तिलक दिवस Dec 9

Dec 9 : पर। पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री का पावन तिलक दिवस

🌺पूज्य महाराजश्री की जीवनी उनके श्री मुख से🌺

परमात्मा की कृपा कैसी होती है। उसकीकृपाओं का नमूना आपके सामने । 1955 मेंमैंने दसवीं पास कर ली थी । हमारी joint family थी । ग़रीब नहीं थे । मेरे माता पिता नेमुझे पढ़ाने से इन्कार कर दिया । हम नहींपढाएंगे । लेकिन मेरे मन में बड़ी भारी इच्छा थीcollege में जाने की । primary school था जिस स्कूल से पढा था । उस स्कूल में मुझेuntrained teacher की ४० रू महीनेनौकरी मिल गई । नौ महीने नौकरी की, tuition रखी , ४०० से कम ही पैसे थे, तो घरछोड कर अमृतसर चला गया । हिन्दु कॉलेज मेंadmission ले ली । उन दिनों १०+२ नहीं होतेथे , fsc होती थी । दो साल वहाँ पढाई की as a poor student. मैं था नहीं poor, मेरेमाता पिता भी poor नहीं थे , पर , मुझे ग़रीबबनके रहना बहुत अच्छा लगता था । अभी भीअपने आपको ग़रीब ही कहता हूँ । कहता हीनहीं समझता हूँ । मैं हूँ ही ग़रीब।
कोई भी आपको हिन्दु कॉलेज का पुरानारिकॉर्ड मिल जाए तो मेरे नाम वहाँ as a poor student लिखा हुआ मिलेगा ।

हिसार, वेटेनेरी कॉलेज, पशुओं का डॉक्टर , मुझे बडी आसानी से वहाँ नौकरी मिल गई ।चार साल का course किया । मैं हूँ तो पशुओंका डॉ पर कोई मानने को तैयार नहीं , यहपरमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है ।परमात्मा ने कहाँ कहाँ मुझे सम्भाल कर औरछिपा कर रखा हुआ है, यह परमात्मा की कृपानहीं तो और क्या है ! वहाँ का topper था ।scholarship मिलना शुरू हो गया । उन दिनों५० रु मिलता था । ठीक गुज़ारा हो जाता थाउसमें । माता पिता को तकलीफ़ नहीं दी , कभीदेनी चाही ही नहीं । जैसे भी था चार सालनिकल गए । नौकरी लग गई । पंजाब में थोडीदेर नौकरी की , पर क्योंकि वहाँ का topper था , तो वहाँ demonstrator , तबlecturer नहीं कहते थे , demonstrator की नौकरी लग गई । 1962 में वहाँ पहुँचा और1964 में पूज्यश्री महाराजश्री का वहाँ आगमनहुआ ।

1964 में दीक्षा ली । पूज्यश्री महाराज कोएक पत्र लिखा English में । मुझे पता नहीं थाकि कैसे पत्र लिखा जाता है । मैंने किसी सेसलाह ली कि पूज्य श्री महाराजश्री को कैसेपत्र लिखा जाता है । देखो कैसा बुद्धु था मेरीमाताओं और सज्जनों । अब भी वैसा ही हूं ।संसारिक दृष्टि में बहुत ही निकम्मा और बुद्धु ।पत्र लिखा – महाराज I want to serve the humanity. मुझे यह का पशुओं का बिल्कुलपसंद नहीं है । न डॉ पसंद है न मैं इन्हें पढ़ानाचाहता हूँ । महाराज ने आशीर्वाद भरा पत्रवापिस भेजा । यह ’64 की बात है । ’65 से मेंAIIMS में आने का सम्बंध बनने लग गया ।एक पशुओं का डॉ AIIMS में कैसे ? यहपरमेश्वर की कृपा नहीं है तो और क्या है ।क्यादेखा AIIMS ने मुझ में मुझे पता नहीं , इसीतरह न जाने क्या देखा मेरे गुरूजनों ने मुझ मेंकि मुझे ऐसा बना दिया ।
M.Sc का course वहाँ निकला । I was the first one to get it.

मैं 1966 में दिल्ली आ गया ।यहीं से ज़िन्दगीशुरू होती है । यहीं से महाराज का प्यार मिलनाशुरू हुआ और श्रीरामशरणम आना जाना शुरूहुआ । अनेक सारे subjects. किसी में gold medal, किसी में silver medal, मानोfirst class / first division में पास हुआ ।दो को छोड के । एक surgery मुझे यहअच्छी नहीं लगती थी । यह काटना पीटना ।एक subject जिसमें जब मैं retire हुआ तोAsia का सबसे बड़ा ocular microbiologist था , उसमें भी नहीं आई ।यह परमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है ।

भाग २

दिल्ली पहुँच गया । दो साल की पढाई थी ।आज मैं जब कभी भी यह सब याद करता हूँमुझे परमात्मा की कृपा के सिवाय कुछ नहींदिखाई देता । यह सुन के मत सोचना कि यहइतना लाएक है ।इतना योग्य है, इतनाintelligent है । छी !! बिल्कुल नहीं ! कतेईनहीं !! दिल्ली आने पर डॉ राम मेरे मित्र बन गए। एक ही hostel में रहते थे। खाना इकट्ठाखाते थे । यह तो असली के डॉ MBBS , MD कर रहे थे, मैं M.SC कर रहा था । इनका मुझेमित्र स्वीकार कर लेना , सब परमात्मा की कृपानहीं तो और क्या है । कोई मेल जोल ही नहीं!!

देवियों सज्जनों मुझे चलती फिरतीmicrobiology की dictionary लोग कहनेलग गए ! महाराज के strict instructions थे , श्रीरामशरणम नहीं आना । देखो ! कोई है, जिसे प्रेम जी महाराज कहें श्रीरामशरणम नहींआना ! मैं हूँ ! जिसे कहा श्रीरामशरणम नहींआना । मैं तेरे पास आया करूँगा ! और यहबात उन्होंने निभाई ! वही आया करते थे । एकइतवार को मुझे जाने की इजाज़त थीश्रीरामशरणम ! बहुत पढने की ज़रूरत थी दोसाल । I started from scratch. महाराजने कैसे मुझे सम्भाला होगा। परमेश्वर ने कैसे, मेरे बच्चों बच्चियों , खासकर आपके लिए , यह बातें बहुत अनुकरणीय होनी चाहिए।depend करो परमात्मा के ऊपर । Depend करो गुरू महाराज के ऊपर ।

शाम को आकर कहते , थक जाए पढते पढते , ( मेरे 6 नं० hostel में 51 नं० कमरा होता था, आख़िरी , उसके ऊपर छत थी ; महाराज कोपता था ) छत पर जाके deep breathing कर लिया कर। महाराज जब भी आते थे मेरेपास,mess से दूध नहीं मिलता था ; तो कालीcoffee महाराज को पिलाया करता । स्वयं भीकाली coffe पीत था , महाराज को भी कालीcoffee पिलाया करता । महाराज कहते पढाईकरते करते midnight के बाद जब थक जाएतो ऐसी काली coffee पीकर तो फिर पढनेलग जाया कर ।

ऐसे प्रश्न पूछे गए मुझसे … !!! उन दिनों कहाकरते कि मेरे से वही प्रश्न पूछ गए जो सिर्फमुझे ही आते थे । exam लेने वाले जो बाहर सेआए – तीन दिन का exam होता था , फिरviva होता था , बडी मिट्टी पलीत करते थे ।आख़िरी दिन कहते कि पास तो हमने तुम्हें पहलेदिन ही कर दिया था .. यह शब्द मेरे दिमाग़ मेंगूँजते हैं तो मुझे परमात्मा की कृपा भरपूर !! पास तो पहले दिन ही कर दिया था , उसकेबाद तो तेरे से सीखा है ! यह परमात्मा की कृपानहीं तो और क्या है । पास हो गए !

भाग ३

वहीं नौकरी offer की as a research scholar, scholarship पर, 300रु रामको मिला करते 300रु मुझे ! MSc करतेकरते ! अचानक double salary हो गई600/- फिर मुझे आँखों के हस्पताल RP center में ले जाया गया , PhD भी साथसाथ शुरू हो चुकी थी । मेरी first appointment RP center में as adhock lecturer. Interview हुआ ।AIIMS के interview में कोई दो चार लोगनहीं बैठते, इतना बडा bench. Adhock lecturer बना, lecturer बना, assistant professor बना, associate professor बना। associate professor बनकरvoluntary retirement ले ली और मनालीचला गया । last pay slip sign करने केलिए होती है , उस पर लिखा हुआ थाadditional professor! यह कैसे हुआ !! मैं छोड कर आ गया और फिर promotion !! ध्यान से सुनो .. २०-२२ साल नौकरी की .. परमात्मा की करनी देखो !! इतनी posts परपरमात्मा ने कोई और candidate appear नहीं होने दिया । I was the only candidate for promotion! यह परमात्माकी कृपा नहीं तो और क्या है । मेरी last position के लिए जब application scrutiny के लिए गई तो objection कियाकि एक यही है व्यक्ति संसार भर से जिसनेapply किया है ?? हम नहीं मानते । post फिर से advertise हुई । सारा selection postpone हो गया। सभी papers में post advertise हुई । फिर वही ! फिर किसी नेapply नहीं किया , मुझ अकेले का हीinterview करना पड़ा ! वहाँ भी समस्या हुईकि मेरे पाँच साल अभी पूरे हुए थे, सबने कहाकरदे apply. सब administrative staff मुझ पर मेहरबान था ! यह परमात्मा की कृपानहीं तो और क्या है ! Apply कर दिया ।selection हो गई पर announcement नहीं की जा रही । बडे बडे लोग meeting मेंबैठे कि इसको मात्र ५ साल हुए हैं, बाकी१०-१० साल वाले बैठे हैं , इसको कैसे कर दें?? बहुत arguments हुए आख़िर उन्हें मुझेassociate professor बनाना ही पड़ा ।यह परमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है ।

कभी मेरी याद आए यह सब सोच कर, मुझेयाद नहीं करना, परमात्मा को याद करना , वाहपरमात्मा वाह ! तेरी कृपा अपरम्पार ! सर्वोपरिसर्वेसर्वा है ! कल तक कोई न पूछने वाला, आज हर कोई पूछता है ! यह परमात्मा कीकृपा नहीं तो और क्या है ! संत नहीं हूँ , यहकोई मानने को तैयार नहीं कि संत नहीं हूँ । यहपरमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है.. मैंनेसन्यास नहीं लिया .. कोई मानने को तैयार नहींयह परमात्मा की कृपा नहीं तो और क्या है! हरकी पौडी जाकर कपड़े उतार दिए यह ऊपरवाला बाबा का चिह्न ले लिया और नीचे वालाप्रेम जी महाराज का !! यह विधिवत सन्यासनहीं है !! और यहाँ की तो सब आपके सामनेहै।

कुछ गलत न सोचना । परमात्मा क्षमा करें, मेरेगुरूजन क्षमा करें आज अपने बारे में ऐसे हीमुख से निकल गया । आप भी क्षमा करें , सबक्षमा करें ।

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