भक्ति- अविनाशी सुख 1g

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1g

30:35 – 33:44

मुझसे कुछ माँगना है तो विलक्षण चीज़ माँग । देख सर्प है मेरे गले में , सर्प काल का प्रतीक है। सर्प दुख का प्रतीक है । भक्त, तूने इतनी देर भक्ति की है, तेरे मन में यह बात आनी चाहिए कि कौन सा अमृत है इस महात्मा के पास, क्या है भगवान के पास जिसके कारण इसने काल को अपने सीने से लगा रखा है । अरे ! वह अमृत मुझसे क्यों नहीं माँगता । वह भक्ति रूपी अमृत मुझसे क्यों नहीं माँगता ? मुझे देखकर तेरे मन में अमृत माँगने की चाह नहीं उठती ? अरे ! मेरे सामने आए हुए भी यदि कपड़ा धन दौलत मकान कारें ही माँगनी है ! यह तो बाज़ार दुकानों में भी मिल जाती हैं, संसार में भी मिल जाती हैं। मेरे से वह चीज़ मांग जो मेरे सिवाय और कोई नहीं दे सकता ।

भक्ति माँग मेरे से ! मेरे से मुझको ही माँग मेरे भक्त । यह मेरे सिवाय कोई नहीं दे सकता । जोहरी के पास भी जाके कोयला कोई माँगें ? होता है उसके पास भी रखा हुआ ।पीछे रखा होता है देने के लिए । पर कोयले से तो मुँह काला ही होता है । यह भी तो ध्यान में रखने वाली बात है। जोहरी तो बहुत कुछ दे सकता है। उससे वह चीज़ क्यों नहीं माँगते ।

भक्तजनों एक ही साधन मन में आता है। एक ही साधन परमानन्द की प्राप्ति करवाने वाला है, जो अत्यान्तिक सुख की प्राप्ति करवाने वाला है। जो अविनाशी सुख की प्राप्ति करवाने वाला है। वह है भगवान के श्रीचरणो में उसकी प्रीति, उसकी भक्ति । जानते हो ? जब आप लोग जप करते हो , उस जाप का माप दण्ड क्या है ? हमारा जाप ठीक चल रहा है, ठीक दिशा में। चल रहा है, या मात्र् गिनती ही बढ़ रही है। बहुत लोगों ने नियम बना रखा है इतना जाप करना है । नियम तो निभ रहा है लेकिन प्रेम प्रकट नहीं हो रहा ।

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