कर्मयोग – 5

परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((051))

कर्मयोग
भाग-५

धुन :
गोविंद जय जय गोपाल जय जय,
राधा रमण हरि गोपाल जय जय ।।

बहुत-बहुत धन्यवाद देवियो ! बहुत-बहुत सुंदर सब कुछ ।पांचवें अध्याय में भी भगवान् श्री कर्मयोग की ही चर्चा जारी रख रहे हैं । वास्तव में जितना अभी तक पढ़ा है, कर्मयोग करने की विधि ही समझा रहे हैं । किस प्रकार कर्म को कर्मयोग बनाया जा सकता है ? आप सब भी कर्मयोग की चर्चा ही कर रहे हैं । कल चर्चा चल रही थी कि हम कर्तव्य कर्म निभाते हैं कुछ के प्रति, कुछ के प्रति नहीं । यदि सब के प्रति हम अपना कर्तव्य कर्म निभाते हैं, राग द्वेष रहित होकर, पक्षपात रहित होकर तो यह कर्मयोग ही है। कर्मयोग में भेदभाव नहीं हुआ करता ।
साधक जनो ! कर्मयोगी को अपनी पुत्री तो अपनी पुत्री दिखाई देती है लेकिन दूसरे के घर से जो पुत्री आई है, वह बहु दिखाई देती है तो ऐसा व्यक्ति कर्मयोगी नहीं बन
सकेगा । दोनों के व्यवहार में जहां अंतर हो जाएगा यह कर्मयोगी का चिह्न नहीं है ।
कर्मयोगी बनना चाहते हो तो आपको इन छोटी-छोटी बातों का बहुत ध्यान रखने की ज़रूरत है । बड़ी-बड़ी बातें नहीं हैं, हैं ही बहुत छोटी छोटी बातें ।

कर्मयोग में देवियो सज्जनो ! सुख की उंगली अपनी ओर कभी नहीं उठती । कर्मयोगी बहुत अच्छी तरह से जानता है, सुख मेरे भोगने की चीज़ नहीं है । सुख औरों को देने की चीज़ है । जिस किसी की समझ में यह इतनी सी बात आ जाएगी, वह तत्काल कर्मयोगी बन जाएगा ।

पुन: सुनिए ! सुख भोगने की चीज़ नहीं है, सुख मांगने की, सुख पाने की चीज़ नहीं है, सुख बांटने की चीज़ है, सुख देने की चीज़ है ।

हां, दु:ख भोगने की चीज़ है, दु:ख भोगिएगा । कर्मयोगी दु:ख भोगता है पर दूसरों को सुख देता है । दूसरों को सुख पहुंचाता है । अपनी inconviences को नहीं देखता । अपनी असुविधाओं को नहीं देखता । दूसरों को सुविधा पहुंचाए, वह कर्मयोगी है । दु:ख सहकर भी दूसरों को सुख दे तो वह कर्मयोगी है ‌। यही गीताचार्य भगवान् श्रीकृष्ण हमें समझा रहे हैं ।

स्वार्थ रहित कर्म, स्वार्थ मानो सुख की उंगली अपनी तरफ, अपने लिए ही चाहना, अपनों के लिए ही चाहना, यह स्वार्थ है । लेकिन दूसरों को देना, दूसरों के लिए चाहना, उनका हित करना, उनका हित सोचना, उनके लिए हितकारी बोलना, उनके लिए हितकर कर्म करना, यह नि:स्वार्थ है । कर्मयोग, कर्मयोग सीमित नहीं है, बहुत व्यापक चीज़ है । आइए ! कुछ दृष्टांतों के माध्यम से देखते हैं ।

आज एक साहूकार, देवियो ! घोड़ी है उसके पास । यातायात के साधन इस प्रकार के नहीं थे उस वक्त, जैसे अब ।
घोड़ियों पर जो अमीर लोग हैं, वह यात्रा इत्यादि किया करते । गरीब तो बेचारे पैदल ही चलते । साहूकार लोग, अमीर जो घोड़ी रख सकते थे, घोड़ा रखना जो afford कर सकते थे, वह घोड़ों पर यात्रा किया करते । किसी ज़रूरी काम से इस साहूकार को कहीं जाना है । घोड़ी बीमार है। अतएव जाना भी ज़रूरी है, कैसे जाया जाए ? पैदल चलने का अभ्यास नहीं रहा हुआ । शायद जल्दी भी पहुंचना हो । पैदल जाने से देरी हो जाती है । घोड़ी जल्दी पहुंचाएगी । दौड़ाते हैं लोग घोड़े घोड़ियों को।

बड़े भाई के पास गए जाकर कहा भैया ! मुझे अमुक स्थान पर बहुत ज़रूरी काम से जाना है ‌। मेरी घोड़ी बीमार है । मेहरबानी करके थोड़े समय के लिए मुझे अपनी घोड़ी दे दो तो मैं दोपहर तक लौट आऊंगा । आते ही घोड़ी आपको वापस कर दूंगा । बड़े भैया ने कहा छोटू घोड़ी घर पर नहीं है । बात खत्म हो गई । छोटे ने बड़े के पांव छुए और चलने लगा तो अंदर से घोड़ी के हिनहिनाने की आवाज़ आई । छोटा मुड़ा, बड़े भैया ! आपने तो कहा था कि घोड़ी अंदर नहीं है पर घोड़ी तो अंदर हिनहिना रही है । उसकी आवाज़ बाहर मुझे सुनाई दी है । मूर्ख ! बड़ा भाई कहता है, मूर्ख ! उस पशु की भाषा तेरी समझ में आ गई, लेकिन मेरी बात पर तुझे विश्वास नहीं । छोटू ने आंख बंद करे हाथ जोड़कर कहा-भैया आज इस घोड़ी ने मेरी आंख खोल दी । घोड़ी के अंदर स्वार्थ नहीं, पशु के अंदर स्वार्थ नहीं होता, पशु के अंदर अभिमान नहीं होता, स्वार्थ नहीं होता, इसलिए उसकी वाणी हर कोई समझ सकता है । मनुष्य को समझना बहुत कठिन है । इतनी सी बात कह कर छोटू चला गया । बहुत दिल पर बोझ लेकर छोटू जा रहा है ।

एक मामूली सी बात के लिए बड़े भैया ने मेरे साथ इतना बड़ा झूठ बोला है । यह मेरा भैया कहलाने योग्य नहीं है । कैसे मैं इनकी बात पर विश्वास करूं ? घोड़ी, पशु अधिक विश्वसनीय निकला । इतनी देर में बड़े को लगा कि छोटा रुष्ट गया है, असंतुष्ट गया है, अतएव भागते भागते पीछे गए छोटू को आवाज़ लगाई । रुको, घोड़ी ले जाओ । मेरे से भूल हो गई स्वार्थवश, लोभवश मेरे से झूठ बोला गया, मैंने बात छुपाई ।

स्वार्थ, साधक जनो ! यह सब कुछ
करवाएगा । जितने भी हम बैठे हैं, मोह ग्रस्त मानो स्वार्थी, मोह ग्रस्त । अर्थात् जिनको अपने और अपनों के अतिरिक्त कोई दूसरा दिखाई नहीं देता, वह कर्मयोगी नहीं हो सकता । ऐसों को मोह ग्रस्त कहा जाता है, जिन्हें सब कुछ अपने लिए और अपनों के लिए ही चाहिए । जो सब कुछ अपने लिए और अपनों के लिए ही करते हैं, उन्हें मोह ग्रस्त कहा जाता है । ऐसे व्यक्तियों को बच्चियो ! स्वार्थी कहा जाता है । ऐसे व्यक्ति कर्मयोगी नहीं हो सकते क्योंकि वह नि:स्वार्थी नहीं है ।

आज एक देवी का विवाह हुआ हुआ है । दो बच्चों की मां है । इतने वर्षों के बाद, बहुत adjustment के बाद, कोशिश करने के बाद भी, वह अपने ससुराल में adjust नहीं हो सकी । आज नौबत यहां तक आ गई दो बच्चों सहित वापस अपने मायके आ गई। दो बच्चों की मां, सोचिए आठ-दस साल हो गए होंगे, विवाह हुए हुए ।
Adjustment नहीं हो पाई । बेचारी ने बहुत कोशिश की होगी । लेकिन सफल नहीं हो पाई । एक भाई के घर गई है । निकाला तो नहीं जा सकता, बहन है ।
पांच हजार रुपए salary मिलती थी उस वक्त। उसमें से पांच सौ रुपए मकान का किराया, अपने बच्चे पढ़ने वाले, अपने भारी खर्चे, ऊपर से यह मुसीबत । अतएव भाई में चिड़चिड़ापन हो गया है । चिड़चिड़ा रहना शुरू कर दिया है । बिना वज़ह बच्चों को मारता है, बिना वजह पत्नी पर गुस्से होता है । अपमानित शब्द बहन को सुना सुना कर तो बोलता है । बेचारी वहां से निकली । यहां रहने योग्य नहीं तो कहां जाए ? बेबस है ।

वहां से छोड़ कर दूसरे भाई के पास गई है । बहन यह तेरा घर है । उस भाई की सोच कैसी है । बहन ! इसे अपना घर समझना । मुसीबत के दिन हैं, मिल कर काट लेंगे ।
जो रूखी सूखी मिले खा लेना । कभी हमारे से किसी प्रकार की भूल हो जाए, किसी प्रकार की बहन ! हमारी तरफ से कमी रह जाए, आखिर मैं हूं, मेरी पत्नी है, परिवार है, कुछ ना कुछ घर में रहते हुए कुछ होता ही रहता है, आपकी सेवा में किसी भी प्रकार की कोई कमी रह जाए, तो हमें माफ करती रहना । फिर कहूंगा बहन मुसीबत के दिन है कट जाएंगे, सब मिल कर काट लेंगे ।

साधक जनो ! दोनों भाईयों की सोच में कितना अंतर है । बहन बेशक ऐसा ना कहे लेकिन संसार को तो दिखाई देता है । एक बहन की बद्दुआ का पात्र है और दूसरा बहन की शुभाशीष का पात्र है । ऐसा होता भी होगा, कोई बहन देवी नहीं है । आखिर सामान्य व्यक्ति है । ज़रूर उसके मुख से इस प्रकार की बात निकलती होगी । जहां देवियो ! दूसरों को सुख देने की बात सज्जनो ! आती है, आपने शब्द सुना होगा, परमात्मा की प्रीति अर्थ कर्म करो वह कर्म, कर्मयोग बन जाते हैं । जहां दूसरों को सुख पहुंचाओगे वहां परमात्मा को प्रसन्न करने की बात
होगी । परमात्मा इससे प्रसन्न होता है । ऐसे कर्मों को परमात्मा के प्रीति अर्थ किए गए कर्म कहा जाता है । यह शब्द आपने सुना होगा । इसलिए विशेष तौर पर इस दृष्टांत को आपकी सेवा में रखा गया है ताकि इस शब्द से भी आप परिचित हो सकें । परमात्मा की प्रसन्नता के लिए किये गये कर्म “प्रभु प्रीति अर्थ कर्म” कहे जाते हैं । जहां परमात्मा प्रसन्न हो गया वहां काम बन गया । वह आपको जन्म मरण के चक्र के बंधन से मुक्त कर देगा । उसकी प्रसन्नता ही तो है ना । मीरा कहती है ना “राम रसिया रिझाऊं नी माए” मानो उनके रीझने से मेरा सब कुछ ठीक हो जाएगा । मैं अपना राम रिझाऊं, मैं अपना परमात्मा रिझाऊं । अपने कर्मों से रिझाओ, भक्ति से रिझाओ, योग से रिझाओ, किसी भी ढंग से परमात्मा प्रसन्न होता है तो उन सब कर्मों को प्रभु प्रीति अर्थ कर्म कहा जाता है । परमात्मा की प्रसन्नता के लिए कर्म कहा जाता है ।

आज साधक जनो ! कर्मयोग की चर्चा को समाप्त करते हैं । एक ही बात मुख्यतया, बाकी याद रखिए ना रखिए, एक बात तो ज़रूर याद रखिएगा, इन कर्मों में विष घोलने वाला एक ही तत्व है जिसे doership कहा जाता है, कर्तापन का अभिमान कहा जाता है। इस कर्तृत्व को बीच में से निकाल दें, तो ऐसा ही कर्म हो जाता है जैसे सांप के मुख में से विष की थैली निकाल दी जाए फिर उसे बेशक गले में डालो, उसे पिटारे में डाल लो, वह कुछ नहीं बिगाड़ सकता आपका ।

वैसे ही जिस कर्म से कर्तापन का अभिमान doership आपने निकाल दी, जो कर्म आपने परमात्मा को समर्पित कर दिया, क्या अर्थ है इसका ? परमात्मा को समर्पित करने का, मात्र अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है । परमात्मा ! मैं तेरी कृपा के बिना कुछ नहीं कर सकता, मैं तेरी शक्ति के बिना कुछ नहीं कर सकता । मैं अपने आप में करने योग्य कुछ नहीं हूं । दिनभर आपने जो कुछ करवाया है, सब आपकी कृपा से हुआ है‌, सब आपकी शक्ति से हुआ है । आप के बल से हुआ है । यदि आप अभी तक इस स्थिति तक नहीं पहुंचे कि यह कह सकें कि परमात्मा सब कुछ तेरी इच्छा से हुआ है, यह कठिन काम है । इसके लिए बहुत लंबी साधना चाहिए । तब जाकर यह अक्ल आती है, यह बोध होता है कि सब कुछ परमात्मा की इच्छा से होता है ।
पर इस बात पर तो हर एक को टिकना चाहिए कि सब कुछ परमात्मा की कृपा से होता है, सब कुछ परमात्मा की शक्ति से होता है ‌। यह कड़छी हिला रही हुई बांह किस वक्त रुक जाएगी कुछ नहीं कहा जा सकता ।

एक महिला किसी dentist के पास गई है दांत निकलवाने के लिए ।
Dentist महोदय ने एक injection लगाया है । Injection लगाते ही कुछ मिनटों में यह सारे का सारा भाग paralyse हो गया है । बेचारी चलती फिरती शव की तरह जीवन हो गया है । कुछ करने योग्य नहीं मानो हंसने योग्य भी नहीं है । बच्चे पास खड़े हैं उनसे प्यार करना चाहती है । प्यार नहीं कर सकती उनसे । बोलना चाहती है बोल नहीं सकती क्यों ? सब कुछ ही उसका खत्म हो गया । मानो परमात्मा ने अपनी दी हुई शक्ति जो है, वह बीच में से खींच ली । होता कुछ भी है, लेकिन सत्य तो यही है, इस सत्य को हर एक को पहचानना चाहिए, समझना चाहिए। Doership बीच में से निकल जाएगी, जीवन बहुत सुरक्षित हो जाएगा ।

चलती गाड़ी, एक कार जा रही है, बच्चे को नीचे लाकर तो कुचल देती है‌ । बच्चा on the spot मर जाता है । आज तक देखा है किसी कार को सज़ा मिलती । कभी नहीं, कार तो बिल्कुल ठीक की ठीक रहती है। चलाने वाले को सज़ा मिलती है । मारने वाली तो गोली है, बंदूक में से, pistol में से गोली चलती है । गोली से हत्या होती है। लेकिन उस गोली को कभी कोई सज़ा नहीं देता । सज़ा मिलती है जो गोली चलाने वाला है । इस प्रकार से देवियो सज्जनो ! अपने जीवन से यह doership निकाल दोगे, करने वाला मैं नहीं, करने वाला परमात्मा है । जब यह इस बात का बोध हो जाएगा तो आप कर्म करने के बावजूद भी किसी फल के भोगी नहीं रहोगे ‌। किसी फल के भागी नहीं रहोगे । इस प्रकार से कर्म देवियो सज्जनो ! अपने कर्मयोग बनाईएगा । शुभकामनाएं, मंगलकामनाएं आप सबको । धन्यवाद ।

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