सशक्तिकरण

May 30, 2019

धार्मिकता से अध्यात्म की ओर

कल किसी ने बहुत सुंदर प्रश्न किया कि हम नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं किन्तु परिवार जन तो नारी की व उसके परिवार जनों का आदर ही नहीं करते ….

दो तरह से सशक्त होना है । एक, आर्थिक रूप से स्वावलम्बी और एक भीतर से सशक्त । आर्थिक रूप से सशक्त होकर अपने पैरों पर खड़े होकर परिवार का सहयोग दिया जाता है और विपदा के समय, इधर उधर निर्भर नहीं होना पड़ता । पर इससे दूसरे आदर देंगे , विशेषकर परिवारजन, इसकी कोई गैरंटी नहीं है ।

जीवन में आदर सम्मान भी कर्मों से ही मिलता है ।

कई अशिक्षित माताएँ होती हैं किन्तु परिवार में बहुत आदर होता है। कई बहुत पढ़ी लिखी महिलाएँ होती हैं और आदर नहीं ।

सो बाहर के आदर की चाह क्योंकि अपने बस में नहीं है, सो भीतर से सशक्त होने की ओर मुड़ते हैं । यहाँ आता है अध्यात्म । स्वयं को रूपांतरित करना । स्व सुधार करना । अपने को भीतर से सशक्त करना । अब यह हम स्वयं के लिए कर रहे हैं । दूसरों से आदर पाने हेतु नहीं , बल्कि स्वयं के कल्याण , उद्धार , शान्ति व आनन्द के हेतु ।

भीतर के सशक्तिकरण में अपने अपने मन की इच्छाओं , अपेक्षाओ को बारीकि से देखते हैं और उन के दृष्टिकोण बदलने की ओर चलते हैं। दूसरों के कार्यों की बजाए अपने कार्यों पर नज़र करते हैं। दूसरों की सराहना की बजाए अपने किए कार्यों पर आनन्द लेते हैं, दूसरों के कर्मों व प्रतिक्रियाओं से अपने को अलग करके अपने कर्मों व प्रतिक्रियाओं पर नज़र रखकर सुधार करने का प्रयास करते हैं। दूसरों के चयन के प्रति आसक्त न होकर अपने चयन की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं !

सो जीवन में आनन्द स्व सुधार , स्व रूपांतरण से ही आता है ! एक अद्भुत सफलता का एहसास होता है जब हम दूसरों के चयन किए गए कर्मों पर केंद्रित न होकर अपने कर्मों को देखते हैं और सही चयन करते हैं।

यह है सशक्तिकरण ! भीतर से । सो यदि भीतर व बाहर का समन्वय हो जाए तो जीवन बहुत ही समृद्ध हो जाता है ! दूसरों के व्यवहार से स्वयं पर केंद्रित होकर अपने आप को आनन्द से सशक्त कर सकें तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है !!

यह हर एक के लिए है । पुरूष व नारी ! युवा व बड़े ! बच्चे व बुजुर्ग ! जो कर गया वह तर गया !!

सो हम सब प्रयास करें .. स्वयं को भीतर से सशक्त करने के लिए सजग प्रयास करें !

सर्व श्री श्री चरणों में

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