दीपावली के शुभ अवसर पर

दीपावली के शुभ अवसर पर परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से – 💐

१.
देवियों और सज्जनों सर्वप्रथम नतशिर वंदना है। दीपावली के इस पुण्य पर्व की लख लख बधाई हो । शुभ एवं मंगल कामनाएँ ।
दीपावली को पाँच दिवसीय पर्व कहा जाता है । इस पर्व का शुभारम्भ तो त्रेयोदशी से है- धनतेरस इसे कहते हैं । यहाँ से इस पर्व का शुभारम्भ होता है । इस दिन धनतेरस जी महाराज औषधियाँ का भण्डार समुद्र से निकाल कर अवतरित हुए । उस दिन को धनतेरस कहा जाता है । यह दीपावली का जो पर्व है कोई छोटा मोटा उत्सव नहीं है । इस में बहुत सी चीज़ें मिली होती हैं – सर्व प्रथम हमारा जीवन जो है हमारा यह देह, जो मिला हुआ है, हम तो देह नहीं हैं , यह देह जिसमें हम निवास करते हैं उसकी अरोग्यता से इस पर्व का शुभारम्भ होता है । तो मकान की भव्यता और मकान का सौन्दर्य जो है- देह की वीतरागता पर निर्भर करता है कि इसे सजाया किस प्रकार से गया है । तो हमारा जो शरीर जो है देह जो है, वह स्वस्थ होना चाहिए यहीं से इस पर्व का शुभारम्भ होता है ।

2.

अगला दिन काली चौदस – इस दिन भगवान ने चौदह हज़ार नारियों को नरकासुर से छुड़ा कर अपनी शरण में लिया था । नरकासुर वासना का प्रतीक है। माँ ने जो देह दिया है , हमारे देह में समस्त प्रकार की वासनाएँ हैं । वासना केवल काम वासना को ही नहीं कहा जाता , किसी को बड़े बनने की वासना, किसी को यश मान की वासना, धन की वासना हुआ करती है, अपनी प्रशंसा सुनने की वासना होती है, किसी को अपनी प्रदर्शन करने की वासना। अनेक प्रकार की वासनाएँ हैं । कभी भी यह वासनाएँ उभर सकती हैं – any time expected!वासना के यह कुसंस्कार भीतर पड़े हुए होते हैं, अवसर ढूँढते हैं कि कब प्रकट हो जाएँ ! तो यह दिन अपनी वासनाओं को प्रभु के चरणों में अर्पित करने का दिन । इसके बाद तो भारी पवित्रता आ जाती है । शरीर नीरोग हो गया। अपने अपने अहं को परमेश्वर के अर्पित कर दें । जिस प्रकार भगवान् ने नर्कासुर को यमपुरी पहुँचा दिया था , अहं को भगवान् को समर्पित करने से , आपकी, हमारी वासनाओं को यह यमपुरी पहुँचा देते हैं ।

3.

आज बीच का दिन है । आज के दिन भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी महाराज सहित, मातेश्वरी सीता सहित अयोध्या में पधारे हैं । अयोध्या बहुत सजाई जा चुकी है । आज दीपावली का पर्व वहाँ मनाया जा रहा है । अवध उसे कहते हैं जहाँ किसी का वध नहीं होता ।
आज का दिन परमेश्वर से प्रार्थना करने का दिवस है। आज के दिन माँ लक्ष्मी , माँ सरस्वती की पूजा की जाती है । मानो हमें घन की आवश्यकता पड़े तो धन के साथ उस प्रज्ञा की भी आवश्यकता है, परमेश्वर यह धन हमारे बन्धन का कारण न बन जाए । आज का दिन यही आपको याद दिलाता है कि उस धन को भी एकत्रित करिए जिसे ‘ नाम धन ‘ राम नाम धन कहा जाता है । जो किसी के पास से नहीं जाता । आपकी पूँजी है। आपके साथ ही रहेगा ।
बहुत से तांत्रिक , बहुत से मंत्रयोग के उपासक आज के दिन को मंत्र सिद्धि के लिए भी प्रयोग करते हैं । आज जितना इस मंत्र का जाप करिएगा , राम नाम का जाप करिए, उतनी ही सिद्धि होने की सम्भावना बढ़ती है । आज का दिन इस लिए बहुत माँगलिक । सब अपने मंत्रों को सिद्ध करने में लगे होते हैं ।
आज का दिन बहुत महत्वशाली है । आपको पुन: बधाई देता हूँ । परमात्मा से प्रार्थना कीजिएगा कि परमेश्वर इस अंतकरण को अयोध्या बना दीजिएगा। इस अंतकरण का जन्मों जन्मों से जमा हुआ अंधकार दूर कर दीजिएगा । एक बार फिर से बहुत बहुत बधाई, शुभ व मंगल कामनाएँ ।

4.

दिपावली के अगले दिन को नूतन वर्ष भी माना जाता है ।साल भर में जो कुछ किया है उसकी विश्लेषण करने का दिन , सिंहावलोकन ( retrospection) करके देखें कि किया हुआ है और फिर इस दिन से ऐसे संकल्प लेने का दिन – किसी का बुरा नहीं करेंगे । बुरा नहीं कहेंगे । मन से, कर्म से वचन से, किसी का अनिष्ट न हो ऐसे संकल्प , संयमी जीवन बिताएँगे , पवित्र जीवन बिताएँगे । बेईमानी , चोरी इत्यादि छोडेंगे इत्यादि इत्यादि ।
इन सब का सिंहावलोकन करके नई शपथ लेने की आवश्यकता है । जब व्यक्ति नया संकल्प लेता है तो उसके लिए व्यक्ति को, माता पिता की, गुरुजनों के आशीर्वाद की आवश्यकता हुआ करती है । ताकि सह संकल्प हमारा निर्विध्न सम्पन्न हो जाए ।


भाग ५

दिपावली के पर्व का अंतिम दिवस जिसे भइया दूज भी कहा जाता है । भाई बहन की पवित्रता का याद दलाने का दिन।इस दिन बहनें अपने भाइयों के मस्तक तिलक लगाती हैं । उनको आशीर्वाद देती हैं । उनके लिए शुभ मंगल कामनाएँ करती हैं ।दीर्घ आयु के लिए, यशस्वी बनें, बुद्धिशाली बनें इत्यादि इत्यादि। मानो अपने पवित्र सम्बंध की उन्हें याद दिलाती हैं । 

परमेश्वर से यह याचना करने की आवश्यकता है कि हे परमेश्वर , सर्वप्रथम इस अंतकरण को अवध बनाओ, तभी तो आप आओगे , वरना आप लंका चले जाते हो, दूर चले जाते हे। अवध जब अवध बनेगा, तभी आप वहाँ पधारोगे। आप अवतरित ही महाराज अवध में हुए हैं, रहे भी अवध में ही । हज़ारों वर्ष तक वहाँ ही राज्य किया है । वहाँ से कहीं पढने में नहीं आता कि आप कहीं बाहर गए हैं । तो इस आदर से यदि रामजी को बुलाना है तो पहले राम जी से कहिएगा , प्रभु इसे अवध बनाओ । तभी तो आप आओगे । 

परमात्मदेव भले ही आप लंका में पधारते हैं थोड़े समय के लिए, थोड़े समय में पधारने से हमारा मन नहीं भरता । हमारे अंत: करण में प्रभु सदा विराजिएगा । और हमारे इस अंत: करण को अयोध्या बनाइए । जनकपुरी में आप थोड़ी देर के लिए गए, माता सीता को साथ ले कर आ गए । उसके बाद कभी आप गए या नहीं, हमें नहीं पता । लेकिन अयोध्या में प्रमाणित है कि आप बहुत देर तक रहे हैं । 

मेरे  राम ! अपने नाम के प्रकाश से, अपने नाम के प्रकटन से पकमेश्वर, इस अंत: करण में जन्म जन्मान्तरों से जो अन्धकार जमा पड़ा है, आज उसे दूर कर दीजिएगा । पुन: बधाई । आपको कोटि कोटि प्रणाम । 

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