प्रशंसा साधक के लिए घातक 2a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr08b)

प्रशंसा साधक के लिए घातक 2a

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एक बड़ी प्रसिद्ध कथा है। आप जानते हैं। अर्जुन को अपने गांडीव धनुष से बड़ा प्रेम था । उसने क़सम खा रखी थी, मेरे गांडीव धनुष के भूल से भी कोई बदनामी करेगा अपमान करेगा तो मैं उसके प्राण हर लूँगा । महाभारत में ऐसा वर्णन आता है। आज उनके अतीव माननीय सम्माननीय भाई युधिष्ठिर से अपमान हो गया । लानत है तेरे गांडीव पर । ऐसे शब्द युधिष्ठिर से निकले और अर्जुन का प्रण । मेरे प्रण के अनुसार युधिष्ठिर को मरना है। और मैं इस मार कर रहूँगा ।

भगवान के श्रीचरणो में महाराज , आपको पता है क्या घटना घटी है। मैंने इस युधिष्ठिर के बच्चे को आज मारकर रहना है।क्यों ? इसने मेरे गाण्डीव का अपमान किया है गाली निकाली। भगवान अर्जुन को कहते हैं पार्थ कि व्यक्ति को मारने के ढंग केवल तलवार एवं बंदूक़ ही नहीं। मैं तुझे अनोखा ढंग बताता हूँ। मैंने इसका श्रीगीता जी में वर्णन भी किया है। बताएँ महाराज । युधिष्ठिर मरेगा भी नहीं और बचेगा भी नहीं।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं पार्थ ! किसी सम्माननीय व्यक्ति की भरी सभा में उसका अपमान कर दिया जाए तो वह जीते जी मर जाती है। जा ! तू भरी सभा में उसका अपमान कर दे वह जीते जी मर जाएगा । तुझे तलवार या बंदूक़ की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । बाण की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी । ऐसे ही मर जाएगा । अर्जुन ने ऐसा ही किया । युधिष्ठिर अति लज्जित । अर्जुन भक्त हैं। भगवान का सानिध्य उन्हें इतनी देर तक प्राप्त रहा है, स्नेह इतनी देर तक प्राप्त रहा है, अच्छा नहीं लगा।

क्या बात है? ऐसा प्रण तुझे करना ही नहीं चाहिए था । क्या रखा है ऐसे प्रण में? भरी सभा में मैंने अपने बड़े भाई को बेइज्जत कर दिया । भगवान के पास गए हैं। यह आपने क्या मुझे उपाय बता दिया । इससे अच्छा होता कि मैं ही मर जाता । भगवान कृष्ण कहते हैं कोई बात नहीं, तुझे मरना है तो तुझे भी मार देते हैं। आज एक अनोखी बात भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं। हमने इन बातों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया । पार्थ ! एक शब्द है आत्मशलाघा, प्रशंसा । अपनी प्रशंसा । पार्थ अपनी प्रशंसा करने वाला व सुनने वाला भी जीते जी ही मर जाता है। जा । किसी के सामने जाकर अपना गुण गान कर दे या उन्हीं के बीच बैठ कर अपना गुणगान सुन ले। तो तू जीते जी ही मर जाएगा । हमने कभी प्रशंसा की gravity का कभी ध्यान नहीं दिया ।

ऐसी घास है यह प्रशंसा जो असली पौधे को उगने नहीं देती । उसका विकास नहीं होने देती । मत इसके पीछे पीछे घूमिएगा । वह तो भूखा है कंगाल है । जो अपनी प्रशंसा सुनने के लिए इधर भटकता है उधर भटकता है। आज वहाँ कल यहाँ परसों वहाँ। आज इसके पास कल उसके पास। भिखारियों की तरह कंगालों की तरह घूमता फिरता है। दो शब्द प्रशंसा के सुनने के लिए।

Contd …

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