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ध्यान 10

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ।

((476))

ध्यान पर चर्चा

भाग-१०

बैठ जाएं सब सीधे होकर, करो जी पीठ सीधी, आंख बंद करो । कल भी जाप है साधक जनों । कल ध्यान की बैठक ना रख कर तो, दो शब्द आपकी सेवा में श्री रामायण जी पर बोल दिए जाएंगे । आंख बंद करो बेटा। पीठ सीधी रखें जी, बंद आंख, देखें त्रिकुटी स्थान को। देखते रहे भीतर ही भीतर, भीतर विराजमान परमात्मा को बहुत प्रेम पूर्वक याद कीजिए । विपत्तियों का पहाड़, दुखों का सागर भी एक साधक को दुखी नहीं कर सकता, यदि इस बोध को वह स्वीकार कर लेता है;

वह सर्वसमर्थ परमात्मा,

वह मेरा परमात्मा,

सब सुखदाता परमात्मा,

सर्व संकटहारी परमेश्वर,

वह सर्वज्ञ, सर्वसमर्थ, करुणानिधि, मेरे भीतर ही तो विराजमान है । वही तो मेरा अपना है । वह मेरे अंग संग है । कौन सी ऐसी मुसीबत है, कौन ऐसी समस्या है, कौन सा ऐसा दुख है, जो परमात्मा के होते हुए मुझे दुखी कर सकेगा ?

हे परमेश्वर ! यदि यह सत्य है, तो फिर मुझे दुख क्यों है, फिर मैं दुखी क्यों हूं,

मैं उदास क्यों हूं,

मुझे चिंता क्यों होती है,

क्या कमी है मेरे अंदर,

क्या मेरा विश्वास पूर्ण नहीं है, क्या मैंने कभी तुम्हें अपना माना नहीं,

क्या मुझे यह विश्वास है कि तू मेरे अंदर विराजमान है,

क्या मुझे यह विश्वास है कि तू सब की सब कुछ जानता है, क्या मुझे यह विश्वास है कि तू सर्वसमर्थ है, असंभव को संभव बनाने वाला है तू,

राम क्या मुझे यह विश्वास है, क्या मुझे यह विश्वास है की सारे संसार के दुखों को देखकर वह परमात्मा कितना दुखी होता है ।

मुझे इस प्रकार का विश्वास है,

क्या मैंने तुझे कभी अपना माना है, आप मेरे हो ?

लगता है परमात्मा आप कुछ बोलो ना बोलो, मैं अपनी कमियों को जानता हूं । यही मुख्य कारण है मेरे दुख का ।

जो आप सत्यता हो, मैंने कभी स्वीकार ही नहीं किया, मैंने कभी माना ही नहीं, मुझे कभी ऐसा विश्वास ही नहीं हुआ, इसीलिए दुखी हूं, इसीलिए भटकता फिर रहा हूं, इसीलिए उदास रहता हूं, इसीलिए छोटी-छोटी बातें मुझे विचलित कर जाती हैं, दुखी कर देती हैं, उदास कर देती हैं ।

तुझे अपना मान कर तेरे साथ जुड़ा रहूं, तो फिर बड़ी से बड़ी विपत्ति भी मुझे कभी हिला नहीं सकेगी, मुझे स्पर्श तक नहीं कर सकेगी । वह विपत्ति, वह दुख नहीं जानते कि तू कितना महान है,

तू कितना बड़ा है ।

मेरा विश्वास ही डगमगाने वाला है, तो विपत्ति मुझे जकड़ लेती है, दुख मुझे जकड़ लेता है, और मुझे दुखी कर देता है ।

दोष मेरा है परमात्मा, दोष मेरा है । मेरे अंदर विश्वास की नितांत कमी है ।

यह सत्य मैंने स्वीकारा ही कभी नहीं ।

हे दुख हर्ता, हे सर्व सुख दाता परमात्मा,

आज तेरे दरबार में बैठा हुआ तेरे से भीख मांगता हूं । परमेश्वर जो आप हो उसका बोध मुझे दो । मात्र बोध ही नहीं, मैं उसे राम इच्छा स्वीकार करूं । कभी मेरे मन में तनिक भी शंका ना हो । आज दिनभर साधक जनों जाप करोगे, यह विश्वास आना, परमात्मा की जानकारी, फिर उस पर विश्वास करना, यह कोई आसान काम नहीं है ।

प्रवचन देना बहुत आसान, समझाना बहुत आसान, लेकिन इसे जीवन में उतारना अति दुष्कर है ।

ना जाने दिन में कितनी बार, इतना विश्वास नहीं होता, जितना अविश्वास होता है । कितने अविश्वास के कितने क्षण, कितने मिनट हमारे जीवन में बने रहते हैं । विश्वास कम, अविश्वास कहीं ज्यादा ।

आज जाप करो उस बलदाता से, उस बल के स्रोत से आज यही बार बार कहो, मैं बलहीन हूं इसमें कोई संदेह नहीं । लेकिन आज से बल दाता मेरा है । उसे अपना स्वीकार करो, उसे अपना मानो । वही है देवियो सज्जनों अपना । उसके सिवाय अपना कोई नहीं है । यह जब से हमने परमात्मा को छोड़कर दूसरों को अपना मान लिया है, तभी से दुख का जंजाल फैल गया है और यह बढ़ता ही जा रहा है, यह फैलता ही जा रहा है । परमेश्वर तू मेरा है, मैं तेरा हूं। तू मेरा है, मैं तेरा हूं ।

सात बार बोल कर माला फेरो। लंबा श्वास लेकर, थोड़ा समय श्वास अल्पकाल के लिए श्वास रोको, उस वक्त फिर यह बोलो –

हे राम मैं तेरा हूं, तू मेरा है। फिर जप करो ।

आज दिन भर इसी प्रकार व्यतीत करो । साधक जनों एक सप्ताह इस प्रकार से की हुई साधना, एक सप्ताह के लिए इस प्रकार से किया हुआ प्रयास, बहुत लाभ देगा। परमेश्वर आपको समत्व प्रदान करेगा, परमेश्वर आपको अपने गुण प्रदान करेगा । दुर्गुण अपने आप दूर हो जाएंगे । अपना विश्वास प्रदान करेगा तो अविश्वास अपने आप भाग जाएगा । यह अविश्वास ही है साधक जनों हमारे दुख का कारण । बहुत दुखी करता है यह, बहुत दुखी करता है यह ।

तनिक कुछ अप्रिय घटित हो जाता है, जो दिन में घटित होता ही रहता है, हमारा विश्व डगमगा जाता है, हम डावांडोल हो जाते हैं, विचलित हो जाते हैं, और परमात्मा बेचारा निस्सहाय हो जाता है । इसकी जुड़ी हुई तार, इसने तोड़ डाली है । मैं क्या करूं? मैं किस प्रकार से इसके अंदर प्रविष्ट होऊं ?

वह भीतर विराजमान बैठा हुआ,

यह मुझे मानता नहीं है कि मैं इसके भीतर हूं इसके । मैं क्या करूं इसका । ना जाने, कितनी बार प्रेम पूर्वक, कितनी बार चोटे मारकर तो मैं इसे समझाता हूं, बताता हूं, अरे मैं भीतर विराजमान हूं ।

तू मेरे साथ अपना संपर्क क्यों तोड़ता रहता है, क्यों बाहर जाता है, क्यों बाहर भटकता है ? जो तुझे चाहिए वह सब कुछ मेरे पास है, और मैं देने को तैयार हूं ।

हे राम तू मेरा है, मैं तेरा हूं,

मैं तेरा, तू मेरा राम,

मैं तेरा, तू मेरा राम,

मैं तेरा, तू मेरा राम ।

सात बार बोल कर जप कीजिएगा, लंबा श्वास लेकर। इस सब में अल्पकाल के लिए श्वास को रोकते हुए, उसे कुंभक कहा जाता है, नहीं रोकते तो रोको उसे । रोक कर फिर सात बार बोलो

मैं तेरा, तू मेरा राम,

मैं तेरा, तू मेरा राम,

मैं तेरा, तू मेरा राम

और फिर माला फेरो । एक सप्ताह के लिए साधक जनों, आज से शुरू करके देखो । परमात्मा हम सब को लाभ दे, हम सबको लाभ दे, हम सब को अपने श्री चरणों में, अपने नाम में विश्वास दे, विश्वास दे, विश्वास दे, विश्वास दे ।

रामममममममम…..

ध्यान 9

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।

((475))

ध्यान पर चर्चा

भाग-९

परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, मन ही मन करे झुक कर प्रणाम परमेश्वर को, गर्दन झुका कर करें प्रणाम और बैठ जाएं सीधे होकर ध्यान के लिए । करें जी आंख बंद, पीठ सीधी रखें, आंख बंद करें जी, please close your eyes, आंख बंद करो बेटा । देखें जी त्रिकुटी स्थान को, focus your eyes at the space between two eyebrows.

बहुत जोर नहीं लगाना, बड़े प्रेम पूर्वक इस महत्वपूर्ण स्थान को देखिएगा, देखते रहिए । भीतर ही भीतर प्रियतम परमात्मा को याद कीजिए । पुकारना चाहते हो पुकारिये, याद करना चाहते हो याद कीजिए । आज का प्रसंग याद कीजिए ।

मां के प्रेम का केंद्र राम,

पुत्र कहिए या परमात्मा, लक्ष्मण की प्रीति का केंद्र राम,

भाई कहिए या भगवान । दोनों की पीड़ा,

एक की वात्सल्य के रूप में उमड़ रही है,

दूसरे की पीड़ा क्रोध के रूप में उमड़ रही है ।

प्रीति का केंद्र राम ।

ऐसी ही देवियो सज्जनों हमारी ध्यान अवस्था होनी चाहिए । हमारी प्रीति का केंद्र राम हो जाए । इस वक्त हमारी प्रीति का केंद्र हमारा “देह” । इस देह से प्रीति, इस देह से तदात्म्य नहीं छूटता । इसीलिए इस देह के ऊपर जो चढ़ी हुई उपाधियां है, वह भूलती नहीं ।

डॉक्टर को डॉक्टरी याद रहती है ।

इंजीनियर, उच्च अधिकारी, ब्राह्मण, अमीर, गरीब, उत्कृष्ट, निकृष्ट, पापी, पुण्य आत्मा, सुंदर, कुरूप, यह सब उपाधियां जिनका संबंध देह के साथ है, यह भूलती नहीं है । एक साधक की व्यथा का कारण यह ।

एक सच्चा साधक, एक ईमानदार साधक तड़पता है, व्यथित होता है । उसे पीड़ा, सुख सुविधाएं नहीं है । यह पीड़ा इतनी व्यथित नहीं करती, जितनी यह कि मेरा देह के साथ तादात्म्य छूट नहीं रहा । एक सच्चे साधक की पीड़ा, व्यथा, इस प्रकार की होनी चाहिए । परमात्मा उसकी निष्ठा को देखकर, उसकी ईमानदारी को देखकर, उस पर द्रवित होता है ।

जब तक देह याद रहेगा, रोगों को भी नहीं भूल पाओगे । हर रोग पीड़ा देगा, हर रोग उपचार के लिए इधर-उधर भटकाएगा । एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास, एक पद्धति से दूसरी पद्धति,

पर देह से तदात्म्य नहीं छूटेगा तो देह की समस्याओं से भी छुटकारा नहीं मिलेगा ।

साधक तो यह याद रखें, जन्म जन्मांतर भी आज तक किसी की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ । यह कार्य इतना ही जटिल है, जितना एक कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधा करना । जैसे वह संभव नहीं है, वैसे ही समस्याओं का समाधान, या इनसे छूट जाना भी संभव नहीं है । ईमानदार साधक इस यथार्थता को बहुत अच्छी तरह से जानता है ।

पुत्र का विवाह नहीं हो रहा ।

हो गया, एक समस्या का हल हो गया । पुत्र बहुरानी की बनी नहीं, divorce हो गया। एक समस्या का हल हुआ था, अनेक समस्याएं और खड़ी हो गई । साधक इस यथार्थता को बहुत अच्छी तरह से जानता है ।

वह एक अपनी मुख्य समस्या, महानतम समस्या को बार-बार याद रखता है, इस देह से मेरा तदात्म्य नहीं छूट रहा । देह से तादात्म्य अर्थात देहाभिमान । विशाल सागर, जो इसे लांघ जाता है, वह परम शांति को प्राप्त कर लेता है, वह परमात्मा को कर लेता है, वह परमानंद को प्राप्त कर लेता है । उसकी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है ।

हनुमान जी महाराज लांघ गए उस सागर को, तो मातेश्वरी सीता के दर्शन हो गए, पा लिया उन्हें । उन्होंने उसे पुत्र बना लिया अपना । शेष सभी वानर सागर के इस और बैठे हुए हैं, चूकि वह सागर पार नहीं कर सके, इसलिए सीता का दर्शन नहीं कर पाए ।

साधक की व्यथा, महानतम समस्या, इस शरीर से मेरा तदात्म्य नहीं छूट रहा । इस शरीर की आवश्यकताओं को कौन पूरा कर सकता है ? एक सुख सुविधा को आप प्रदान कीजिएगा इसे, इतना आदी हो जाएगा; जिंदगी भर आप सुख सुविधाएं ही इसे प्रदान करते रहिएगा, लेकिन यह संतुष्ट नहीं होने वाला । यह सब देह के रोग हैं ।

सिर की पीड़ा तो याद रहती है, लेकिन इन रोगों की तरफ सिर्फ उसी का ध्यान जाता है, जो एक ईमानदार साधक होगा; जो लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है ।

शेष तो इसी की सेवा में जिंदगियां व्यतीत कर देते हैं । देह के दास, अपनी देह के दास । अपनी देह से जुड़ा हुआ व्यक्ति, फिर इस देह के साथ जो जुड़े हुए संबंध हैं, उनकी समस्याओं से भी छुटकारा नहीं पा पाता ।

कौन मां है जो अपनी पुत्री की समस्या से रहित हो, छूट जाए उससे । पुत्री की समस्या, मां की समस्या पहले बनती है, किसके कारण ? इस देह के तदात्म्य के

कारण । यह देह भाव हमारा मिट नहीं रहा, एक ईमानदार साधक की महानतम

समस्या । परमेश्वर से व्यक्ति जुड़े, तो देहभाव मिटे । देहभाव त्यागना बहुत कठिन, परमेश्वर को पकड़ना बहुत सहज ।

अपना दायां पांव आगे रखो फिर बाये को उठाना, नहीं तो लड़खड़ा जाओगे, लुढ़क जाओगे ।

भक्ति का मार्ग हमें सिखाता है, परमेश्वर को पहले पकड़ो, उसे पकड़ना सीखो, उससे प्रीति करना सीखो, उससे प्रीति करो, वह देह से आपका राग अपने आप तुड़वाएगा । उसे बीच में कोई चाहिए नहीं । पूर्ण प्रेम उसे देना है, तो आपका प्रेम औरो से तुड़वाएगा वह ।

यही समय है देवियो सज्जनों जिस वक्त आपकी तार परमात्मा से जुड़ती है, और जुड़ते ही आप अपने आप को परमात्मा के सामने खोल देते हो । जो चाहिए वह मांग लेते हो । वह सहर्ष देता है । भक्त सुन मेरी बात-

ऐसा कुछ नहीं है जो तुझे चाहिए और मैं तुझे देऊं ना । जो कुछ तुम्हें जीवन में चाहिए, वह सब कुछ मेरे पास है, और मैं देने को तैयार हूं । मेरे साथ जुड़ने की आवश्यकता है ।

यही समय है देवियो सज्जनों, जब आप की पुकार परमात्मा सुनता है । उससे तार जुड़ी नहीं तो किस से प्रार्थना कर रहे हो ? संसार

से । वह पुकार परमात्मा के लिए नहीं होती । तदात्म्य नहीं टूटता । प्रीति और बढ़ाइए । तदात्म्य तोड़ने के लिए परमात्मा से गिड़गिड़ाइए । परमात्मा अवश्य सहायता करता है । आपकी सेवा करता है । तार जुड़ जाती है तो कहते हैं, परमात्मा भक्त के पीछे पीछे घूमता है । भक्त कुछ तो बोल क्या सेवा करूं तेरी ?

रामममममममम………

ध्यान 8

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((474))

ध्यान पर चर्चा

भाग-८

अपने अपने ग्रंथों को अपनी अपनी गोद में रख कर बैठ जाएं सीधे होकर, ध्यान मुद्रा में बैठे, पीठ रखे सीधी, आंख बंद करें, देखें त्रिकुटी स्थान को space between two eyebrows, खासना बंद करें, हिलना जुलना भी बंद करें थोड़े समय के लिए, focus your gays at agyachakra. बहुत प्रेम पूर्वक इस जगह को देखते रहिए । सोच के सारे द्वार बंद करें, खिड़कियां बंद करें, भौतिक सोच ना आए । परमेश्वर को इतना याद करें, भीतर ही भीतर देह से तादात्म्य टूटे । बिसर जाएं कि हम देह हैं । देह याद ना रहे, देह के रोग याद ना आवे, देह की समस्याएं बेचैन ना करें । केवल परमेश्वर का स्मरण हो, सतत हो ।

होने में कठिनाई है, परमेश्वर से याचना कीजिए ।

परमेश्वर जीवनदीप कब बुझ जाएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता । बार-बार रोग का आना यहीं दर्शा रहा है, जीवनदीप बुझने को तैयार है। कुछ तो सुध लो हमारी ।

क्या तुम्हें पाए बिना ही चले जाएंगे,

क्या तुम्हें जाने बिना ही चले जाएंगे,

क्या तुझे बिना मिले ही चले जाएंगे,

क्या यह आत्मा तेरे बिना रोता ही वापस चला जाएगा, कब सुध लोगे हमारी ?

भीतर विराजमान परमात्मा हमारी पुकार सुनो, हमारे ऊपर तरस करो

परमेश्वर । काश ! तेरे अतिरिक्त कोई और सुनने वाला होता तो सुनाते,

कोई और द्वार होता तो खटखटाते ।

कोई सुनेगा भी तो क्या कर लेगा ? तेरी तरह समर्थ तो कोई नहीं । तू भी हमारी अरदास ना सुनेगा तो फिर कौन सुनेगा ? क्या हमारी दुर्दशा पर तुम्हें तरस नहीं आता । एक ही चीज तेरे से मांग रहे हैं, तेरा सतत स्मरण बना रहे । कोई तेरे से सांसारिक वस्तु या व्यक्ति नहीं मांग रहे । एक ही चीज मांग रहे हैं, तेरी याद नित्य, निरंतर, सतत बनी रहे । यह तू ही कर सकता है ।

काश ! यह चीज बाजार से मिलती होती तो खरीद लेते, विदेश से मिलती होती तो मंगवा लेते । यह तेरे पास ही है ।

तेरी कृपा पर हम सब निर्भर। बेसहारा है । हमारी पुकार सुन ले परमात्मा, दया की भीख मांगते हैं । यह शरीर से, यह देह से तादात्म्य नहीं टूटेगा तो जीवन वृथा चला जाएगा । इसी के कारण रोगो की बार-बार याद आती है, शरीर के संबंधों की बार-बार याद आती है, शरीर की समस्याओं की बार-बार याद आती है । यह सब तेरी याद बनाए रखने में बहुत बड़ी बाधा ।

कौन इस बाधा को हरेगा, कौन इस विघ्न बाधाओं को खत्म करेगा,

कौन है तेरे जैसा बलवान, कौन है तेरे जैसा सर्वसमर्थ। क्यों हम गरीबों की पुकार नहीं सुनते ?

हे दयालु, हे कृपालु, मेहर करो हमारे ऊपर, मेहर करो परमेश्वर । दया करो बहुत बीत गई, बहुत बीत गई परमात्मा । कल की इंतजार करनी भी बहुत कठिन लग रही है । कल आए, ना आए, कौन जानता है । जो करना हो अभी कर ।

तू सर्वशक्तिमान है, दयालु है, कृपालु है, सब कुछ करने में समर्थ है । हम कोई चीज तेरे समर्थ से बाहर नहीं मांग रहे। सब कुछ तेरे आधीन है परमात्मदेव । हमारे रोते हुए के आंसू पौंछ, दया कर हे दयालु, मेहर कर हमारे ऊपर। तेरे आसरे जीवन काट रहे हैं। शेष जीवन तुम्हें समर्पित ।

हार गए हैं, थक गए हैं परमात्मा । हार कर थक के तेरे से यह विनय है,

शेष जीवन परमात्मा तेरे समर्पित। जैसे रख स्वीकार

है ।

पर एक बात याद रखना, समर्पित होते भी तुम्हें याद दिलाते रहेंगे परमेश्वर ।

क्या तेरे बिना ही चले जाएंगे, तुम्हें जाने बिना ही चले जाएंगे,

तुम्हें पाए बिना ही चले जाएंगे,

तुम्हें मिले बिना ही चले जाएंगे, तो जीवन तो फिर किसी काम का ना हुआ । इससे बेहतर होता कि जीवन देता ही ना तू । ना हम संभाल सके, ना तूने संभाला, तो फिर जीवन व्यर्थ ही गया । जीवन में कुछ नहीं पाया, यदि तुम्हें नहीं पाया ।

तुम्हें नहीं जाना तो जीवन में कुछ नहीं पाया, ना ही कुछ जाना ।

देवाधिदेव हाथ जोड़कर विनती कर रहे हैं तेरे द्वार पर, आज के बाद कभी तेरा विस्मरण ना हो । इस देह को याद कर कर के क्या करेंगे ? इसकी याद दुखदाई,

तेरी याद महासुखदाई ।

बहुत दुखी होकर, आज बड़े आद्र होकर, आज तेरे द्वार पर दस्तक दे रहे हैं ।

हाथ जोड़े, हाथ बांधे, आंख मूंदे, तेरे समक्ष बैठे हुए हैं परमात्मा । इस जीवन की बागडोर संभाल परमेश्वर, यह जीवन वृथा ना चला जाए ।

पुन: कहूंगा मेरे राम,

कोई पता नहीं यह जीवनदीप किस समय बुझ जाए । इससे पहले कि जीवनदीप पूर्णतया बुझ जाए, इस टिमटिमाते हुए लौ को संभाल परमेश्वर । इस टिमटिमाते दीयों को पुन: जीवन दे ।

अपनी स्मृति का तेल डाल इसमें,

अपने स्मरण का तेल डाल, ताकी यह दीपक पूर्णतया जगमगाने लग जाए ।

रामममममममम…….

ध्यान 7

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((473))

ध्यान पर चर्चा

भाग-७

बैठे सब सीधे होकर । ध्यान मुद्रा में बैठिए । आंख बंद

रखें । आंख बंद करो जी ।

पीठ सीधी रखें । देखें जी त्रिकुटी स्थान को, प्रियतम परमात्मा को अपने अंग संग मानिए, त्रिकुटी स्थान को देखते रहिए । भीतर ही भीतर परमेश्वर का स्मरण करें । तेरा दिया किया परमेश्वर कभी चुका नहीं सकूंगा । तेरी मेहरबानियों की, तेरी इनायतों की सूची तैयार करने करने लगू तो परमेश्वर एक जन्म पर्याप्त नहीं है । कितना दयालु है तू, कितना कृपालु है तू । अतिशय करुणावान है

तू । इस समय प्रातः पाठ भी आप कर सकते हैं

“परमात्मा श्री राम परम सत्य प्रकाश रूप परम ज्ञानानंद स्वरूप सर्वशक्तिमान

एकैवाद्वितीय परमेश्वर परम पुरुष दयालु देवाधिदेव है, तुझको बार-बार

नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार नमस्कार ।

अनेक बार यह पाठ कर सकते हैं । ध्यान के अंतर्गत ही है यह । आप आंख बंद करो जी ।

ध्यान में साधक जनों नहीं बैठोगे यह । चंचल मन कभी अचंचल नहीं हो पाएगा । यह स्वयं भी भटकता रहेगा, आपको भी आजीवन भटकाता रहेगा । जन्म जन्मांतर भटकाता रहेगा । ध्यान में नहीं बैठोगे तो यह रोगी मन कभी निरोग नहीं हो पाएगा, यह मलिन मन कभी पवित्र नहीं हो पाएगा । खेल तो सारे मन के । देखें कितना महत्वपूर्ण है यह ध्यान ।

मन को पकड़ने का साधन, मन को सिधाने का साधन ध्यान, meditation, जो आप इस वक्त कर रहे हैं । दस-पन्द्रह मिनट सुबह, दस-पन्द्रह मिनट शाम को जरूर बैठा कीजिएगा । ध्यान में नहीं बैठोगे साधक जनों, परमेश्वर के प्रति प्रीति कभी पैदा नहीं होगी । पैदा हो चुकी है, तो ध्यान में नहीं बैठोगे तो प्रीति में कभी वृद्धि नहीं होगी, रुक जाएगी ।

How important is this meditation ? हमारे लिए ध्यान योगाभ्यास, साधारण व्यायाम अथवा प्राणायाम नहीं है । हमारे लिए तो ध्यान स्वामी जी महाराज के अनुसार वह समय है, जिस वक्त हम अपनी टूटी हुई तार को परमेश्वर से स्वयं जुड़वाते हैं, स्वयं जोड़ते हैं, गुरु से जुड़वाते हैं । परमेश्वर से जुड़वाइए, गुरु से जुड़वाइए, स्वयं जानते हो तो स्वयं तार जोड़ने का समय ध्यान ।

ध्यान वह समय जिस वक्त आप परमेश्वर की कृपा के पुण्य पात्र बन सकते हो,

जग जननी के वात्सल्य के पात्र बन सकते हो,

प्रियतम परमात्मा के प्यार के अधिकारी पात्र बन सकते हो आप । इस समय भी सब ध्यान में बैठे हैं । सात्विक वातावरण है, दिव्य वातावरण है, इसके बावजूद भी ध्यान लग तो नहीं रहा । मन तो अभी भी कहीं कहीं भटक रहा है । संसार में बार-बार ले जा रहा है । जितनी बार यह बाहर निकलता है, उतनी बार इसे वापस लाने का अभ्यास है ध्यान । बार-बार इसे परमात्मा के साथ जोड़ने का साधन है ध्यान ।

इससे पहले साधक जनों प्रत्येक साधक को निश्चल बैठने का अभ्यास करना चाहिए । दस-पन्द्रह मिनट बिना हिले जुले बैठ सको । हम तो इतने strict नहीं है, लेकिन जो meditation के students हैं, teachers हैं, वह तो यहां तक कहते हैं – ध्यान के समय किसी अंग पर थोड़ी खुजली हो रही है अपने मन को वहां मत ले जाइएगा, होने दीजिएगा । जहां साधक जनों आप हिल गए समझिएगा कि मन भी हिल गया । अतएव निश्चल, पूर्णतया निश्चल बैठने का अभ्यास कीजिए । पांव सो गए हैं, पिंडलियां सो गई हैं, इन्हें जगाने की जरूरत नहीं, जग जाएंगी यह । आप ध्यान पूरा समय बैठिएगा । पन्द्रह मिनट बैठ सकते हैं, पन्द्रह मिनट, आधा घंटा बैठ सकते हैं, आधा घंटा ।

ऐसा नहीं है साधक जनों, जिन साधको को ध्यान का चस्का लग जाता है, शौक लग जाता है, पन्द्रह मिनट के बाद हिलने की जरूरत पड़ती है तो वह हिल जाते हैं, उसके बाद फिर बैठ जाते हैं । त्रिकाल संध्या का विधान है सुबह, दोपहर एवं शाम ।

आप दिन में अनेक बार बैठिएगा । जितनी बार जप करने का अवसर मिलता है आपको, इधर उधर जाने की बजाए, इधर उधर भटकने की बजाय, यह अभ्यास बहुत मूल्यवान है । जितना लाभ इससे मिलेगा वह प्रवचन सुनने से नहीं मिलेगा, वह बड़े बड़े discourses सुनने से नहीं मिलेगा । सुन के करना तो आप ही को है । तो अभी क्यों नहीं करते ?

Meditation करने की चीज है भक्तजनों । इसमें आशीर्वाद का बहुत नग्नय स्थान है ।

Very insignificant. आशीर्वाद यही है, मार्गदर्शन एवं प्रेरणा जो मिलती है, करना आपको स्वयं ही है । करिए अपने आपको निर्विचार, करिए अपने आपको निर्विकार अथवा भरिएगा अपने हृदय को भगवद विचारों के साथ ।

Fill the heart up to brim. पूरा भर डालिएगा हृदय को भगवद विचारों से ।

राममममममम……..

ध्यान 6

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((472))

ध्यान पर चर्चा

भाग-६

प्रणाम, परमेश्वर को अपने अंग संग मान कर बैठ जाओ सीधे होकर । करें आंख बंद, बंद रखें । देखें त्रिकुटी स्थान को । बहुत प्रेम पूर्वक देखो । गर्दन ऊपर रखें जी आप सब, परमेश्वर के बिल्कुल आमने-सामने, रीढ़ की हड्डी सीधी, त्रिकुटी स्थान को बहुत प्रेम पूर्वक देखें । शांति देने वाला स्थान है यह, प्रेम देने वाला स्थान है यह । बहुत जोर लगाने की जरूरत नहीं । strain करने से headache हो जाएगी । जितनी देर देख सकते हैं देखें। उसके बाद यदि दृष्टि इधर-उधर भटक जाती है, पुन: लाने की कोशिश करें । पर सारी कोशिश इसी में ना लग जाए ।

भीतर ही भीतर प्रियतम परमात्मा को हृदय से पुकारे, बहुत प्रेम पूर्वक पुकारे । जैसे जन्म जन्मांतर से बिछड़े हुए को पुकारा जाता है, जैसे एक नन्हा मुन्ना बच्चा बिलख बिलख कर अपनी मां को पुकारता है । मां, युग बीत गए तुझसे बिछड़े हुए । महसूस करो कि आप जगजननी की गोद में बैठे हुए हो । अनुभव करो । यह सत्य है साधक जनों । इस यथार्थता को जितनी जल्दी समझोगे, सत्य के उतने ही निकट जाओगे, उतनी ही जल्दी परम शांति मिलेगी, सकल दुखों का निवारण हो जाएगा, परम विश्राम मिल जाएगा ।

परम विश्राम अपने घर में मिलता है, मां की गोद में मिलता है, उसी विश्राम की खोज में लगे हुए हैं हम सब ।

बहुत समय बर्बाद ना कीजिएगा अब । आप सब वहां पहुंचिएगा अपनी मंजिल पर । वह मंजिल है परमेश्वर रूपी मां की गोद, परमेश्वर रूप घर ।

संसारी सोच विचार के सभी द्वार खिड़कियां बंद । बहुत हो गया, बहुत हो गया । इसलिए काम कठिन भी है, करना तो है । संसारी विचारों को रोकिए, या उन्हें निकल जाने दीजिएगा । उन्हें महत्व ना दीजिएगा, यह दूसरा ढंग है । या तो उन्हें रोके या दूसरा ढंग हैं निकल जाने दीजिएगा। अंदर भरे पड़े हैं तो उनका निकलना ही ठीक। dont attach any importance to it. उनके साथ घूमिएगा नहीं, उन्हें जाने दीजिएगा, उन्हें रास्ता दीजिएगा । स्वामी जी महाराज के शब्द हैं, उन्हें रास्ता दीजिएगा, जाने दीजिएगा उन्हें । आपको उनके साथ घूमने की आवश्यकता नहीं । वह आए थे, और चले गए, बात खत्म। आप नजारा देखिएगा ।

नजारे ही बदलते हैं साधक जनों, नजरें तो वही हैं । स्वामी जी महाराज कितने सरल शब्दों में फरमाते हैं- “हम तो वही हैं,

हमारे बदलते रहे,

नजरें तो वही हैं

नजारे बदलते रहे।”

दृष्टा तो वही है, दृश्य बदलते रहे । हम वही हैं जो सतयुग में भी थे, त्रेता में भी, द्वापर में भी, और फिर अब कलयुग में भी । हम वही हैं, हमारे बदलते रहे ।

so says Swami ji Maharaj,

दृष्टा वही है, देखने वाला वही है, दृश्य बदलते गए ।

नजरें वही है, नजारे बदलते गए । जो वह है उसे जानिए। अपने वास्तविक स्वरूप को जानिए, अपने सद्स्वरूप को जानिए ।

Who are you,

Who am I ?

इस प्रश्न की खोज कीजिएगा। जब तक जवाब नहीं मिल जाता, जब तक आप को दिखाई नहीं देने लग जाता, who am I,

दृष्टा वही है दृश्य बदलते गए, नजरें वही हैं, नजारे बदलते रहे,

हम वही हैं हमारे बदलते रहे ।

यही समय है देवियो सज्जनों ध्यान का समय । परमेश्वर के दरबार से जब भी किसी को कुछ मिलता है, तो वह इसी समय मिलता है, don,t miss it. सब कुछ जिंदगी में भूल जाओ, लेकिन ध्यान का समय कभी नहीं भूलना । Must sit for meditation atleast twice a day.

क्योंकि बिना हिले जुले बैठना होता है, इसलिए दस-पन्द्रह मिनट सुबह, दस-पन्द्रह मिनट शाम को, enough. आप पर परमात्मा की कृपा है, आप आधा घंटा सुबह बैठ सकते हो, आधा घंटा शाम को, आनंद लूटिएगा ।

यही समय है जिस वक्त आप अपनी तार उस सत्य से जोड़ते हैं । जितनी तार उस सत्य से जुड़ेगी,

The ultimate truth. Truth is ultimate.

उस ultimate से जिस वक्त तार, उस truth से जिस वक्त तार जुड़ेगी, जितना सत्य के नजदीक, वास्तविकता के नजदीक, यथार्थता के नजदीक;

उतनी शांति, उतना आनंद । जितनी दूर, उतनी अशांति, उतना दुख ।

जैसे-जैसे पहाड़ी इलाके के पास पहुंचते जाते हैं, ठंडक महसूस होने लग जाती है । जितने दूर, उतनी गर्मी ।

ठीक इसी प्रकार से जितने जितने उस सत्य के समीप, निकट, पहुंचते जाओगे; जितना जितना परमात्मा के साथ तादात्म्य आपका बढ़ता जाएगा, identification आप की बढ़ती जाएगी, तादात्म्य अर्थात identification, आपको बोध होने लग जाएगा मैं देह नहीं हूं, मैं देह नहीं हूं । फिर क्या हूं ? मैं तो परमात्मदेव तेरा अंश हूं, तेरा अंग हूं, नित्, शुद्ध, प्रबुद्ध, चैतन्य, आनंद स्वरूप आत्मा हूं । मैं नित्य, शुद्ध, प्रबुद्ध, मुक्त, चैतन्य, आनंद स्वरूप आत्मा हूं । आनंद आनंद । परमानंद । शांति शांति शांति ।

रामममम राममम राममम रामममम………

ध्यान ५

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((471))

ध्यान पर चर्चा

भाग-५

बैठ जाएं सब ध्यान मुद्रा में। steps पुन: सुन ले । जब भी, जहां भी, ध्यान के लिए बैठे,

परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, झुक कर प्रणाम करके, करें जी आंख बंद रखे जी सब । परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, झुक कर प्रणाम करके, ऐसे जैसे परमात्मा के श्री चरणों पर अपने मस्तक को रखा जा रहा हो । सीधे होकर बैठ कर, आंख बंद करके, त्रिकुटी स्थान को देखते हुए, भीतर ही भीतर बहुत प्रेम पूर्वक अपने प्रियतम परमात्मा को पुकारना है । इसे ध्यान कहा जाता है । ऐसे ही बैठा कीजिएगा । जिनके पास अधिष्ठान जी हैं, वह अधिष्ठान जी की और त्राटक करके, बिना आंख के झपके, अल्पकाल के लिए उन्हें देखकर और फिर नमस्कार सप्तक पढ़कर, तो फिर बैठे ।

भूल जाइए इस वक्त आप ब्राह्मण है या क्षत्रिय, अमीर है या गरीब । यह ध्यान का समय है । आप आंख बंद करके ठीक सीधे होकर बैठे जी, आंख बंद करके बैठे हैं आप । भूल जाएं आप कि आप पुरुष है या महिला, छोटी जाति के हैं उच्च जाति के हैं । अमीर या गरीब, डॉक्टर या इंजीनियर, पापी है या पुण्य आत्मा, शिष्य है या गुरु । यह जितनी भी उपाधियां अपने सिर पर हैं, भूल जाइए उन्हें, और उन्हें उतारिएगा नीचे । अपने बड़प्पन को धरती पर रख दीजिएगा परमेश्वर के पांव तले, ताकि वह इसे कुचल डाले । इसकी मुझे जरूरत नहीं है ।

भूल जाओ देवियो सज्जनों कि आप देह हो । बहुत महत्वपूर्ण बात है । इससे पहले की बातें इतना महत्व नहीं रखती, क्योंकि इसी के साथ जुड़ी हुई है, यह मूल है। भूल जाइएगा कि आप देह हो। सदा याद रखना, जैसे परमेश्वर को याद रखो, वैसे यह भी याद रखना मैं देह नहीं हूं, मैं इंद्रियां नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं, बुद्धि नहीं हूं, प्राण नहीं हूं, मैं सच्चिदानंद परमात्मा का अंश, सच्चिदानंद आत्मा हूं, मैं नित् हूं, शुद्ध हूं, प्रबुद्ध हूं, मुक्त हूं, आनंद स्वरूप हूं, परमात्मा का निजी अंश, परमात्मा का एक अंग, चैतन्य । मैं जड़ नहीं, मैं प्रकृति का अंश नहीं, मैं परमात्मा का अंश हूं । देह भाव खत्म होगा, उसके साथ ही देह पर जो रोग आए हुए हैं, उनके प्रति महत्वबुद्धि खत्म होगी ।

कहां पीड़ा हो रही है, क्या रोग लगा हुआ है, इस संबंध में सब कुछ भूल जाइएगा । देह संबंधी समस्याओं को भी भूल जाइएगा । यह समय भूलने भूलने का है, याद सिर्फ परमात्मा को करना है। क्या करोगे मेरी माताओं याद कर करके समस्याओं को, जो जड़ है । जितना उन्हें महत्व दोगे रोग को, समस्या को, उतना अधिक वह दुखी करेगी । मानो आपकी कमजोरी जान गई । वह आपको और कमजोर करेंगे, आपको दुखी करेगी । भूल जाइएगा पति की मृत्यु हो गई है, भूल जाइएगा मैं विधवा हूं, भूल जाइएगा मेरा कोई नहीं । यह चीजें याद रखने की

नहीं । मेरा है ना राम, मेरी है ना मां । बससस इतना याद रखना पर्याप्त है ।

अपनी समस्याएं भूलिए, अपनों की समस्याओं को भूलिए, तब मिलती है मां की गोद । हर वक्त दृष्टि पैसा कमाने पर, मां ऐसों से दूर भागती है । पल्ला नहीं पकड़ाती । भागते रहो आप पीछे-पीछे । जानती है इसमें भी दिखावा है । यह सच्चे हृदय से मेरे पीछे नहीं भाग रहे । इन्हें माया चाहिए, इन्हें पैसा चाहिए, इन्हें पद प्रतिष्ठा चाहिए, इन्हें यश मान चाहिए, यह मुझे नहीं चाहते ।

जो मां को चाहेगा उसे मां मिलेगी ।

अब बैठो ऐसे बनकर मां की गोद में । ऐसों को कभी मां अपनी गोद से उतारेगी नहीं । आप उसे क्या समझते हो, बच्ची नहीं है, मां है । हमारे एक-एक भाव को जानने वाली । और किसी को, साधारण मां देखो, और किसी को घर में कुछ पता लगे ना लगे, लेकिन मां को सबसे पहले अपने बच्चों की activities का पता लगता है, गुप्त activities का । बच्चे को प्यास लगी है, यह मां को पता लगता है । संसारी मां ऐसी, तो वह जगजननी कैसी है, तनिक कल्पना तो करके देखो । पहले कल्पना करो फिर अनुभूति करो ।

ऐसे बनकर सरल हृदय, अपने हृदय से यह कूड़ा करकट, यह गंदगी निकाल कर, यह जितनी भी आपको भूलने के लिए कहा गया है, यह सब गंदगी, कूड़ा करकट, कीचड़, दुर्गंध मारने वाले मल, साफ-सुथरे होकर तो बैठो मां की गोद में । अब करो पुच-पुच । अब वह करेगी आपसे बातचीत । अब वह देगी अपना प्यार आपको। तनिक अपना मुख किसी दूसरे की ओर मोड़ें, तो मुख पकड़ कर अपनी और मोड़ो

“माता मुझे निहारये,

मिष्ट प्रेम के संग,

आशीष कर को फेरिये

ले अपने उत्संग”

मां मैं बैठा हूं तेरी गोद में ।

be possisive, very possisive.

मुझे देख इस वक्त, किसी और को नहीं । यह प्यारी प्यारी बातें मां को बहुत प्यारी लगती हैं, बहुत अच्छी लगती हैं ।

इस वक्त जिस वक्त मां की गोद मिली हुई है, यही समय है साधक जनों परमात्मा से विनय करने का । जो मर्जी आप मनवा लो, जो मर्जी उनसे पा लो । इतने पृष्ठ विनय पर लिखने के बाद अंतिम पृष्ठ में स्वामी जी महाराज ने “विनती” शब्द प्रयोग किया है । मानो अब तैयारी है इस वक्त मां की गोद मिली हुई है, जो चाहो मांग लो । ऐसा कुछ नहीं जो मां आपको दे नहीं सकती । पुत्र हो ना, पुत्री हो, ऐसे बनो,

तब । ऐसे नहीं, ऐसे वह आपकी और मुख् मोड़ती ही नहीं है, दूसरी और घुमाकर रखेगी । तब अविद्या माया बन जाती है, अन्यथा विद्या माया सब कुछ देने वाली, सब कुछ देने वाली । आप पर अपना सब कुछ लुटाने वाली मैया ।

रामममममम……

पूज्यश्री गुरूदेव के श्रीमुख से ध्यान 4

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((470))

ध्यान

भाग-४

करें जी झुककर प्रणाम परमेश्वर को, गर्दन झुका कर करें प्रणाम, और बैठ जाएं सीधे होकर ध्यान के लिए । जिनके पास जगह है, वह अपने मस्तक को धरती पर रखकर परमात्मा के श्री चरणों पर रख कर प्रणाम कर के तो सीधे होकर बैठे, पीठ सीधी रखें, गर्दन रखें परमात्मा के आमने-सामने । आंख बंद करें सब, आंख बंद रखें जी । देखें बिंदी वाली जगह को, त्रिकुटी स्थान को देखें, देखते रहे । भीतर ही भीतर प्रियतम परमात्मा को याद करें । जल्दी-जल्दी राम राम पुकारे, अथवा लंबा करके राम पुकारे । जो मीठा लगे, वैसे बोले । दोनों मीठे लगे तो दोनों ढंगों से बोले । ध्यान का समय परमेश्वर के सतत स्मरण का समय, for his constant remembrance.

संसार का विस्मरण का समय।

Forget about the world, क्या हुआ मेरे साथ भूल जाइएगा । क्या मैंने किसी के साथ किया भूल जाइएगा ।

कोई भलाई करी है, उसे भूल जाइए;

किसी ने कोई बुराई की है, उसे भूल जाइए;

इसी कारण से ध्यान का समय बहुत महत्वपूर्ण है । परमेश्वर को सतत याद करने का समय और संसार के साथ जो कुछ हुआ है, उसे भुलाने का समय । संसार जितना याद आएगा, उतना दुख देगा। परमात्मा जितना याद आएगा, उतना सुख देगा, शांति देगा, परमानंद देगा ।

भूल जाइएगा कि आप ब्राह्मण है या क्षत्रिय;

भूल जाइएगा कि आप डॉक्टर हैं या इंजीनियर;

भूल जाइएगा कि आप बहुत उच्च अधिकारी हैं या एक तुच्छ कर्मचारी, छोटे कर्मचारी;

भूल जाइएगा कि आप अमीर है या गरीब;

भूल जाइएगा कि आप पापी है या पुण्य आत्मा;

स्त्री है या पुरुष ।

इस वक्त आप उस चैतन्य के अंश चैतन्य है । अपने सद्स्वरूप को, अपने वास्तविक स्वरूप को, अपने आत्मिक स्वरूप को प्रकट करने का समय । मैं नश्वर देह नहीं हूं, मैं नश्वर देह नहीं हूं । फिर क्या है आप ?

मैं नित्य, शुद्ध, प्रबुद्ध, मैं नित्य, शुद्ध, प्रबुद्ध, मुक्त, चैतन्य, आनंद स्वरूप आत्मा हूं । मैं नित्य, शुद्ध, प्रबुद्ध, मुक्त, आनंद स्वरूप आत्मा

हूं । मैं अविनाशी परमात्मा का अविनाशी अंश हूं ।

अजर हूं, अमर हूं । देह को कष्ट क्लेश हो सकते हैं, मुझे नहीं । देह को दुख हो सकता है, मुझे नहीं । देह को रोग हो सकता है, मुझे नहीं । अपने वास्तविक स्वरूप को प्रकट करने का समय, अपने सद्स्वरूप को प्रकट करने का, जानने का समय । परमेश्वर के साथ मेरा क्या संबंध है, इसे खोजने का समय, संसार के साथ मेरा क्या संबंध है इसे ढूंढने का समय, मैं क्या हूं, मैं कौन हूं, इसे जानने का समय ध्यान ।

निर्विचार होइये‌ ।

निर्विचार अर्थात कोई सांसारिक विचार ना आए । ऐसा समय यह है जब परमेश्वर आपको बोध दिलाएगा, who are you, who am I.

मैं कौन हूं, परमात्मा कौन है, मेरा परस्पर संबंध क्या है, संसार क्या है । यह सब बातें किसी पुस्तक से ढूंढने की आवश्यकता नहीं, यदि आपकी ध्यान अवस्था इस प्रकार की है ।

यही समय है देवियो सज्जनों जिस वक्त एक मिनट का गहन ध्यान आपके कई जन्मों के पाप संस्कारों को जलाकर राख कर देता है । जैसे एक अनु bomb, atom bomb, व्यापक विध्वंस कर देता है, wide destruction,

ठीक इसी प्रकार से एक मिनट का गहन ध्यान हमारे जन्म जन्मांतर के कुसंस्कारों को जलाकर भस्म कर देता है, राख कर देता है, इतना महत्वपूर्ण है यह ध्यान एवं ध्यान का समय ।

बैठे रहिएगा ऐसे निर्विचार होकर शाबाश ! सोच के सब खिड़की द्वार बंद कर

दीजिए । जब तक बैठक की समाप्ति नहीं होती, ऐसे ही बैठे रहिएगा ।

राममममम राम राम राम रामममम…….

परम पूज्यशी महाराजश्री की ध्यान पर चर्चा

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((469))

ध्यान पर चर्चा

भाग-३

करें जी आंख बंद, बैठ जाए सीधे होकर। आंख बंद करें जी, डॉक्टर साहब सीधे होकर बैठे, पीठ सीधी करें जी, रीड की हड्डी बिल्कुल सीधी रहे, देखते रहे त्रिकुटी स्थान को बहुत प्रेम पूर्वक देखिए, Don’t strain कभी-कभी खुली आंख भी इस जगह को देखते रहा कीजिए, बहुत मीठी, बहुत महत्वपूर्ण जगह है यह आज्ञा चक्र । ईडा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी तीनों की तीनों यहां मिलती हैं, बहुत महत्वपूर्ण स्थान है यह । “अनन्य सुभक्ति राम दे, परा प्रीति कर दान प्राकृतिक, अविचल निश्चय दे मुझे अपने पद का ज्ञान”

लक्ष्य रखिए ध्यान का अनन्य सुभक्ति राम दे, यह सब कुछ कैसे होगा?

जब कुछ करना नहीं तो हाथ हिले क्यों, जब कहीं जाना नहीं तो पांव चले क्यों, जब राम राम के अतिरिक्त कुछ बोलना नहीं तो जिव्हा हिले क्यों, जब त्रिकुटी स्थान में परमात्मा के अतिरिक्त कुछ देखना नहीं तो आंख खुले क्यों, कुछ मांग नहीं तो मन में संकल्प क्यों उठे, मन निर्विचार क्यों ना हो ?

शरीर का मौन, मन का मौन एवं हृदय का मौन, ध्यान इन तीनों को मांगता है । इन तीनों का समन्वय है ध्यान । इन तीनों से बहुत सी ऊर्जा हमारी संचित होती है, बिखराव से बचती है । वह सारी की सारी ऊर्जा ध्यान लगाने में, एवं आध्यात्मिक उन्नति में उपयोग होती है, होनी चाहिए ।

यह कमजोर व्यक्तियों का खेल नहीं है, शूरवीरों का है । अध्यात्म शूरवीरों का खेल, ऊर्जावान, full of energy, उनका खेल । जिन्हें अपनी ऊर्जा को बचाना आता है, वहीं इस खेल के खिलाड़ी हो सकेंगे, अन्यथा गिरते रहेंगे, टूटते रहेंगे, फूटते रहेंगे, लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे ।

इस संदर्भ में देवियो सज्जनों एक पत्र कुछ दिन पहले एक देवी को लिखा था । उसके पत्र का उत्तर तो नहीं, उनका पत्र तो नहीं आया था, यह पत्र उनके इस कथन पर लिखा था । कोई समस्याएं थी उनकी, सुनाने के लिए वह आई । जाती हुई कह गई हमारे जैसों की सुनवाई नहीं होती । पता नहीं था, कालड़ा साहब के माध्यम से एक छोटी सी slip लिखकर तो भेजी ।

देवी, कुछ एक स्पष्टीकरण है । यह स्थान जिसे श्री राम शरणम् कहा जाता है, यह मंदिर है । मंदिर में परमात्मा की भक्ति की जाती है, परमात्मा को याद किया जाता है और संसार को भुलाया जाता है । संसार अर्थात अपना शरीर, अपने शरीर की समस्याएं, अपने शरीर के रोग, अपने संबंधियों की समस्याएं एवं रोग इत्यादि का विस्मरण जहां होता है, वह मंदिर है, वह है श्री राम शरणम् ।

यह सुनवाई का केंद्र नहीं है, कोई कचहरी नहीं है, यह पत्र मैंने उनकी सेवा में लिखा। यह कचहरी नहीं है, FIR दर्ज करवाने के लिए police station नहीं है, शिकायतें रजिस्टर करने के लिए यह रजिस्टर नहीं है, समस्याओं की सूची, इस रविवार की बात है देवियो सज्जनों । एक young couple आया । मैं नहीं पहचान सका उन्हें ।

आकर देवी कहती हैं -पति पास ही खड़े हैं, चुप हैं । आकर कहती हैं, मेरी मम्मी की सर्जरी हुई ठीक हो गई, अब वह आगे से ठीक हैं । मैंने अर्ज कि परमेश्वर कृपा देवी, बहुत अच्छी बात है । पर अभी कमजोरी बहुत है । मैंने कहा देवी रोग के बाद कमजोरी होती ही है, ठीक हो जाएंगी ।

मैं गर्भवती हूं । मैंने कहा -बहुत बहुत बधाई, जाप-पाठ बेटा करते रहना । मेरी बहन की अभी तक engagement नहीं हुई । मैंने कहा बेटा यह सब बातें निश्चित है, आप अपना पुरुषार्थ जारी रखो और प्रतीक्षा करो। अंतिम बात थी मेरे पति की बहन की शादी भी अभी नहीं हुई । तो मैंने उस देवी से कहा कि यह अपनी समस्याएं लिखवाने के लिए रजिस्टर नहीं है श्री राम शरणम् । यह भक्ति करने का स्थान है । यहां आकर परमेश्वर को याद करो, और संसार को भुलाओ ।

स्वामी जी महाराज की ओर से लिखा, स्वामी जी महाराज का फरमान है, बिन भक्ति शांति नहीं । इसीलिए अनन्य सुभक्ति राम दे, परमेश्वर के दरबार से अनन्य भक्ति मांगा कीजिए । यह चिट्ठी उनको मिल गई । जो उस देवी ने उत्तर भेजा बहुत सुंदर लगा। महिला पढ़ी-लिखी लगती हैं । शुद्ध हिंदी, थोड़ी-थोड़ी english mixed पत्र लिखा हुआ था । लिखा -बात समझ में आ गई ।

ध्यान का फल क्या है देवियो सज्जनों ? जो वास्तविकता है, वह समझ में आ जाए, तो यह ध्यान का फल है । यह ध्यान में ही आएगी । वह महिला भाग्यवान है, उसे पत्र लिखने से ही, पत्र पढ़ने से ही बात समझ में आ गई । बिन भक्ति के शांति नहीं है, यह उन्होंने शब्द लिखे । मुझे पत्र आया, by post, बात समझ में आ गई । बिन भक्ति शांति नहीं मिलती । समस्या यदि हल भी हो जाए तो भी क्या शांति मिल जाती है ? यह प्रश्न पूछा है ? आगे स्वयं ही उत्तर दिया,

ना जाने आज तक कितनी ही समस्याएं जिंदगी में आई और कितनी ही समस्याएं जिंदगी की सुलझ गई, लेकिन शांति तो अभी तक भी नहीं मिली । मैं आगे से ध्यान रखूंगी श्री राम शरणम् जाऊं, स्वयं भी जाऊं, स्वयं भी शांति प्राप्त करूं, भक्ति करूं, औरों को भी सूचित करूं, एक स्थान जहां बैठकर शांति मिलती है । देवियो सज्जनों बहुत सुंदर पत्र उनका लगा, इसलिए आप सब की सेवा में अर्ज कर दी ।

भक्ति से यदि आप कहो कि श्री राम शरणम् आने से हमारी भौतिक और परमार्थिक समस्याएं सुलझी हैं, तो मैं आप जी को सब को स्पष्ट करता हूं, यह भक्ति का प्रताप है। यहां आकर जो शांत मना आप थोड़े समय के लिए बैठते है, जो आपको उस वक्त ऊर्जा आपके अंदर अर्जित होती है, संचित होती है, उससे भौतिक समस्याएं, सब प्रकार की समस्याएं सुलझती जाती हैं । आप परमात्मा की कृपा के पात्र बनते जाते हैं । समस्या ना भी सुलझे, तो आपको भक्ति बहुत बल देती है । आपको बहुत सहनशील बना देती है। आपको मुख् बंद रखने की हिम्मत और अपने सोच के द्वार बंद करने की हिम्मत देती है भक्ति ।

रामममममममम…….

इस ध्वनि पर एकाग्र कीजिए अपने मन को, गूंजती हुई सुनिए, एकाग्र कीजिएगा अपने मन को इस ध्वनि पर ।

ध्यान पर पूज्य गुरूदेव के प्रवचन

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((468))

ध्यान

भाग-२

राजा अश्वपति पर दो शब्द कहने से पूर्व साधक जनों, जो कल चर्चा शुरू हुई थी ध्यान के ऊपर; कल तो फिर जाप का दिन है। सो वृद्धि आस्तिक भाव की, के बाद तत्काल ध्यान शुरू हो जाएगा कल । सो आज जो थोड़ी बातें कुछ रह गई हैं, आज पहले उन्हें समाप्त करते हैं । ध्यान के steps पुन: सुनिए ।

ऐसे बैठना जैसे मैं अभी आपके सामने बैठा था । कोशिश करें ऐसे बैठने की ।

यदि नहीं तो cross legged चौकड़ी लगाकर बैठिएगा । परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, झुककर प्रणाम कीजिएगा । बहुत झुक कर प्रणाम करना।

कल भी आपसे अर्ज की थी परमेश्वर के अपने श्रीमुख वाक्य हैं, जितना मेरे आगे झुकोगे, उतना अधिक मेरे से पाओगे । शारीरिक तौर पर तो सीमित ही झुका जा सकता है, लेकिन मन से तो कोई सीमा नहीं है । मन से झुकना सीखिए, हृदय से झुकना सीखिए ।

परमात्मा को ऊपरी ऊपरी बातें बिल्कुल पसंद नहीं है । बहुत झुक कर प्रणाम कीजिए, आशीर्वाद परमात्मा के लीजिए, सीधे होकर बैठ जाइए । सीधे होकर कैसे बैठना है, जैसे चौकड़ी लगाई है, अपने हाथों को बेशक ऐसे रखिए, ऐसे रखिए, ऐसे रखिए, या ऐसे रखिए, कोई फर्क नहीं

पड़ता । फर्क इस बात का पड़ता है, महत्वपूर्ण बात यह है, जितनी देर ध्यान के लिए बैठना है, बिल्कुल निश्चल बैठना है, बिना हिले जुले बैठना है । दस मिनट बैठिए, पन्द्रह मिनट बैठिए, जहां हिलना जुलना हो जाएगा साधक जनों वहां ध्यान, ध्यान नहीं रहता ।

That is no more meditation,

वह जप कहिएगा या कुछ भी कहिएगा, लेकिन ध्यान में आप निश्चल होने चाहिए, बिना हिले जुले होने चाहिए । इसीलिए ध्यान की अवधि थोड़े समय के लिए रखो ।

शुरू शुरू में दस, पन्द्रह मिनट जितने में आनंद आए, जितने में मजा आए, उतना समय रखो । बहुत कसरत करने की जरूरत नहीं । परमात्मा कसरत से नहीं मिलते, परमात्मा प्रेम से मिलते हैं । जितनी देर तक आनंद परमात्मा को दे सको दो, उनसे आनंद ले सको लो । यह दोनों आनंद लेने और देने की चीज है, ध्यान का समय ।

ऐसे बैठकर साधक जनो आपने झुक कर प्रणाम कर लिया, आशीर्वाद ले लिए, ऐसे बैठकर आंख बंद करके तो, स्वामी जी महाराज फरमाते हैं दो आंखों के बीच यह त्रिकुटी स्थान, बिंदी वाली जगह, आज्ञा चक्र, भगवान शिव का तीसरा नेत्र, आप सब का तीसरा नेत्र भी यही है । आंख बंद करके इस जगह को देखिएगा ।

Focus your gays at this point.

बिंदी को नहीं देखना, बिंदी वाली जगह को देखना है । यह बाह्य संकेत है देवियो सज्जनो । यह जो बाहर की चीज आपको कही जाती है, यहां देखने के लिए यह बाह्य चिन्ह है । जो कुछ आपको परमेश्वर की कृपा से जब कहीं कुछ दिखाई देगा, या परमात्मा दिखाएगा, वह सब कुछ इसके पीछे हैं, यह बाह्य संकेत है ।

कुंडलिनी शक्ति नीचे से उठती है, ऊपर आती है, यहां तक आती है, और फिर मुड़ती है, इस तरफ जाकर तो फिर ऊपर तक पहुंचती है ।‌ यहां से route देखने में बहुत थोड़ा है, पर बहुत लंबा है । जब तक साधक जनों कुंडलिनी यहां से हिलती नहीं है, तब तक आदमी किसी समय भी पतन को प्राप्त हो सकता है । हम लोग अधिकांश यही टिके हुए हैं, इसलिए रोज गिरना होता है, रोज उठना होता है । किसी दिन ध्यान अच्छा लग जाता है, किसी दिन जोर लगाने पर भी ध्यान नहीं लगता । एक सप्ताह बहुत जल्दी-जल्दी परमेश्वर कृपा से जगना हो जाता है, उसके बाद पूरा सप्ताह ऐसा निकल जाता है, या कुछ दिन ऐसे निकल जाते हैं, आंख ही नहीं खुलती । यह सब इन्हीं कारणों से । जब तक कुंडलिनी यहां से, साधक जनो कहते हैं गुरु कृपा से होती है, जब तक यह यहां से इसकी movement नीचे से ऊपर की तरफ नहीं आती, या यहां से move नहीं करती कुंडलिनी, तब तक साधक जनों पतन का भय बना रहता है।

कल आपसे यह भी अर्ज की जा रही थी, इस स्थान पर क्या देखना है ? स्वामी जी महाराज दीक्षा देते वक्त तो इतना ही कहते हैं इस स्थान को देखिएगा । फिर कुछ वर्षों के बाद अधिष्ठान जी देते हैं, तो इसका अर्थ यह है “राम” शब्द पर देखिएगा । राम शब्द पर देखिएगा या जो भी कोई आपके इष्ट हैं उन्हें देखिएगा । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता साधक जनो ।

हमने राम को ही देखना है, चाहे उन्हें कृष्ण रूप में देखिए, यह बात बहुत पल्ले बांध लो समझने की बात है साधक जनों, यहां तक पहुंचना होगा । हमने यहां किनको देखना है राम को देखना है, निराकार । कौन राम ? निराकार राम को देखना है । आप उन्हें धनुषधारी राम के रूप में देखिए, आप उन्हें बांके बिहारी के रूप में देखिए, उन्हें शिव पार्वती के रूप में देखिएगा, मां लक्ष्मी के रूप में देखिए, मां सरस्वती के रूप में देखिए, मां काली के रूप में देखिए, चतुर्भुज भगवान के रूप में देखिए, हनुमान जी के रूप में देखिए, मानो जो भी आपको प्रिय स्वरूप लगता है, आप उस रूप में

देखिएगा । मत भूलिएगा यह कौन हैं ? रामजी का यह स्वरूप, हम संबंधित सिर्फ रामजी से हैं । यह सत्य है साधक जनों जब तक इस सत्य की अनुभूति नहीं होगी, तब तक दुविधाएं बनी रहेगी ।

कहां जा रहे हैं वृंदावन, बांके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए । लेकिन यदि यह बात हो जाए साधक जनो मानो राम और बांके बिहारी जी दो हैं, जब तक यह बात हृदयंगम नहीं हो जाती नहीं, मैं राम जी के बांके बिहारी रूप के दर्शन करने जा रहा हूं, तो बससस सत्य तक पहुंच गए, बिल्कुल देरी नहीं है ।

जाइए हनुमान जी के मंदिर में, जाइए मां वैष्णो देवी की यात्रा करने के लिए ।

कहीं भी जाइएगा, तब कुछ नहीं ।

लेकिन जब तक यह बात आपको स्पष्ट नहीं होती, यह सब बातें देवियो सज्जनो स्पष्ट होती हैं व्यक्ति को गहन ध्यान में । यह सत्य है और सत्य जो है वह बहुत deep seated है । वह ऊपरी ऊपरी नहीं है ।

It’s not superficial जैसे ही आप ध्यान अवस्था में भीतर भीतर deep, deep, deep, जाते हैं तो वह सत्य खुलता जाता

है । परमात्मा अपने भेद मानो, सत्य, कौन परमात्मा ? परमात्मा अपने भेद खोलता जाता है, भक्त को खोलता है । हर एक को वह अपने भेद नहीं देता । जो close संबंधी हो जाता है, उसे अपना भेद देता है ।

आज आपकी सेवा में बहुत भेद की बात कही जा रही है देवियो सज्जनो ।

बहुत सारी दुविधाएं आपकी मिट जाएंगी, द्वैत मिट जाएगा, द्वैत बिल्कुल खत्म हो जाएगा, infact यह द्वैत नहीं है । हमारा तो, हम तो बहुत सारों को मानते हैं ।

द्वैत तो दो का होता है, लेकिन हम तो

अति हैं । कोई ऐसा नहीं जिसको हम नहीं मानते । हम शनि महाराज की भी उपासना करते हैं, नवग्रह की भी उपासना करते हैं, हम इसकी भी आरती करते हैं, उसकी भी आरती उतारते हैं, उसकी भी आरती उतारते हैं, सिर्फ भय के कारण । यदि इनका ऐसा ना किया तो कहीं हमारा अनिष्ट ना हो जाए। इसे भय भक्ति कहा जाता है ।

यह भक्ति नहीं है ।

मन में यह विचार हो तो इससे जिसके लिए आप कर रहे हो, वह भी प्रसन्न होता है, अन्यथा वह हमारी मूर्खता पर, हमारी अज्ञानता पर, हमारे अधूरेपन पर हंस देता

है । देवी देवताओं की पूजा करने वाले अविधि से मुझे पूजते हैं, विधिपूर्वक भगवान श्री ने नहीं कहा । सही ढंग से नहीं कहा । अविधि से, अविधि पूर्वक, मेरा पूजन करते हैं । मानो उन्हें यह बोध नहीं है जो अभी आपकी सेवा में कहा जा रहा है, हम एक राम के उपासक हैं, बाकी सब उनके रूप हैं। यह सत्य है, यह परम सत्य है । इसको आज मानिएगा, कल मानिएगा, अगले जन्म में मानिएगा, उसके बाद जन्म में मानिएगा, यह आपको मानना ही पड़ेगा ।

यह सब बातें साधक जनो स्पष्ट होंगी, जिस वक्त आप आंख बंद किए हुए आप त्रिकुटी स्थान को देख रहे हैं । अब परमात्मा का संस्पर्श मिलना शुरू हो जाता है । सानिध्य, समीप्य, फिर संस्पर्श । मानो आप महसूस करने लग जाते हो, कि परमात्मा का स्पर्श मुझे मिल रहा है । संस्पर्श उसे कहा जाता है। बससस यहीं से यात्रा का शुभारंभ होता है, यहीं से भेद खुलने शुरू हो जाते हैं।

इससे पहले मत प्रतीक्षा कीजिएगा, मत अपेक्षा रखिएगा । प्रतीक्षा कीजिएगा बेशक, लेकिन इससे पहले अपेक्षा नहीं रखिएगा । लोहा चुंबक को छुएगा तो चुंबक बनेगा ।

दूर रहने से, जितनी दूरी है, वह लोहा, लोहा ही रहेगा, चुंबक नहीं बन सकता । अतएव यह संस्पर्श बहुत सुंदर शब्द है, जैसे ही परमात्मा के साथ यह संस्पर्श आपको प्राप्त होता है, आप तत्काल वही बन जाते हो । आपके सामने सारे के सारे भेद अपने आप खुलने लग जाते हैं । सारी की सारी परतें जो ऊपर हैं, वह खुलने लग जाती हैं, वह उतर जाती है ।

ज्योति, ज्योति में समा जाती है ।

ज्योति, ज्योति से मिल जाती है ।

आत्मा, परमात्मा से मिल जाती है ।

दोनों आत्माओं का मिलन हो जाता है ।

एक हो जाते हैं, अद्वैत हो जाता है ।

दो शून्य मिलकर, यह शून्य शब्द जो आपकी सेवा में प्रयोग किया जा रहा है, यह बहुत महत्वपूर्ण है । बंधुओं आप सब ध्यान में बैठते हो, मुझे कोई संदेह नहीं है ।

जितने भी थोड़े बहुत बैठते हो आप, कोशिश करते हो हमें यह शून्य अवस्था लाभ हो । यहां साधक जनो हमारा मार्ग दो में विभाजित हो जाता है । एक तो शून्य ही आप जप कर रहे हैं, ध्यान में जप बाधा नहीं है, यदि सही ढंग से किया जाए । सिर्फ जप आपका हो रहा है, यदि सांसारिक, भौतिक विचार कोई नहीं है, तो वह जप आपको बहुत सहायता देता है । ऐसा जप शून्य ही कहा जाता है । शून्य अवस्था ही कहा जाता है । क्यों ? भौतिक विचारों से रहित है । शून्य अर्थात भौतिक विचारों से रहित ।

साधक जनों पहले यह अवस्था प्राप्त कीजिएगा । उसके बाद समय आता है, जब व्यक्ति गहन जाता है, deep जाता है, और उसे शांति और आनंद का अनुभव होने लग जाता है । फिर अपने आप जप भी बंद हो जाता है । यह अपने आप करना नहीं, क्योंकि आज आपको बताया जा रहा है इसलिए हम जप बंद कर देते हैं । नहीं‌ ।

यह ठीक नहीं है, इसे अपने आप बंद होना चाहिए । अपने आप बंद होने पर यह दूसरी शून्य अवस्था आपको लाभ होने जा रही हैं। महाशून्य अवस्था लाभ होने जा रही है, जो परमात्मा की है, वही आपकी होगी । तो परमात्मा से आप का मिलन हो पाएगा । दो शून्य एक हो जाते हैं ।‌ अध्यात्म में, ध्यान अवस्था में, दो शून्य मिलकर एक हो जाते

हैं । आप परमात्मा का, ऐसे को ही परम ज्ञानी कहा जाता है, ऐसे को ही ब्रह्म वेक्ता कहा जाता है ।

तो साधक जनों कल तो नहीं, परसों राजा अश्वपति की चर्चा करेंगे । ब्रह्म ज्ञानी है वह । उन्हें आत्मसाक्षात्कार, उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हो चुका हुआ है । छांदोग्य उपनिषद में उनकी बहुत सुंदर कथा आती है। परसों करेंगे यह बात‌ । कल तो जप शुरू होगा । कल तत्काल जप के बाद ध्यान में हम बैठ जाएंगे । कल तो जप चलता रहेगा। बाकी दिन साधक जनों जैसे आज था,

आज भक्ति प्रकाश का पाठ हुआ, उसके बाद हमें ध्यान के लिए बैठना था । जिस दिन बैठेंगे ध्यान के लिए बैठेंगे, उस दिन ध्यान की बात जो भी अमृतवाणी का नेतृत्व कर रहे हैं, जैसे ही समय होगा वह

“सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः” का पाठ शुरू कर देंगे । तो कार्यक्रम की, सत्संग की समाप्ति हो जाएगी ।

मैं दूसरी दफा राम नहीं बोलूंगा । पहली बार बोलूंगा । उसके बाद नहीं बोलूंगा । उसके बाद जो नेतृत्व करने वाले हैं, वह समय के अनुसार अपनी समाप्ति कर लें, तो हमें पता लग जाएगा सत्संग की समाप्ति हुई है । तो साधक जनो समय हो गया है । यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा ।

आप जरूर कोशिश कर रहे होंगे कल से । बहुत लंबी यात्रा है देवियो सज्जनो । जप को हम बहुत seriously नहीं लेते ।

सो जप में हम बातें भी करते रहते हैं, टीवी भी देखते रहते हैं, इधर भी देखते हैं, उधर भी देखते हैं, इसकी भी बात सुनते हैं, इनकी भी । हमें बाहर क्या हो रहा है सब पता रहता है । काश ! हमने जप को महत्व दिया हुआ होता, तो हमारे लिए ध्यान बहुत आसान हो जाता ।‌ जप के वक्त यदि आप अपनी खिड़कियां दरवाजे बंद कर के रखते हैं, तो फिर ध्यान में अपने खिड़कियां द्वार बंद करने कोई कठिन आपको महसूस नहीं होगी । अन्यथा ध्यान में बहुत कठिनाई आएगी, आती है । कठिनाइयां आएंगी तो साधक जनों कुछ पता लगेगा कि कितना जटिल मार्ग है, कितना कठिन मार्ग है । कितनी गलतियां हम करते रहे हैं और कितनी गलतियां हम करते जा रहे है ।

अभी भी गलतियां बंद नहीं हुई ।

बहरहाल शुभकामनाएं साधक जनों ।

अपेक्षा रखता हूं कोई ना कोई साधक तो अपनी सही समस्या लेकर मेरे सामने

आएगा ।

18 साल हो गए हैं साधक जनो,

किसी एक व्यक्ति ने, आज तक लाखों की संख्या में साधक हो गए हैं, किसी एक व्यक्ति ने आज तक अपनी कोई ध्यान की समस्या मेरे साथ discuss नहीं की । आंखें बिछाए बैठा हूं, कोई तो आकर सही समस्या मेरे साथ आकर discuss करे ।

चालीस लाख का लोन हो गया है, एक करोड़ का लोन हो गया है, मैं क्या करूं इसमें । परमात्मा क्या करेंगे उसमें ? ऐसी समस्याओं का क्या किया जाए ।

Waste of time

जिन समस्याओं के लिए, यहां सुलझाने के लिए यहां आते हैं, वह समस्याएं तो वैसे की वैसे ही बनी हुई है, और उनको सुलझाने का कोई प्रयत्न ही नहीं है किसी का । शुभकामनाएं देवियो सज्जनो, मंगलकामनाएं सबको । परमेश्वर की कृपा, मेरे गुरुजनों की कृपा, अपार कृपा, उनके आशीर्वाद, सदा सदा सदा सब पर बने रहे ।

ध्यान पर पूज्य गुरूदेव के प्रवचन 1

यह प्रवचन एक साधक जी द्वारा लिखे गए हैं।

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से

((467))

ध्यान

भाग-१

आज पहला दिन है साधक जनों, जो ध्यान का system शुरू करने जा रहे हैं, कोई नई बात नहीं है यह । श्री अमृतवाणी पाठ के बाद, जो दो बार हम वृद्धि आस्तिक भाव की बोलते, उसके बीच gap देते, फिर दो बार वृद्धि आस्तिक भाव की बोलकर, यह समय साधक जनों ध्यान का समय हुआ करता था, लोप हो गया । स्वामी जी महाराज के वक्त, पूज्य श्री प्रेम जी महाराज के वक्त, मानो गुरुजनों के सानिध्य में बैठकर ध्यान का अवसर मिलना, यह कोई छोटी बात नहीं है। वह समय स्वामी जी महाराज के साथ ध्यान में बैठने का, पूज्य श्री प्रेम जी महाराज के साथ ध्यान में बैठने का, समय हुआ करता था । पांच मिनट, छह मिनट, दस मिनट इत्यादि । धीरे-धीरे कम हो गया । अब उसी system को फिर शुरू करने की आवश्यकता है ।

आज से शुरू करेंगे । आज कुछ कहूंगा। इसके बाद अति आवश्यकता होगी, तो दो शब्द कहे जाएंगे, नहीं तो नहीं ।

मेहरबानी करके सब कुछ ध्यान से सुने । कई सारी भ्रांतियां हमारे दिलों दिमाग में है, वह निकलनी चाहिए ।

ध्यान एक अनिवार्य अंग है हमारी साधना का । अतएव सुबह शाम ध्यान में हर साधक को बैठना चाहिए । क्योंकि ध्यान हमेशा बैठ कर, आंख बंद करके, पीठ, रीड की हड्डी बिल्कुल सीधी, बिना हिले जुले, इसलिए ध्यान की अवधि शुरू में दस मिनट, पन्द्रह मिनट से ज्यादा ना रखिएगा । परमेश्वर की कृपा हो जाए आधा घंटा सुबह, आधा घंटा शाम को कर सकते हैं । और अधिक कृपा हो जाए तो अवधि और बढ़ाई जा सकती है। पर दस-पन्द्रह मिनट सुबह, दस-पन्द्रह मिनट शाम को, हर साधक को ध्यान के लिए बैठना चाहिए । steps क्या है ?

परमेश्वर को अपने अंग संग मानकर, अधिष्ठान जी आपके सामने हैं, तो परमेश्वर आपके अंग संग हैं । नहीं आपके सामने तो imaginations से imagine करिए की परमेश्वर मेरे अंग संग हैं, जब तक अनुभूति नहीं होती । यह imagination, imagination तक ही नहीं रहनी चाहिए, यह अनुभूति होनी चाहिए । वह देवाधिदेव मेरे भीतर है, बाहर है, इधर है, उधर है, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे है, इसको अनुभूति कहा जाता है, महसूस होना । मात्र कल्पना नहीं, अनुभव होना, यही तो देवियो सज्जनो लक्ष्य है । इसी को तो ईश्वर अनुभूति कहा जाता है, इसी को तो ईश्वर साक्षात्कार कहा जाता है, और क्या होता है ?

कोई बंसी वाले दर्शन देते हैं, हर एक को धनुषधारी राम क्या दर्शन देते हैं, अनुभूति करनी है । दर्शन देकर तो चले जाएंगे फिर क्या करोगे ? ईश्वर अनुभूति बहुत उच्च चीज है । ईश्वर अनुभूति का होना अर्थात आप जहां भी हो, जिस वक्त आप चाहो, आपको अनुभव हो रहा है कि वह देवाधिदेव मेरे अंग संग हैं, मेरे भीतर है बाहर हैं, सब जगह विराजमान हैं ।

ईश्वर को अपने अंग संग मानकर तो झुक कर प्रणाम करना ।

उसके लिए आप नमस्कार सप्तक पढ़ते हो, यह steps याद रखने जरूरी, याद रखिएगा। जितना अधिक परमात्मा के आगे झुकेंगे, उतना अधिक परमात्मा के दरबार से पाएंगे, कभी ना भूलिएगा इस बात को । शरीर से तो ज्यादा झुका नहीं जा सकेगा, लेकिन मन से तो कोई सीमा ही नहीं है । आप जितना मर्जी झुकिएगा मन से । मन से अधिक से अधिक झुककर, परमात्मा के आशीर्वाद लेकर, यही steps हुए ना । परमात्मा को अपने अंग संग मानकर, झुक कर, प्रणाम करके, सीधे होकर बैठना है । आप भूमि पर बैठ सकते हैं, बहुत अच्छी बात है । नहीं बैठ सकते तो यह बहुत मामूली बात है, कुर्सी पर बैठिए । जहां परमात्मा बिठाए बैठिएगा । इसमें कोई गिला शिकवा नहीं करना । जो परमेश्वर की इच्छा है, इसे ऐसा ही मानिएगा । दीवार की आवश्यकता हो, लीजिएगा सहारा । इस चीज को भी कोई बहुत गंभीर सोचने का विषय नहीं बनाना । धीरे-धीरे दीवार छूट जाए, तो छोड़ दीजिएगा ।

कैसे बैठना है साधक जनों, प्रारंभिक अवस्था में, विशेषतया बच्चे लोग हैं, बच्चियां हैं, युवतियां तक, यदि हम सब विद्यार्थी हैं, ऐसा नहीं है कि जो बात मैं कह रहा हूं बच्चों के लिए ही है, छोटो के लिए ही है, जब भी कोई बैठेगा उसे लाभ होगा । बेशक बुजुर्ग भी है, यदि वह इस प्रकार से बैठता है, जैसा मैं अभी आपसे अर्ज कर रहा हूं, तो उसे लाभ होगा ।

हम सबको बैठना तो ऐसे ही चौकड़ी लगाकर, सुखासन जिसे कहा जाता है, तो यदि आप पहले अपने आप को थोड़ा सा ऊपर उठा कर, अपनी एड़ी को नीचे के दो छिद्र हैं, उसके बीच जगह होती है, उस जगह में एड़ी को फंसा देते हैं, मामूली सी तकलीफ होगी पहले पहल, उसके बाद सब कुछ सहज हो जाएगा । देखें, थोड़ा सा इस प्रकार से उठ कर तो, एडी दोनों छिद्रों के बीच जगह जो है, वहां fit हो जाती है, बहुत लाभकारी चीज है । साधक हो ना अतएव हर काम के लिए, छोटे-मोटे काम के लिए आपको लाभ चाहिए, आध्यात्मिक लाभ, भौतिक लाभ की बातें नहीं है यह । आध्यात्मिक लाभ आपको चाहिए, आपको आध्यात्मिक उन्नति चाहिए, जिससे भी मिलती है, आपको लेनी चाहिए । ऐसा करने से दस, पन्द्रह मिनट आप बहुत आसानी से बैठ सकते हैं, और इतना ही बैठना है ।

ऐसे बैठकर अपने हाथों को ऐसे रखो, ऐसे रखो, ऐसे रखो, या ऐसे रखो । इसी समय परमात्मा के दरबार में आपकी प्रार्थना सुनी जाएगी । इस वक्त आप की तार जुड़ी हुई होती है, इस वक्त आपका परमात्मा के साथ तादात्म्य होता है, इसी समय यही समय है जिस वक्त प्रार्थना परमात्मा के दरबार तक पहुंचेगी । अतएव प्रार्थना करने जा रहे हैं तो इस प्रकार से बैठिएगा । हाथ जोड़कर ही प्रार्थना करते हो ना आप, सामान्य व्यक्ति को प्रार्थना करनी होती है तो हाथ जोड़ते हो, परमात्मा के दरबार में प्रार्थना करनी है तो क्यों ना हाथ जोड़कर करो । हाथ जोड़कर तब, अन्यथा ऐसे बैठिए, ऐसे बैठिए, ऐसे बैठिए, या ऐसे बैठिए । पीठ बिल्कुल सीधी हो, रीड की हड्डी बिल्कुल सीधी हो, पीठ से अभिप्राय रीड की हड्डी बिल्कुल सीधी हो । मेरुदंड vertical column बिल्कुल ठीक होना चाहिए । यह जगह बिल्कुल परमात्मा के आमने-सामने रखिएगा । यह सब चीज बिल्कुल straight line में होनी चाहिए । अब आप ध्यान मुद्रा में बैठ गए है।

भीतर ही भीतर, स्वामी जी महाराज फरमाते हैं, भीतर ही भीतर, मन ही मन राम राम राम राम राम राम पुकारियेगा । पुकार शुरू करिएगा पहले । कहां से शुरू करना है, जप से नहीं । आप शब्द, मेहरबानी करके शब्दों की गंभीरता पर ध्यान दीजिएगा । एक तो जप है, जो आप सामान्यता करते हैं । इस वक्त परमात्मा को पुकारना है । प्रश्न उठता है जब हमें यह बोध हो गया है, अनुभव हो गया है कि परमात्मा हमारे अंग संग हैं, हमारे भीतर विराजमान हैं, तो फिर पुकारना किसको है ?

आप ठीक सोच रहे हैं ।‌ यदि आप इस स्थिति तक पहुंच गए हैं, तो आपकी सोच बिल्कुल सही है । पहले इस स्थिति तक पहुंचिएगा, तब तक पुकार जारी रखिएगा । जब आपको ऐसा महसूस होने लग जाए, ऐसी अनुभूति होने लग जाए, कि मैं किसे पुकार रहा हूं, वह तो हर वक्त मेरे अंग संग है, वह तो मुझे मिला हुआ है, मैंने किसको मिलना है, यह बाद की बातें हैं।

आज थोड़ी गंभीर बातें, अति गंभीर बातें, अति गुहृ बातें, आपकी सेवा में अर्ज की जा रही हैं ।

जो मुझे मिला हुआ है, कभी बिछुड़ा ही नहीं था मेरे से ।

जो मुझे सदा मिला हुआ है, मैं किसको पुकार रहा हूं, किसे मिलना है मुझे ।

मिलना तो उसे होता है जो दूर हो, जो ना मिला हुआ हो ।

जो सदा ही मिला हुआ था, सदा ही मिला हुआ है, सदा ही मिला रहेगा, उसे क्या पुकारना ?

इस स्थिति तक देवी पहुंचो, तो फिर पुकार तो जारी रखनी है । लेकिन पुकार का शब्द बदल जाता है । अब स्मरण कर रहा हूं । तब राम-राम बोलेंगे ।

किस लिए याद कर रहा हूं, उसकी याद आ रही है, जो हर वक्त मेरे अंग संग है, जिसकी इतनी मेहरबानियां है, इतनी इनायते है मुझ पर, जिसने देने में मुझे कोई कसर नहीं छोड़ी है । क्या कुछ नहीं दिया उसने । उसको याद कर रहा हूं । उसको याद कर करके जो आनंद देवियो सज्जनो मिलता है, उसी का नाम है ध्यान ।

यह जो आप ऐसे ऐसे हाथ ऊपर उठाते हो, ऐसे ऐसे करते हो, यह उस आनंद की एक झलक । यह आनंद नहीं है‌ । आनंद वह है, उस आनंद की प्राप्ति को ध्यान कहा जाता है। जैसे-जैसे आप stepwise आगे बढ़ते हैं, परमात्मा अनेक सारी आलौकिक घटनाएं आपको दिखाता है । उनसे चिपकना नहीं, परमात्मा की कृपा महसूस करनी है । परमात्मा तेरा लाख-लाख शुक्र है, इतना कुछ तू दिखा रहा है, इतना कुछ मेरे साथ कर रहा है । क्यों ? जितना आप देवियो सज्जनो सत्य के निकट पहुंचते जाओगे, उतना आपको सत्य, सत्यता प्रतीत होना शुरू हो जाएगा । यह सब सत्य के अंतर्गत

है । यह सब बातें परमात्मा के अंतर्गत हैं ।

यह अपनी इच्छा से नहीं होती, यह पढ़ने सुनने से नहीं होती । जब परमात्मा प्रदत्त करता है, तो यह चीजें होती हैं । सुनी सुनाई चीजें और तरह की होती हैं । यह चीजें बड़ी अलग होती हैं ।

इन चीजों को परमेश्वर कृपा मानकर इंतजार करनी है । मत मांगो, मांगने की आवश्यकता नहीं । आप अपनी यात्रा शुरू रखो । देने वाला ना देरी करेगा, ना कसर छोड़ेगा । आप अपनी यात्रा शुरू रखिएगा । मांगने की जरूरत पड़ती है, जब आपकी यात्रा सही नहीं चल रही । स्वामी जी महाराज कहा करते, अरे ! जो राम-राम जपता है, उसे आशीर्वाद मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। आशीर्वाद उसे ही मांगने पड़ते हैं, जो जैसा मैंने कहा है, वैसा नहीं करता । कितनी उच्च बातें हैं, स्वामी जी महाराज की ।

तो देवियो सज्जनो शुरू करते हैं आज से । आज के बाद परसों परमेश्वर कृपा है, फिर जाप का अधिक समय मिलेगा । शुरुआत बहुत अच्छी । फिर परसों भक्ति प्रकाश पाठ के बाद जितना भी समय मिलेगा, वह समय ध्यान के लिए बैठा करेंगे ।

तो आइए शुरू करते हैं । आज जप भी शुरू होगा अभी । वृद्धि आस्तिक भाव की जो सात बार बोली जाती है, वह बोलेंगे । उसके बाद मैं राम बोलूंगा । मेहरबानी करके देवियो सज्जनो जो बातें आज तक नहीं कहा करता था, अब कहने की जरूरत महसूस होने लग गई है । जब समझ में ना आए बात, तो फिर कहना पड़ता है । उस आवाज को सुनिएगा, उस आवाज को याद रखिएगा । ध्यान में पूरा समय आपके कान में वह आवाज गूंजती

रहे । ऐसे ऐसे साधक मैंने देखे हुए हैं, सामूहिक ध्यान के वक्त, पूज्य श्री प्रेम जी महाराज जिस वक्त राम राम बोलते थे, एक घंटा भर वह राम-राम उस साधक के दिलो-दिमाग में घूमता रहता था । वह आवाज घूमती रहती थी ।‌ मानो गुरुकृपा घूम रही है, बड़ी विलक्षण है देवियो सज्जनो । सब कुछ मिल जाता है, यह विलक्षण गुरु कृपा किसी किसी को मिलती है ।

उस आवाज को याद रखिएगा सारा ध्यान का समय । बीच में miss हो जाए, स्वयं गुंजाइएगा उस आवाज को, ताकि दोनों एक हो जाए । यह मामूली बातें नहीं है । किसलिए अपनी आवाज गुंजा रहे हो, ताकि दोनों आवाजें एक हो जाए ।‌ उसी गूंज का आनंद ध्यान है देवियो, गुंजाइएगा उसे । आज से, अभी से, शुरू करें, घरों में जाकर। यह तो सिर्फ एक संकेत है ना । घरों में जाकर ध्यान के लिए जब भी बैठने का मौका मिले, अनेक मौके ढूंढिएगा ध्यान के लिए । जाप तो आप करते रहते हो, जैसा भी है आप जानो । लेकिन मौका मिलने पर तत्काल ध्यान में प्रवेश कीजिएगा । ध्यान के लिए घुसिएगा ।

वृद्धि आस्तिक भाव की शुभ मंगल संचार

अभ्युदय सदधर्म का राम नाम विस्तार -7

आंख बंद रखिए । बंद आंख, त्रिकुटी स्थान, बिंदी वाली जगह को, बिंदी को नहीं, बिंदी वाली जगह को देखते, हुए भीतर ही भीतर राम राम राम राम पुकारे । उस जगह पर क्या देखना है ? कोशिश करिएगा उस जगह को देखने की, उस जगह पर राम शब्द, अर्थात नाम भगवान को देखने की । यदि आपकी कोई इष्ट है शिवलिंग है, शिव पार्वती हैं, मुरली मनोहर हैं, धनुषधारी राम है, हनुमान जी हैं, चतुर्भुज भगवान है, मां जोता वाली है, उन इष्ट को देखिएगा ।

मत सोचिएगा हम राम राम जपते हैं तो हम भगवान कृष्ण क्यों देखें, मां शेरावाली को क्यों देखें ? नहीं, उन्हें ही देखिएगा । उनकी प्रीति, आपकी प्रीति उनके साथ है, इसका लाभ लीजिए । पुकारिएगा राम । यह बोध होगा आपको राम नाम ही कृष्ण, शिव, नारायण, हरि, मां सब राम नाम ही हैं ।

राममममममम……….