मानव जीवन की महत्ता 2a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr09b)

मानव जीवन की महत्ता 2a

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हमारे पुनर्जन्म का कारण मोह । बार बार इस संसार में आने की कारण मोह।बार बार मानव जन्म मिलता है, भैंस बनते हैं, गधा बनते हैं, कुत्ता बनते हैं, कीड़ा मकौडा बनते हैं। यह बात नहीं, बार बार संसार में आने का कारण मोह । भूत प्रेत बनते हैं। कल करेंगे भक्तजनों चर्चा थोड़ी सी आरम्भ कर दी ताकि आप अपने घरों में जाकर थोड़ा चिन्तन मनन कर सकें।

एक महात्मा जिन्हें विरक्तानन्द कहा जाता। विरकतानन्द ।जीवन भर अपने हाथ से पैसा नहीं छुआ । एक सेवक मिला हुआ है, महात्मा की सेवा करता है। स्वयं भोजन माँग के ले आता है, दोनों खा लेते हैं। यह routine अनेक वर्षों से चला आ रहा है। आज अचानक इस सेवक को कहीं जाने की आवश्यकता पड़ गई है। यह बेचारा जाना नहीं चाहता लेकिन एक विवशता आ गई है तो जाना ही पड़ेगा । महाराज कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ेगा। जाओ बेटा कोई बात नहीं। आपके खाने का क्या होगा? महात्मा कहते हैं बेटा, हम तो तेरे खाने पर कभी भी निर्भर नहीं थे। जो उस वक्त देता था वह अब भी देगा। जाओ आप। निश्चिन्त होकर जाओ। मेरी चिन्ता नहीं करनी। लेकिन यह सेवक, यह सब बात चीत सुनने के बावजूद भी बीस रुपये का एक नोट, यह रख लीजिएगा। नहीं बेटा। मैंने जीवन भर पैसे को हाथ नहीं लगाया मैं अभी भी हाथ नहीं लगाऊँगा । मुझे इसकी आवश्यकता नहीं। तू निश्चिन्त रह। पर यह सेवक का मन नहीं मानता, इसलिए, सामने कहीं थोड़ा सा गड्डा सा बनाके उसमें रख देता है। महाराज, यह देख लीजिएगा यह बीस रुपये का नोट यहाँ दबा कर रख दिया है। यदि कभी आपको ज़रूरत पड़े तो किसी को कह दीजिएगा वह ले जाएगा यहाँ से, आपने हाथ नहीं लगाना किसी को बता दीजिएगा कि यहाँ बीस रुपये का नोट पड़ा है वह ले जाएगा , आपके लिए कुछ खाद्य सामग्री ले आएगा। आपका काम चल जाएगा।

ठीक है। परमेश्वर की ऐसी करनी, महात्मा अति रोगी हो गए। इस सेवक के पीछे पीछे उनकी मृत्यु हो गई। महात्मा महासमाधी लेकर मर गए। एक स्थान था जहां गाँव के लोग आकर मत्था इत्यादि टेकते थे। महात्मा के स्थान पर जाते हैं। महात्मा तो है नहीं किसी के खड़ाऊँ चलने की आवाज़ आती है। अब लोग इस बात को जानते हैं कि जब कभी ऐसा हो तो भूत प्रेत होते हैं। कहता कुछ नहीं परेशान नहीं करता लेकिन ऐसी आवाज़ आती है गाँव भर में यह बात फैल गई। बाबा के आश्रम में एक भूत रहता है। इतनी देर में सेवक भी वापिस आ गया। सेवक को जब पता चला तो वह वहाँ गया और एक रात वहाँ ठहरा। उसको भी वहाँ आवाज़ आई । बाबांश्री ! यह कौन है? यह किसके खडांऊं की आवाज़ है? हमें तो लगता है यह आपही की आवाज़ है। हमें तो लगता है कि यह आपही की आवाज़ है। मैं आपकी आवाज़ को बहुत अच्छे से पहचानता हूँ। क्या हुआ है महाराज? बाबा कहते हैं बेटा यह तेरे बीस रुपये की करतूत है। मरते वक्त मेरा मन उस बीस रुपये पर चला गया। यह मेरे लिए रखे हुए हैं, यह मेरा पन जो जुड़ गया, उसने मुझे यह दुर्गति दे दी है। मुझे भूत बना दिया है। इसे तुरन्त निकाल और किसी सत्कर्म में लगा दे, मेरी तुरन्त सद्गति हो जाएगी ।

भक्तगण ! वह विरक्कानन्द, बीस रुपये से मेरेपन को जोड़ा को उसकी यह हालत हुई, तो हमारी सोचिएगा। हम तिजोरियों के साथ मेरापन अपनापन जोड़ें हुए हैं। पत्नी के साथ पति के साथ मकान के साथ मेरा पन जोड़े हुए हैं। इनके साथ उनके साथ मेरा पन जोड़े हुए हैं। हमारा क्या हाल होगा यह परमेश्वर के सिवाय और कोई नहीं जानता ।

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