भक्ति- अविनाशी सुख 1k

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1k

40:47 -,44:14

श्रीमद्भागवत में जड़ भरत का नाम आपने सुन रखा है। स्वामीजी महाराज ने जड़ भरत पर कथा लिखी । पढ़ लीजिएगा । आप जानते ही हैं राजा रघुकुल पाल्की लिए जा रहा है उनको एक व्यक्ति पाल्की उठाने के लिए चाहिए । जड़ भरत हट्टा कट्टा है मोटा ताज़ा है। उसको पकड़ कर पालिका उठाने के लिए रख लेंगे। जड़ भरत की साधना अद्वीतीय । जड़ हो गया हुआ है वह । उसे करने में कोई कठिनाई भी नहीं। कठिनाई तो हमें जो अभी तक जड़ नहीं हुए । भरत जड़ हो गया हुआ है। रघुकुल को उपदेश देता है।

राजन् भक्ति या ईश्वरीय प्रेम किसी तपस्या का फल नहीं है। जड़ भरत के शब्द सुनिए माताओं । यह किसी तपस्या का फल नहीं है। भगवत् प्रेम किसी यज्ञ द्वारा मिला नहीं करता । भगवद प्रेम घर एवं परिवार छोड़ने पर भी नहीं मिला करता । भगवद् प्रेम सूर्य आदि की उपासनाओं से भी नहीं मिला करता । राजन् ! किसी संत महात्मा की किसी भक्त की चरण धुलि में लोट पोट हुए बिना यह भगवद् प्रेम नहीं मिला करता । कोई संत महात्मा कोई भक्त भगवान का जो अति प्रिय है, उसकी चरण धूलि मिल जाए , जिसमें व्यक्ति लोट पोट हो जाए , मानो उसकी चरण शरण जो ग्रहण कर लेता है, वह उसे स्वीकार कर लेता है, तो उसे वह निहाल होके भक्ति दे देते हैं। इसके बिना भक्ति नहीं मिलती। इस मुख्य बात को याद रखें ।

एक बात इसके साथ ही मिलती जुलती और है, यह तो बात स्पष्ट हुई शास्त्र कहते हैं। भगवान अपने श्रीमुख से नहीं कहते हैं। मेरे से प्रेम क्या माँगते हो। मैं तो स्वयं प्रेम का भूख हूँ मेरे से प्रेम क्या माँगते हो ।उनके पास जाओ जो प्रेम के धनि हैं, मेरे प्रेमी हैं। उनसे जाके माँगो , उनसे भक्ति मिलेगी । मुझे लगता है भगवान थोड़ी संतों महात्माओं की बढ़ाई कर रहे हैं, यह उनका बड़प्पन है। संत महात्मा भी भक्ति कहाँ से देगा? संत महात्मा भी प्रेम कहाँ से देगा ? एक ही तो स्रोत है न भक्ति अथवा प्रेम का । और वे हैं भगवान स्वयं। उसी से लेकर तो देगा।

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