परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से
ध्यान ( समर्पण ) 3 b
5:32- 10:10
आज माधव के साथ अर्जुन कहीं घूमने के लिए निकले हुए हैं। भगवानश्री ने एक सफ़ेद कबूतर देखा और कहा देखो पार्थ कैसा काला कलूटा कौआ । हाँ माधव बहुत कुरूप है।काला कलूटा । देखने को मन नहीं करता । थोड़ी देर आगे गए, आगे वास्तव में एक काला कौआ देखा। माधव ने कहा देखो पार्थ कैसा चमकता हुआ सुंदर सफ़ेद कबूतर । पकड़ने को मन करता है। प्यार करने को मन करता है। गोदी में लेने को मन करता है।हाँ केश्व आप ठीक कह रहे हैं। भगवानश्री अर्जुन की इस प्रकार की प्रतिक्रिया को देखकर विस्मयपूर्वक अर्जुन से पूछते हैं। पार्थ ! एक बात बता , क्या तूने वास्तव में वहीं देखा जो मैं कह रहा था ? अर्जुन कहते हैं माधव ! आप जो कहते हैं वह स्वीकार करता हूँ । क्यों ? यदि वह नहीं है तो आप उसे बनाने में समर्थ हो । इसलिए बेहतर वही है उसी को स्वीकार कर लेना । शरणागति । इस तथ्य को अर्जुन समझ गया हुआ है। तभी उसे उच्चतम उपदेश उसे – सब धर्मों का त्याग करके पार्थ तू इक मेरी शरण में आ जा।मेरी ही शरण में आ जा । शर्त है। मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूँगा । करना क्या है ? हो गया सब कुछ । कर दिया सब कुछ । शोक मत कर । चिन्ता मत कर । मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूँगा ।
भगवानश्री पम्पा सरोवर पहुँचे हैं। मानो वह area जहां शबरी माँ रहती हैं। स्नान करने के लिए जाना था , हाथ में प्रभु ने तीर पकड़ा हुआ था। सोचा कि पम्पा सरोवर में स्नान करना है वहाँ तीर क्या करना है धरती में उसे गाढ़ दिया । स्नान के बाद आकर उस तीर को निकाला । तीर की नोक पर आगे खून लगा हुआ था। लक्ष्मण यह खून किसका है? देख ! धरती में कौन है? मैंने को धरती में इसे गाढ़ा था । देख धरती में कौन है ? खून लगा हुआ है। मानो की कोई जीव है अंदर । देख । थोड़ी सी खुदाई की और देखा कि एक मेंढक लहु लुहान । बड़ी सुंदर देवियों और सज्जनों उदाहरण समर्पण की । शरणागति व समर्पण की सभी की सभी बातें ही बड़ी कमाल की बातें हैं। क्योंकि शरणागति है ही इतनी सुंदर समर्पण है ही इतना सुंदर ।
अरे मेंढक ! जब देखो हर समय चर चर करता रहता है । जब तुम्हें तीर लगा, जब पीड़ा हुई होगी बोला क्यों नहीं ? कहा – मालिकों के मालिक , जब जीवनदाता ही जीवन लेने जा रहा है तो फरिआद किससे ? सोचा , न सोचने की ज़रूरत है न मुख खोलने की ज़रूरत है । पहले कभी कष्ट होता था क्लेश होता था तो पुकारता था कि राम मेरी रक्षा करो । रक्षक करने वाला ही अब भक्षक बना हुआ है तो फ़रियाद किससे करूँ ? यह शरणागति है।
Contd…
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