FAQ- प्रभु प्रेम की ओर क्यों नहीं जाती जनता?

May 5, 2019

प्रश्न : कई मंदिरों में व सत्संगों में नाच गाना अधिक होता है , लोग वह अधिक पसंद करते हैं , किन्तु प्रभु से प्रीति लगाव कम । ऐसा क्यों ?

परम पूज्यश्री स्वामी जी महाराजश्री कहते हैं कि लोगों को रिझाना एक बात होती है और परमेश्वर को रिझाना अलग ।

पूज्य महाराजश्री ने अनेकों बार कहा है कि लोग तीर्थ स्थलों पर picnic मनाने अधिक जाते हैं न कि साधना के लिए ।

प्रश्न है क्यों ?

अधिकतम लोग अपनी भौतिक इच्छाओं की ही पूर्ति के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं । आध्यात्म मे स्वयं का रूपांतरण करना पड़ता है । अपनी इच्छाओं को नकारना पड़ता है । अनुशासित होने की आवश्यकता होती है, स्व सुधार करना होता है । चाहे हम प्रभु प्रेम से करें चाहें चिन्तन , चाहे पूर्ण रूप से एक गंतव्य की ओर केंद्रित होकर !

पूज्यश्री स्वामीजी महारीजश्री की साधना सब कुछ देती है । सरल है इनकी साधना आध्यात्मिक है सो स्वयं का रूपांतरण करवाती भी है और निरंतर प्रयास भी करना होता है ।

जब कामनाएँ बहुत प्रबलतर हो तो केवल मौज पर ही केंद्रित रहते हैं कि नाच गाने से कुछ पल मन के कोलाहल को समाप्त कर लिया ! किन्तु असल में रूपांतरण लाना अपने में ताकि हर परिस्थिति में शान्त व आनन्दित रह सकें वह धैर्य माँगता है, वह अनुशासन माँगता है, वह मानव जीवन की महत्ता समझता है !! जब इस जीवन की महत्ता का ही बोध न हो तो आदमी केवल मौज व कामना पूर्ति में ही लगा रहता है ! अज्ञान के कारण पाप कर्मों पर भी रोक नहीं रहती ! दुख , पीडा, वेदना दस्तक के रूप में आती हैं कि जागो !!! कुछ सम्भल पाते हैं और कुछ नहीं !

सो हमें मानव जीवन की महत्ता को जानकर, स्व सुधार करना है ताकि अपनी आत्मा को ऊर्धगामि कर सकें ! नहीं तो युगों से जो सिलसिला चल रहा है वही चलता रहेगा …..

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