भक्ति- अविनाशी सुख 1e

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1e

23:30 – 27:15

सर्वोत्कृष्ट सुख – बहुत बड़ी चीज़ जब संसार में पानी हुआ करती है तो छोटी छोटी चीज़ों का त्याग करना पड़ता है। तब वह बड़ी चीज़ मिलती है। मुट्ठी में यदि चाहते हो कि हीरे मोती भरने हैं तो पहले जो पत्थर भर रखे हैं उन्हें छोड़ना पड़ेगा निकालना पड़ेगा तभी उस मुट्ठी में हीरे भरे जा सकेंगे । हीरे ज्वाहारात भरने हैं पत्थरों की बात छोड़िएगा चाँदी सोना भी यदि मुट्ठी में भर रखा है तो उसे भी त्यागना होगा । तभी तो उच्चतम चीज़ की प्राप्ति होगी ।

एक गाँव में बड़ा पुराना प्रसिद्ध मंदिर है, अपर्णा देवी का मंदिर । किसी एक व्यक्ति की दुकान पर बड़ा भारी रश । सारा साल यहाँ यात्री आते रहते हैं। लेकिन एक ही दुकान पर भारी रश । कुछ एक यात्री उसके पास गए कहा लाला जी क्या बात है? आप ही की दुकान पर रश है बाकि सब बेकार बैठे हैं। कहने लगा, इसके पीछे एक रहस्य है । मेरी भी हालत बिल्कुल ऐसी ही थी । मेरी दुकान पर कोई नहीं आया करता था । खाने के लिए घर में रोटी नहीं। ऐसे ही बैठे रहते थे जैसे और दुकानदार बैठते हैं। एक दिन एक महात्मा आए ।

मैंने अपनी व्यथा वर्णन करी । महात्मा ने कहा, कुछ पाना ही पाना चाहते हो या कुछ देना भी चाहते हो । मैं उनकी बात समझ नहीं सका । उन्हें कहा। थोड़ा स्पष्ट करके समझाइएगा । महात्मा ने कहा तुम्हारे घर में कुआँ है । पीछे घर है आगे दुकान है। एक कोने में प्यऊ आरम्भ कर । लोगों को पानी पिलाना शुरू कर। मैंने उनके कहे अनुसार दुकान के एक कोने में प्यऊ खोल लिया कभी मैं बैठता कभी मेरी पत्नी बैठती । कभी मेरा पुत्र । पानी पिलाता । घर के ही आँगन में एक पेड़ था वहाँ दो चार चारपाइयाँ बिछा दीं। यात्री लोग आने लग गए, पानी पीते थोड़ी देर विश्राम करते । विश्राम करते फिर पानी पीते। इस प्रकार मेरे घर में और प्यासे में तांता लगने लग गया । सारे के सारे ग्राहक मेरी ओर मुड़ने लग गए । अब दो नौकर भी हैं मेरे पास तब भी मेरा काम निपटता नहीं।

कुछ पाना चाहते हो तो कुछ छोड़ना पड़ेगा । कुछ त्यागना पड़ेगा । इसके बिना काम नहीं चलता । स्वामी रामसुखदास जी महाराज की कथनी बड़ी सुंदर याद आती है, भक्तजनों जीवन में कुछ भी बन जाओ बहुत बड़े वक्ता बन जाओ संगीतकार बन जाओ विद्वान बन जाओ कथा वाचन बन जाओ , अनेक किताबें लिख डाले करोड़पति बन जाओ गुरू की पगड़ी प्राप्त कर लो लोगों लें जय जय कार करवाओ यश मान की प्राप्ति होने लग जाए । स्वामीजी महाराज कहते हैं जब तक संसारिक सुख की चाह बनी रहेगी तब तक अविनाशी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती ।

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