परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((468))
![](https://ramupasana.wordpress.com/wp-content/uploads/2020/01/img_7633-1.jpg?w=604)
ध्यान
भाग-२
राजा अश्वपति पर दो शब्द कहने से पूर्व साधक जनों, जो कल चर्चा शुरू हुई थी ध्यान के ऊपर; कल तो फिर जाप का दिन है। सो वृद्धि आस्तिक भाव की, के बाद तत्काल ध्यान शुरू हो जाएगा कल । सो आज जो थोड़ी बातें कुछ रह गई हैं, आज पहले उन्हें समाप्त करते हैं । ध्यान के steps पुन: सुनिए ।
ऐसे बैठना जैसे मैं अभी आपके सामने बैठा था । कोशिश करें ऐसे बैठने की ।
यदि नहीं तो cross legged चौकड़ी लगाकर बैठिएगा । परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, झुककर प्रणाम कीजिएगा । बहुत झुक कर प्रणाम करना।
कल भी आपसे अर्ज की थी परमेश्वर के अपने श्रीमुख वाक्य हैं, जितना मेरे आगे झुकोगे, उतना अधिक मेरे से पाओगे । शारीरिक तौर पर तो सीमित ही झुका जा सकता है, लेकिन मन से तो कोई सीमा नहीं है । मन से झुकना सीखिए, हृदय से झुकना सीखिए ।
परमात्मा को ऊपरी ऊपरी बातें बिल्कुल पसंद नहीं है । बहुत झुक कर प्रणाम कीजिए, आशीर्वाद परमात्मा के लीजिए, सीधे होकर बैठ जाइए । सीधे होकर कैसे बैठना है, जैसे चौकड़ी लगाई है, अपने हाथों को बेशक ऐसे रखिए, ऐसे रखिए, ऐसे रखिए, या ऐसे रखिए, कोई फर्क नहीं
पड़ता । फर्क इस बात का पड़ता है, महत्वपूर्ण बात यह है, जितनी देर ध्यान के लिए बैठना है, बिल्कुल निश्चल बैठना है, बिना हिले जुले बैठना है । दस मिनट बैठिए, पन्द्रह मिनट बैठिए, जहां हिलना जुलना हो जाएगा साधक जनों वहां ध्यान, ध्यान नहीं रहता ।
That is no more meditation,
वह जप कहिएगा या कुछ भी कहिएगा, लेकिन ध्यान में आप निश्चल होने चाहिए, बिना हिले जुले होने चाहिए । इसीलिए ध्यान की अवधि थोड़े समय के लिए रखो ।
शुरू शुरू में दस, पन्द्रह मिनट जितने में आनंद आए, जितने में मजा आए, उतना समय रखो । बहुत कसरत करने की जरूरत नहीं । परमात्मा कसरत से नहीं मिलते, परमात्मा प्रेम से मिलते हैं । जितनी देर तक आनंद परमात्मा को दे सको दो, उनसे आनंद ले सको लो । यह दोनों आनंद लेने और देने की चीज है, ध्यान का समय ।
ऐसे बैठकर साधक जनो आपने झुक कर प्रणाम कर लिया, आशीर्वाद ले लिए, ऐसे बैठकर आंख बंद करके तो, स्वामी जी महाराज फरमाते हैं दो आंखों के बीच यह त्रिकुटी स्थान, बिंदी वाली जगह, आज्ञा चक्र, भगवान शिव का तीसरा नेत्र, आप सब का तीसरा नेत्र भी यही है । आंख बंद करके इस जगह को देखिएगा ।
Focus your gays at this point.
बिंदी को नहीं देखना, बिंदी वाली जगह को देखना है । यह बाह्य संकेत है देवियो सज्जनो । यह जो बाहर की चीज आपको कही जाती है, यहां देखने के लिए यह बाह्य चिन्ह है । जो कुछ आपको परमेश्वर की कृपा से जब कहीं कुछ दिखाई देगा, या परमात्मा दिखाएगा, वह सब कुछ इसके पीछे हैं, यह बाह्य संकेत है ।
कुंडलिनी शक्ति नीचे से उठती है, ऊपर आती है, यहां तक आती है, और फिर मुड़ती है, इस तरफ जाकर तो फिर ऊपर तक पहुंचती है । यहां से route देखने में बहुत थोड़ा है, पर बहुत लंबा है । जब तक साधक जनों कुंडलिनी यहां से हिलती नहीं है, तब तक आदमी किसी समय भी पतन को प्राप्त हो सकता है । हम लोग अधिकांश यही टिके हुए हैं, इसलिए रोज गिरना होता है, रोज उठना होता है । किसी दिन ध्यान अच्छा लग जाता है, किसी दिन जोर लगाने पर भी ध्यान नहीं लगता । एक सप्ताह बहुत जल्दी-जल्दी परमेश्वर कृपा से जगना हो जाता है, उसके बाद पूरा सप्ताह ऐसा निकल जाता है, या कुछ दिन ऐसे निकल जाते हैं, आंख ही नहीं खुलती । यह सब इन्हीं कारणों से । जब तक कुंडलिनी यहां से, साधक जनो कहते हैं गुरु कृपा से होती है, जब तक यह यहां से इसकी movement नीचे से ऊपर की तरफ नहीं आती, या यहां से move नहीं करती कुंडलिनी, तब तक साधक जनों पतन का भय बना रहता है।
कल आपसे यह भी अर्ज की जा रही थी, इस स्थान पर क्या देखना है ? स्वामी जी महाराज दीक्षा देते वक्त तो इतना ही कहते हैं इस स्थान को देखिएगा । फिर कुछ वर्षों के बाद अधिष्ठान जी देते हैं, तो इसका अर्थ यह है “राम” शब्द पर देखिएगा । राम शब्द पर देखिएगा या जो भी कोई आपके इष्ट हैं उन्हें देखिएगा । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता साधक जनो ।
हमने राम को ही देखना है, चाहे उन्हें कृष्ण रूप में देखिए, यह बात बहुत पल्ले बांध लो समझने की बात है साधक जनों, यहां तक पहुंचना होगा । हमने यहां किनको देखना है राम को देखना है, निराकार । कौन राम ? निराकार राम को देखना है । आप उन्हें धनुषधारी राम के रूप में देखिए, आप उन्हें बांके बिहारी के रूप में देखिए, उन्हें शिव पार्वती के रूप में देखिएगा, मां लक्ष्मी के रूप में देखिए, मां सरस्वती के रूप में देखिए, मां काली के रूप में देखिए, चतुर्भुज भगवान के रूप में देखिए, हनुमान जी के रूप में देखिए, मानो जो भी आपको प्रिय स्वरूप लगता है, आप उस रूप में
देखिएगा । मत भूलिएगा यह कौन हैं ? रामजी का यह स्वरूप, हम संबंधित सिर्फ रामजी से हैं । यह सत्य है साधक जनों जब तक इस सत्य की अनुभूति नहीं होगी, तब तक दुविधाएं बनी रहेगी ।
कहां जा रहे हैं वृंदावन, बांके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए । लेकिन यदि यह बात हो जाए साधक जनो मानो राम और बांके बिहारी जी दो हैं, जब तक यह बात हृदयंगम नहीं हो जाती नहीं, मैं राम जी के बांके बिहारी रूप के दर्शन करने जा रहा हूं, तो बससस सत्य तक पहुंच गए, बिल्कुल देरी नहीं है ।
जाइए हनुमान जी के मंदिर में, जाइए मां वैष्णो देवी की यात्रा करने के लिए ।
कहीं भी जाइएगा, तब कुछ नहीं ।
लेकिन जब तक यह बात आपको स्पष्ट नहीं होती, यह सब बातें देवियो सज्जनो स्पष्ट होती हैं व्यक्ति को गहन ध्यान में । यह सत्य है और सत्य जो है वह बहुत deep seated है । वह ऊपरी ऊपरी नहीं है ।
It’s not superficial जैसे ही आप ध्यान अवस्था में भीतर भीतर deep, deep, deep, जाते हैं तो वह सत्य खुलता जाता
है । परमात्मा अपने भेद मानो, सत्य, कौन परमात्मा ? परमात्मा अपने भेद खोलता जाता है, भक्त को खोलता है । हर एक को वह अपने भेद नहीं देता । जो close संबंधी हो जाता है, उसे अपना भेद देता है ।
आज आपकी सेवा में बहुत भेद की बात कही जा रही है देवियो सज्जनो ।
बहुत सारी दुविधाएं आपकी मिट जाएंगी, द्वैत मिट जाएगा, द्वैत बिल्कुल खत्म हो जाएगा, infact यह द्वैत नहीं है । हमारा तो, हम तो बहुत सारों को मानते हैं ।
द्वैत तो दो का होता है, लेकिन हम तो
अति हैं । कोई ऐसा नहीं जिसको हम नहीं मानते । हम शनि महाराज की भी उपासना करते हैं, नवग्रह की भी उपासना करते हैं, हम इसकी भी आरती करते हैं, उसकी भी आरती उतारते हैं, उसकी भी आरती उतारते हैं, सिर्फ भय के कारण । यदि इनका ऐसा ना किया तो कहीं हमारा अनिष्ट ना हो जाए। इसे भय भक्ति कहा जाता है ।
यह भक्ति नहीं है ।
मन में यह विचार हो तो इससे जिसके लिए आप कर रहे हो, वह भी प्रसन्न होता है, अन्यथा वह हमारी मूर्खता पर, हमारी अज्ञानता पर, हमारे अधूरेपन पर हंस देता
है । देवी देवताओं की पूजा करने वाले अविधि से मुझे पूजते हैं, विधिपूर्वक भगवान श्री ने नहीं कहा । सही ढंग से नहीं कहा । अविधि से, अविधि पूर्वक, मेरा पूजन करते हैं । मानो उन्हें यह बोध नहीं है जो अभी आपकी सेवा में कहा जा रहा है, हम एक राम के उपासक हैं, बाकी सब उनके रूप हैं। यह सत्य है, यह परम सत्य है । इसको आज मानिएगा, कल मानिएगा, अगले जन्म में मानिएगा, उसके बाद जन्म में मानिएगा, यह आपको मानना ही पड़ेगा ।
यह सब बातें साधक जनो स्पष्ट होंगी, जिस वक्त आप आंख बंद किए हुए आप त्रिकुटी स्थान को देख रहे हैं । अब परमात्मा का संस्पर्श मिलना शुरू हो जाता है । सानिध्य, समीप्य, फिर संस्पर्श । मानो आप महसूस करने लग जाते हो, कि परमात्मा का स्पर्श मुझे मिल रहा है । संस्पर्श उसे कहा जाता है। बससस यहीं से यात्रा का शुभारंभ होता है, यहीं से भेद खुलने शुरू हो जाते हैं।
इससे पहले मत प्रतीक्षा कीजिएगा, मत अपेक्षा रखिएगा । प्रतीक्षा कीजिएगा बेशक, लेकिन इससे पहले अपेक्षा नहीं रखिएगा । लोहा चुंबक को छुएगा तो चुंबक बनेगा ।
दूर रहने से, जितनी दूरी है, वह लोहा, लोहा ही रहेगा, चुंबक नहीं बन सकता । अतएव यह संस्पर्श बहुत सुंदर शब्द है, जैसे ही परमात्मा के साथ यह संस्पर्श आपको प्राप्त होता है, आप तत्काल वही बन जाते हो । आपके सामने सारे के सारे भेद अपने आप खुलने लग जाते हैं । सारी की सारी परतें जो ऊपर हैं, वह खुलने लग जाती हैं, वह उतर जाती है ।
ज्योति, ज्योति में समा जाती है ।
ज्योति, ज्योति से मिल जाती है ।
आत्मा, परमात्मा से मिल जाती है ।
दोनों आत्माओं का मिलन हो जाता है ।
एक हो जाते हैं, अद्वैत हो जाता है ।
दो शून्य मिलकर, यह शून्य शब्द जो आपकी सेवा में प्रयोग किया जा रहा है, यह बहुत महत्वपूर्ण है । बंधुओं आप सब ध्यान में बैठते हो, मुझे कोई संदेह नहीं है ।
जितने भी थोड़े बहुत बैठते हो आप, कोशिश करते हो हमें यह शून्य अवस्था लाभ हो । यहां साधक जनो हमारा मार्ग दो में विभाजित हो जाता है । एक तो शून्य ही आप जप कर रहे हैं, ध्यान में जप बाधा नहीं है, यदि सही ढंग से किया जाए । सिर्फ जप आपका हो रहा है, यदि सांसारिक, भौतिक विचार कोई नहीं है, तो वह जप आपको बहुत सहायता देता है । ऐसा जप शून्य ही कहा जाता है । शून्य अवस्था ही कहा जाता है । क्यों ? भौतिक विचारों से रहित है । शून्य अर्थात भौतिक विचारों से रहित ।
साधक जनों पहले यह अवस्था प्राप्त कीजिएगा । उसके बाद समय आता है, जब व्यक्ति गहन जाता है, deep जाता है, और उसे शांति और आनंद का अनुभव होने लग जाता है । फिर अपने आप जप भी बंद हो जाता है । यह अपने आप करना नहीं, क्योंकि आज आपको बताया जा रहा है इसलिए हम जप बंद कर देते हैं । नहीं ।
यह ठीक नहीं है, इसे अपने आप बंद होना चाहिए । अपने आप बंद होने पर यह दूसरी शून्य अवस्था आपको लाभ होने जा रही हैं। महाशून्य अवस्था लाभ होने जा रही है, जो परमात्मा की है, वही आपकी होगी । तो परमात्मा से आप का मिलन हो पाएगा । दो शून्य एक हो जाते हैं । अध्यात्म में, ध्यान अवस्था में, दो शून्य मिलकर एक हो जाते
हैं । आप परमात्मा का, ऐसे को ही परम ज्ञानी कहा जाता है, ऐसे को ही ब्रह्म वेक्ता कहा जाता है ।
तो साधक जनों कल तो नहीं, परसों राजा अश्वपति की चर्चा करेंगे । ब्रह्म ज्ञानी है वह । उन्हें आत्मसाक्षात्कार, उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हो चुका हुआ है । छांदोग्य उपनिषद में उनकी बहुत सुंदर कथा आती है। परसों करेंगे यह बात । कल तो जप शुरू होगा । कल तत्काल जप के बाद ध्यान में हम बैठ जाएंगे । कल तो जप चलता रहेगा। बाकी दिन साधक जनों जैसे आज था,
आज भक्ति प्रकाश का पाठ हुआ, उसके बाद हमें ध्यान के लिए बैठना था । जिस दिन बैठेंगे ध्यान के लिए बैठेंगे, उस दिन ध्यान की बात जो भी अमृतवाणी का नेतृत्व कर रहे हैं, जैसे ही समय होगा वह
“सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः” का पाठ शुरू कर देंगे । तो कार्यक्रम की, सत्संग की समाप्ति हो जाएगी ।
मैं दूसरी दफा राम नहीं बोलूंगा । पहली बार बोलूंगा । उसके बाद नहीं बोलूंगा । उसके बाद जो नेतृत्व करने वाले हैं, वह समय के अनुसार अपनी समाप्ति कर लें, तो हमें पता लग जाएगा सत्संग की समाप्ति हुई है । तो साधक जनो समय हो गया है । यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा ।
आप जरूर कोशिश कर रहे होंगे कल से । बहुत लंबी यात्रा है देवियो सज्जनो । जप को हम बहुत seriously नहीं लेते ।
सो जप में हम बातें भी करते रहते हैं, टीवी भी देखते रहते हैं, इधर भी देखते हैं, उधर भी देखते हैं, इसकी भी बात सुनते हैं, इनकी भी । हमें बाहर क्या हो रहा है सब पता रहता है । काश ! हमने जप को महत्व दिया हुआ होता, तो हमारे लिए ध्यान बहुत आसान हो जाता । जप के वक्त यदि आप अपनी खिड़कियां दरवाजे बंद कर के रखते हैं, तो फिर ध्यान में अपने खिड़कियां द्वार बंद करने कोई कठिन आपको महसूस नहीं होगी । अन्यथा ध्यान में बहुत कठिनाई आएगी, आती है । कठिनाइयां आएंगी तो साधक जनों कुछ पता लगेगा कि कितना जटिल मार्ग है, कितना कठिन मार्ग है । कितनी गलतियां हम करते रहे हैं और कितनी गलतियां हम करते जा रहे है ।
अभी भी गलतियां बंद नहीं हुई ।
बहरहाल शुभकामनाएं साधक जनों ।
अपेक्षा रखता हूं कोई ना कोई साधक तो अपनी सही समस्या लेकर मेरे सामने
आएगा ।
18 साल हो गए हैं साधक जनो,
किसी एक व्यक्ति ने, आज तक लाखों की संख्या में साधक हो गए हैं, किसी एक व्यक्ति ने आज तक अपनी कोई ध्यान की समस्या मेरे साथ discuss नहीं की । आंखें बिछाए बैठा हूं, कोई तो आकर सही समस्या मेरे साथ आकर discuss करे ।
चालीस लाख का लोन हो गया है, एक करोड़ का लोन हो गया है, मैं क्या करूं इसमें । परमात्मा क्या करेंगे उसमें ? ऐसी समस्याओं का क्या किया जाए ।
Waste of time
जिन समस्याओं के लिए, यहां सुलझाने के लिए यहां आते हैं, वह समस्याएं तो वैसे की वैसे ही बनी हुई है, और उनको सुलझाने का कोई प्रयत्न ही नहीं है किसी का । शुभकामनाएं देवियो सज्जनो, मंगलकामनाएं सबको । परमेश्वर की कृपा, मेरे गुरुजनों की कृपा, अपार कृपा, उनके आशीर्वाद, सदा सदा सदा सब पर बने रहे ।