भक्ति- अविनाशी सुख 1i

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1i

37:12 – 40:47

शरण में जाएँ तो जाएँ कैसे ? आइए इसपर थोड़ी चर्चा कर लेते हैं। पिछली सप्ताह इसी निष्कर्ष पर पहुँचे थे न कि अविनाशी सत्य की प्राप्ति करनी है तो हमारी साधना के अनुसार व अन्य साधनाओं में भी भक्ति एक मात्र साधन कहा जाता है जो हमें उस अविनाशी पद की प्राप्ति करा देते हैं। उस परमानन्द की प्राप्ति करा देते हैं। अन्य साधन मोक्ष को प्राप्त करवा देते हैं लेकिन परमानन्द की प्राप्ति बिना भक्ति के नहीं होती । यह ज्ञानी स्वीकारता है कर्मयोगी भी मानता है भक्त भी मानता है एवम् शरणागत भी मानता है।

यह भक्ति कैसे प्राप्त हो ? जब भक्ति ही एक मात्र साधन है परमानन्द की प्राप्ति का उस परम शान्ति की प्राप्ति का तो उसे कैसे प्राप्त किया जाए ?

देवऋषि नारद जो भक्ति के आचार्य हैं। ब्रह्मा जी के बाद उनका दूसरा नं० आता है। नारद भक्ति सूत्र में वे वर्णन करते हैं, कुछ एक साधन सभी साधनों का उल्लेख आपकी सेवा में न करके अन्त में इस संदर्भ में वे अपना निष्कर्ष निकालते हैं, एक ही प्रमुख साधन है इस भगवद भक्ति की प्राप्ति का। मत सोचिएगा कि यह अल्प बुद्धि कुछ अपने मन से बोल रहा है, कुछ नहीं बोल सकता। नारद भक्ति सूत्र पढ़िएगा सब चीज़ आपको वहाँ लिखी मिलेगी ।

क्या साधन है ? भक्ति ही भक्ति का साधन है।एक चिंगारी से सब फैलते देर नहीं लगती । यह चिंगारी भी कैसे लगे? चिंगारी के लिएं या तो दूसरी चिंगारी होनी चाहिए कम दिया सलाई से लगा सके, तो ही को लगे गी । इसलिएं अन्य साधनों को छोड़ कर शास्त्र की भाषा प्रस्तुत की जा रही है। वे कहते हैं किसी सत्पुरुष का संग मिल जाए किसी सत्पुरुष कि कृपा हो जाए तो भक्ति मिला करती है। उसकी कृपा के बिना भक्ति नहीं मिला करती ।

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