Monthly Archives: August 2021

ध्यान २(c)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २(c)

14:00- 17:55

साधकजनों कल तो नहीं परसों राजा अश्वपति की चर्चा करेंगे । ब्रह्मज्ञानी हैं वे, आत्म साक्षात्कार उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हो चुका हुआ है।छांदोक्य उपनिषद में उनकी बहुत सुंदर कथा आती है।परसों करेंगे । कल तो जप शुरू होगा । कल तत्काल जप के बाद ध्यान में हम बैठ जाएँगे। बाकि दिन साधकजनों जैसे आज भक्ति प्रकाश का पाठ हुआ उसके बाद हमें ध्यान के लिए बैठना था। जिस दिन ध्यान के लिए बैठेंगे उस दिन ध्यान के बाद जो भी अमृतवाणी का नेतृत्व कर रहे हैं, जैसे ही समय होगा सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: का पाठ शुरू कर देंगे तो कार्यक्रम के सत्संग की समाप्ति हो जाएगी । मैं दूसरी बार राम नहीं बोलूँगा । जो सत्संग का नेतृत्व कर रहे हैं वे समय से समाप्ति करेंगे तो हमें पता चल जाएगा कि समाप्ति हो गई है ।

समय हो गया है यहीं समाप्त करने की इजाज़त दे दीजिएगा । आप ज़रूर कोशिश कर रहे होंगे कल से । बहुत लम्बी यात्रा है देवियों और सज्जनों । जप को तो हम बहुत seriously नहीं लेते। सो जप में हम बातें भी करते रहते हैं। टीवी भी देखते रहते हैं। इधर भी देखते हैं, उधर भी देखते हैं, इनसे भी बात सुनते हैं इनको भी देखते हैं कि क्या हो रहा है। सब पता रहता है। काश ! हमने जप को महत्व दिया होता । तो हमारे लिए ध्यान बहुत आसान हो जाता ।

जप के वक्त जब आप अपनी खिड़की दरवाज़े बंद करके रखते हैं, तो फिर ध्यान में अपने खिड़की दरवाज़े बंद करने में आपको कठिनाई महसूस नहीं होगी । अन्यथा ध्यान में बहुत कठिनाई आती है। कठिनाइयाँ आएंगी तो पता चलेगा कि कितना जटिल मार्ग है कितना कठिन मार्ग है। कितनी गलतियां हम करते रहे हैं और कितनी गलतियां हम करते जा रहे हैं । अभी भी गलतियां बंद नहीं हुई ।

शुभ कामनाएँ साधकजनों ! अपेक्षा रखता हूँ । कोई न कोई साधक तो अपनी सही समस्या लेकर मेरे सामने आएगा । अठारह साल हो गए हैं साधक जनों किसी एक व्यक्ति ने आज तक , लाखों की संख्या में साधक हो गए हैं, किसी एक व्यक्ति ने आज तक अपनी ध्यान की समस्या मेरे साथ discuss नहीं की। आँखें बिछाए बैठा हूँ । कोई को आके सही समस्या मेरे साथ आके discuss करे। चालिस लाख का loan हो गया है, एक करोड़ का loan हो गया है, मैं क्या करूँ उसमें? परमात्मा क्या करेंगे उसमें? ऐसी समस्याओं का क्या किया जाए । waste of time. जिस समस्याओं के लिए सुलझाने के लिए यहाँ आते हैं, वे समस्याएं तो वैसे की वैसी ही बनी हुई हैं। उनको सुलझाने का कोई प्रयत्न ही नहीं है किसी का।

शुभ कामनाएँ देवियों और सज्जनों मंगल कामनाएँ । परमेश्वर की कृपा मेरे गुरूजनों की अपार कृपा सदा सदा सब पर बने रहें

Meditation 2 (c)

Divine Dicourse from Param Pujyashri Dr. Vishwamitr ji Maharajshri ( These are literal, unedited translations)

Meditation 2 (c)

11:00- 14:00

The moment we get the pipes touch of the Lord, St that very moment you become Him. He starts opening all His secrets for you. All the layers start falling off.

The light merges in the light. The light joins with the light. The soul merges with the Supreme Soul. The two souls get united. They become One. Advaita sets in. Two zeroes become One. It’s like this term zero that is being used here is of great importance. You all sit for meditation, I have no doubt in it, whosoever sits. You try that we attain this zero state. Here, dear devotees, our path gets divided into two. One is zero only.

You are doing jaap, ( chanting). In meditation jaap is not an obstruction, if performed appropriately. Only jaap is being performed, no worldly thoughts, then that jaap really helps you. This jaap is called zero. The state is of zero only. Why? It’s free of worldly thoughts. Zero, meaning free from worldly thoughts. Devotees, first attain this state.

After that comes the time when a person goes more deep and when he starts experiencing peace and bliss. Then jaap automatically stops. One does not have to stop jaap by own efforts. Because if it’s being told to you and we stop doing jaap then it’s not a good thing. I needs to stop by itself. If it stopsny itself then you become ready to attain the second state of zero. The supreme zero state. The state that is of the Lord and now you’ll attain it then only you’ll gave union with the Lord. Two zeroes become One. In spirituality in meditation two zeroes become One. Such a person is called Brahmgyani, such a person is called brahmveta.

Contd…

ध्यान २(c)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २(c)

11:00 – 14:00

जैसे ही परमात्मा के साथ यह संस्पर्श प्राप्त होता है आप तत्काल वहीं बन जाते हो। आपके सामने वह सारे के सारे भेद अपने आप ही खुलने लग जाते हैं। सारी की सारी पर्ती जो हैं वह उखड़ने लग जाती हैं। उतर जाती हैं।

ज्योति ज्योति में समा जाती है। ज्योति ज्योति से मिल जाती है। आत्मा परमात्मा से मिल जाती है। दोनों आत्माओं का मिलन हो जाता है। एक हो जाते हैं। अद्वैत हो जाता है। दो शून्य मिल गए। मानो यह शून्य शब्द जो आपके सामने प्रयोग किया जा रहा है यह बहुत महत्वपूर्णहै। आप सब ध्यान में बैठते हो मुझे कोई संदेह नहीं है जितने भी थोड़े बहुत बैठते हो।कोशिश करते हो हमें यह शून्य अवस्था लाभ हो। यहाँ साधकजनों हमारा मार्ग दो में विभाजित हो जाता है। एक तो शून्य ही ।

आप जप कर रहे हैं, ध्यान में जप बाधा नहीं है यदि सही ढंग से किया जाए ।सिर्फ़ जप आपका हो रहा है, सिर्फ़ जप, संसारिक विचार कोई नहीं है तो वह जप आपको बहुत सहायता देता है।ऐसा जप शून्य ही कहा जाता है। शून्य अवस्था ही कहा जाता है, क्यों ? भौतिक विचारों से रहित है। शून्य अर्थात् भौतिक विचारों से रहित । साधक जनों पहले यह अवस्था प्राप्त कीजिएगा ।

उसके बाद समय आता है, जब व्यक्ति गहन और जाता है, जब और उसे शान्ति और आनन्द का अनुभव होने लगता है फिर अपने आप जप भी बंद हो जाता है। यह अपने आप करना नहीं। क्योंकि आज आपको बताया जा रहा है इसलिए हम जप बंद कर देते हैं, यह ठीक नहीं है। इसे अपने आप बंद होना चाहिए । अपने आप बंद होने पर यह दूसरी शून्य अवस्था आपको लाभ होने जा रही है, महाशून्य अवस्था आपको लाभ होने जा रही है। जो परमात्मा की है जब वहीं आपकी होगी को ही परमात्मा से आपका मिलन होगा । दो शून्य एक हो जाते हैं। अध्यात्म में, ध्यान में दो शून्य मिल कर एक हो जाते हैं। ऐसी को ही ब्रहमज्ञानी कहा जाता है, ऐसे को ही ब्रह्मवेता कहा जाता है।

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ध्यान २(b)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २(b)

6:52- 11:00

हम सम्बंधित सब रामजी से हैं। यह सत्य है साधकजनों ।जब तक इस सत्य की अनुभूति नहीं होती तब तक दुविधाएँ बनी रहेंगी ।,कहाँ जा रहे हैं? वृंदावन। बाँके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए।लेकिन यदि यह बात हो जाए साधक जनों, मानो राम और बाँके बिहारी जी दो नहीं हैं। जब तक यह बात हृदयंगम नहीं हो जाती, नहीं, मैं राम जी के बाँके बिहारी जी के रूप के दर्शन करने जा रहा हूँ । तो बस । सत्य तक पहुँचने में बिल्कुल देरी नहीं । जाइए हनुमान जी के मंदिर में जाइए माँ वैष्णव देवी की यात्रा करने के लिए, कहीं भी जाइएगा । तब कुछ नहीं । लेकिन यह बात जब तक आपको स्पष्ट नहीं होती । यह सब बातें देवियों और सज्जनों स्पष्ट होती हैं, व्यक्ति को गहन ध्यान में। यह सत्य है । और सत्य जो है वह बहुत deep seated है। वह ऊपर ऊपरी नहीं है। its not superficial. जैसे ही आप ध्यान अवस्था में भीतर ही भीतर deep deep deep जाते हैं, तो वह सत्य खुलता जाता है। परमात्मा अपने भेद खोलता जाता है। भक्त को खोलता है। हर एक को नहीं। हर एक को वह अपने भेद नहीं देता । जो close संबंधी हो जाता है वह उसे अपना भेद देता है।

आज आपकी सेवा में बहुत भेद की बात कही जा रही है। इससे देवियों और सज्जनों बहुत सारी दुविधाएँ आपकी मिट जाएँगी । द्वैत मिट जाएगा । द्वैत बिल्कुल ख़त्म हो जाएगा । infact यह द्वैत नहीं है। हम तो बहुत सारों को मानते हैं। द्वैत तो दो का होता है। हम तो अतीव हैं। कोई ऐसा नहीं जिसको हम नहीं मानते । हम शनि महाराज की भी उपासना करते हैं। नव ग्रह की भी उपासना करते हैं। हम इसकी भी आरती करते हैं, उसकी भी आरती करते हैं। सिर्फ़ भय के कारण यदि इनका ऐसा न किया तो कहीं हमारा अनिष्ट न हो जाए । इसे भय भक्ति कहा जाता है। यह भक्ति भक्ति नहीं है। मन में यह विचार हो तो इससे जिसके लिए आप कर रहे हो वह भी प्रसन्न होता है, अन्यथा वह हमारी अज्ञानता पर हमारे अधूरेपन पर हंस देता है। देवी देवताओं की पूजा करने वाले अविधि से मुझे पूजते हैं। विधि पूर्वक नहीं कहा, अविधि से मुझे पूजते हैं। मानो उन्हें अभी बोध नहीं है जो हमारी सेवा में कहा जा रहा है। हम तो एक राम के उपासक हैं, बाकि तो सब उनके रूप हैं। यह सत्य है, यह परम सत्य है। इसको आज मानिएगा, कल मानिएगा अगले जन्म में मानिएगा उसके बाद जन्म में मानिएगा । यह आपको मानना ही पड़ेगा ।

यह सब बातें स्पष्ट होंगी जिस वक्त आप आँख बंद किए हुए हैं। आप तृकुटि स्थान को देख रहे हैं। आपको परमात्मा का संस्पर्श मिलना शुरू हो जाता है। सानिध्य सामीप्य फिर संस्पर्श । मानो आप महसूस करने लग जाते हो कि परमात्मा का स्पर्श मुझे मिल रहा है। स्संपर्श उसे कहा जाता है। बस यहीं से यात्रा का शुभारंभ होता है। यहीं से भेद खुलने शुरू हो जाते हैं। इससे पहले मत अपेक्षा रखिएगा। प्रतीक्षा कीजिएगा बेशक । किन्तु अपेक्षित रखिएगा। लोहा चुम्बक के साथ छुएगा तो चुम्बक बनेगा । दूर रहने से जितनी दूरी है वह लोहा लोहा ही रहेगा । चुम्बक नहीं बन सकता । अतैव यह संस्पर्श बहुत सुंदर शब्द है।

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Meditation 2 (a)

Divine Dicourse from Param Pujyashri Dr. Vishwamitr ji Maharajshri ( These are literal, unedited translations)

Meditation 2 (a)

1:00- 6:52

Listen to the steps of the meditation again. Sit cross legged. Sit as if Lord is around you. Bow down to offer your salutations. Bow to a great extent. The Lord says- the more you bow to me, the more you gain from me. There is a limit to how much we can bend with the body. But there is no limit from the mind. Learn to bend from the mind. Learn to bow from the heart. Take blessings of the lord . Sit absolutely straight.

How to sit straight? The way you are sitting cross legged, you can keep your hands and palms in any manner. The thing that matters the most is that, for whatever time we sit in meditation we need to sit without any movement. No movement at all. Sit for 10 min, 15 min, if there is any movement then it is no longer meditation. If becomes chanting or whatever you may say. That’s why keep the duration of meditation to a few minutes only. In the beginning 10-15 mins. The time for which we remain in bliss. Till we enjoy. Keep that much time. No need to exert yourself. How much time you can give happiness to the Lord give. How much you receive from Him. Meditation is the time to give and receive bliss. Time of meditation.

You bowed and received blessings. Now you are sitting straight. Have closed your eyes. Swamiji Maharaj says that the area between the eyes, krituti spot, aagya chakra, lord Shiva’s third eye , your third eye too. Close your eyes and see this spot. Don’t see the bindi. See the area of the bindi. It’s the outer sign. Whatever the Lord will show you, everything is behind this spot.

The kundalini rises up, comes from below, turns a little and again goes straight. The route appears to be straight, but, it is very long. Till the kundalini does not move from the top, till then there is always a danger of a person’s downfall. Most of us are stuck here only. That’s why everyday we fall and then get up. Some days meditation was excellent and some days, even after forceful attempt, one is not able to focus. One week you are able to rise early and then so many days pass without waking up early. All this is because of these reasons only. Till the kundalini moves, which comes due to blessings of a guru, from the head to beyond, till then we are in danger of falling.

Yesterday also you were requested that what do we need to see at the third eye? When Swamiji Maharajshri gives initiation ( deeksha) , He says, look at this area.After a few years he gives Shree Adhisthan Ji, and that means that see the Name. See the word Ram or any form of God you prefer. It does not matter. We have to see Ram, be in in Krishna’s form, understand this point very well, We have to reach at this stage. Whom do we have see here? Ram, the formless one. Who Ram? The formless Ram we need to see. You may see the formless One in the form of the King Ram with bow and arrow, you may see Him as Banke Bihari , in form of Shiva- Parvati, in form of mother Laxmi, Mother Saraswati, Maa Kaali, in form of The Supreme Master, in the form of Hanuman ji. Whatever form you like, you may see Ram as such. Never forget who is behind all these forms.

Contd…

New Book!

जय जय राम जी

आज July 29 के मंगलमय पावन दिवस पर गुरूजनों के श्री चरणों में यह पावन पुस्तक “ कृतज्ञता द्वारा मन का रुपांतरण “ अर्पित है।

परमेश्वर कृपा करें कि यह पुस्तक हर एक के जीवन में स्मृतियों से आरोग्यता प्रदान करके, जीवन में कृतज्ञता के भावों का बीजारोपण करें और सभी कि जीवन ख़ुशियों से भर दे ।

सर्व श्री श्री चरणों में
सर्व अर्पण

मंगल नाम राम राम
मंगल नाम राम राम

ध्यान २ (a)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २ (a)

1:00-6:52

ध्यान के steps फिर से सुनिएगा। चौकड़ी मार कर बैठिएगा। परमेश्वर को अपने अंग संग मान कर बैठिएगा। झुक कर प्रणाम कीजिएगा। बहुत झुक कर प्रणाम करना।परमेश्वर के श्रीमुख वाक्य हैं, जितना मेरे आगे झुकोगे, उतना मेरे से पाओगे। शरीर से तो कुछ सीमा तक ही झुका जा सकता है, लेकिन मन से तो कोई सीमा नहीं है। मन से झुकना सीखिए। हृदय से झुकना सीखिए।परमात्मा को ऊपरी ऊपरी बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं।बहुत झुक कर प्रणाम कीजिए। आशीर्वाद परमात्मा के लीजिए। सीधे होके बैठ जाइए।

सीधे होकर कैसे बैठना है? जैसे चौकड़ी लगाई है, अपने हाथों को बेशक ऐसे रखिए, ऐसे रखिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । फ़र्क़ इस बात का पड़ता है महत्वपूर्ण बात यह है, जितनी देर ध्यान के लिए बैठना है, बिल्कुल निश्चल बैठना है। बिना हिले जुले बैठना है। 10min बैठिए, 15 min बैठिए, जहां हिलना जुलना हो जाता है वहाँ ध्यान, ध्यान नहीं रहता।That is no more meditation. वह जप हो जाता है, या जो मर्ज़ी कहिए। लेकिन ध्यान में निश्चल बैठना होता है। इसीलिए ध्यान की अवधि थोड़े समय के लिए रखो। शुरू शुरू में दस पंद्रह मिनट । जितने में आनन्द आए। जितने में मज़ा आए। उतना समय रखो। बहुत कसरत करने की ज़रूरत नहीं। परमात्मा कसरत से नहीं मिलते परमात्मा प्रेम से मिलते हैं।जितनी देर तक आनन्द परमात्मा को दे सको, दो। उनसे आनन्द ले सको लो। यह दोनों आनन्द लेने और देने की चीज़ है ध्यान। ध्यान का समय ।

आपने झुक कर आशीर्वाद ले लिए। ऐसे बैठ गए। आँख बंद कर ली। स्वामीजी महाराज फर्माते हैं, दो आँखों के बीच यह त्रीकुटी स्थान बिंदी वाली जगह आज्ञा चक्र भगवान शिव का तीसरा नेत्र आप सब का तीसरा नेत्र भी यही है। आँख बंद करके इस जगह को देखिएगा। focus your gaze at this point. हिंदी को नहीं देखना , बिंदी वाली जगह को देखना है।यह बाह्य संकेत है। जो कुछ भी परमेश्वर आपको दिखाएँगे वह सब कुछ इसके पीछे है। यह बाह्य संकेत है।

कुंडलिनि शक्ति ऊपर आती है, नीचे से आती है, फिर मुड़ती है और फिर सीधी होती है। देखने में रूट सीधा है पर बहुत लम्बा है। जब तक साधक जनों कुण्डलिनी यहाँ से हिलती नहीं है, तब तक आदमी किसी समय भी पतन को प्राप्त हो सकता है। हम लोग अधिकांश यहीं टिके हुए हैं। इसलिए रोज़ गिरना होता है, रोज़ उठना होता है। किसी दिन ध्यान अच्छा लग जाता है किसी दिन ज़ोर लगाने पर भी नहीं लगता। एक सप्ताह जल्दी जल्दी उठना हो जाता है और फिर कितने दिन ऐसे हो जाते हैं कि आँख ही नहीं खुलती।यह सब इन्हीं कारणों से । जब तक कुण्डलीनी यहाँ से move नहीं करती, कहते हैं गुरूकृपा से आती है, जब तक यहाँ ऊपर नहीं आ जाती तब तक पतन का डर बना रहता है।

कल आप से यह भी अर्ज़ की जा रही थी कि इस स्थान पर क्या देखना है? स्वामीजी महाराज दीक्षा देते समय इतना ही कहते हैं, इस स्थान को देखिएगा। कुछ वर्षों के बाद श्रीअधिष्ठानजी देते हैं, इसका अर्थ यह है कि शब्द पर देखिएगा। राम शब्द पर देखिएगा या जो भी कोई आपके ईष्ट हैं उन्हें देखिएगा। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता साधक जनों। हमने राम को ही देखना है। चाहे उन्हें कृष्ण रूप में देखिए यह बात बहुत पल्ले बाँध लो, समझने की बात है साधकजनों यहाँ तक पहुँचना होगा ।हमने यहाँ किनको देखना है? राम को देखना है, निराकार । कौन राम? निराकार राम को देखना है। आप उन्हें धनुषधारी राम के रूप में देखिए आप उन्हें बाँके बिहारी के रूप में देखिए उन्हें शिव पार्वती के रूप में देखिए, माँ लक्ष्मी के रूप में देखिए, माँ सरस्वती के रूप में देखिए माँ काली के रूप में देखिए जगद्गुरु भगवान के रूप में देखिए हनुमान जी के रूप में देखिए, मानो जो भी आपको प्रिय स्वरूप लगता है आप उस स्वरूप में देखिएगा । मत भूलिएगा कि यह कौन हैं? राम जी के रूप ।