परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से
रामायणी सत्संग पहली सभा (२)
आखिर रावण के पास सब कुछ था । क्यों वह इतना असंतुष्ट था । क्यों उसके अंदर इतनी तृष्णा थी । क्या हमारी हालत भी ऐसी ही है। सब कुछ होते हुए भी, शान्ति को सीता माता को साथ ले गया है लंका में विराजमान हैं लेकिन इसके बाद भी इतना अशान्त है, क्यों? क्या हमारा भी व्यक्तित्व इससे मिलता जुलता नहीं है ? इन बातों पर चिन्तन मनन कीजिएगा । आचरण कैसा होना चाहिए इसे अपने जीवन में उतारिएगा।
भले ही अखण्ड जाप नहीं है लेकिन अखण्ड जाप का कमरा तो खुला है। अभी थोड़ी देर में जाकर अधिष्ठान जी की light जला दूँगा । जलती रहेगी । जब तक साधना सत्संग की समाप्ति नहीं होती आपको वह light कभी बुझानी नहीं अधिष्ठान का परदा गिराना नहीं । वैसे रहने दीजिएगा। हाँ पंखा light दूसरी जलती है off कर दीजिएगा बाहर निकलने से पहले। सुबह 6 बजे से साँय 6 बजे तक महिलाएँ वहाँ जाएँ बाहर बैठे अंदर बैठें ध्यान लगाना चाहें, चिन्तन मनन करना चाहें, जो मर्ज़ी करें। साँय ६ बजे से सुबह ६ बजे तक पुरुष जाएँ , भीतर जाएँ , जाप करें, ध्यान करें। ध्यान की बैठक तो नहीं हैं पर आप वहाँ जा कर ध्यान लगाएँ जाप करें।
कम से कम पंद्र मिनट पहले नीचे आ जाइएगा। किसी को कहना न पड़े । पंद्रह मिनट पहले पधार जाइएगा । बाहर बैठें अंदर बैठें प्रेम पूर्वक श्री रामायणी का पाठ कीजिएगा, जाप कीजिएगा।
जाप साधक जनों स्वामीजी महाराज ने चक्कर लगाने वाला नहीं रखा। हम तो used to हैं साधक जनों कि बातें भी करते जाते हैं और जाप भी करते रहते हैं। इधर उधर देखते भी रहते हैं और जाप भी करते हैं। कैसा जाप है यह? छूट तो दी हुई है गुरूजनों ने पर जो लाभ मिलना चाहिए वह लाभ नहीं कर पाते। इस साधना सत्संग में जाप बैठ कर उन्होंने करने को कहा है। मानो आँख बंद करके जाप कीजिएगा और कान बंद करके भी जाप कीजिएगा । करके देखना भक्त जनों। न आँख खुले न कान खुले। ऐसी स्थिति में जाप करके तो देखिएगा कि कैसा लगता है। यदि अभी तक नहीं किया तो इस बार करके देखना। कान तो बंद होते नहीं न, इन कानों को भी बंद करना है अभ्यास कीजिएगा। कुछ भी सुनाई नहीं देता । मन जाप में होगा तो कान कुछ नहीं सुन सकेंगे । मन जिस इंद्रिय के साथ होती है वही इंद्रिय सक्रिय होती है। आप मन जाप पर लगा कर रखेंगे तो जो कुछ भी हो रहा है वह सुनाई नहीं देगा। इस बारी आँख बंद करके व कान बंद करके जाप कीजिएगा ।
भोजन संबंधित भी कुछ बातें हैं। जैसे पिछले सत्संगों में महिलाओं को सब्ज़ी काटनी पड़ती थी चपाती बनानी पड़ती थी । न सब्ज़ी काटने की आवश्यकता है, न रोटी बनाने की आवश्यकता है, न आटा गूँधने की आवश्यकता है, न सलाद काटने की आवश्यकता है। एक की आवश्यकता है , वह है जाप करना । सब कुछ आपको किया कराया मिलेगा। परोसने के लिए भी वैसे नहीं बैठेंगे। जैसे चाय लेते थे, दलिया लेते थे वैसे नहीं बैठेंगे । पहली मंज़िल की महिलाएँ उनको सब कुछ चाय से लेकर भोजन तक वहीं मिलेगा। और उनको महिलाएँ ही बाँटेगी । चाय ले, भोजन लें, नाश्ता लें, अपनी थाली ले कर बिस्तर पर बैठ जाएँ । श्री रामशरण की किसी जगह पर नहीं बैठना। परमात्मा की किसी भी चीज़ खराब करने का हमें हक़ नहीं है। थाली अपने आगे रखी है अनन्पते कीजिए और किसी के इंतजार करने कि आवश्यकता नहीं है। कि कमरे के और लोग आए हैं कि नहीं । परमेश्वर का धन्यवाद कीजिएगा और उठ जाइएगा । उठ कर अपने बर्तन इत्यादि साफ़ कीजिएगा और कुल्ला इत्यादि कीजिएगा। यह सब करके जाप आरम्भ कर दीजिएगा। नीचे पुरुषों को और जो महिलाएँ नीचे ही होंगी उनको भोजन परोसना नीचे ही होगा और पुरुष ही वहाँ परोसेंगे । जो गंगा निवास में ठहरे हुए है वे इधर ही पुरुषों के तीन कमरे हैं वहाँ भोजन इत्यादि कर लें। दरी भी बिछाई जा सकती है। किन्तु अपना नैपकिन या तौलिया लाना पड़ेगा। श्रीरामशरणम् की दरियों पर नहीं। सीखने वाली बातें हैं । यह न सोचिएगा कि इससे क्या होता है, पाँव भी तो हम रखते हैं, ठीक बात है, मैं मानता हूँ, मैं तो कहता हूं कि परमात्मा के घर में तो पाँव भी फूँक फूँक के रखने चाहिए। हमें अधिकार ही नहीं है परमात्मा की चीज़ें बरबाद करने का। परमात्मा का घर है, आप अपना नैपकिन लेकर आइएगा, तो बरामदे में आपके लिए दरी बिछा दी जाएगी तो वहीं आप बैठिएगा ।
सब साधक बहुत अनुशासन में रहेंगे । आपके कमरों में सत्संग के नियम लिख के लगा दिए गए हैं । हर कक्ष में बहुत नए साधक भी हैं तो किसी कि ड्यूटी लगा दी सकती है कि कोई पढ़ कर सुना दे ताकि कोई यह न कहे कि हमें पता ही नहीं था ।पढ़ कर उल्लंघन नहीं करना।