भक्ति- अविनाशी सुख 1d

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1d

13:06 – 16:48

किसी ने कबीर जी महाराज से पूछा राम नाम का इतना प्रताप गाया है क्या बात है महाराज कि जो आपको प्राप्त हुआ वह अभी तक हमें नहीं हुआ । प्राप्त क्या अभी तक अनुभव भी नहीं किया ।

कबीर जी महाराज एक सुंदर उदाहरण देते हैं। कहते हैं, एक किसान है । उसके पास बड़ी सुंदर उपजाऊ भूमि है। अति अच्छा बीज उसने बो दिया है। खाद बहुत अच्छी है, सिंचाई भी अच्छी है, वर्षा भी हो गई । इत्यादि जो कुछ भी हुआ हो गया । फसल भी सहलाती । खेत सब वह लहा रहा है। कबीर साहब कहते हैं अब यदि यदि कोई मूर्ख व्यक्ति अपने ही खेत में कुछ पशु छोड़ देता है तो साधक जनों ऐसे किसान को कुछ मिल नहीं पाएगा । फसल तैयार है। स्वयं ही तैयार की है। पर यदि पशु छोड़ दिए तो फसल हाथ कभी नहीं आएगी ।

यही कबीर साहब कहते हैं यह हालत बिल्कुल हमारी है। नाम की कमाई बहुत करते हैं बहुत जपते हैं लेकिन कामना रूपी पशु बीच में छोड़ देते हैं। और सारी की सारी फसल हम बर्बाद कर देते हैं। उनको चरा के। इसलिए भक्तजनों बड़ी सुंदर बात भगवान श्री राम लक्ष्मण जी के साथ जब विश्वामित्र जी के यज्ञ पूर्ति के लिए आए जानते हो सबसे पहले किस को मारा । याद है न आपको । महर्षि विश्वामित्र ने कहा यह ताड़का मिलने वाली है। सबसे पहले इसको मारो । क्यों ? संत महात्मा कहते हैं यह ताड़ता दुर्आशा है । आशा नहीं दुर्आशा। दुर्आशा उसे कहा जाता है नाम तो परमात्मा का जपो लेकिन आशा संसार से रखो इसको संत महात्मा दुर्आशा कहते हैं। तो हमारा प्रथम शत्रु कौन ? ताड़का । यही तो हम कर रहे हैं। नाम तो हम परमात्मा का जपते हैं लेकिन आशा औरों से रखते हैं। यह दुर्आशा है।

भगवान कितना अपमानित अपने आप को मानते होंगे कि यदि मेरा नाम जपते हुए भी दूसरों के ऊपर दृष्टि रख रहा है। आँखें दूसरों पर रख रहा है। इसे इतना विश्वास नहीं कि मैं इसे क्या का क्या दे सकता हूँ। आशा इक राम जी दूजा आशा छोड़ दे ।विश्वामित्र के आदेश से दुर्आशा को पहले मरवा दिया । दुर्आशा को मरवा दिया ।

Contd …

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