ध्यान 13

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((479))

ध्यान

भाग-१३

मन ही मन भीतर विराजमान परमात्मा को चरण वंदना करके, झुक कर प्रणाम करके बैठ जाएं सब, सीधे होकर, पीठ सीधी रखें। गर्दन रखें परमात्मा के आमने-सामने ।

आंख बंद करके त्रिकुटी स्थान को देखिएगा। शाबाश । दो भोहो के बीच स्थान, त्रिकुटी स्थान, आज्ञा चक्र, आप जी का तीसरा नेत्र देखते रहिए इसे । कभी-कभी भक्तजनों खुली आंख भी इस स्थान को देख लिया कीजिएगा बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । एक दिन पहले भी आप जी से अर्ज की थी, साधना के माध्यम से खोज कीजिएगा यह स्थान क्या है ? इसके साथ ही संभवतया खोज पूरी हो जाती है । भीतर ही भीतर प्रियतम परमात्मा को याद कीजिए, अपने राम को याद कीजिए, सबके राम को याद कीजिए । जिसमें सब रमते हैं वह राम, जो सब में रमता है वह राम ।

यह केवल योगियों साधु का ही राम नहीं, पापियों का भी है, दुष्टों का भी है, सबका राम । ऐसे राम को प्रेम पूर्वक याद कीजिए, भक्ति पूर्वक याद कीजिए । उसकी दया को, उसकी उदारता को, उसकी करुणा को, उसकी कृपा को, खूब याद कीजिए ।

धन्यवाद सहित याद कीजिए । अपनी कृतज्ञता, अपना आभार उन महानतम के प्रति व्यक्त कीजिए । बहुत अनूठा है वह, अनुपम है वह, अतुलनीय है वह, अपरिमित है वह ।

बड़े आदमी के साथ बैठना, उन्हें अपने अंग संग मानना, या स्वयं उनके चरणों में बैठना, व्यक्ति अपने आपको कितना गर्वित महसूस करता है । ओह ! मुझे उनके साथ बैठने का मौका मिला जिंदगी में । वह जिसके साथ आप सदा बैठे, आपके गर्व की तो कोई सीमा ही नहीं होनी चाहिए ।

एक शिष्य एवं गुरु जंगल में भक्ति में, ध्यान में बैठे हैं । शिष्य ने शेर के आगमन का संकेत देखा, महसूस किया । दहाड़ तो थी लेकिन संभवतया कहीं दूर से । शिष्य के कान उधर ही थे, सो सुन सके ।

उसके बाद शिष्य की आंख बंद नहीं हुई। बेचारा भयभीत एक बार गुरु महाराज को देखें, तो दूसरी बार शेर की आहट को देखे व सुने ।

अपनी आंखों से देखा उसने शेर को आते हुए, मानो मृत्यु को आते हुए देखा ।

परमेश्वर की असीम कृपा हुई शेर वापस मुड़ गया । शिष्य फिर आंख बंद करके ध्यानस्थ हो गया । अबकी बार संभवतया ज्यादा अच्छा ध्यान लग रहा था । परमेश्वर की कृपा, उसके संरक्षण को याद करते करते, जो उसने रक्षा की, मृत्यु से बचाया, उसे याद करते करते शिष्य का ध्यान भी लग गया ।

ध्यान की अवधि समाप्त होने पर दोनों उठे। नाश्ते इत्यादि का समय था, या जो भी कोई समय था, वह किया । करते करते एक बाजू पर मक्खी बैठी, दूसरे पर मच्छर ।

गुरु महाराज को मच्छर ने काटा । गुरु महाराज उसकी पीड़ा को बड़ी असहनीय पीड़ा मान रहे हैं । शिष्य से रहा ना गया ।

कहा महाराज कमाल के बंदे हैं आप ? मच्छर के काटने की पीड़ा तो आप सहन नहीं कर सकते, पर आपके सामने मृत्यु खड़ी थी, तब तो आपका ध्यान भी नहीं

टूटा । आप ध्यानस्थ थे, ना कोई पीड़ा थी आपको, ना कोई चिंता थी, आपको निश्चिंत बैठे हुए थे आप ।

गुरु महाराज ने शिष्य को इतना ही कहा- वत्स उस वक्त मैं परमात्मा के पास बैठा हुआ था, फिर भय किस बात का, फिर चिंता किस बात की, फिर शंका किस बात की ? फिर तो आदमी मस्ती में डूबा हुआ होता है, निश्चिंतता की स्थिति में होता है,

मां की गोद में परम विश्राम प्राप्त किए हुए होता है ।

यही है ध्यान देवियो सज्जनों परमेश्वर के श्री चरणों में बैठना । ऐसा realise करना ।

मत सोचिएगा दिखाई तो देता नहीं है । महसूस कीजिएगा वह परमात्मा कण-कण में व्याप्त है ।

One has to realise it.

यह experience होना चाहिए । इसी को God experience कहते हैं, experience his presence within and without you.

अपने भीतर एवं बाहर सर्वत्र तब होगा।

जिसे हम कहते हैं मेरा मन भटक रहा है, यदि आप यह स्वीकार करते हैं, यदि आप यह realise करते हैं, कि परमात्मा के अतिरिक्त इस संसार में कोई नहीं है, तो तनिक सोच कर देखिएगा मन परमात्मा के सिवाय कहां जा सकता है ? तभी इसको भटकना कहा जाएगा, यदि आप यह महसूस नहीं करते कि परमेश्वर कण-कण में, हर जगह विद्यमान है, तब संसार दिखाई देगा ।

यदि आप यह अनुभव करते हैं, यह experience करते हैं, यह realise करते हैं, उस देवाधिदेव के बिना एक मिलीमीटर का अंश भी खाली नहीं है, वह इतना भरा हुआ है इस ब्रह्मांड में, तनिक सोचो मन कहां जाएगा ? यह मन संसार में तभी जाता है जब आपको परमात्मा सर्वत्र, सर्वदा विद्यमान दिखाई नहीं देता । जब आप यह अनुभव कर लेते हो वह सब जगह है, सब समय है, देश काल से अतीत, तब भी यह दुविधा नहीं रहती ।

रामममममम……….

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