ध्यान २ (a)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २ (a)

1:00-6:52

ध्यान के steps फिर से सुनिएगा। चौकड़ी मार कर बैठिएगा। परमेश्वर को अपने अंग संग मान कर बैठिएगा। झुक कर प्रणाम कीजिएगा। बहुत झुक कर प्रणाम करना।परमेश्वर के श्रीमुख वाक्य हैं, जितना मेरे आगे झुकोगे, उतना मेरे से पाओगे। शरीर से तो कुछ सीमा तक ही झुका जा सकता है, लेकिन मन से तो कोई सीमा नहीं है। मन से झुकना सीखिए। हृदय से झुकना सीखिए।परमात्मा को ऊपरी ऊपरी बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं।बहुत झुक कर प्रणाम कीजिए। आशीर्वाद परमात्मा के लीजिए। सीधे होके बैठ जाइए।

सीधे होकर कैसे बैठना है? जैसे चौकड़ी लगाई है, अपने हाथों को बेशक ऐसे रखिए, ऐसे रखिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । फ़र्क़ इस बात का पड़ता है महत्वपूर्ण बात यह है, जितनी देर ध्यान के लिए बैठना है, बिल्कुल निश्चल बैठना है। बिना हिले जुले बैठना है। 10min बैठिए, 15 min बैठिए, जहां हिलना जुलना हो जाता है वहाँ ध्यान, ध्यान नहीं रहता।That is no more meditation. वह जप हो जाता है, या जो मर्ज़ी कहिए। लेकिन ध्यान में निश्चल बैठना होता है। इसीलिए ध्यान की अवधि थोड़े समय के लिए रखो। शुरू शुरू में दस पंद्रह मिनट । जितने में आनन्द आए। जितने में मज़ा आए। उतना समय रखो। बहुत कसरत करने की ज़रूरत नहीं। परमात्मा कसरत से नहीं मिलते परमात्मा प्रेम से मिलते हैं।जितनी देर तक आनन्द परमात्मा को दे सको, दो। उनसे आनन्द ले सको लो। यह दोनों आनन्द लेने और देने की चीज़ है ध्यान। ध्यान का समय ।

आपने झुक कर आशीर्वाद ले लिए। ऐसे बैठ गए। आँख बंद कर ली। स्वामीजी महाराज फर्माते हैं, दो आँखों के बीच यह त्रीकुटी स्थान बिंदी वाली जगह आज्ञा चक्र भगवान शिव का तीसरा नेत्र आप सब का तीसरा नेत्र भी यही है। आँख बंद करके इस जगह को देखिएगा। focus your gaze at this point. हिंदी को नहीं देखना , बिंदी वाली जगह को देखना है।यह बाह्य संकेत है। जो कुछ भी परमेश्वर आपको दिखाएँगे वह सब कुछ इसके पीछे है। यह बाह्य संकेत है।

कुंडलिनि शक्ति ऊपर आती है, नीचे से आती है, फिर मुड़ती है और फिर सीधी होती है। देखने में रूट सीधा है पर बहुत लम्बा है। जब तक साधक जनों कुण्डलिनी यहाँ से हिलती नहीं है, तब तक आदमी किसी समय भी पतन को प्राप्त हो सकता है। हम लोग अधिकांश यहीं टिके हुए हैं। इसलिए रोज़ गिरना होता है, रोज़ उठना होता है। किसी दिन ध्यान अच्छा लग जाता है किसी दिन ज़ोर लगाने पर भी नहीं लगता। एक सप्ताह जल्दी जल्दी उठना हो जाता है और फिर कितने दिन ऐसे हो जाते हैं कि आँख ही नहीं खुलती।यह सब इन्हीं कारणों से । जब तक कुण्डलीनी यहाँ से move नहीं करती, कहते हैं गुरूकृपा से आती है, जब तक यहाँ ऊपर नहीं आ जाती तब तक पतन का डर बना रहता है।

कल आप से यह भी अर्ज़ की जा रही थी कि इस स्थान पर क्या देखना है? स्वामीजी महाराज दीक्षा देते समय इतना ही कहते हैं, इस स्थान को देखिएगा। कुछ वर्षों के बाद श्रीअधिष्ठानजी देते हैं, इसका अर्थ यह है कि शब्द पर देखिएगा। राम शब्द पर देखिएगा या जो भी कोई आपके ईष्ट हैं उन्हें देखिएगा। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता साधक जनों। हमने राम को ही देखना है। चाहे उन्हें कृष्ण रूप में देखिए यह बात बहुत पल्ले बाँध लो, समझने की बात है साधकजनों यहाँ तक पहुँचना होगा ।हमने यहाँ किनको देखना है? राम को देखना है, निराकार । कौन राम? निराकार राम को देखना है। आप उन्हें धनुषधारी राम के रूप में देखिए आप उन्हें बाँके बिहारी के रूप में देखिए उन्हें शिव पार्वती के रूप में देखिए, माँ लक्ष्मी के रूप में देखिए, माँ सरस्वती के रूप में देखिए माँ काली के रूप में देखिए जगद्गुरु भगवान के रूप में देखिए हनुमान जी के रूप में देखिए, मानो जो भी आपको प्रिय स्वरूप लगता है आप उस स्वरूप में देखिएगा । मत भूलिएगा कि यह कौन हैं? राम जी के रूप ।

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