भक्ति- अविनाशी सुख 1d

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1d

20:30 – 23:30

सुख तो हमारे भीतर है लेकिन खोज हमारी बाहर है । प्रयत्न ही ग़लत है तो इसलिए सुख मिलेगा कहाँ से ? बाहर जहाँ हम ढूँढ रहे हैं वहाँ तो सुख है ही नहीं । आप कहोगे नहीं यह झूठ बोलता है। सुख बाहर तो है। खाते हैं सुख मिलता है भोग भोगते हैं सुख मिलता है। पुत्र जन्मता है सुख मिलता है इत्यादि इत्यादि । सुख तो मिलता है पर वह क्षणिक है। वह सुख वह सुख नहीं जिसकी खोज के लिए मानव जन्म मिला है।वह तो क्षणिक सुख है आया और चला गया ।

नाश्ता किया । बहुत अच्छा नाश्ता किया, पेट भर कर नाश्ता किया । जितना मर्ज़ी पेट भर लीजिएगा । दोपहर को खाना नहीं खाएँगे तो रात को तो अवश्य खाएँगे । इतनी ही अवधि है उस सुख की । लेकिन खोज जो है लक्ष्य जो है वह है अविनाशी सुख प्राप्त नहीं होता, अनेक जन्म भी बीत जाते हैं, तो भी उदासी दूर नहीं होती । यही तो कहते हो न बहुत देर हो गई है भजन पाठ करते हुए जीवन समाप्त होने को आ रहा है लेकिन उदासी या अशान्ति अभी तक बनी हुई है । वह तब तक बनी रहेगी जब तक वह अविनाशी सुख की प्राप्ति नहीं होती ।

भीतर है वह सुख । वह सुख बाहर नहीं है। बाहर वाले संसार में व्यवहारिक संसार में वह सुख नहीं है। एक बात जान लीजिएगा। वह सुख जो भीतर का संसार है वह वहाँ है। भीतर मुड़ना कठिन है। परमेश्वर ने हमारे साथ बड़ा भारी खेल खेला हुआ है। हमारी सारी की सारी इंद्रियाँ बाह्य मुखी बनाई हैं, लेकिन संत कहते हैं भीतर मुड़िएगा तब बात बनेगी । आँख बाहर की ओर देखती है, कान बाहर की ओर है नासिकाएँ बाहर की ओर हैं। सब की सब देख लीजिएगा सब इंद्रियाँ बाहर की ओर हैं। भीतर की ओर कोई नहीं है। लेकिन संत महात्मा कहते हैं कि जब तक भीतर नहीं मुड़ोगे तब तक अविनाशी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि वह सुख भीतर है। बाहर नहीं ।

Contd …

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