श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 2a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr10b)

श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 2a

1:30- 7:35

जहां आप नाम की उपासना करते हैं वहाँ साथ ही साथ हमारे मन का निर्मलीकरण अवश्य होना चाहिए। जितने भी दुर्गुण हैं वे सबके सबब निकलने चाहिए और जितने भी परमेश्वर के गुण हैं जिन्हें सद्गुण कहते हैं वे बसने चाहिए । तभी साधना की सम्पन्नता होगी । तभी आपको परम शान्ति लाभ होगी । यदि आप गृहस्थ हैं तो, गृहस्थ शान्त स्वर्ग वैकुण्ठ तभी बनेगा। इनके रहते हुए तो राक्षस, यह तो लड़ाई झगड़ा करवाने वाले हैं, इनके होते हुए न भीतर चैन है न बाहर चैन है। दुर्गुणों का दूर करना नितान्त आवश्यक । भीतर खोजें कौन कौन से दुर्गुण हैं, और उन्हें एक एक करके परमेश्वर की कृपा से, आपके पास तो राम नाम का इतना बल है, यदि आप भी इनसे रहित नहीं हो सकते तो बेचारा सामान्य व्यक्ति क्या करेगा। सहन करने का बल आपके पास, क्षमा करने का बल आपके पास यह सारे के सारे बल मिलते हैं, राम नाम की उपासना से। कितने बलवान हो आप, जिनके पास यह पूँजी है। बस, थोड़ी पूँजी और एकत्रित करनी है, थोड़ा और पूंजीवान बनना है, क्यों? ख़र्चा ही ख़र्चा होता रहा और कमाई कुछ नहीं हुई तो बात बनी नहीं।

यह नाम की कमाई निरन्तर चलती रहनी चाहिए । और इसे कम से कम खर्च कीजिएगा। जहां आवश्यक है, खर्च कीजिएगा। एक बार जो भूल हो गई, नाम की कमाई के बल पर आपने प्रायश्चित कर लिया तो इसके बाद आगे से यह प्रण ले लिया कि आगे से यह गलती मैं नहीं करूँगा। यदि वह भूल फिर से हुई तो फिर नाम की कमाई उस दुष्ट को मारने के लिए फिर से लगेगी वह बहुत होगी । बहुत अधिक ।

नाम की कमाई अधिक से अधिक एकत्रित करते जाइएगा । महाराजश्री कहते हैं। पूँजी राम नाम की पाइए । पूज्यपाद प्रेम जी महाराज के प्रवचन जिन्होंने सुने होंगे, उनके प्रवचनों में एक चीज़ की बड़ी प्रमुखता हुआ करती थी । जब भी वे प्रवचन करते तो, निष्काम सेवा एव् निष्काम भक्ति के ऊपर किया करते। मानो, निष्काम शब्द बहुत प्रिय था महाराजश्री को। कामना रहित । परमेश्वर की आराधना भी करते हो तो कामना रहित होकर करो। सदा कहते, राम से कभी कुछ न माँगो, बस, एक चीज़ माँगो, बस , राम तेरी कृपा बनी रहे। अमुक व्यक्ति पर माँगते, हड्डी ठीक हो जाए ऐसा नहीं कहते, यही कहते परमेश्वर इस पर भी तेरी कृपा हो। और कहते कौन सी ऐसी चीज है जो कृपा में नहीं आती ? सब कुछ उसमें आ जाता है। परमात्मा से कृपा माँगो ।

हम क्या माँगते हैं? चैतन्य महाप्रभु के पास एक दफ़ा एक सेठ गए, कोई व्यक्ति गए और कहने लगे, महाप्रभु ! यह राम नाम जपने से क्या होता है? यह हरि बोल हरि बोल कहने से क्या लाभ होता है? चैतन्य महाप्रभु रोने लग गए । आज मेरा कौन सा ऐसा पाप मेरे सामने आ गया कि तेरे जैसा स्वार्थी लोभी व्यक्ति मेरे पल्ले पड़ गया । कोई व्यापारी हो ? राम नाम में भी लाभ ढूँढ रहे हो? कोई व्यापारी हो ? अरे ! राम नाम जपने से क्या लाभ लेना चाहते हो ? पुत्र पैदा हो जाए ? मेरा व्यापार रुका हुआ है, व्यापार चलना शुरू हो जाए ? यशमान की प्राप्ति के लिए राम नाम की उपासना करना चाहते हो ? माला फेरना चाहते हो, सफलता के लिए ? पास हों जाऊँ मेरी नौकरी लग जाए, इसलिए नाम जपना चाहते हो ? महाप्रभु कहते हैं अरे! जिसको तुम सफलता मान रहे हो जिसको लाभ मान रहे हो वह लाभ नहीं है वह तो रस्सियाँ हैं, बंधन है, हथकड़ियाँ हैं। राम नाम जपने के बाद भी संसारिक लाभ लेते हो, मानो, जौहरी की दुकान पर जाके कोएले माँगना । उसके पास अनमोल रत्न हैं देने के लिए हीरे ज्वाहारात हैं देने के लिए और आप जाकर उससे कोयले माँगते हैं। कोयले तो कोयले ही हैं, भट्टी पीछे लगी हुई है, सबकुछ लगा हुआ है, उन्हें कोएले देने में बड़ी आसानी है, कुछ नहीं लगता। शुक्र है कोएले देके गुज़ारा चलता रहा। इस व्यक्ति को हीरे ज्वाहारात देने की क्या आवश्यकता है? यह कोएले से ही अपना मुख काला करना चाहता है। यही होता है हर एक के साथ ।

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