भक्ति- अविनाशी सुख 1c

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1c

7:50 – 13:06

गणेश जी कहते हैं कि पिता जी की आज्ञा है। रास्ते में अनेक तीर्थ आएँगे और आप जैसे संत महात्मा कोई रास्ते में मिल जाएँगे तो उनके दर्शन होते जाएँगे । देखो न कृपा हुई मेरे ऊपर आज आपके अकस्मात दर्शन हुए । देव ऋषि नारद गुरू महाराज हैं। अति प्रसन्न हो गए । वाह गणपति ! मैं जैसा समझता था तूने वैसा ही उत्तर दिया और तूने वैसा ही किया । शाबाशी दी और कहा बेटा अभी राम शब्द यहाँ लिख एक परिक्रमा लेके भगवान शिव की गोदी में जाकर बैठ जा और कह ऐसे करके मैं आया हूँ मेरी परिक्रमा पूर्ण हो गई । पूछेंगे कैसे ? तो बोलना, सोचो न भक्तजनों इस नश्वर संसार के मूल में कौन है वही न । सत्य मूलक है रचना सारी स्वामीजी महाराज ने लिखा है। इस रचना के पीछे मूल में कौन है ? इस सारे संसार के मूल में कौन है ? वही राम जिसका आप चक्कर परिक्रमा लगा कर जा रहे हो । जाओ आप ही प्रथम पूजनीय हो । आप ही प्रथम पूजा के अधिकारी हो।

गुरू ने एक युक्ति बता दी।

अहल्या तर गई । प्रश्न उठा कैसे ? क्या भगवान के चरणों से? या भगवान की चरण धुलि से ? देखो विश्लेषण कैसे करते हैं संत महात्मा । हम जैसों को चरणों व चरण धुलि में कोई अंतर नहीं दिखाई देता, लेकिन जो समझने वाले हैं वे प्रश्न करते हैं।अहल्या तरी किससे भगवान की चरणों से या चरणों की धुलि से। धूलि तो जनकपुरी आते आते भगवान को मिली । पहले नहीं थी । यदि चरणों से त्रि तो क्या अयोध्या में इससे पहले पत्थर नहीं थे लेकिन कोई कहता तो नहीं है कि अयोध्या का पत्थर कर गया । बड़ा प्रश्न !

भगवान से यह प्रश्न पूछा गया कि आप क्या कहते हैं। भगवान श्रीराम बड़ा सुंदर उत्तर देते हैं। कहते हैं भक्तजनों मात्र राम शब्द की रटन करते रहोगे तो वह मेरे चरणों के तुल्य है। उससे कुछ विशेष बात बनने नहीं वाली । जैसे राम शब्द में दो अक्षर वैसे ही मेरे दो चरण । इनकी मात्र रटन करते रहोगे तो मेरे चरणों से कोई तरने वाला नहीं। इस प्रकार की रटन से यदि चरण धूलि मिल जाएगी मानो गुरू कृपा हो जाएगी, तो मेरे चरणों से अनुराग होने लग जाएगा। यहाँ फिर एक बात स्पष्ट करता हूँ , पार करने के लिए न मेरे चरणों में समर्थ है न चरण धुलि में समर्थ है। एक और चीज़ है। यदि गुरूदेव विश्वामित्र मुझे आदेश न देते कि राम अपनी चरण धुलि से तार दो तो मैं वह काम कभी न कर पाता ।

नाम , नाम के साथ अनुराग और उसके ऊपर गुरूकृपा नहीं होती बड़े भेद की बातें हैं। यह भेद की बातें खोली भी नहीं जा सकती । पर यदि गुप्त रखता हूँ तो अपने आपको दोषी मानूँगा । यह बातें स्पष्ट होनी चाहिए ।

आपको जाप करते करते गुरू जब थक जाता है, गुरू कहता है मैं भी इसको देखकर थक गया हूँ । जाकर परमेश्वर से प्रार्थना करता है, परमात्मा , इस भक्त की मैं साक्षी देता हूँ इसने बहुत जप किया है अब इसके ऊपर कृपा कर दो।तो कृपा होगी।

Contd …

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