श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति, 1a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr10a)

श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 1a

1:34- 5:35

चर्चा चल रही थी कि मनुष्य किस प्रकार भव बंधन में फँसा रहता है। बार बार इस संसार में उसे धकेला जाता है, ताकि वह अपनी कामनाओं अपने ममत्व की पूर्ति कर सके। किस योनि में व्यक्ति प्रवेश करता है, यह परमेश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता । आपकी कामना के अनुसार आपकी वासना के अनुसार आपको वह योनी वह स्थान वह घर इत्यादि इत्यादि प्राप्त हो जाता है। अंतिम दो दिनों में, आज के दिन व कल के दिन, इस भव बंधन से छुटकारा कैसे हो, इस बात पर चर्चा की जाएगी। शुभारम्भ करते हैं इस चर्चा का

संत महात्मा, शास्त्र स्वामी जी महाराज सहित बड़े बलाड्य शब्दों में कहते हैं, नाम की उपासना अपने आपमें पर्याप्त है इस भव बंधन से छुड़ाने के लिए। सम्पूर्ण साधना है राम नाम उपासना, स्वामीजी महाराजश्री द्वारा दर्शाई उपासना । हम सब राम नाम के उपासक हैं, यह सम्पूर्ण साधना है अपने आपमें पर्याप्त है, हमें इस रोग से रहित कर देने के लिए। स्वामीजी महाराज द्वारा निर्दिष्ट साधना, एक गृहस्थ को सदग्रस्त बनाती है। देखें किस तरह से यह साधना सम्पूर्ण परिपूर्ण साधना है। एक गृहस्थ को सदग्रस्त बनाती है, एक दुराचारी को सदाचारी बना देती है, और एक जीवात्मा को महात्मा बना देती है। यह साधना अपने आप में सम्पूर्ण परिपूर्ण साधना है।

मुख्य अंग है इसके राम नाम का ज़ाप ।जो जिह्वा से करते हैं होंठों से करते हैं मन से करते हैं। नाम की रटन को नाम के उच्चारण को बार बार ज़ाप कहा जाता है। स्वामिजी महाराज कहते हैं, इसी नाम का ध्यान सर्वोचतम ध्यान है। राम शब्द का ध्यान लगाने के लिए वह कहते हैं। उनके आदेश इस प्रकार के हैं।

राम शब्द का बार बार उच्चारण करते रहिएगा। राम शब्द का ही ध्यान लगाइएगा। राम शब्द का ही कीर्तन करिएगा। राम नाम की कीर्ति को कीर्तन कहा जाता है। कीर्ति जब गाई जाती हैं तो उसे कीर्तन कहा जाता है। व्यक्ति जब अकेला गाता है तो उसे कीर्तन कहा जाता है। जब सब मिल कर गाते हैं तो उसे संकीर्तन कहा जाता है। तीन अंग हो गए इस उपासना के ।

Contd.

Leave a comment