परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से
( SRS दिल्ली website pvrA003)
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51:13 – 55
भगवान सर्वसमर्थ होते हुए भी कल्पतरु होते हुए भी करुणानिधान होते हुए भी वह कृपा जो वह बरसाना चाहता है, वह, वह कर नहीं सकता ।क्यों ? आपके अंदर जो इच्छा वाली जो पुकार वाली जो उँगली है जो प्रार्थना वाली उँगली है वह आपने अभी तक बढ़ाई ही नहीं। आपको छोटी मोटी इच्छा होती है तो वह बूंदा बाँदी कर के चला जाता है। लेकिन मूसलाधार वर्षा तभी होती है जब वह इच्छा जो है वह परमेश्वर के प्रति पुकार बनके जाती है। हृदय से ।
इतने वानर गए हुए हैं। यह कोई बात अटपटी नहीं कही जा रही। भगवान चाहते हैं हर साधक साधना करे। जानते हैं रावण कहाँ हैं। वानर सेना को कह रहे हैं पूर्व में जाओ, पश्चिम में जाए, दक्षिण में जाए उत्तर में जाए इधर जाओ उधर जाओ क्यों ? जानते हुए भी कि रावण का निवास दक्षिण में है । कह रहे हैं सब दिशाओं में जाओ । किसी को नहीं मिले । एक हनुमान जी महाराज को शान्ति की प्राप्ति हुई । शान्ति की खोज, भक्ति की खोज एक ही भक्त कर सका । और वह हैं हनुमान जी महाराज । अवश्य कोई गुण हैं न । क्यों ? प्रभु की कृपा उनपर बहुत है। किस लिए ? उन्हें प्रभु को पुकारना आता है। वे प्रभु के हृदय को द्रवित करना जानते हैं। वे ऐसी तकनीक जानते हैं जिससे प्रभु की आँखों में आँसु आ जाते हैं।
आज विभीषण भी आ गया है। कौन है विभीषण ? हमारी तरह जीव । रावण उसका बड़ा भाई मोह । ध्यान देना । प्रतीकात्मक शब्द हैं यह । पर बड़े मार्मिक। आज मोह ने क्या किया है? आज मोह ने छाती में टांग मारी है। हमारे साथ नित होता है। जिस के प्रति मोह – पुत्र के प्रति मोह, बड़ा ख़तरनाक मोह । पत्नी के प्रति मोह पति के प्रति मोह, इत्यादि इत्यादि , जिसके प्रति भी मोह होगा वह आपको टांग मारे बिना रह नहीं सकता । यह मोह का स्वभाव है। भगवान तुड़ाते हैं हम जोड़ते हैं। वह टांगें मरवाते हैं, धक्के मरवाते हैं, ध्यान देना, जिसके प्रति आप मोह ग्रस्त हो, क्या उससे नित अपमानित नहीं होते हो आप ? इसी को तो कहते हैं टांग मरवाना। लेकिन हम भी बाज नहीं आते । मोह से मार खाके, विभीषण जीव है, समझदार है, प्रभु राम की चरण शरण में आ गया है।
शरणागति। भगवान के पास भक्तजनों यह शब्द याद रखना। शरण । इस स्थान का नाम स्वामिजी महाराज ने शरणम् रखा है। शरण में आने के लिए । जानते हो क्या महानता है इस शरण में जाने की । एक उज्जवल उदाहरण आपकी सेवा में अभी रखी है विभीषण की। भगवान के पास यदि ज्ञानी जाता है तो उसकी परीक्षा लेते हैं। भगवान के पास कर्मयोगी जाता है तो उसकी भी परीक्षा लेते हैं। भगवान के पास जब भक्त जाता है तो उसकी भी परीक्षा लेते हैं। लेकिन भगवान के पास जब शरणागत जाता है तो वह कहता है – न मैं ज्ञानी हूँ न मैं कर्मयोगी हूँ न ही मैं भक्त हूँ। मैं शरणागत हूँ । मैं परीक्षा देने नहीं लेने आया हूँ। आपके हनुमान जैसे तुलसी जैसे भक्त ढिंढोरा पीटते हैं कि जो कोई आपकी शरण में आ जाता है आप उसे कभी ठुकराते नहीं। मैं तो यह परखने के लिए आपके पास आया हूँ।
एक उँगल परमेश्वर की कृपा की एक उँगल परमेश्वर की पुकार की, अंतकरण से भीतर से जब पुकार निकले, दोनों मिल जाएँ तो सब कुछ आपका।
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