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दिपावली के शुभ अवसर पर व्रत

परम पूज्यश्री जॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से

दिपावली के शुभ अवसर पर

SRS Nov 3, 2010

0:00- 6:23

दिवाली के महोत्सव पर आप सबको असंख्य बार बधाई देता हूँ शुभकामनाएँ मंगल कामनाएँ । आज से इस महोत्सव का प्रथम दिवस शुरु होता है। पाँच दिनों का यह महोत्सव है।धनतेरस से शुरु होता है भइया दूज तक चलता है और समाप्त होता है। मुख्य पर्व दीपावली है आज ही आप सबको बहुत बहुत बधाई देता हूँ शुभ कामनाएँ मंगल कामनाएँ । परमेश्वर सबको सुख शान्ति बक्शें, नाम भक्ति बक्शें, आत्म ज्ञान बक्शें , सदाचारी जीवन बक्शें , दिव्य जीवन बक्शें, अच्छे इंसान बने, नेक इंसान बनें। अच्छे साधक बनें। ताकि जिस लक्ष्यों लिए यह जीवन मिला हुआ है ताकि उस लक्ष्मी पूर्ति हो सके। अति शुभ कामनाएँ मंगल कामनाएँ ।

यदि कुछ साधक साधकजनों इन दिनों व्रत लेना चाहें, कि मैं रोज़ गिनती का बीस हज़ार किया करूँगी, रोज़ आधे घण्टा सुबह आधे घण्टा शाम को ध्यान के लिए बैठा करेंगे , सुबह का समय 5-5:30 या उससे पहले सांय 6:30-7 या फिर सोने से पहले, रोज़ अमृतवाणी का पाठ किया करेंगे, रोज़ स्थित प्रज्ञा लक्ष्ण या उपासक का आंतरिक जीवन या कथा प्रकाश से उससे एक दो पृष्ठ पढ़ा करेंगे। साधक ऐसे जो व्रत का पालन करना चाहें, बहुत से ऐसे हों जो कर भी रहें होंगे लेकिन जो साधक ऐसा व्रत लेना चाहते हैं, मेहरबानी करके श्रीमति कपिला जी को या अनिल दिवान जी को अपना नाम लिखवा दें।नाम सिर्फ़ इसलिए कि आपको याद रहेगा कि हमने श्री रामशरणम् में बैठकर यह व्रत लिया है। उसके बाद हम कहीं भी हैं, हम इस व्रत का पालन करेंगे।

कुछ स्थानों पर यह सब शुरू हो गया हुआ है। साधकों में जो उत्साह देखने को मिला है, मैं उससे बहुत प्रभावित हुआ हूँ । ग्वालियर से शुरू हुआ, रोहतक वालों ने follow किया । अभी जम्मू में तो अति हो गई। कई दिन तक वे अपने नाम लिखवाते रहे। तो इससे प्रभावित होते, प्रसन्न होते, हर्षित होके सोचा अभी यह सूचना तो विश्व भर में जाएगी, तो आप भी यदि शुरु करना चाहें तो शुरू कर सकते हैं।

जो कुछ कहा है या ऐसा नहीं कहना, ऐसे लोग अपना नाम न लिखवाएँ जो यह कहते हैं कि हमारा ज़ाप चलता रहता है। नहीं। यह गिनती का बीस हज़ार का ज़ाप या उससे अधिक। जो गिनती करें, सुबह शाम ध्यान के लिए बैठें, अमृतवाणी का पाठ रोज़ करें, एवं उपासक का आंतरिक जीवन या स्थित प्रज्ञा लक्ष्ण या कथा प्रकाश से एक दो पृष्ठ रोज़ पढ़ने का व्रत लें, केवल वही नाम लिखवाएँ। ज़रूरी नहीं कोई बंधन नहीं। आप स्वतंत्र हैं, यहाँ कर सकते हैं, फ़रीदाबाद तक कहें वहाँ कर सकते हैं। जहां कहीं पर भी हैं, ऐसा नहीं कि यह आपको श्रीरामशरणम में बैठ कर ही करना है।सम्भवतया इंदौर में जल्दी शुरू हो जाएगा। शायद कुछ जगहों पर announcements हो भी चुकी हों। तत्काल शुरू कर देते हैं लोग। बहुत करते भी हैं, लेकिन नियम पूर्वक । नियम पूर्वक इसको निभाने का जो व्रत है, लेना चाहते हैं लेते हैं उनका हार्दिक स्वागत है।मेहरबानी करके बहुत अच्छे दिन हैं, आज से शुरू करना चाहें अति शुभ दिन। नव वर्ष है दीपावली के बाद उन दिन शुरू कीजिएगा । पाँचों दिन बहुत अच्छे हैं, अच्छे माने जाते हैं, संकल्प लेने के। व्रत लें इसका पालन करें। हार्दिक धन्यवाद ।

दीपावली के शुभ अवसर पर

दीपावली के शुभ अवसर पर परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से – 💐

१.
देवियों और सज्जनों सर्वप्रथम नतशिर वंदना है। दीपावली के इस पुण्य पर्व की लख लख बधाई हो । शुभ एवं मंगल कामनाएँ ।
दीपावली को पाँच दिवसीय पर्व कहा जाता है । इस पर्व का शुभारम्भ तो त्रेयोदशी से है- धनतेरस इसे कहते हैं । यहाँ से इस पर्व का शुभारम्भ होता है । इस दिन धनतेरस जी महाराज औषधियाँ का भण्डार समुद्र से निकाल कर अवतरित हुए । उस दिन को धनतेरस कहा जाता है । यह दीपावली का जो पर्व है कोई छोटा मोटा उत्सव नहीं है । इस में बहुत सी चीज़ें मिली होती हैं – सर्व प्रथम हमारा जीवन जो है हमारा यह देह, जो मिला हुआ है, हम तो देह नहीं हैं , यह देह जिसमें हम निवास करते हैं उसकी अरोग्यता से इस पर्व का शुभारम्भ होता है । तो मकान की भव्यता और मकान का सौन्दर्य जो है- देह की वीतरागता पर निर्भर करता है कि इसे सजाया किस प्रकार से गया है । तो हमारा जो शरीर जो है देह जो है, वह स्वस्थ होना चाहिए यहीं से इस पर्व का शुभारम्भ होता है ।

2.

अगला दिन काली चौदस – इस दिन भगवान ने चौदह हज़ार नारियों को नरकासुर से छुड़ा कर अपनी शरण में लिया था । नरकासुर वासना का प्रतीक है। माँ ने जो देह दिया है , हमारे देह में समस्त प्रकार की वासनाएँ हैं । वासना केवल काम वासना को ही नहीं कहा जाता , किसी को बड़े बनने की वासना, किसी को यश मान की वासना, धन की वासना हुआ करती है, अपनी प्रशंसा सुनने की वासना होती है, किसी को अपनी प्रदर्शन करने की वासना। अनेक प्रकार की वासनाएँ हैं । कभी भी यह वासनाएँ उभर सकती हैं – any time expected!वासना के यह कुसंस्कार भीतर पड़े हुए होते हैं, अवसर ढूँढते हैं कि कब प्रकट हो जाएँ ! तो यह दिन अपनी वासनाओं को प्रभु के चरणों में अर्पित करने का दिन । इसके बाद तो भारी पवित्रता आ जाती है । शरीर नीरोग हो गया। अपने अपने अहं को परमेश्वर के अर्पित कर दें । जिस प्रकार भगवान् ने नर्कासुर को यमपुरी पहुँचा दिया था , अहं को भगवान् को समर्पित करने से , आपकी, हमारी वासनाओं को यह यमपुरी पहुँचा देते हैं ।

3.

आज बीच का दिन है । आज के दिन भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी महाराज सहित, मातेश्वरी सीता सहित अयोध्या में पधारे हैं । अयोध्या बहुत सजाई जा चुकी है । आज दीपावली का पर्व वहाँ मनाया जा रहा है । अवध उसे कहते हैं जहाँ किसी का वध नहीं होता ।
आज का दिन परमेश्वर से प्रार्थना करने का दिवस है। आज के दिन माँ लक्ष्मी , माँ सरस्वती की पूजा की जाती है । मानो हमें घन की आवश्यकता पड़े तो धन के साथ उस प्रज्ञा की भी आवश्यकता है, परमेश्वर यह धन हमारे बन्धन का कारण न बन जाए । आज का दिन यही आपको याद दिलाता है कि उस धन को भी एकत्रित करिए जिसे ‘ नाम धन ‘ राम नाम धन कहा जाता है । जो किसी के पास से नहीं जाता । आपकी पूँजी है। आपके साथ ही रहेगा ।
बहुत से तांत्रिक , बहुत से मंत्रयोग के उपासक आज के दिन को मंत्र सिद्धि के लिए भी प्रयोग करते हैं । आज जितना इस मंत्र का जाप करिएगा , राम नाम का जाप करिए, उतनी ही सिद्धि होने की सम्भावना बढ़ती है । आज का दिन इस लिए बहुत माँगलिक । सब अपने मंत्रों को सिद्ध करने में लगे होते हैं ।
आज का दिन बहुत महत्वशाली है । आपको पुन: बधाई देता हूँ । परमात्मा से प्रार्थना कीजिएगा कि परमेश्वर इस अंतकरण को अयोध्या बना दीजिएगा। इस अंतकरण का जन्मों जन्मों से जमा हुआ अंधकार दूर कर दीजिएगा । एक बार फिर से बहुत बहुत बधाई, शुभ व मंगल कामनाएँ ।

4.

दिपावली के अगले दिन को नूतन वर्ष भी माना जाता है ।साल भर में जो कुछ किया है उसकी विश्लेषण करने का दिन , सिंहावलोकन ( retrospection) करके देखें कि किया हुआ है और फिर इस दिन से ऐसे संकल्प लेने का दिन – किसी का बुरा नहीं करेंगे । बुरा नहीं कहेंगे । मन से, कर्म से वचन से, किसी का अनिष्ट न हो ऐसे संकल्प , संयमी जीवन बिताएँगे , पवित्र जीवन बिताएँगे । बेईमानी , चोरी इत्यादि छोडेंगे इत्यादि इत्यादि ।
इन सब का सिंहावलोकन करके नई शपथ लेने की आवश्यकता है । जब व्यक्ति नया संकल्प लेता है तो उसके लिए व्यक्ति को, माता पिता की, गुरुजनों के आशीर्वाद की आवश्यकता हुआ करती है । ताकि सह संकल्प हमारा निर्विध्न सम्पन्न हो जाए ।


भाग ५

दिपावली के पर्व का अंतिम दिवस जिसे भइया दूज भी कहा जाता है । भाई बहन की पवित्रता का याद दलाने का दिन।इस दिन बहनें अपने भाइयों के मस्तक तिलक लगाती हैं । उनको आशीर्वाद देती हैं । उनके लिए शुभ मंगल कामनाएँ करती हैं ।दीर्घ आयु के लिए, यशस्वी बनें, बुद्धिशाली बनें इत्यादि इत्यादि। मानो अपने पवित्र सम्बंध की उन्हें याद दिलाती हैं । 

परमेश्वर से यह याचना करने की आवश्यकता है कि हे परमेश्वर , सर्वप्रथम इस अंतकरण को अवध बनाओ, तभी तो आप आओगे , वरना आप लंका चले जाते हो, दूर चले जाते हे। अवध जब अवध बनेगा, तभी आप वहाँ पधारोगे। आप अवतरित ही महाराज अवध में हुए हैं, रहे भी अवध में ही । हज़ारों वर्ष तक वहाँ ही राज्य किया है । वहाँ से कहीं पढने में नहीं आता कि आप कहीं बाहर गए हैं । तो इस आदर से यदि रामजी को बुलाना है तो पहले राम जी से कहिएगा , प्रभु इसे अवध बनाओ । तभी तो आप आओगे । 

परमात्मदेव भले ही आप लंका में पधारते हैं थोड़े समय के लिए, थोड़े समय में पधारने से हमारा मन नहीं भरता । हमारे अंत: करण में प्रभु सदा विराजिएगा । और हमारे इस अंत: करण को अयोध्या बनाइए । जनकपुरी में आप थोड़ी देर के लिए गए, माता सीता को साथ ले कर आ गए । उसके बाद कभी आप गए या नहीं, हमें नहीं पता । लेकिन अयोध्या में प्रमाणित है कि आप बहुत देर तक रहे हैं । 

मेरे  राम ! अपने नाम के प्रकाश से, अपने नाम के प्रकटन से पकमेश्वर, इस अंत: करण में जन्म जन्मान्तरों से जो अन्धकार जमा पड़ा है, आज उसे दूर कर दीजिएगा । पुन: बधाई । आपको कोटि कोटि प्रणाम । 

ध्यान 3 – शरणागत (c)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी के मुखारविंद से

ध्यान 3 – शरणागत (c)

10:11- 13:48

एक संत मृत्यु शय्या पर हैं। पता है सबको ।शरीर छोड़ने वाले हैं। यह शरीर के नाते से, एक चाची मिलने के लिए आई है। चाची कहती है अपने किए हुए पाप कर्म जाने अनजाने हुए उनको कर्मों की क्षमा परमात्मा से माँगी कि नहीं माँगी । भतीजे को पूछते हैं। भतीजा संत है इस वक़्त। भतीजा तो उसके लिए होगा । यह तो देवियों शरीर के नाते हैं न। यह आत्म संबंध नहीं हैं। यह शरीर के संबंध हैं । नश्वर संबंध । संत चाची ले कहते हैं चाची , मुझे एक ज़िन्दगी में एक क्षमा नहीं जब परमात्मा के साथ मेरा मन मुटाव हुआ हो। उन्होंने कुछ कहा और मैंने न मानी हो । मुझे कोई ऐसा क्षण याद नहीं। ऐसा अवसर मुझे याद नहीं। मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाता रहा। जैसे उसने मुझे नाच नचाया मैं नाचता रहा। क्षमा किस बात की माँगूँ ? क्षमा तो तब माँगू जब मैंने उनकी किसी इच्छा को पूर्ण न किया हो। जो उन्होंने किया जैसा उन्होंने मुझे उंगल पर नचाया मैं सारी ज़िन्दगी नाचता रहा। मुझे ऐसा अवसर याद नहीं जब उनमें और मुझमें मन मुटाव हुआ हो। क्षमा किस बात की? वैसे तो मैं क्षमा हर समय ही माँगता रहता हूँ पर कोई ऐसा अपराध मैंने विशेष किया हो मुझे याद नहीं है। शरणागति ।

परमात्मा की हाँ में हाँ मिलाना भक्ति और भक्ति की पराकाष्ठा है। चर्चा यहाँ समाप्त हुई थी । ऐसे शरणागत । आपकी सेवा में उदाहरण दी है कि शरणागत कैसा होता है। ऐसे शरणागत को परमात्मा उसके कर्मों के अनुसार नहीं चलाता । क्या रह गया ज़िन्दगी में ? मौज ही मौज है अब । आनन्द ही आनन्द है अब । कर्म तो ख़त्म हो गए भस्म हो गए । तुझे मैं सारे पापों से मुक्त कर दूँगा । यदि यही नष्ट हो गए ख़ाक. हो गए तो दुख कहाँ से आएगा । उसे मैं अपने अनुसार चलाता हूँ। अपना वाहन । परमात्मा को अपना काम चलाना है कि नहीं चलाना । किनके माध्यम से चलाता है वह ? ऐसे शरणागतों के माध्यम से। जिनको परमात्मा अपना स्वीकार कर लेता है । जो परमात्मा के हाथों पहले बिक जाते हैं और फिर परमात्मा उन्हें ख़रीद लेता है बस। उनको अपना वाहन बना लेता है। उनके माध्यम से परमात्मा करता है। उनको मैं उनके कर्मों के अनुसार नहीं अपने अनुसार चलाता हूँ ।

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Meditation 3b

Divine Dicourse from Param Pujyashri Dr. Vishwamitr ji Maharajshri ( These are literal translations from the Hindi discourse)

Meditation 3b

5:32- 10:10

Today Arjun went with Madhav for a stroll. Lord saw a white pigeon and said See Parth! Such an ugly black crow! Yes Madhav really ugly. One does not wish to see it. They went further ahead, an saw a real black crow. Madhav said, See Paarth, such a shining white pigeon. One wishes to hold it. Take it in one’s lap. One wishes to love it. Yes Keshav, you are right. Bhagwanshri was surprised to hear Arjun’s responses and said, Paarth! Tell me one thing, did you actually see what I was saying? Arjun said, Madhav, Whatever you say, I accept. Why? If those things are not like that, then you are caoae of making them like that. There why it is better to accept them. Surrender. Arjun has understood this concept. That’s why the most valuable teaching – leave all religions and take my refuge, take only my refuge. That’s the condition. I will remove all your sins. What do you have to do? It’s all done. Everything is done. Don’t despair. Don’t worry. I will free you from all your negativities.

Bhagwaanshri has reached the river Pampa. It’s the area where Mother Shabri lives. Wanted to go for a bath. Lord is holding the arrow in his hand. He thought that I need to take a bath so there is no need for the arrow. He dug the arrow in the sand. After the bath, he took out his arrow and found blood at it’s tip. Laxman! Whose blood is it? See!! Who is inside. I had put the arrow in the ground. See who is in the ground? There is blood. After little digging, saw a frog soaked in blood. It is a beautiful example of surrender. All discussions of surrender and giving oneself up are extraordinary. It’s because surrender is so beautiful, giving oneself up is just beautiful.

Oh Frog! Whenever we see you are always croaking. When you got hurt, why didn’t you say so? Oh Lord of all Lords, when the life giver himself is taking away life, then whom to pray? I thought that there is no need to think not open one’s mouth. Earlier whoever I was in distress, I would call out that Ram please save me. The savior has not become the predator whom to pray? This is surrender….

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ध्यान ( समर्पण ) 3 b

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान ( समर्पण ) 3 b

5:32- 10:10

आज माधव के साथ अर्जुन कहीं घूमने के लिए निकले हुए हैं। भगवानश्री ने एक सफ़ेद कबूतर देखा और कहा देखो पार्थ कैसा काला कलूटा कौआ । हाँ माधव बहुत कुरूप है।काला कलूटा । देखने को मन नहीं करता । थोड़ी देर आगे गए, आगे वास्तव में एक काला कौआ देखा। माधव ने कहा देखो पार्थ कैसा चमकता हुआ सुंदर सफ़ेद कबूतर । पकड़ने को मन करता है। प्यार करने को मन करता है। गोदी में लेने को मन करता है।हाँ केश्व आप ठीक कह रहे हैं। भगवानश्री अर्जुन की इस प्रकार की प्रतिक्रिया को देखकर विस्मयपूर्वक अर्जुन से पूछते हैं। पार्थ ! एक बात बता , क्या तूने वास्तव में वहीं देखा जो मैं कह रहा था ? अर्जुन कहते हैं माधव ! आप जो कहते हैं वह स्वीकार करता हूँ । क्यों ? यदि वह नहीं है तो आप उसे बनाने में समर्थ हो । इसलिए बेहतर वही है उसी को स्वीकार कर लेना । शरणागति । इस तथ्य को अर्जुन समझ गया हुआ है। तभी उसे उच्चतम उपदेश उसे – सब धर्मों का त्याग करके पार्थ तू इक मेरी शरण में आ जा।मेरी ही शरण में आ जा । शर्त है। मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूँगा । करना क्या है ? हो गया सब कुछ । कर दिया सब कुछ । शोक मत कर । चिन्ता मत कर । मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूँगा ।

भगवानश्री पम्पा सरोवर पहुँचे हैं। मानो वह area जहां शबरी माँ रहती हैं। स्नान करने के लिए जाना था , हाथ में प्रभु ने तीर पकड़ा हुआ था। सोचा कि पम्पा सरोवर में स्नान करना है वहाँ तीर क्या करना है धरती में उसे गाढ़ दिया । स्नान के बाद आकर उस तीर को निकाला । तीर की नोक पर आगे खून लगा हुआ था। लक्ष्मण यह खून किसका है? देख ! धरती में कौन है? मैंने को धरती में इसे गाढ़ा था । देख धरती में कौन है ? खून लगा हुआ है। मानो की कोई जीव है अंदर । देख । थोड़ी सी खुदाई की और देखा कि एक मेंढक लहु लुहान । बड़ी सुंदर देवियों और सज्जनों उदाहरण समर्पण की । शरणागति व समर्पण की सभी की सभी बातें ही बड़ी कमाल की बातें हैं। क्योंकि शरणागति है ही इतनी सुंदर समर्पण है ही इतना सुंदर ।

अरे मेंढक ! जब देखो हर समय चर चर करता रहता है । जब तुम्हें तीर लगा, जब पीड़ा हुई होगी बोला क्यों नहीं ? कहा – मालिकों के मालिक , जब जीवनदाता ही जीवन लेने जा रहा है तो फरिआद किससे ? सोचा , न सोचने की ज़रूरत है न मुख खोलने की ज़रूरत है । पहले कभी कष्ट होता था क्लेश होता था तो पुकारता था कि राम मेरी रक्षा करो । रक्षक करने वाला ही अब भक्षक बना हुआ है तो फ़रियाद किससे करूँ ? यह शरणागति है।

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Meditation.3(a)

Divine Dicourse from Param Pujyashri Dr. Vishwamitr ji Maharajshri ( These are literal, unedited translations)

Meditation.3(a)

1-5:22

Discussion on surrender is going on. Samarpan. The ultimate of devotion is being discussed. Before we continue from where we left last, let us take some examples of surrender and understand, what is it? Everybody has heard about it. We offer all our karma. We all have heard about it. What does a normal regular practitioner know about it? Where we have no desire of our own, that is surrender. It’s very easy to hear about it, but to actually do it, that is really challenging. It’s us the ultimate of Bhakti. Where there remains no desire of one’s own. This is surrender. Where there is no doership. That is surrender. Then who is doer ? These words are from the path of devotion and not of knowledge. In the path of devotion there is just one doer- the Lord. Only one wish is working. That is the Lord’s. When there is no personal wish then the one is there is the Lord’s. This is surrender. One becomes the vehicle of the Lord’s wish.

The lord fulfills His wishes through that person who has become His vehicle. His thought becomes the Lord’s thought, his words the Lord’s words and his doing the Lord’s doing. The does everything through Him. One who surrenders. The Lord works through him. When the Lord accepts the person as His own, then there is no personal wish left of that person.

If you want to surrender do it as fast as possible. There should be no place for your own personal wish, only one wish remains and that is called the Lord’s wish.

The issue my dear mothers is that we do not know what His wish is? A grave problem indeed! I don’t know if you all face this problem or not. But, for me, a low category devotee, it’s a nice problem. He does not say, cannot see Him, how do we know what does He want? That’s why man spends his life in doubts. He us unable to reach that state, as he is of low category. I am saying this for myself. Lord says what is actually this world? Do you see the world? Then you have not set foot on the path of devotion. This world appears as the world to the non-devotee. The devotee sees the world as the Lord’s form. Who so ever says anything, think that it’s from Me. This is surrender. That’s why, this path is very difficult. But if one does surrender then he does not have to do anything else. Everything happens by itself.

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ध्यान 3 (a)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान 3 (a)

1- 5:22

शरणागति की चर्चा चल रही है। समर्पण की चर्चा चल रही है। भक्ति की पराकाष्ठा की चर्चा चल रही है। इससे पहले कि जहां पीछे चर्चा छोड़ी थी वहाँ से आगे शुरू करें, शरणागति के बारे में एक दो अधिष्ठान के माध्यम से शुरू करने की चेष्टा करते हैं कि यह है क्या ? नाम तो हर एक ने सुना हुआ है । शरणागति भी सुना है, समर्पण भी सुना है। प्रत्येक कर्म समर्पित करती हूँ सब बातें सुनी हुई हैं। आख़िर एक साधारण साधक एक सामान्य साधक क्या समझें कि यह समर्पण क्या है, शरणागति क्या है? जहां अपनी इच्छा कोई न रहे वह शरणागति। सुनना बहुत आसान है, देवियों और सज्जनों। करके दिखाना बहुत कठिन है। भक्ति की पराकाष्ठा है। जहां अपनी चाह कोई न रहे। यह शरणागति यह समर्पण है। जहां अपना कर्तापन कर्तृत्व न रहे। वह शरणागति है। समर्पण है। तो फिर कौन करने वाला होगा ? भक्ति के मार्ग के शब्द हैं यह ज्ञान के मार्ग के शब्द नहीं। भक्ति के मार्ग पर कर्ता एक ही है – परमात्मा कहा जाता है। एक ही की इच्छा काम करती है जिसे परमात्मा कहा जाता है। अपनी इच्छा रोई नहीं तो बस एक ही की इच्छा रह जाती है जिसे परमात्मा की इच्छा कहा जाता है।यह शरणागति है। परमात्मा की इच्छा का वाहक बन जाता है।

परमात्मा अपनी इच्छा उसके माध्यम से पूरी करता है। उसकी सोच परमात्मा की सोच उसके शब्द परमात्मा के शब्द । उसकी करनी परमात्मा की करनी। lord works through Him. शरणागत। परमात्मा उसके माध्यम से सब कुछ करता है। जिसको वह अपना शरणागत स्वीकार कर लेता है, तो अपनी इच्छा का कोई स्थान नहीं है। करना तो है, जितनी जल्दी हो सके करो। अपनी इच्छा कोई न रहे अपना संकल्प कोई न रहे।एक ही इच्छा बाकि रह जाती है जिसे परमात्मा की इच्छा कहा जाता है।

समस्या मेरी माताओं यह है कि उसकी इच्छा का पता नहीं चलता। बड़ी भारी समस्या । पता नहीं आप लोगों के साथ यह है कि नहीं। लेकिन मेरे जैसे घटिया साधक के साथ तो यह बहुत भारी समस्या है। बोलता नहीं, सामने नहीं होता, प्रकट नहीं होता ।कैसे पता लगे कि यह क्या चाहता है। इसलिए आदमी भ्रमित ही अपना जीवन व्यतीत कर देता है। इस स्थिति तक पहुँच नहीं पाता क्योंकि अभी घटिया है। जैसे मैंने कहा अपने लिए मैं घटिया हूँ। परमात्मा कहते हैं कि यह संसार क्या है? संसार दिखाई देता है। फिर अभी भक्ति के मार्ग में पग नहीं रखा आपने। यह संसार संसार अभक्त को दिखाई देता है। भक्त को यह संसार संसार नहीं परमात्मा का साकार रूप दिखाई देता है। जो किसी के मुख से शब्द निकलता है तो मेरा समझ, वह समर्पण । इसी लिए बहुत कठिन काम है देवियों और सज्जनों । लेकिन यदि हो गया तो बस उसके बाद कुछ करने की ज़रूरत नहीं। सब कुछ अपने आप घटित होगा।

Contd…

ध्यान २(c)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २(c)

14:00- 17:55

साधकजनों कल तो नहीं परसों राजा अश्वपति की चर्चा करेंगे । ब्रह्मज्ञानी हैं वे, आत्म साक्षात्कार उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हो चुका हुआ है।छांदोक्य उपनिषद में उनकी बहुत सुंदर कथा आती है।परसों करेंगे । कल तो जप शुरू होगा । कल तत्काल जप के बाद ध्यान में हम बैठ जाएँगे। बाकि दिन साधकजनों जैसे आज भक्ति प्रकाश का पाठ हुआ उसके बाद हमें ध्यान के लिए बैठना था। जिस दिन ध्यान के लिए बैठेंगे उस दिन ध्यान के बाद जो भी अमृतवाणी का नेतृत्व कर रहे हैं, जैसे ही समय होगा सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: का पाठ शुरू कर देंगे तो कार्यक्रम के सत्संग की समाप्ति हो जाएगी । मैं दूसरी बार राम नहीं बोलूँगा । जो सत्संग का नेतृत्व कर रहे हैं वे समय से समाप्ति करेंगे तो हमें पता चल जाएगा कि समाप्ति हो गई है ।

समय हो गया है यहीं समाप्त करने की इजाज़त दे दीजिएगा । आप ज़रूर कोशिश कर रहे होंगे कल से । बहुत लम्बी यात्रा है देवियों और सज्जनों । जप को तो हम बहुत seriously नहीं लेते। सो जप में हम बातें भी करते रहते हैं। टीवी भी देखते रहते हैं। इधर भी देखते हैं, उधर भी देखते हैं, इनसे भी बात सुनते हैं इनको भी देखते हैं कि क्या हो रहा है। सब पता रहता है। काश ! हमने जप को महत्व दिया होता । तो हमारे लिए ध्यान बहुत आसान हो जाता ।

जप के वक्त जब आप अपनी खिड़की दरवाज़े बंद करके रखते हैं, तो फिर ध्यान में अपने खिड़की दरवाज़े बंद करने में आपको कठिनाई महसूस नहीं होगी । अन्यथा ध्यान में बहुत कठिनाई आती है। कठिनाइयाँ आएंगी तो पता चलेगा कि कितना जटिल मार्ग है कितना कठिन मार्ग है। कितनी गलतियां हम करते रहे हैं और कितनी गलतियां हम करते जा रहे हैं । अभी भी गलतियां बंद नहीं हुई ।

शुभ कामनाएँ साधकजनों ! अपेक्षा रखता हूँ । कोई न कोई साधक तो अपनी सही समस्या लेकर मेरे सामने आएगा । अठारह साल हो गए हैं साधक जनों किसी एक व्यक्ति ने आज तक , लाखों की संख्या में साधक हो गए हैं, किसी एक व्यक्ति ने आज तक अपनी ध्यान की समस्या मेरे साथ discuss नहीं की। आँखें बिछाए बैठा हूँ । कोई को आके सही समस्या मेरे साथ आके discuss करे। चालिस लाख का loan हो गया है, एक करोड़ का loan हो गया है, मैं क्या करूँ उसमें? परमात्मा क्या करेंगे उसमें? ऐसी समस्याओं का क्या किया जाए । waste of time. जिस समस्याओं के लिए सुलझाने के लिए यहाँ आते हैं, वे समस्याएं तो वैसे की वैसी ही बनी हुई हैं। उनको सुलझाने का कोई प्रयत्न ही नहीं है किसी का।

शुभ कामनाएँ देवियों और सज्जनों मंगल कामनाएँ । परमेश्वर की कृपा मेरे गुरूजनों की अपार कृपा सदा सदा सब पर बने रहें

Meditation 2 (c)

Divine Dicourse from Param Pujyashri Dr. Vishwamitr ji Maharajshri ( These are literal, unedited translations)

Meditation 2 (c)

11:00- 14:00

The moment we get the pipes touch of the Lord, St that very moment you become Him. He starts opening all His secrets for you. All the layers start falling off.

The light merges in the light. The light joins with the light. The soul merges with the Supreme Soul. The two souls get united. They become One. Advaita sets in. Two zeroes become One. It’s like this term zero that is being used here is of great importance. You all sit for meditation, I have no doubt in it, whosoever sits. You try that we attain this zero state. Here, dear devotees, our path gets divided into two. One is zero only.

You are doing jaap, ( chanting). In meditation jaap is not an obstruction, if performed appropriately. Only jaap is being performed, no worldly thoughts, then that jaap really helps you. This jaap is called zero. The state is of zero only. Why? It’s free of worldly thoughts. Zero, meaning free from worldly thoughts. Devotees, first attain this state.

After that comes the time when a person goes more deep and when he starts experiencing peace and bliss. Then jaap automatically stops. One does not have to stop jaap by own efforts. Because if it’s being told to you and we stop doing jaap then it’s not a good thing. I needs to stop by itself. If it stopsny itself then you become ready to attain the second state of zero. The supreme zero state. The state that is of the Lord and now you’ll attain it then only you’ll gave union with the Lord. Two zeroes become One. In spirituality in meditation two zeroes become One. Such a person is called Brahmgyani, such a person is called brahmveta.

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ध्यान २(c)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान २(c)

11:00 – 14:00

जैसे ही परमात्मा के साथ यह संस्पर्श प्राप्त होता है आप तत्काल वहीं बन जाते हो। आपके सामने वह सारे के सारे भेद अपने आप ही खुलने लग जाते हैं। सारी की सारी पर्ती जो हैं वह उखड़ने लग जाती हैं। उतर जाती हैं।

ज्योति ज्योति में समा जाती है। ज्योति ज्योति से मिल जाती है। आत्मा परमात्मा से मिल जाती है। दोनों आत्माओं का मिलन हो जाता है। एक हो जाते हैं। अद्वैत हो जाता है। दो शून्य मिल गए। मानो यह शून्य शब्द जो आपके सामने प्रयोग किया जा रहा है यह बहुत महत्वपूर्णहै। आप सब ध्यान में बैठते हो मुझे कोई संदेह नहीं है जितने भी थोड़े बहुत बैठते हो।कोशिश करते हो हमें यह शून्य अवस्था लाभ हो। यहाँ साधकजनों हमारा मार्ग दो में विभाजित हो जाता है। एक तो शून्य ही ।

आप जप कर रहे हैं, ध्यान में जप बाधा नहीं है यदि सही ढंग से किया जाए ।सिर्फ़ जप आपका हो रहा है, सिर्फ़ जप, संसारिक विचार कोई नहीं है तो वह जप आपको बहुत सहायता देता है।ऐसा जप शून्य ही कहा जाता है। शून्य अवस्था ही कहा जाता है, क्यों ? भौतिक विचारों से रहित है। शून्य अर्थात् भौतिक विचारों से रहित । साधक जनों पहले यह अवस्था प्राप्त कीजिएगा ।

उसके बाद समय आता है, जब व्यक्ति गहन और जाता है, जब और उसे शान्ति और आनन्द का अनुभव होने लगता है फिर अपने आप जप भी बंद हो जाता है। यह अपने आप करना नहीं। क्योंकि आज आपको बताया जा रहा है इसलिए हम जप बंद कर देते हैं, यह ठीक नहीं है। इसे अपने आप बंद होना चाहिए । अपने आप बंद होने पर यह दूसरी शून्य अवस्था आपको लाभ होने जा रही है, महाशून्य अवस्था आपको लाभ होने जा रही है। जो परमात्मा की है जब वहीं आपकी होगी को ही परमात्मा से आपका मिलन होगा । दो शून्य एक हो जाते हैं। अध्यात्म में, ध्यान में दो शून्य मिल कर एक हो जाते हैं। ऐसी को ही ब्रहमज्ञानी कहा जाता है, ऐसे को ही ब्रह्मवेता कहा जाता है।

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