ध्यान 17

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।

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ध्यान

भाग-१७

मन ही मन परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, करें झुक कर प्रणाम, बैठ जाएं सब सीधे होकर, आंख बंद करें, पीठ सीधी रखें, देखें त्रिकुटी स्थान को । आंख बंद करें जी, सब आंख बंद करें जी, आंख बंद करें जी सब । शाबाश ! आप सब इस वक्त ध्यान अवस्था में बैठे हैं । यह steps घर में भी याद रखिएगा । परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, झुककर प्रणाम करके, सीधे होकर बैठ के, आंख बंद करके भृकुटि स्थान को देखते हुए, बिना हिले जुले भीतर ही भीतर अपने प्रियतम परमात्मा राम के नाम को पुकारना, उन्हें याद करना, ध्यान कहाता है ।

आप सब इस वक्त ध्यान अवस्था में बैठे हुए हैं ।‌ ध्यान में प्रगति हो रही है, या नहीं, इस बात पर चर्चा चल रही थी। साधना की पराकाष्ठा है ध्यान । मत सोचिएगा की कुछ दिन बैठने से ध्यान में परिपक्वता आ जाएगी । लंबी साधना की पराकाष्ठा- ध्यान । बहुत देर के बाद, चिरकाल के बाद, साधक को ध्यान अवस्था लाभ हुआ करती है । निराश, हताश नहीं होना । आशीर्वाद का स्थान 1%, शेष स्थान अभ्यास एवं वैराग्य का । यह दोनों साथ साथ होंगे, तो ध्यान में परिपक्वता आएगी, तो आपको अपने वास्तविक स्वरूप का बोध होगा, इससे पहले नहीं ।

चर्चा चल रही थी ध्यान में बैठते हुए बहुत समय बीत गया है । कृपया देखिएगा मेरी मनोकामनाएं अभी कुछ कम हुई है, कि नहीं ।

मन के मनोरथ कम हुए हैं, कि नहीं ।

ध्यान मनोकामनाओं की पूर्ति का समर्थन नहीं करता । मनोकामनाओं की निवृत्ति का समर्थन करता है ।

यदि अभी भी सांसारिक कामनाएं बढ़ती हुई, दौड़ती हुई आपके इर्द-गिर्द परिक्रमा करती हुई दिखाई देती हैं, तो समझ लीजिएगा की आप अभी ध्यान के पास भी नहीं पहुंचे । यह ध्यान के sure short बिंदु हैं, जो आपको अपनी प्रगति का तत्काल बोध करवाएंगे । मनोकामनाएं कम हुई है कि नहीं, अभी मनोकामनाएं खत्म हुई है, नष्ट हुई है, यह तो बहुत लंबी बात है । कम हुई है कि नहीं ।

सांसारिक विचार, इनकी धूल अभी उठनी घटी है कि नहीं । इनकी धूल यदि अभी वैसे ही उठ रही है, तो यह आंखों में पड़ेगी, ध्यान में बाधा बनेगी। चित्त वृत्तियां कुछ शांत हुई है कि नहीं ।

Thoughts, चित्त वृत्तियां अर्थात thoughts, worldly thoughts, इनकी अभी आंधी धूल उठनी कुछ कम हुई है कि नहीं ।

यह मैं और मेरा, यह असाध्य रोग अभी कुछ हल्के हुए हैं कि नहीं । जीवन में तू और तेरा, जिसे आना चाहिए, जो सत्य है, उस सत्य का जीवन में प्रवेश हुआ है, कि नहीं ।

हमारे स्वभाव में गीता जी के अनुसार तमस की प्रधानता होती है, रजस की होती है, अथवा सत्व की प्रधानता होती है । मेहरबानी करके अपने स्वभाव में, अपने व्यक्तित्व में देखिएगा अभी आलस, निद्रा, प्रमाद यह घटे हैं कि नहीं, खत्म हुए हैं कि नहीं । मन अभी भी हमें प्रवृत्ति में प्रवृत्त करना बंद हुआ है कि नहीं । बहुत होशियार है मन । इसकी खोटी चालो से हर साधक को बचने की जरूरत । बहुत नाच नचाता है यह ।

आप वृद्ध अवस्था में चले गए हैं । यदि आपके अंदर अभी भी रजस की प्रधानता है, तो आपको वह प्रवृत्ति में प्रवृत्त करके रहेगा । मन आपको तरह-तरह की योजनाएं बनाकर, इस प्रकार से भरमाएगा, कि जो यह कह रहा है वही सत्य है । गौशाला खोलनी चाहिए, हस्पताल खोलना चाहिए, वहां तुम्हें सेवा करनी चाहिए, ऐसे ऐसे सुंदर शब्द प्रयोग करेगा मन । लेकिन यह मन की खोटी चाल है । समझो कितने क दिन की जिंदगी बाकी रह गई होगी । इस वक्त गौशाला की सेवा करने लग जाओगे, तो आप सोचते हो इसकी सेवा से आपको मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी, तो शास्त्र ऐसा नहीं कहता, मन कहता है । यह मन की खोटी चाल है । इससे बचने की आवश्यकता ।

तरह तरह का भोजन आता है, उसमें भरमा कर रखता है मन । आज परमात्मा को इस चीज का भोग लगाएंगे, यह मन की खोटी चाल को समझो कि आज आपका उस चीज को खाने को मन कर रहा है, भोग तो बहाना है। यह खोटी चालें मन ने अभी चलनी बंद करी है, कि नहीं करी ।‌

जिंदगी की सायं,

एक ही काम बाकी रह गया है अब, और वह है जिंदगी की अनिवार्य घटना, जिसे मृत्यु कहा जाता है ।

यह समय योजनाएं बनाने का नहीं, यह समय है अंतर्मुखी होने के लिए, यह समय है भीतर प्रवेश करने के लिए, जहां परम शांति का स्रोत विराजमान है । यह समय बाहर मुखी होने का नहीं । सब किए कराए पर पानी फिर जाएगा । जब तक श्मशान घाट नहीं पहुंच जाते, यह मन पीछा नहीं छोड़ता, अपनी खोटी चाले बंद नहीं करता ।

एक साधक को ही सचेत, सजग रहने की जरूरत । ध्यान आपको ऐसी ही योग्यता प्रदान करता है। यह स्थान भक्ति का स्थान, ध्यान में बैठने का स्थान । आप कहते हो घर में सुबह शाम बैठते हैं, ब्रह्म मुहूर्त में बैठते हैं, तो भी ध्यान नहीं लगता। ऐसा नहीं लगता जैसा श्री राम शरणम् में लग जाता है, तो इस स्थान की पवित्रता का प्रताप है, इस स्थान के वातावरण का प्रताप है, मेरे गुरुजनों के आशीर्वाद का, उनके तप त्याग का प्रताप है, उनकी साधना का प्रताप है, उनकी सात्विक vibrations मिलती है, जिससे मन झट से नियंत्रण में हो जाता है । इस स्थान की ऐसी पवित्रता बनी रहनी चाहिए और परमेश्वर कृपा करें आप सबको, हम सबको यह लाभ मिलता रहे।

यहां आकर बहुत समय ध्यान के लिए व्यतीत किया कीजिएगा । जप तो आप दिनभर भी कर लेते हो । यहां आकर जितना समय आप कुर्सी पर बैठे हो, जमीन पर बैठे हो, हाल में बैठ हो, हाल के बाहर बैठे हो, सारे का सारा समय ध्यान के लिए उपयोग किया कीजिएगा । सांसारिक विचार बंद हो, अपने खिड़कियां, द्वार, बंद करने का अभ्यास किया कीजिएगा । यह इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ते । फिर आदमी इतना कुछ करने के बावजूद भी खाली हाथ जाए, तो किसका दोष ? आपने मेहनत तो करी, लेकिन दिशा ठीक नहीं थी ।

मेहनत तो सड़क पर मजदूर भी करता है, लेकिन मेहनत तो वह है जो एक athlete ग्राउंड में जाकर व्यायाम करता है, या कहीं व्यायामशाला में जाकर व्यायाम करता है, और अपने मसल्स को, अपने शरीर को हष्ट पुष्ट बनाता है । मजदूर से कहीं कम मेहनत करता है वह । लेकिन मजदूर का शरीर हष्ट पुष्ट नहीं हो रहा । मेहनत तो दोनों ही कर रहे

हैं । एक की दिशा सही है, दूसरे की दिशा गलत है । जारी रखेंगे साधक जनों इसी चर्चा को ।

राममममम……..

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