समर्पण व झुकना

April 15, 2019

आज सैर पर निकली तो अपने ही ख़्यालों में जा रही थी कि मानो किसी ने कहा – Hi ! मैंने गर्जन ऊपर की तो देखा मेरे प्रिय मित्र वृक्ष थे ! मुस्कुराते हुए उनको देखा ! और फिर ग़ौर से देखा ! यूहीं तो बुलाया न था !!

जब देखा तो उस वृक्ष पर अभी पंखुड़ियाँ आ रही थी । वर अभी भी अपनी टहनियाँ ऊपर किए समर्पित भाव में था ! सर्दी मे मेरे मित्र समर्पित समाधि में जाते हैं। खाना पीना बंद टहनियाँ ऊपर आकाश की ओर किए समाधि में तल्लीन !!

साथ ही बग़ल का वृक्ष दिखाया ! उसे देख कर और मुस्कुराहट आ गई !!! उस पर फूल पत्तियाँ आ चुकी थी ! और टहनियाँ झुक गई थी !

मानो समर्पण के पश्चात जो फल मिलता है प्रकृति वहाँ झुक जाती है !! हम भी यही सीखें !! समर्पण की राह पर हैं तो झुकते जाना है! जितना समर्पण उतना झुकना !

सर्व श्री श्री चरणों में

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