ध्यान 3 – शरणागत (c)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी के मुखारविंद से

ध्यान 3 – शरणागत (c)

10:11- 13:48

एक संत मृत्यु शय्या पर हैं। पता है सबको ।शरीर छोड़ने वाले हैं। यह शरीर के नाते से, एक चाची मिलने के लिए आई है। चाची कहती है अपने किए हुए पाप कर्म जाने अनजाने हुए उनको कर्मों की क्षमा परमात्मा से माँगी कि नहीं माँगी । भतीजे को पूछते हैं। भतीजा संत है इस वक़्त। भतीजा तो उसके लिए होगा । यह तो देवियों शरीर के नाते हैं न। यह आत्म संबंध नहीं हैं। यह शरीर के संबंध हैं । नश्वर संबंध । संत चाची ले कहते हैं चाची , मुझे एक ज़िन्दगी में एक क्षमा नहीं जब परमात्मा के साथ मेरा मन मुटाव हुआ हो। उन्होंने कुछ कहा और मैंने न मानी हो । मुझे कोई ऐसा क्षण याद नहीं। ऐसा अवसर मुझे याद नहीं। मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाता रहा। जैसे उसने मुझे नाच नचाया मैं नाचता रहा। क्षमा किस बात की माँगूँ ? क्षमा तो तब माँगू जब मैंने उनकी किसी इच्छा को पूर्ण न किया हो। जो उन्होंने किया जैसा उन्होंने मुझे उंगल पर नचाया मैं सारी ज़िन्दगी नाचता रहा। मुझे ऐसा अवसर याद नहीं जब उनमें और मुझमें मन मुटाव हुआ हो। क्षमा किस बात की? वैसे तो मैं क्षमा हर समय ही माँगता रहता हूँ पर कोई ऐसा अपराध मैंने विशेष किया हो मुझे याद नहीं है। शरणागति ।

परमात्मा की हाँ में हाँ मिलाना भक्ति और भक्ति की पराकाष्ठा है। चर्चा यहाँ समाप्त हुई थी । ऐसे शरणागत । आपकी सेवा में उदाहरण दी है कि शरणागत कैसा होता है। ऐसे शरणागत को परमात्मा उसके कर्मों के अनुसार नहीं चलाता । क्या रह गया ज़िन्दगी में ? मौज ही मौज है अब । आनन्द ही आनन्द है अब । कर्म तो ख़त्म हो गए भस्म हो गए । तुझे मैं सारे पापों से मुक्त कर दूँगा । यदि यही नष्ट हो गए ख़ाक. हो गए तो दुख कहाँ से आएगा । उसे मैं अपने अनुसार चलाता हूँ। अपना वाहन । परमात्मा को अपना काम चलाना है कि नहीं चलाना । किनके माध्यम से चलाता है वह ? ऐसे शरणागतों के माध्यम से। जिनको परमात्मा अपना स्वीकार कर लेता है । जो परमात्मा के हाथों पहले बिक जाते हैं और फिर परमात्मा उन्हें ख़रीद लेता है बस। उनको अपना वाहन बना लेता है। उनके माध्यम से परमात्मा करता है। उनको मैं उनके कर्मों के अनुसार नहीं अपने अनुसार चलाता हूँ ।

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