भक्ति- अविनाशी सुख 1L

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvrA003)

भक्ति- अविनाशी सुख 1L

44:14 – 51:13

राम कृपा के बिना राम प्रभुताई जानी नहीं जाती । राम कृपा के बिना उसकी कृपा हम पर नहीं होती । तो एक ही बात याद रखिएगा, एक ही स्रोत, एक ही source, याद रखिएगा, भगवदभक्ति का, भगवद् प्राप्ति का, प्रेम की प्राप्ति का और वह है भगवान की कृपा ।

कैसे मिले ?

संत महात्मा गाते हैं, भगवान कल्पतरु है। कल्पतरु और पाक् कल्पना का वृक्ष । उनसे जो माँगो वह मिलती है। एक छोटी सी कहानी । एक व्यक्ति थका माँदा, एक वृक्ष के नीचे लेट गया। मन में आया कि इस वक्त कुछ खाने को मिल जाए तो । क्या अच्छा । कल्पनतरु था । मानो हमारी हर कल्पना को पूर्ण करने वाला । स्वादु भोजन । बड़े सुंदर थाल में सजा हुआ उस व्यक्ति के सामने सदा हुआ आ गया खा लिया । पेट भरा और मन में आया कि यदि इस वक्त विश्राम का भी कोई साधन मिल जाए, चारपाई आ जाए, बिस्तर लग जाए तो आराम कर लूँ । चारपाई और बिस्तर लग गया । सोने लगा तो मन में विचार आया, निर्जन वन है उसी वक्त कोई भूत आ गया, मुझे खा लिया तो !

यही हाल हमारी है । संत महात्मा कल्पतरु से, परमेश्वर कल्पतरु से, कामनाएँ पूर्ण तो करते हैं, पर अंत क्या होता है कि भूत आता है और खा जाता है। जन्म इसी प्रकार से बीते जा रहे हैं। अब तक वह नहीं माँगा जो माँगना चाहिए । इसलिए दो दृष्टान्त, एक रामायणजी से और दूसरे श्रीमद्भागवत दी से। क्या चाहिए परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए?

काकविशुण्डीजी महाराज बाल रामजी से अयोध्या में खेलने जाते हैं, राजा दशरथ के आँगन में । हर युग में जाते हैं। यह उनका नियम है। आज माँ कौशल्या में मालपूआ खाने को दिया । रोज़ दिया करते अपनी जूठन काकविशुण्डजी को खाने के लिए। आज जूठन नहीं दे रहे। परमात्मा नित्य हमारी कामनाओं को पूर्ण करता है, सोच विचार कर देखना भक्तजनों। उसके अतिरिक्त इस संसार में कोई ऐसा नहीं है जो हमारी कामनाओं को पूर्ण करता है। कभी किसी रूप में आकर करता है कभी किसी के रूप में। पति के रूप में बाप के रूप में आचार्य के रूप में आकर हमारी कामनाओं को पूर्ण करता है। आज काकविशुंण्डी जी की कामना पूर्ण नहीं हो रही इसलिए रामजी के प्रति संदेह आ गया । कैसी है यह? कहते हैं भगवान उदार है लेकिन कितना कंजूस है यह कि अपने मुख से झूठा मालपूआ मुझे नहीं दे रहा। यह राम है भी कि नहीं। हैं न हमारे से मिलती जुलती बात ! नित्य कामनाएँ। पूरी होती हैं तो भगवान । आज किसी कामना की पूर्ति में भगवान ने देरी कर दी तो संदेह मन में उठता है, यह राम है भी कि ऐसे ही है।

अविश्वास जीव को परमात्मा से दूर से जाता है। इसलिए काकविशुण्डी जी महाराज भगवान राम से दूर जा रहे हैं। आगे आगे काकविशुण्डी पीछे उनकी बाँह । बिल्कुल हमारे जैसे। पीछे मुड़ कर देखने का स्वभाव ही नहीं है हमारा कि मुड़ कर देख भी लें। गरुड जी को कथा सुना रहे हैं काकविशुण्डी । कोई ऐसा स्थान नहीं जो मैंने छोड़ा हो। जहाँ देखूँ भगवान की भुजा मेरे पीछे। गरुड जी कहते हैं कि फिर तो आपको पकड़ लिया होगा । काकविशुण्डी कहते हैं, न । मात्र दो अंगुल का अंतर रह गया। जब भी मैं देखता मात्र दो उंगल का अंतर रहा। यह दो उंगल का अंतर क्या है?

आज भगवान भक्त को पकड़ने जा रहे हैं, तो भी दो उंगल का अंतर । श्रीमद्भागवत में माँ यशोदा भगवान कृष्ण को बांधने जा रही है तो भी दो उंगल का अंतर । भगवान पकड़ में नहीं आ रहे । क्या है यह दो उंगल का अंतर । संत महात्मा कहते हैं, एक परमेश्वर की उंगल और एक जीव की अंगुल । उसकी कृपा के बिना कुछ सम्भव नहीं। लेकिन उसकी कृपा भी तब सम्भव है जब जीव भी अपनी अंगुल बढ़ाता है।

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