भक्ति- अविनाशी सुख 1d

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1d

16:48 – 20:30

भजन में जिस सुख की अनुभूति की चर्चा की गई है जब तक वह अनुभूति नहीं होती तब तक हमें चैन नहीं आता भक्तजनों । हमारी बेचैनी का कारण ही एक है कि उस सुख की अनुभूति आज तक नहीं हुई । इसलिए बेचैन बने हुए हैं। परमेश्वर तेरी कृपा हो, तेरी कृपा से उस सुख की अनुभूति कभी भी तू करवा दे कभी भी हो जाए तो जन्म जन्मान्तर की बेचैनी हमारी दूर हो जाएगी । कृपा कर हम पर । कृपा कर कृपा कर कृपा कर।

मैं अपना मन हरि संग जोड़ा हरि सों जोड़ सभी से तोड़ा

साधक जनों पहला भाग तो सम्भव हो सकता है । लाख प्रयत्न के बाद गुरू कृपा से पहला भाग तो सम्भव हो जाता है। लेकिन दूसरा भाग असम्भव ही बना रहता है। सब से टूटती नहीं है । परमेश्वर से जुड़ सकती है, लेकिन सबसे टूटती नहीं है। यह बहुत कठिन बात है । मोह छूटता नहीं। कहना बहुत आसान है करके दिखाना बहुत कठिन ।

अविनाशी सुख की चर्चा कुछ सप्ताह से चल रही है। ऐसा सुख जिसे प्राप्त करके फिर और कुछ प्राप्त करने की चाह नहीं रहती । पिछले कुछ सप्ताह से इसी सुख की चर्चा चल रही है। आज इस चर्चा को विश्राम देने का प्रयत्न करते हैं।

अविनाशी सुख अर्थात् सर्वोत्कृष्ट सुख । सदा रहने वाला सुख । सबसे बड़ा सुख । सबसे ऊँचा सुख । आत्यानतिक सुख जिसे कहा जाता है । परमानन्द जिसे कहा जाता है। शाश्वत शान्ति जिसे कहा जाता है। परमात्मा का मिलन जिसे कहा जाता है, भगवत् प्राप्ति जिसे कही जाती है। राम मिलन जिसे कहा जाता है। आत्मा का साक्षात्कार जिसे कहा जाता है। परमात्मा का साक्षात्कार जिसे कहा जाता है। उसी को अविनाशी सुख कहा जाता है। परम धाम भी इसे ही कहा जाता है। मानो मानव जन्म की उच्चतम उपलब्धि एक ही उपलब्धि जिसके लिए यह मानव जन्म मिला है वो है अविनाशी सुख की प्राप्ति । जब तक यह प्राप्त नहीं होता, तब तक जीवन कृत कृत नहीं होता अधूरा पन बना रहता है। जैसे ही इसकी प्राप्ति हो जाती है बस सबकुछ मिल जाता है। उसके बाद कुछ और पाने की इच्छा ही नहीं होती ।

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