July 7 साक्षात्कार के पश्चात

परम पूज्यश्री विश्वामित्र जी महाराज़श्री के लेखों में से

स्वामीजी यहीं (डलहौज़ी ) रहा करते थे। उनकी देखभाल व कोठी की देखभाल के लिए लाला जी का मुनीम ” महाजन ” भी यहीं नीचे रहता था- एक रात खूब वर्षा हुई – गड़गड़ाती की आवाज़ आई। महाजन ने सोचा- कोई खिड़की तो खुली नहीं – बाहर निकले। स्वामीजी के साधना के कमरे में झाँका – तो देखा वह शीर्षासन लगाए हुए हैं, सोचा इनको कोई मार कर उल्टा लटका गया है और चुप चाप अपने कमरे में चले गए।

नींद कहाँ आए- प्रात: जल्दी उठ कर फिर झाँका, तो स्वामी जी वहाँ नहीं थे- इतने में स्वामी जी ने उनका कन्धा पकड़ा और कहा क्या देख रहे हो? महाजन ने सारा हाल सुनाया- कहा कि शुक्र है और ज़िन्दा हो। स्वामी जी हंस कर कहने लगे परमेश्वर को पाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। महाजन ने भोलेभाव से पूछा कि परमेश्वर को कब पाएँगे? स्वामी जी ने कहा,” अब थोड़े दिनों की बात है” – इतना कह कर सैर चले गए ।

… व्यास पूर्णिमा आ गई – स्वामी जी ने प्रात: लाला से से कहा कि मिठाई मंगवाएँ – एक बर्फ़ी का डिब्बा आ गया- स्वामी जी ने एक टुकड़ा लिया और शेष महाजन को दे दिया- महाजन ने कहा, ” स्वामीजी मैं इतना क्या करूँगा? ” स्वामीजी ने कहा,” अरे रख ले, खा लेना, आज खुशी का दिन है।” महाजन ने पूछा “महाराज कैसे? ” स्वामीजी ने कहा,” जो तू कहता था वह हो गया।” दोनों बहुत प्रसन्न थे।

आधी रात के समय ऐसे लगा धरती हिल रही हो- फिर घंटे बजे-शंख बजे- प्रकाश हुआ- स्वामीजी सुनकर प्रसन्न होते रहे।

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