Category Archives: प्रवचन – पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री

ध्यान १a (b)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान १a (b)

6.46 min – 13:22

एक young couple आया । मैं नहीं पहचान सका उन्हें। उनकी बीवी कहती हैं। पति पास ही खड़े हैं चुप । पत्नि कहती हैं मेरी मम्मी की surgery हुई ठीक हो गई । अब वो आगे से ठीक हैं। मैंने अर्ज़ की परमेश्वर कृपा देवी, बहुत अच्छी बात है। आगे से कहती है, पर अभी कमजोरी बहुत है। मैंने कहा देवी, रोग के बाद कमजोरी होती ही है, ठीक हो जाएगी। मैं गर्भवती हूँ । मैंने कहा बहुत बहुत बधाई । ज़ाप पाठ बेटा करते रहना। मेरी बहन की अभी तक engagement नहीं हुई । बेटा, यह सब बातें निश्चित हैं। आप अपना पुरुषार्थ जारी रखो और प्रतीक्षा करो। अंतिम बात थी, मेरे पति की बहन की भी शादी अभी नहीं हुई ।

तब मैंने उस देवी ने कहा यह अपनी समस्याएं लिखवाने का register नहीं है श्रीरामशरणम । यह भक्ति करने का स्थान है। यहाँ आके परमेश्वर को याद करो। और संसार को भुलाओ। स्वामीजी महाराज की ओर से लिखा, स्वामीजी महाराज का फ़रमान है, बिन भक्ति शान्ति नहीं । इसलिए

अनन्य सुभक्ति राम दे

परमेश्वर के दरबार से अनन्य भक्ति माँगा कीजिए।

यह चिट्ठी उनको मिल गई, तो उस देवी ने उत्तर भेजा, बहुत सुंदर लगा, पढ़ी लिखी लगती हैं, शुद्ध हिन्दी, थोड़ी थोड़ी english mix में पत्र लिखा था। लिखा था बात समझ में आ गई ।

ध्यान का फल क्या है देवियों और सज्जनों ? जो वास्तविकता है वह समझ में आ जाए। तो यह ध्यान का फल है। यह ध्यान में ही आएगी । वह महिला भाग्यवान है, उसे पत्र लिखने से ही, पत्र पढ़ने से ही बात समझ में आ गई। बिन भक्ति के शान्ति नहीं है। यह उन्होंने मुझे शब्द लिखे, यह उनका पत्र मुझे आया। पोस्ट । बात समझ में आ गई । बिन भक्ति शान्ति नहीं मिलती । समस्याएं यदि हल भी हो जाएँ तो भी क्या शान्ति मिल जाती है? यह प्रश्न पूछा है। आगे स्वयं ही उतर दिया, न जाने आज तक कितनी ही समस्याएं ज़िंदगी में आई और कितनी ही समस्याएं ज़िंदगी की सुलझ गई लेकिन शान्ति तो अभी तक भी नहीं मिली । मैं आगे से ध्यान रखूँगा । श्रीरामशरणम जाऊँ, स्वयं भी शान्ति प्राप्त करूँ भक्ति करूँ औरों को भी सूचित करूँ कि एक स्थान जहां बैठ के शान्ति मिलती है।

देवियों और सज्जनों ! बहुत सुंदर पत्र उनका लगा, इसलिए आप सबके सेवा में अर्ज़ कर दी। भक्ति से, यदि आप कहो कि श्रीरामशरणम आने से हमारी भौतिक और परमार्थिक समस्याएं सुलझी हैं, तो मैं आपजी को स्पष्ट करता हूँ कि यह भक्ति का प्रताप है। यहाँ आके जो शान्त मना आप थोड़े समय के लिए बैठते हैं, जो आपको ऊर्जा आपके अंदर अर्जित होती है, संचित होती है, उससे भौतिक समस्याएं सब प्रकार की समस्याएं सुलझती जाती हैं। आप परमात्मा के कृपा के पात्र बनते जाते हैं। समस्या न भी सुलझे तो आपको भक्ति बहुत बल देती है, आपको बहुत सहनशील बना देती है। आपको मुख बंद रखने की हिम्मत और अपनी सोच के द्वार बंद करने की हिम्मत देती है। भक्ति ।

रााााााााााााम

इस ध्वनि पर एकाग्र कीजिए अपने मन को। भीतर गूंजती हुई सुनिए एकाग्र कीजिएगा अपने मन को इस ध्वनि पर ।

ध्यान १a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान १a

0.00- 6.46 min

करें जी आँख बंद। बैठ जाएँ सीधे होके।पीठ सीधी करें जी, रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहे ।देखते रहें त्रीकुटी स्थान को। बहुत प्यार से देखें। don’t strain. कभी कभी खुली आँख भी इस जगह को देखते रहा कीजिए। बहुत मीठी बहुत महत्वपूर्ण जगह है यह आज्ञाचक्र । ईंड़ा पिंगला एवं सुषमणा नाड़ी तीनों यहाँ मिलती है। बहुत महत्वपूर्ण स्थान है यह।

अनन्य सुभक्ति राम दे पराप्रीति कर दान

अविचल निश्चय दे मुझे अपने पथ का ज्ञान

लक्ष्य रखिए ध्यान का- अनन्य सुभक्ति राम दे। यह सब कुछ कैसे होगा।जब कुछ करना नहीं तो हाथ हिले क्यों? जब कहीं जाना नहीं तो पाँव हिले क्यों ? जब राम राम के अतिरिक्त कुछ बोलना नहीं तो जिह्वा हिले क्यों ? जब त्रिकुटि स्थान जब परमेश्वर के अलावा कुछ देखना नहीं हूँ तो आँख खुले क्यों ? कुछ माँग नहीं है तो मन में संकल्प उठे क्यूँ ? मन निर्विचार क्यों न हो? शरीर का मौन मन का मौन एवं हृदय का मौन, ध्यान इन तीनों को माँगता है । इन तीनों का समन्वय है ध्यान। इन तीनों से बाहर से ऊर्जा हमारी संचित होती है।वह सारी की सारी ऊर्जा ध्यान लगाने में उपयोग होनी चाहिए। ये कमज़ोर व्यक्तियों का खेल नहीं है। शूरवीरों का है। अध्यात्म शूर वीरों का खेल ऊर्जावान full of energy वालों का खेल है। जिन्हें अपने ऊर्जा को बचाना आता है वही इस खेल के खिलाड़ी हो सकेंगे। अन्यथा गिरते रहेंगे टूटते रहेंगे फूटते रहेंगे।लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाएंगे।

इस संदर्भ में देवियों और सज्जनो एक पत्र कुछ दिन पहले एक देवी को लिखा था। उनका पत्र तो नहीं आया था। पत्र उनके इस कथन पर लिखा था, कोई समस्याएं थीं उनकी, सुनाने के लिए आईं जाते हुए ये कह गई हमारे जैसों की सुनवाई नहीं होती। पता नहीं था कालरा साहब के माध्यम से ही एक छोटी सी स्लिप लिख कर भेजी। देवी कुछ एक स्पष्टीकरण है, यह स्थान जिससे श्री रामशरणम कहा जाता है यह मंदिर है, मंदिर में परमात्मा की भक्ति की जाती है, परमात्मा को याद किया जाता है, और संसार को भुलाया जाता है। संसार अर्थात अपना शरीर, अपने शरीर की समस्याएं, अपनी शरीर के रोग, अपने संबंधियों की समस्याएं एवं रोग का विस्मरण, जहाँ होता है, मंदिर है वह हैं श्री रामशरणम् । यह सुनवाई का केंद्र नहीं है, कोई कचहरी नहीं है FIR दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन नहीं है, शिकायतें रजिस्टर करने के लिए ये रजिस्टर नहीं है।

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ध्यान १ (b)

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान १ (b)

6:47- 13:30

हम हाथ से कम करते हैं, मन से ज़्यादा करते हैं, हृदय से ज़्यादा करते हैं। इसलिए इस पूजा में चिन्तन की प्रधानता है, जप की प्रधानता है, ध्यान की प्रधानता है, शारीरिक क्रियाओं की प्रधानता यूँ कहो बहुत कम। माला फिर रही है, उसमें उँगलियाँ चल तो रही हैं, लेकिन इस जप के साथ यदि मन नहीं जुड़ा हुआ तो यह बिल्कुल टेप रिकॉर्डर की तरह ही है। यह बिल्कुल यांत्रिक है। इसका महत्व कितना होगा वह परमात्मा जाने।

तो आज सर्वप्रथम इतनी समझ हमें आई कि स्वामीजी महाराज की पूजा, उपासना पद्धति मानसिक उपासना है। तो इसमें क्या करना होता है? इसमें आपके भाव किस प्रकार के होने चाहिए। मानसिक अर्थात् काल्पनिक । काल्पनिक जैसे, इस समय आप अपने कक्षों बैठे हुए हैं, घर पर, वहाँ आपने प्रवेश किया। अधिष्ठान जी के आगे जो पर्दा लगा हुआ था उसे हटाया, या द्वार बंद था तो उसे खोला, और आपने मथेगा टेका। मत्था टेक के तो आप बैठ जाते हैं, अगरबत्ती धूप वहाँ पड़ी हुई होती है उसे सबसे पहले वहाँ जलाते हैं। तनिक सोचो देवियों और सज्जनों पहले जोत जलाएँगे या फिर धूप जलाएँगे या अगरबत्ती जैसा भी आपका क्रम हो। कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । वहाँ बैठकर आपने धूप या अगरबत्ती को जलाया है। what for? यह सोचने का विषय है। यह किस लिए जला रहे हो? क्या परमात्मा को सुगंधित करना चाहते हो ? परमात्मा को आप इसकी सुगंध देना चाहते हो? उसे क्या आवश्यकता है इस सुगंध की? देवियों और सज्जनों। इतिहास साक्षी है जहां परमात्मा का प्रकटन होता है जहां परमात्मा की उपस्थिति होती है, सबसे पहले वातावरण सुगंधित हो जाता है। यह उनके आने का चिह्न यह उनके प्रकट होने का चिह्न । यह उनकी उपस्थिति का चिह्न । स्पष्ट है, कमरे में उनकी उपस्थिति नहीं है, तो आप सुगंध जला के तो आप ऐसी कल्पना कर रहे हैं, कि परमात्मा यहाँ उपस्थित अब हैं। तो अगरबत्ती किस लिए जलाई ? ताकि वातावरण सुगंधित हो जाए परमात्मा की उपस्थिति का हमें बोध हो। आपने दीप जलाया इत्यादि इत्यादि सब किया ।

हमें अगरबत्ती की सुगंध क्या समझाती है? धूप की सुगंध क्या समझाती है? आपके रोकने पर भी धूप का धुआँ धूप की सुगंध अगरबत्ती की सुगंध, जहां आप नहीं भी बैठे हुए हैं, वह वहाँ भी पहुंच जाएगी । बाहर भी निकल जाएगी बाहर के लोगों को पता लग जाएगा कि मम्मी ने धूप जला दिया है अगरबत्ती जला दी है, मानो , परमेश्वर की सर्वव्यापकता का बोध दिलाए धूप या अगरबत्ती का जलाना तो, सार्थक । अन्यथा यांत्रिक । अब आप बैठे हैं उस जगह पर जहां सर्व व्यापक परमात्मा विराजमान है। क्यों ? सुगंध का वातावरण है। और जहां सुगंध होती है, वहाँ ऐसा माना जाता है कि वहाँ परमात्मा विराजमान है। तो आपको परमात्मा की उपस्थिति का बोध हो रहा है, अनुभूति हो रही है, अब आगे की पूजा आरम्भ होती है।

तो आज इतना ही। बरहाल हमें पक्का पता लग गया, हमारी उपासना पद्धति पूजा पद्धति मानसिक है। वस्तु प्रधान नहीं है। यदि हम वस्तु का प्रयोग करते हैं तो मानसिक की तैयारी के लिए ।

रााााााााााााम

ध्यान १

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

ध्यान १

1-6:47 min

करो परमेश्वर को प्रणाम और बैठ जाओ सीधे होके। आँख बंद करें और देखें त्रिकुटी स्थान को। ध्यान अवस्था में बैठिएगा । ध्यान के steps फिर याद दिलाता हूँ ।

परमेश्वर को अपने अंग संग मानते, झुक के प्रणाम करके सीधे होकर बैठ के, आँख बंद करके त्रिकुटी स्थान को देखते हुए भीतर ही भीतर अर्थात् मन ही मन अपने प्रीयतम परमात्मा को पुकारना ध्यान कहाता है। हम पुकारने से शुरू करते हैं, उच्चारण से शुरू फिर पुकारना फिर स्मरण, याद करना । इस क्रम को बनाए रखिएगा । इसी को follow कीजिएगा । परमेश्वर कृपा से लाभ होगा ।

हम सब यहाँ परमात्मा के पुजारी बैठे हैं। हमारी पूजा और पूजाओं से भिन्न हैं, जिन पूजाओं से हम परिचित हैं उन पूजाओं से हमारी पूजा भिन्न है। स्वामीजी महाराज फर्माते हैं

परमात्मा को पूजिए घट में धर कर राम

मन को मंदिर मानिए जो हर परम महान

कभी न भूलने वाला दोहा । इसमें स्वामीजी महाराज ने अपनी पूजा पद्धति समझाई । घट घड़ी को कहते हैं, शरीर को भी घट कहते हैं। शरीर का ऊपरी भाग देखें तो यह उल्टा घट है। घड़ी जो उल्टा रखा गया है इसका मुख नीचे की ओर है बाकि का भाग ऊपर की ओर । यह सिर हमारा घट है। परमात्मा को पूजिए घट में धर कर ध्यान । स्वामीजी महाराज पूजा की विधि समझा रहे हैं। हमारा ध्यान घट में होना चाहिए । हमारा ध्यान बाह्य वस्तुओं पर नहीं होना चाहिए । बाहर नहीं होना चाहिए। मन को मंदिर मानिए । स्वामीजी महाराज ने और स्पष्ट किया है जो सबसे महान है उस मंदिर में मूर्तिमान हैं विराजमान हैं, उनकी पूजा कीजिए ।

स्पष्ट है हमारी पूजा वस्तु प्रधान नहीं है। हमारी पूजा क्रिया प्रधान भी नहीं है । सामान्यतया तो अपने हाथों से अगरबत्ती जलाते हैं दीप जलाते हैं फूल चढ़ाते हैं फल चढ़ाते हैं, मिठाई चढ़ाते हैं , चलकर मंदिर जाते हैं। वहाँ जाके प्रसाद चढ़ाते हैं प्रसाद लेते हैं आरती उतारते हैं आरती लेते हैं इत्यादि इत्यादि, हम इस पूजा से परिचित हैं। इसी पूजा से हमारी जानकारी है। इसमें कोई दोष नहीं है। यदि यही पूजा सही ढंग से की जाए जैसे स्वामीजी महाराज फ़र्मा रहे हैं। तो इस पूजा के अतिरिक्त आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं । यह पूजा ही अपने आपमें सम्पूर्ण साधना हो जाएगी । अन्यथा बहुत अधूरी जैसे कर्म काण्ड । अभी तो इस पूजा में सिर्फ़ शरीर की involvement है। मंदिर जाते हैं पैर द्वारा हाथों से पुष्प चढ़ाते हैं दीप जलाते हैं अगरबत्ती जलाते हैं तो शरीर द्वारा प्रसाद चढ़ाते हैं तो शरीर द्वारा मानो इस पूजा की सीमा सिर्फ़ शरीर। यह एक शारीरिक क्रिया है। इसके साथ मन को जोड़ा जाए, चित्त को जोड़ा जाए भावों को जोड़ा जाए तो यही पूजा सम्पूर्ण पूजा बन सकती है। जिसे संत महात्मा मानसिक उपासना कहते हैं।

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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 2b

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 2b

7:35- 12:32

मेरे राम मुझे तुझसे अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए । तेरी भक्ति । पुत्र के लिए एक सुख माँगोगे एक सुख मिल जाएगा लेकिन उसके साथ दुख अपने आप आ जाएँगे उनके माँगने की आवश्यकता नहीं । परमेश्वर की कृपा माँगते रहो। इसी भाव से परमेश्वर की आराधना करो। कल आप से अर्ज़ की थी। स्वामीजी महाराज की उपासना में प्रेम की प्रधानता है, भक्ति की प्रधानता है। नाम की उपासना है। भक्ति का शुभारंभ भी नाम की उपासना से होता है। अंत तो इसका है नहीं। चलती रहती है, चलाते रहिएगा इसे। बंद नहीं करना इसे। आप सिद्ध बन जाएँ, आप जीवन मुक्त बन जाएँ आप पराभक्त बन जाएँ आप प्रेमी भक्त बन जाएँ आप ज्ञानी भक्त बन जाएँ कुछ भी बन जाएँ , नाम की आराधना कभी बंद नहीं करनी । इसे चलते रहना है।

जहां प्रेम की बात आती है भक्त जनों, इस प्रेम को दिव्य प्रेम कहा जाता है। यह दो शरीरों का प्रेम नहीं है। वह तो स्वार्थ है, काम है। यह प्रेम नहीं है। चमड़े का प्रेम एक की चमड़ी का दूसरे की चमड़ी से प्रेम, इसे प्रेम नहीं कहते । संत महात्मा कहते हैं असली प्रेम तो दिव्य प्रेम है जिसमें कभी किसी से लेना नहीं होता देना ही देना होता है । क्या देना है ? धन ? न । आभूषण? न। कपड़े ? न । सुख देना है। संत महात्मा निर्णय करते हैं इस बात के ऊपर , भक्तजनों सुखी रहना चाहते हो तो एक बात याद रखो, सुख लेने की चीज़ नहीं है, सुख देने की चीज़ है। जितना दोगे इतना ही आपके पास लौट के आएगा। माँगते रहोगे तो भिखारी । देते रहेंगे तो मालामाल । देने वाले को परमात्मा इतना देता है ताकि और दे। उसे और अधिक महान बना देता है और अधिक सुखी बना देता है। मानो सारे जहान के सुख उसके आगे पीछे घूमने लग जाते हैं। किसके पीछे ? जो दूसरों को सुख देता है । उसे माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ती ।

यह उपासना यह प्रेम , इसी के अंतर्गत आ जाते हैं अनेक सारे शब्द । जो प्रेमी है वह सहनशील भी होगा। जो प्रेमी है वह क्षमावान होगा । जो प्रेमी है वह नम्र भी होगा । वह निर्अहंकारी भी होगा । एक प्रेम के साथ कितनी सारी चीज़ें कितनी सारी चीज़ें अपने आप ही आ जाते हैं।

आइए साधकजनों हम गृहस्थ साधकों का घर किस प्रकार वैकुण्ठ बन सकता है।.नर्क से किस प्रकार शान्त हो सकता है स्वर्ग नहीं, स्वर्ग तो बहुत छोटी सी चीज़ है, हमारा घर तो वैकुण्ठ बन सकता है। परम धाम बन सकता है, जहां परमात्मा स्वयं निवास करते हैं। आपके पास बल है।

महात्मा कबीर के पास अनेक लोग जाते, कभी कभी अपनी आध्यात्मिक समस्या के लिए और बहुदा अपनी सांसारिक समस्याओं के लिए। उनसे समाधान पूछते । महात्मा कबीर तो सुगढ़ संत थे । ध्यान दें, सुघड़ संत किसे कहा जा रहा है ? सुघड़ संत वह जो व्यक्ति संसार में धँसा हुआ है उसे निकाल कर परमेश्वर की ओर लगा दे। उसका मुख मोड़ दे वह सुघड़ संत । जो और संसार की ओर मोड़ दे वह सुघड़ संत नहीं है।

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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 2a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr10b)

श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 2a

1:30- 7:35

जहां आप नाम की उपासना करते हैं वहाँ साथ ही साथ हमारे मन का निर्मलीकरण अवश्य होना चाहिए। जितने भी दुर्गुण हैं वे सबके सबब निकलने चाहिए और जितने भी परमेश्वर के गुण हैं जिन्हें सद्गुण कहते हैं वे बसने चाहिए । तभी साधना की सम्पन्नता होगी । तभी आपको परम शान्ति लाभ होगी । यदि आप गृहस्थ हैं तो, गृहस्थ शान्त स्वर्ग वैकुण्ठ तभी बनेगा। इनके रहते हुए तो राक्षस, यह तो लड़ाई झगड़ा करवाने वाले हैं, इनके होते हुए न भीतर चैन है न बाहर चैन है। दुर्गुणों का दूर करना नितान्त आवश्यक । भीतर खोजें कौन कौन से दुर्गुण हैं, और उन्हें एक एक करके परमेश्वर की कृपा से, आपके पास तो राम नाम का इतना बल है, यदि आप भी इनसे रहित नहीं हो सकते तो बेचारा सामान्य व्यक्ति क्या करेगा। सहन करने का बल आपके पास, क्षमा करने का बल आपके पास यह सारे के सारे बल मिलते हैं, राम नाम की उपासना से। कितने बलवान हो आप, जिनके पास यह पूँजी है। बस, थोड़ी पूँजी और एकत्रित करनी है, थोड़ा और पूंजीवान बनना है, क्यों? ख़र्चा ही ख़र्चा होता रहा और कमाई कुछ नहीं हुई तो बात बनी नहीं।

यह नाम की कमाई निरन्तर चलती रहनी चाहिए । और इसे कम से कम खर्च कीजिएगा। जहां आवश्यक है, खर्च कीजिएगा। एक बार जो भूल हो गई, नाम की कमाई के बल पर आपने प्रायश्चित कर लिया तो इसके बाद आगे से यह प्रण ले लिया कि आगे से यह गलती मैं नहीं करूँगा। यदि वह भूल फिर से हुई तो फिर नाम की कमाई उस दुष्ट को मारने के लिए फिर से लगेगी वह बहुत होगी । बहुत अधिक ।

नाम की कमाई अधिक से अधिक एकत्रित करते जाइएगा । महाराजश्री कहते हैं। पूँजी राम नाम की पाइए । पूज्यपाद प्रेम जी महाराज के प्रवचन जिन्होंने सुने होंगे, उनके प्रवचनों में एक चीज़ की बड़ी प्रमुखता हुआ करती थी । जब भी वे प्रवचन करते तो, निष्काम सेवा एव् निष्काम भक्ति के ऊपर किया करते। मानो, निष्काम शब्द बहुत प्रिय था महाराजश्री को। कामना रहित । परमेश्वर की आराधना भी करते हो तो कामना रहित होकर करो। सदा कहते, राम से कभी कुछ न माँगो, बस, एक चीज़ माँगो, बस , राम तेरी कृपा बनी रहे। अमुक व्यक्ति पर माँगते, हड्डी ठीक हो जाए ऐसा नहीं कहते, यही कहते परमेश्वर इस पर भी तेरी कृपा हो। और कहते कौन सी ऐसी चीज है जो कृपा में नहीं आती ? सब कुछ उसमें आ जाता है। परमात्मा से कृपा माँगो ।

हम क्या माँगते हैं? चैतन्य महाप्रभु के पास एक दफ़ा एक सेठ गए, कोई व्यक्ति गए और कहने लगे, महाप्रभु ! यह राम नाम जपने से क्या होता है? यह हरि बोल हरि बोल कहने से क्या लाभ होता है? चैतन्य महाप्रभु रोने लग गए । आज मेरा कौन सा ऐसा पाप मेरे सामने आ गया कि तेरे जैसा स्वार्थी लोभी व्यक्ति मेरे पल्ले पड़ गया । कोई व्यापारी हो ? राम नाम में भी लाभ ढूँढ रहे हो? कोई व्यापारी हो ? अरे ! राम नाम जपने से क्या लाभ लेना चाहते हो ? पुत्र पैदा हो जाए ? मेरा व्यापार रुका हुआ है, व्यापार चलना शुरू हो जाए ? यशमान की प्राप्ति के लिए राम नाम की उपासना करना चाहते हो ? माला फेरना चाहते हो, सफलता के लिए ? पास हों जाऊँ मेरी नौकरी लग जाए, इसलिए नाम जपना चाहते हो ? महाप्रभु कहते हैं अरे! जिसको तुम सफलता मान रहे हो जिसको लाभ मान रहे हो वह लाभ नहीं है वह तो रस्सियाँ हैं, बंधन है, हथकड़ियाँ हैं। राम नाम जपने के बाद भी संसारिक लाभ लेते हो, मानो, जौहरी की दुकान पर जाके कोएले माँगना । उसके पास अनमोल रत्न हैं देने के लिए हीरे ज्वाहारात हैं देने के लिए और आप जाकर उससे कोयले माँगते हैं। कोयले तो कोयले ही हैं, भट्टी पीछे लगी हुई है, सबकुछ लगा हुआ है, उन्हें कोएले देने में बड़ी आसानी है, कुछ नहीं लगता। शुक्र है कोएले देके गुज़ारा चलता रहा। इस व्यक्ति को हीरे ज्वाहारात देने की क्या आवश्यकता है? यह कोएले से ही अपना मुख काला करना चाहता है। यही होता है हर एक के साथ ।

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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 1g

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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 1g

25:50 – 29

यदि परमेश्वर ने सब कुछ करना है तो मुझे बुद्धि क्यों दी है? मुझे घोड़ा गधा बना दिया होता । यह बुद्धि इतनी जल्दी स्वीकार नहीं करती इस बात को कि परमेश्वर ही सब करने वाले होते हैं।

तलवार निकाली है मारने के लिए, पीछे से एक सांड दौड़ता हुआ आया है। सांड ने सींग मारा है इसकी छाती पर गिरा दिया है, अपनी ही तलवार से इसकी नाक कट गया है। कटना ही था, हमारा काम ही ऐसा है। हमारा नाक ही कटता है। अनेक बार कटता है। पर हम ढीठ बेशर्म हैं हम । नाक कट गया है रक्त बहने लगा है। सांढ इसके गिरा कर आगे भाग गया है। परमेश्वर का ही भेजा हुआ था। परमेश्वर नहीं चाहते थे कि यह से मरे । तो इसे कौन मार सकता है। सांढ भेज दिया । वह गिरा कर इस नौकर को चला गया। घर के नौकरों को बुलाया । उठाओ भई इसे। क्या हो गया है। सेठ साहब ही हवेली में जाकर डॉक्टर वैद्य आदि आए , उपचार आरम्भ हो गया । डॉक्टरों ने कहा घबराने वाली बात नहीं है थोड़ी ही देर में होश में आ जाएगा । ठीक हो जाएगा । कोई ऐसी बात नहीं है।

सेठ एवं सेठानी धर्मात्मा हैं। बैठ कर चर्चा करते हैं। क्या तुझे लगता है , सेठानी कहती हैं तुझे नहीं लगता कि इसकी intention ठीक नहीं थी । यह तुझे मारना चाहता था । सेठ कहता है तू क्यों ऐसा सोचती है। बिना वजह किसी पर शक करना पाप है। सोचो। देखो धर्मात्मा की बातें । नाम की कमाई की बातें किस प्रकार की हैं। बेबुनियाद किसी पर संशय करना पाप है। क्यों ऐसा सोचती हो? ऐसा क्यों नहीं सोचती कि परमेश्वर के हाथ बचाने वाले के हाथ कितने बड़े हैं। देखो मुझे मौत के मुँह से बचा लिया । ऐसी सोच हो जाए, मानो नाम का रंग आपके ऊपर चढ़ना शुरू हो गया है। सद्वयवहार इस सेठ का ।

सेठ वहीं बैठ कर, नौकर के पास, परमेश्वर तू जानता है इसने किस भावना से यह तलवार बाहर निकाली । मेरे मन में कभी इसके प्रति दुर्भावना न जागे । यह परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा है। यह है नाम का रंग । मेरे मन में कभी इसके प्रति दुर्भावना न जागें । जो भी इसने किया है इसे क्षमा कर दे । मेरी बड़ा विश्वसनीय नौकर । बहुत देर से मेरी सेवा करता आ रहा है यह । आज भी न जाने क्या हो गया न जाने इसने क्यों ऐसा किया होगा । तू जाने कि क्या सच है मेरे परमेश्वर । आपस में बात चीत कर रहे हैं पति पत्नी । बीच में होश आई हुई है। बदल गया ।

मैं इस योग्य नहीं प्रभु कि आपके चरणों पर गिर सकूँ। सत्य है महाराज । लोभ के कारण आज आपकी हत्या कर देनी थी। रोने लग गया । पश्चयाताप के अश्रुओं ने अनुताप के अश्रुओं ने बहुत सारा पाप का मल धो दिया ।

श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 1f

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 1f

20-23 – 25:50

यह बात नाम की उपासना स्पष्ट करती रहती है कि एक घर कैसा होना चाहिए । एक बैंक का कर्मचारी बैंक में जब जाती है, हेड cashierया cashierहै, लाखों रुपये अपने हाथों से गिनती है रोज़, उसमें से पाँच रुपये निकाल कर अपनी देह में नहीं डाल सकता । एक महने बाद उसे तनख्ह मिलेगी वहीं अपनी जेब में डाल सकता है।यही बात भक्तजनों , जो attitude एक बैंक कर्मचारी का बैंक का है वही attitude factory में आए वैसा ही attitude घर में आ जाता है, वही सच्चा साधक है।

घर लौटते ही, मेरी पत्नी मेरा घर, मेरा घन मेरा यह मेरा वह, यह सब चीज़ें शुरू हो जाती हैं। बैंक में रह कर ऐसा क्यों नहीं करते? यदि ऐसा करके पैसा अपने जेब में डाल लोगे तो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी आपको। आप बेईमान हैं। यदि घर में यह attitude है तो वहाँ बेईमान क्यों नहीं हैं। परमेश्वर की दृष्टि में तो बेईमान हो, इसीलिए अशान्त हो, शान्त नहीं हो। परमेश्वर की दृष्टि में हम बेईमान हैं। परमेश्वर की दृष्टि में जो ईमानदार बन जाता है जो यह सोच के तपस्या करती है साधना करता है सब कुछ मेरे राम का है मैं भी राम का हूँ वह ईमानदार साधक हैं वह तुरन्त शान्त हो जाता है।

घर में घूम रहे हैं हम। गृहस्थ हैं न । स्वामीजी की साधना एक गृहस्थ की साधना है ।

कैसे पता चले कि हमारी साधना ठीक चल रही है कि नहीं। यह साधना राम नाम की उपासना हमारे जीवन में हमारे व्यवहार में उतरनी चाहिए। यदि हमारा व्यवहार अभी सद्वयवहार नहीं बना तो समझ लीजिएगा कि साधना ठीक नहीं है। जपते हो राम राम राम करते हो यह ! अपने बच्चे मुख पर कहते हैं, जाते हो श्रीरामशरणम इतनी ताली बजाते हो नाचते हो गाते हो और घर में अपने बच्चों के साथ अपने पड़ोसियों के साथ इतना दुर्व्यवहार करते हो। अपने बच्चे ही यह बात मुख पर कह देते हैं। ठीक नहीं। न व्यक्ति ठीक है न घर ठीक है । जैसे कि चालिस पचास वर्ष पहले था, वैसे ही बरसते हो, फुँकारे मारते हो, वैसे ही ईर्ष्या बनी हुई है, वैसे ही द्वेष बना हुआ है, वैसे ही वैसा सब कुछ है तो मानो साधना ने रंग नहीं डाला । परस्पर सद्भावना हो जाए। हृदय में सबके लिए प्रेम जागृत हो जाए । स्वामीजी की साधना प्रेम प्रधान साधना है। भक्ति प्रधान साधना है, अर्थात् विशुद्ध प्रेम प्रधान साधना है।

क्या चिह्न हैं भक्तजनों इस प्रेम के । आइए एक छोटे से दृष्टान्त के माध्यम से इसे देखते हैं। आज एक नौकर है। बड़े सेठ का नौकर। निजी नौकर । विश्वसनीय नौकर । जिन्हें अंगरक्षकों जाता है वैसा नौकर । लोभ के कारण आज मन में बात आ गई कि अपने मालिक को मार देना है। हर वक्त अपने पास तलवार रखता है। अंगरक्षक सा है सेठ साहब का । रात्री का अंधकार है समय ढूँढ कर तलवार निकाली है सेठ जी को ढूँढने के लिए। जिसे परमेश्वर बचाने वाला है उसे कौन मारे। परमेश्वर जो चाहता है वहीं होता है न । अंत में साधना में यही निष्कर्ष पर पहुँचोगे कि जो परमात्मा करवाता है वहीं होता है। आज तो हम करते हैं न। अभी तो साधना आरम्भ करी है। साधना परिपक्व हो जाएगी उच्च शिखर पर पहुँच जाएगी, उच्चतम शिखर पर पहुँच जाएगी तब स्पष्ट पता लग जाएगा कि मैं मूर्ख था जो जिनंदगी भर समझता था कि मैं कुछ करने वाला हूँ। मैं कुछ करने वाला नहीं था । सब कुछ करने वाला मेरा राम ही है राम के अतिरिक्त और कोई कुछ नहीं कर सकता । यह कब बात आएगी? जब साधना की पराकाष्ठा पर पहुँच जाओगे तब । अभी नहीं । यह बुद्धि अभी यह बात स्वीकारने नहीं देती । बुद्धिजीवी हैं न हम। intellectuals. यह बात इतनी आसानी से घुसती नहीं है कि वह करने वाला है।

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मेरीलैंड श्रीरामशरणम् के उद्घाटन पर प्रवचन ..

मेरीलैंड श्रीरामशरणम् ( अमेरिका) के माँगलिक वर्षघांट के उपलक्ष मे..

इस माँगलिक अवसर पर परम पूज्य महाराजश्री के मुखारविंद से जून 6 , २०११ को दिए गए प्रवचन के अंश

आज एक सीधे साधे महात्मा की बात याद आती है। बहुत से सीधे साधे लोग यहाँ बैठे हैं। all are not complicated! ऐसा ही एक महात्मा कनक दास। अनपढ़ भी होगा। कोई बड़े आश्रम नहीं बनाए, कोई बड़े शिष्य नहीं बनाए । आज बड़े आचार्य ने सोचा, यह कनक दास ऐसे ही बोलता फिरता रहता है। इसे आश्रम में बुलाकर इसका मज़ाक़ उड़ाते हैं। young disciples, आए हैं लेने, आइए महाराज । कनक दास को क्या फ़र्क़ पड़ता है। चले गए हैं। सब इकट्ठे हो गए हैं। बुज़ुर्गों ध्यान से सुनो इस बात को। आपके लिए विशेष कह रहा हूँ – बहुत थोड़ी अब रह गई है। अभी भी यह पल्ले बाँध लो, अभी भी जीवन में यह आ जाए, जीवन में कुछ पा लोगे। नहीं तो जैसे आए थे वैसे ही जाओगे या उससे भी बत्तर हो कर जाओगे। क्यों? जो करना चाहिए था वह किया नहीं है।

कनकदास को आज बिठाकर शिष्य क्या कह रहे? कनकदास जी क्या मैं स्वर्ग जाऊँगा ? कनकदास जी मुस्कुरा कर कहते हैं, मैं जाएगा तो तू जाएगा। दूसरे शिष्य ने भी यही पूछा उसको भी यही उत्तर ! अब माधवचार्य जी ने भी यह पूछा – कनकदास जी क्या मैं स्वर्ग जाऊँगा ? कहा महाराज मैं जाएगा तो आप जाओगे ? लाए तो थे अपमान करने पर सब अपमानित महसूस कर रहे हैं। किसी और शिष्य ने पूछ लिया- क्या आप स्वर्ग जाएँगे ! कनकदास जी ने कहा- मैं जाएगा तो मैं जाऊँगा , अन्यथा नहीं । अब सब जाने वे किस मैं की बात कर रहे हैं । जिस नाम ने मान नहीं मारा तो मानो अभी गंदगी बहुत पड़ी है , जातक यह गंदगी साफ़ नहीं होगी तब तक परमेश्वर के दरबार में नहीं जा सकते । परमेश्वर की बात तो बहुत दूर की है , आपको परम शान्ति नहीं मिल सकती । आप चाहते हो यहाँ रहते हुए आपको शान्ति मिले, नहीं मिल सकती। जब तक मैं बना रहेगा, तब तक अभिमान बना रहेगा, तब तक परमानन्द की प्राप्ति नहीं हो सकती।

जिसने झुकना सीख लिया उसे कमज़ोर न मानो, यह तो शूर वीरता का चिह्न है। मानो उसने जीवन की बाज़ी जीत ली । यदि अभिमान पराजय है तो निरभिमान वास्तविक जीत है । ग़रीब हूँ, मुझे अनपढ़ कहते हैं, मुझे आता जाता भी नहीं है, छोटी छोटी बातें आपकी सेवा में ।

जो झुकना सीख गया उसको कोई भी कुछ भी कभी नहीं बिगाड़ सकेगा। जो सीधा खड़ा है, जिसे झुकना नहीं आया वह सदा अशान्त ही रहेगा । ऊपर से हँसता दिखाई देगा लेकिन अंदर से अशान्त ही बना रहेगा । झुकना आ जाए, सब कुछ आ गया। सहनशीलता , सहना व प्रेम करना आ जाएगा । यूँ कहो राम नाम जो कुछ आपको दे सकता है वह राम नाम ने आपको दे दिया – आपको प्रेम करना सिखा दिया । जब प्रेम अंदर ठाठे मारेगा तो आप दूसरों को दिए बिना रह नहीं सकोगे। मानो ज़िन्दगी सफल बन गई ।

अपनों से प्रेम मोह ! प्रेम का स्वभाव दो चार से प्रेम करना नहीं है ! दो चार से प्रेम करना मोह कहा जाता है और मोह बंधन का कारण है । यह ऐसे फैलेगा जैसे epidemic फैलता है। परमेश्वर की इतनी कृपा है कि स्वामीजी महाराज जैसे संत द्वारा महामंत्र मिला है। यदि वह पाकर भी झुकना नहीं आया तो क्या कारण है? झुकना आ गया तो किसी चीज़ की कमि नहीं महसूस होती । बाधाएँ अपने आप खत्म हो जाती हैं । परमात्मा कहते हैं शुक्र है कोई मिला जिसे मैं देना चाहता हूँ, बाकि सब तो माँगे वाले हैं।

सबको बहुत बहुत बधाई देता हूँ । किसी को कुछ बुरा लगा हो क्षमा कीजिएगा । पर जीवन रहते झुकना आ जाए । Don’t wait please. Time waste करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। नियम निभाओगे देवी तो मैं साथ निभाता रहूँगा । जहाँ नहीं , वहाँ से मैं चुप चाप अपने आप को withdraw कर लूँगा । स्वामी जी महाराज फिर यूँ फ़रमाते हैं कि मेरी और आपकी निभ नहीं सकेगी। धन्य हैं वे बाबा! कब से क्या क्या हुआ है उनके साथ , अब तक सहन कर रहे हैं। किसी को सज़ा नहीं दी स्वामीजी महाराज ने ! वे बाबा हैं ! फिर जैसे स्वामीजी महाराज कहते हैं करो और भरो ! जैसी करनी वैसा फल आज नहीं तो निश्चित कल ! Be good and do good ! आप किसी कर्त्वय का पालन नहीं करते स्वामी जी महाराज जी फ़ेल कर देते हैं, कहते हैं, come again ! Re appear ! पास होकर मेरे पास आओ !

साधकजनों परमात्मा को कभी नहीं भूलना ।

अमेरिका के उद्घाटन दिवस के पावन आगमन पर : जून ६,२०११

परम पूज्य श्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री के मुखारविंद से मेरीलैंडन, अमेरिका के उद्घाटन दिवस के पावन आगमन पर : जून ६,२०११

भाग १

आज के इस माँगलिक दिवस पर आप सब को मैं बधाई देता हूँ।बहुत बहुत बधाई, अनेक बार बधाई।

राम नाम जो स्वामी जी महाराज देते हैं, इसे छोटी चीज़ नहीं समझिएगा। स्वामीजी महाराज इस राम नाम को, राम मंत्र को महामंत्र कहते हैं। हमारा मंत्र “राम” है, श्री राम नहीं, सीता राम नहीं, जय राम जय जय राम नहीं , श्री रामाय नम: नहीं, सिर्फ़ ” राम ” । जो परमात्मा का नाम है, वही स्वामीजी महाराज द्वारा दिया मंत्र है । यह मेरे बाबा की कृपा है कि जब राम बोलोगे तो दो काम होंगे- एक परमात्मा का नाम जपा जाएगा, और दूसरा गुरूमंत्र जपा जाएगा।

यह मंत्र महामंत्र क्यों कहा जाता है? समझाते हैं- यह वही मंत्र है जो प्रसाद के रूप में मुझे परमात्मा के दरबार से मिला था। और मुझे कहा गया था कि सत्यानन्द जो तेरी झोली में प्रसाद डाला गया है, उसी को सब में बाँट । स्वामी जी महाराज तब से लेकर आज तक यही काम कर रहे हैं । ऐसा नहीं सोचिएगा कि उनको बढ़िया प्रसाद मिला था और आपको कोई घटिया दे रहे हैं । यह बाबा का स्वभाव नहीं है। जो बाबा को वहाँ से मिला वही हम सब की झोली में डाल दिया। हमें बहुत आसानी से मिल गया इसलिए हम इसकी क़दर नहीं करते हैं। जिसने महिमा जानी वह गली गली गाती फिरती है- पायो जी मैंने राम रत्न धन पायो। स्वामी रामकृष्ण परमहंस का भी मंत्र राम ही था। स्वामी विवेकानन्द का भी मंत्र राम ही था। एक ही मंत्र राम तीनों के अलग अलग इष्ट । एक के मुरली मनोहर, एक की माँ काली और एक के भगवान शिव !

स्वामीजी महाराज एक जगह कहते हैं आँख बंद करो और बिंदी वाली जगह को देखो। क्या देखना है, किसको देखना है? अपने इष्ट को, उसे जो आपका प्यारा है। आपने गुरूमंत्र लिया है न , अब से लेकर जब तक जीवन है तब तक नहीं छोड़ना । स्वामी जी कहते हैं आपको अपना मंत्र बदलने की ज़रूरत नहीं । मंत्र कहता है- I will adjust myself ! करना क्या है ? जपना है बस। प्रेमपूर्वक जपना है, जैसे स्वामीजी महाराज ने कहा है। जो प्रेमपूर्वक राम नाम जपेगा, कोरे काग़ज़ पर लिखवा लो- वह आवागमन के चक्कर से छूट जाएगा। याद उसी की आती है जिससे प्रेम हो! जब हम राम नाम जपते हैं यदि प्रेम परमात्मा से है तो याद परमात्मा की आएगी । पर हमारे साथ ऐसा होता नहीं है। नाम तो ज़रूर हम राम का करते हैं पर याद हम संसार को करते हैं, मानो प्रेम हम संसार से करते हैं। यहीं हम मार खा जाते हैं। इसी लिए जो चीज़ हमें मिलनी चाहिए वह मिलती नहीं है।

आप कहीं भी रहते हैं, भारत में रहते हैं, अमेरिका में रहते हैं, UK में रहते हैं, अध्यात्म में there is NO exception. अपनी सोच को सुधारिएगा। परमात्मा एक है उसके रूप अनेक नाम अनेक हो सकते हैं। युवकों बच्चों जो सबसे बड़ा है वह एक है । पवित्रता अपवित्रता की चिन्ता न करिए । जिसे राम नाम नहीं पवित्र नहीं कर सका वह paste और detergent क्या देंगे । देखो राम नाम का रंग अभी चढ़ा है कि नहीं ! यदि नहीं तो क्या कारण होंगे । समझदार बनो – you are intellectuals, यह बाल ऐसे ही सफ़ेद नहीं किए आपने । राम नाम से फ़ायदा लीजिएगा। पुराना ऋण उतारिएगा नया नहीं चढ़ाना !

गुण जिसके आने से सारे के सारे गुण अपने आप आ जाते हैं वह है – झुकना सीखिएगा । जिसने राम नाम से यह नहीं पाया, समझ लेना उसने राम नाम से कुछ नहीं पाया ।

क्रमश ….