदि वैसे ही फुँकार मारते हैं जैसे मारते आए हैं तो जो उपलब्धी जो है वह नहीं मानी जाएगी । तो, कुछ नहीं पाया यहाँ रह कर भी ।

कार्यक्रम इस प्रकार होगा –

प्रात चार बजे जागरण की घण्टी बजेगी ।

पाँच से ६ बजे तक सत्संग हॉल में सभी को जाप करना होगा । यह रामायणी का सत्संग थोड़ा भिन्न होता है।

लग भग 45-50 मिनट तक का जाप होगा । माला लाइएगा। गिनती का जाप करना होता है। 10,000 जाप अब और 10,000 का जाप शाम को। दस हज़ार जाप इसी सत्संग हॉल में पूरा होना चाहिए । आप किसी और समय भी आ सकते है हॉल में। पंद्रह से बीस मिनट पहले पधारें जाप में । जाप की संख्या 10,000 होनी चाहिए । थोड़ा भजन कीर्तन के लिए समय होगा तो होगा । ६ बजे चाय मिल जाएगी ।

उसके बाद सब मिल कर नील धारा जाएँगे । यह तीर्थ स्थान है हमारे लिए । यहाँ निवेदन करूँगा कि जो साधक गाड़ियाँ लेकर आए हैं उनसे निवेदन करूँगा कि गाड़ियाँ आगे तक न लेकर जाएँ । नीचे उतरने के लिए सीडियां आरम्भ होती हैं। गाडी सड़क के उस पार ही रखें। स्कूटर पर जो देवियाँ और सज्जन जाते हैं उनसे निवेदन है कि वे भी आगे तक न लेकर जाएँ । पिछली बार भी राज्य सरकार ने बड़ा इतराज किया था और इस बार भी कर रहे हैं। किसी के आने जाने में हमारी तरफ़ से असुविधा न हो यह ध्यान रखिएगा । अपनी गाड़ियाँ आगे तक न ले कर जाएँ। आज मुझे किसी संत महारात्मा ने वहाँ कहा, there is no parking space, सो इस बात का भी ध्यान रखिएगा ।

आठ बजे नाश्ता मिल जाएगा यहाँ पर ।

नौ बजे , 9:30- 11 बजे तक श्री रामायण जी का पाठ होगा ।

उसके बाद दोपहर का भोजन 12:00 बजे मिल जाता है ।

एक बजे से 2:30 तक मौन रखा है स्वामीजी महाराज जी ने। आधा घण्टा कम है यहाँ मौन । किसी और चीज़ के लिए समय दिया होगा । कोई अवश्य कारण होगा कि स्वामीजी महाराज ने आधा घण्टा यहाँ कम क्यों रखा है।

3 से 4:30 बजे श्री रामायण जी का पाठ होगा । उसके बाद चाय मिल जाती है।

साँय 6 से 7 बजे तक पुन: इसी हॉल में दस हज़ार का जाप करेगे । थोड़ा भजन कीर्तन करेंगे ।

उसके बाद रात्रि का भोजन मिल जाता है।

अंतिम बैठक होती है 8:30 से 9:30 बजे तक । श्रीअमृतवाणी का पाठ होता है और दो शब्द आपकी सेवा में कह दिए जाते हैं भजन कीर्तन भी होता है।

दस बजे विश्राम की घण्टी बज जाती है। अपनी बत्तियाँ इत्यादि बंद करके विश्राम कीजिएगा । जाप कीजिएगा । पर आपस में बात चीत बिल्कुल नहीं करनी ।

अर्ज़ कर रहा था कि स्वामिजी ने आधा घण्टा मौन कम क्यों रखा है। इसमें अखण्ड जाप भी नहीं होता है न गीता जी का पाठ होता है न ही यह कहा है कि इसके अतिरिक्त आपको बीस हज़ार का जाप करना है। तो फिर क्या करना है। ऐसा मुझे लगता है कि स्वामीजी महाराज की हृदय की बात होगी । जाप तो करना है। जाप तो हमारा स्वभाव बनना चाहिए। पर इसके अतिरिक्त भी स्वामीजी महाराज के मन में कुछ होगा ।

तीन घण्टे रोज़ श्री रामायण जी का पाठ होगा। खुले बैठिएगा। जहाँ बैठना चाहते हैं वहाँ बैठिएगा । आराम से बैठिएगा और प्रेम पूर्वक रामायण पढ़िएगा । गाने वाले भी आराम से प्रेम पूर्वक रामायण पढ़िएगा। ऊपरी ऊपरी बातें तो पता लग जाएँगी । सूक्ष्म चीज़ें पढ़ते पढ़ते नहीं पता लगता। जाप करते प्रसंग आएगा कि शरूपनखा आज आई थी । छोटी सी बात का किस प्रकार उसने बतंगड बना दिया । क्या करना चाहती थी। उसकी भावना अच्छी नहीं थी गंदी थी । जाप करते हुए जब आप इस बात का चिन्तन व मनन करेंगे तो इस बात की जो सूक्ष्म चीज़ें हैं रामायण में वह आपके मानस में उतरेंगी।

यूँ कहिएगा कि स्वामीजी महाराज ने यह समय दिया है कि जब आप रामायण जी को पढ़ने के बाद उस पर मनन चिन्तन करके तो उसे अपने जीवन में उतारिए।

न जाने कितनी बार हम रामायण जी पढ़ चुके हैं लेकिन किसी एक पात्र का चरित्र हमारे जीवन में उतरा हो ऐसा दिखाई नहीं देता। संत महारात्मा कहते हैं कि रामायण पढ़ने का सही अर्थ यही है कि उस पारब्रह्म परमेश्वर जो मानव बनकर उतरे उनका व्यक्तित्व उनका आचरण उनके चरित्र से तुलना करें कि हम कहां पड़े हुए हैं। तब रामायण पढ़ने का फ़ायदा है। असम्भव नहीं है। कि हम कभी राम नहीं बन सकते । राम का काम ही है सबको राम बनाना। यह आज नहीं तो कल, कल नहीं को परसों, नहीं तो अगले जन्म में या और अगले जन्म में। वे आपको बनाकर ही रहेंगे । आपका सहयोग होना चाहिए, वे बिल्कुल तैयार हैं। वे राक्षसों को राम बना सकते हैं, हम तो इंसान हैं। शेष समय साधक जनों रामायण जी में जो पढ़ा है जो प्रसंग आया है उस पर मनन चिन्तन कीजिए।

12:11

लीला गेंदे के फूलों की

Oct 10, 2018

आज एक साधक जी का संदेश आया । वही जो युवा अवस्था में मन ही मन प्रभु को गेंदे के फूलों का हार चढ़ाते थे और फिर एक बार प्रभु बोले भी कि आज मोतिए का हार पहनाओ ! और अब उनके घर गेंदे के फूल लग आए हुए थे ।

आज वे खिलखिला कर हंस रहे थे । बोले मुझे लगा कि मौसम बदल गया है मैंने सूखे गेंदे सब फेंक भी दिए पर आज देखता हूँ तो गेंदे के पौधे इतनी मात्रा और भर गए और फूल देते जा रहे हैं। और किसी पौधे की जगह तक नहीं छोड़ी !!! और वे छोटे छोटे पौधे नहीं बल्कि बड़े और घने !

मानो कि भगवान कह रहे हैं कि बस तेरी फुलवारी में फूलों की जगह में बस मैं ! न बूटी की जगह न चलने की जगह ! बस गेंदे के पौधे !!!

कहां मैं मन ही मन खेलता उनसे और कहां वे स्वयं गेंदे का रूप इतनी मात्रा में भर कर आ गए।

उन्होंने अपनी पत्नी को बताया कि देखो कैसे गेंदे भरे हुए हैं! पत्नी सिर हिला कर बोली – समता में सब ठीक रहता है!

वे साधक जी खिलखिला कर हंस दिए ! कि भगवन को समता में कैसे भरें ! संत गण कहते हैं भगवन तो नस नस व रोम रोम में ऐसे भर जाते हैं कि छलकते हैं ! बाहर सुगन्ध फैलाते हैं!

अतिश्य धन्यवाद !

परमेश्वर के साथ बातचीत

Oct 7, 2018

आज की अच्छी बात

परम व मेरी सर्वस्व करुणामयी माँ , परम पूज्य गुरूजन के श्रीचरणों में सर्व समर्पित । परम आदरणीय जॉ चैटर्जी की चिरऋणी कि उन्होंने अकारण करुणा कर इस नालायक को इन दिव्य शब्दों को छूने की अनुकम्पा की ।

ऐसी मनःस्थिति कीजिए जो कि परमेश्वर के साथ वार्तालाप कर सके ~ डॉ गौतम चैटर्जी

परमेश्वर वार्तालाप करते हैं। एक युवा साधक थे । दीक्षा उपरान्त कर्म वश उन्हें सात वर्ष तक गुरूजनों का सानिध्य न मिला । किन्तु यात्रा आरम्भ हो चुकी थी । माँ कालिका से प्रेम हुआ व अंतत: भगवन कृष्ण से प्रेम हो गया । लगे रहते मन ही मन उनके संग। मुँह में भोजन का ग्रास डालते मानो प्रभु को खिलाते । मानसिक रूप से हार बनाते। गंदे के फूल के बनाते। एक दिन भीतर से आवाज आई आज गंदे के नहीं मोतिए के पहनाओं !!!

सो परमेश्वर बात करते हैं।

यही साधक जब पूज्य गुरूदेव के श्रीचरणों में आए तो विवाह उपरान्त सत्संग न जा सके । किन्तु जो प्रश्न पूछते भीतर से गुरूदेव उत्तर दे देते । फिर भी पत्र के उत्तर के लिए लालायित रहते। पूज्य गुरूदेव ने पत्र लिखने को मना किया । खूब रोए ! किन्तु भीतर से गुरूदेव बोले कि पर मैं हर प्रश्न का उत्तर देता तो हूँ !

सो परमेश्वर वार्तालाप करते हैं ।

गुरू प्रभु राम सब एक ही हैं । एक ही ऊर्जा एक ही शक्ति ! यही है जीवन साथी ! जब इनकी भीतर मानने लग जाते हैं तो बाहर बेश्क द्नन्द्व् क्यों न रचा जाए ! भीतर की ही सुननी चाहिए ।

2016 मे शायद Hidden Dynamics fb पर दिव्य संकेत से ही लाई गई । बहुत विवाद हुआ किन्तु परमेश्वर ने हटने न दिया । राम रसिकों को विवाद से क्या काम और आज इतनी कृपा बक्श दी पूज्य साधकों के माध्यम से कि इनका विवरण प्रभु ने आरम्भ करवाया । अनुपमा का तो कहीं भी कुछ अपना नहीं , ऐसी कृपा है गुरूजनों की , जिनका है वह संजो कर रखवाया है। न नौकर न कथा वाचक न सेवक है न सामाजिक सूझ न आध्यत्मिक साधना , न समझ है अनुपमा के पास , राम रस की भूखी व प्यासी शायद इसे कह सकते हैं !

राम रस लागा प्रेम रस लागा

श्री श्री चरणों में

नाम से अथाह प्रीति

Oct 6, 2018

आज की अच्छी बात

परमेश्वर को नाम दीजिए और उन्हें अथाह प्रेम भाव से स्मरण कीजिए ~ डॉ गौतम चैटर्जी

संबंध बनाना है नाम से । कैसा भी । प्रीयतम का, माँ बालक का, प्रभु सेवक का, सखा का , कैसा भी । संबंध बना कर नाम से अथाह प्रेम करना है । उस नाम पर सब न्नौछावर कर देना है । तन मन धन । सब कुछ ! कुछ शेष न रह जाए ! ऐसा प्रेम ! लेश मात्र भी अपना न रह जाए , ऐसा प्रेम ।

सजल नयन । उनकी याद में । नाम के प्रेम में । नैना भरे रहें । अपने परम प्यारे को याद करते । मीठी मीठी या गहन याद , उनके प्रेम में बहते जाएं या डूबते जाएं ।

या तेज़ धुन में हाथ ऊपर किए भीतर की देह नाच उठे । कि आओ प्यारे ! ले चलिए अब !

अथाह प्रेम ।

सबसे प्रेम करने के इच्छुक हैं तो बस एक से ही प्रेम करना पर्याप्त है। उस परम प्यारे नाम से ! नाम से प्रीति नाम से प्रेम एक ऐसा भाव ले आता है कि कुछ करना नहीं पड़ता ! प्रेम स्वयमेव ही विस्तृत होता चला जाता है । प्रेम स्वयमेव ही बहता जाता है। यह किसी प्रयत्न से नहीं होता ! शायद स्वयं को भी पता नहीं चलता कि सबके प्रति प्रेम बहता चला जा रहा है !

केवल नाम से प्रीति ! अथाह प्रीति ! न केवल भीतर शुचिता करती है बल्कि प्रेम निच्छल निस्वार्थ दिव्य प्रेम प्रस्फुटित करने का प्रयोजन कर देती है !

नाम से प्रीति ही जीवन जीने लायक बना देती है ….

माता पिता और हक़

Oct 5, 2018

प्रश्न आया कि बच्चों को अपने माता पिता के जीवित रहते उनसे अपना ” हक़” माँगना चाहिए ?

बच्चों को माता पिता की केवल सेवा करनी है । यही गुरूजनों ने कहा है । अपने माता पिता के धन पर नज़र वही बात है कि किसी के धन पर नज़र । खासकर जब बच्चे बालिक, विवाहित हो जाते हैं।

कृपया ऐसा कभी न करें । चाहें माता पिता कहें भी तो भी उनकी किसी भी चीज पर बच्चों की नज़र नहीं होनी चाहिए ।

माता पिता का तो ऋण चुकता नहीं किया जा सकता क्यों वे हमें मानव जीवन देने के माध्य बने । इस ऋण को चुकाया नहीं जा सकता तो ” हक़” नाम किसी भी चीज पर कैसे आए । दैवी दृष्टि से माता पिता की केवल सेवा का हक़ मिला है।

माता पिता यदि समृद्ध हैं और बच्चे नहीं, तो भी सहायता माँगना शोभा नहीं देता पर विनय की जा सकती है।

हमें स्मरण रखना है कि हम सब अपने कर्मों का खा रहे होते हैं। यदि किसी अन्य की किसी भी चीज पर नज़र हो तो वह हमारा कर्म बन जाता है । वह चाह का कर्म यदि फलित हो जाए तो बहुत आह लेकर आता है ।

सो जो बच्चे अपने माता पिता की सम्पत्ति पर नज़र रखे हुए होते हैं और माता पिता के जीते जी उनसे उनके धन की अपेक्षा रखते हैं या फिर माता पिता की मृत्यु का इंतजार करते हैं कि कब ये जाएं और हमें सब मिले , कृपया ध्यान दें , कर्मों की लाठी इस लालच के कारण बहुत जोर से पड़ती है ! बीमारियाँ, नुक्सान, संतान न ठीक निकलना, धोखा, मानसिक रोग यह सब फल रूप में मिलता है । सो कृपय् सजग रहें ।

माता पिता की सेवा कीजिए। अपने सामर्थ्य से जीएं, और चाहे थोड़ी पर सुख की ईमानदारी की रोटी खाएं ।

मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया

जो भी अपने पास है वह भी प्रभु का है दिया

जब संसार दोषारोपण करे

Oct 4, 2018

एक साधक जी को एक- दो वर्ष ही लगभग हुए हैं विवाह को। लड़की ने फेरों के समय भी कुछ ऐसा किया कि मुहूर्त के पश्चात विवाह हुआ और विवाह के पश्चात भी पति से संबंध नहीं जोड़ा । साधक जी ने हर तरह का प्रयास किया निभाने हेतु किन्तु पत्नी न मानी । अलग रहते रहे लड़की की पढ़ाई हेतु ।

जब विचोला लेकर आए बातचीत के लिए तो पता चला कि लड़की ने बहुत झूठ बोल रखा है व आपसी बातें भी रिकार्ड कर रखी हैं। लड़की के पिता अब साधक जी के परिवार को धमकी दे रहे हैं।

एक इसी तरह की व्यवसाय में समस्या लेकर आज गिलहरि कार्य पर जा रही थी । साधक जी की तरह उनका भी आमना सामना होना था । वे भी दूसरी गिलहरि की नकारात्मकता देख रही थी । पता न चल रहा था कि कैसी बातचीत करे। वह अपने प्यारे से बोली – बोलो प्यारे आप क्या करते ? आप क्या निर्णय लेते । आप इस तनाव भरी परिस्थिति को कैसे सुलझाते । प्यारे बोले – बता दे यह सब नकारातमनकताएं , दूसरों का भला होगा ! गिलहरि बोली – पर मेरे प्यारे ! आप कहां हमारी नकारात्नककाएं देखते हैं, सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं । तो मैं क्यो देखूँ ? प्यारे आप तो दूसरों में उनके गुणों से उभर कर आते हैं ! सो गिलहरि को राह मिल गई । जब दूसरे उनके दोष वर्णन कर रहे थे वह शान्त अपने प्यारे से आलिंगन कर बैठी रही। और जब उनसे कुछ कहने को कहा गया उन्होंने दूसरे के गुण बखान किए और फिर अपनी बात कही !

आपसी संघर्ष में दूसरे के दोष देख कर दूसरों पर दोषारोपण कर, संघर्ष बढ जाता है। तनाव बढ जाता है और मन अशान्त हो जाता है ! किन्तु यदि संघर्ष में दूसरे को स्मरण करवा दो कि तुम में भई यह गुण हैं तो दूसरे में कहीं कुछ तो छुएगा ही । और वह होती है दिव्यता ।

यदि गुण न बखान कर सकें तो प्रार्थना में दूसरे के लिए जब कृपा याचना करें तो परमेश्वर के दिए गए गुणो का वर्णन कर कृपा याचना कर सकते हैं ।

राम की सृष्टि व दृष्टि मे दोष नहीं ऐसा गुरूजन कहते हैं ।

राम तेरा आसरा गुरूदेव तेरा आसरा

भोग विलास से निस्तार

स्वयं को जागृत करना मतलब कि अपनी देहिक भोग वासनाओं को बंद करना ~ डॉ गौतम चैटर्जी

Oct 4, 2018

राम नाम साधना करते हुए, संतों के सानिध्य में रहने से हर प्रकार के देहिक भोग विलास को विराम मिलता है। किन्तु गृहस्थ में होते हुए और अपने साथी की एक सी मनोवृत्ति न होते हुए तनाव आना स्वभाविक है । इस तरह के तनाव को महिला साधक व साधनारत पुरुष साधक एक साथ सहन करते हैं।

गुरूजन कहते हैं कि कर्तव्य निभाना तो साधना के लिए अति आवश्यक है । बिना कर्त्वय निभाए साधना में प्रगति नहीं । किन्तु राम नाम कोई साधारण शक्ति नहीं है । वह न केवल स्वयं में शुचिता ले आते है बल्कि संबंधि में भी । किन्तु इसके लिए धैर्य आवश्यक है । साथी के प्रति देहिक कर्त्वय, समर्पण लेकर आते हैं । और देह से पार राम से संयुक्त होने में सहायक होते हैं।

जीवन में कोई भी परिस्थिति बिन कारण नहीं आती । हर परिस्थिति ने कुछ सिखाना होता है, और हमें और उभारना होता है। हर चुनौति को आत्मिक उत्थान का ही सुअवसर मानना हमें चाहिए ।

सो राम नाम द्वारा जब परम गुरू स्वयं हमारी आत्मा को जागृत करते हैं तो मन व देह के हर प्रकार के भोग विलास उस परम ऊर्जा में विलीन हो जाते हैं।

नाम उच्चारण

परमेश्वर को जानने की तपस्या उनके पावन नाम के उच्चारण से होती है जो कि प्रकाशमय रूप से विकसित हो जाती है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

Sept 30, 2018

परम करुणामयी माँ, परम पूज्य गुरूजन व आदरणीय डॉ गौतम चैटर्जी के मंगल आशीष लिए सर्व समर्पित करते हैं ।

परम सौभाग्यवत् जब हमें सुगढ संतों द्वार नाम दान मिलता है तो हमारा वह नया जन्म माना जाता है । क्योंकि हमारी आत्मा की नई व असली यात्रा आरम्भ होती है । और यह यात्रा परमेश्वर के पावन नाम द्वारा की जाती है ।

परमेश्वर अपने नाम में बसते हैं। सो उनके परम पावन नाम का उच्चारण अतिश्य प्रेम पूर्वक हमें करना होता है । जितने प्यारे भाव उतना ही रस व प्रीति उनके नाम से ।

परमेश्वर का पावन नाम ही हमें जीवन की परिस्थितियाँ जूझने की शक्ति देता है । यही पावन नाम मन की व्यर्थ कामनाओं को धो डालता है । इसी नाम से मन के अवरोधक दूर हो जाते हैं और धीरे धीरे करोडों नाम जप द्वारा भीतर के किवाड़ खुलने लगते हैं । जैसे जैसे कर्मों के आवरण गिरते जाते हैं, वैसे वैसे पवित्रता उभर कर आती जाती है।

नाम से प्रीति ही जीवन का लक्ष्य बनना है। अधिक से अधिक प्रीति । गुरूजन कहते हैं नाम जप का फल और नाम जप ! सतत नाम सिमरन परमेश्वर के द्वार तक पहुँचा देता है, ऐसा संतगण कहते हैं।

सो हम सब खूब हर पल प्रेम पूर्वक नाम उच्चारण करके अपना जीवन सफल बनाएँ ।